झारखंड के सबसे पिछड़े इलाकों में गिना जानेवाला संथाल परगना का गोड्डा आज चर्चा में है। पत्थर और कोयले की खदानों के अलावा पलायन के लिए देश भर में चर्चित यह जिला आज चर्चा में इसलिए है, क्योंकि यहां से एक नयी ट्रेन का उद्घाटन हुआ है। वैसे तो नयी ट्रेन का उद्घाटन कोई बहुत बड़ी बात नहीं है, लेकिन गोड्डा से आज से हमसफर एक्सप्रेस की शुरूआत ने झारखंड के विकास में नया अध्याय जोड़ा है। इस अध्याय का बड़ा भाग जहां बेहद चमकीला है, वहीं इसमें कुछ कालिख भी समाहित है। सकारात्मक बात यह है कि गोड्डा से अब देश की राजनीतिक राजधानी दिल्ली के लिए सीधी ट्रेन सेवा उपलब्ध हो गयी है और इससे इस इलाके के विकास की गति को तेजी मिलेगी, लेकिन इसका दुखद पहलू यह है कि इस ट्रेन के उद्घाटन समारोह को लेकर बेवजह विवाद पैदा किया गया और फिर रही-सही कसर समारोह में स्थानीय सांसद और विधायक के बीच की हाथापाई ने पूरी कर दी। झारखंड की विकास गाथा में इस नयी ट्रेन के उद्घाटन को चमकीले अध्याय के रूप में याद किया जायेगा, वहीं कोरोना की आड़ में उद्घाटन समारोह में बाधा डालने के लिए उपायुक्त की भूमिका को भी अंकित किया जायेगा। इसके अलावा इस ट्रेन की शुरूआत का श्रेय लेने के लिए आपस में भिड़नेवाले दो वरिष्ठ जन प्रतिनिधियों के आचरण को भी जनता हमेशा याद रखेगी। गोड्डा से इस नयी ट्रेन की शुरूआत के विविध आयामों को समेटती आजाद सिपाही के राजनीतिक संपादक प्रशांत झा की विशेष रिपोर्ट।
संथाल परगना को झारखंड की कमजोर कड़ी माना जाता है, क्योंकि यहां राज्य के बाकी हिस्सों के मुकाबले विकास कम हुआ है। इसका राजनीतिक कारण तो है ही, इलाके की भौगोलिक परिस्थितियां भी इसके लिए जिम्मेवार हैं। लेकिन हाल के वर्षों में इलाके के माथे पर से पिछड़ेपन का कलंक मिटाने के लिए कई प्रयास किये गये हैं। इसी कड़ी में गोड्डा को रेलवे का महत्वपूर्ण केंद्र बनाने का प्रयास भी शामिल है। इस क्रम में आठ अप्रैल को गोड्डा से नयी दिल्ली के लिए सीधी ट्रेन सेवा की शुरूआत हुई, जिसका आॅनलाइन उद्घाटन दिल्ली से रेल मंत्री पीयूष गोयल ने किया। वैसे तो किसी नयी ट्रेन की शुरूआत कभी सुर्खियां नहीं बटोरती हैं, लेकिन गोड्डा से इस हमसफर एक्सप्रेस की शुरूआत ने रिकॉर्ड सुर्खियां बटोरी हैं।
निश्चित तौर पर हमसफर एक्सप्रेस से संथाल परगना के इलाके में विकास का नया सवेरा हुआ है और कोयला-पत्थर खदानों के साथ पलायन के लिए देश भर में चर्चित गोड्डा अब रेलवे के मानचित्र पर तेजी से उभरा है। इससे विकास की गति तो तेज होगी ही, लोगों को आवागमन का सुगम और सस्ता साधन भी उपलब्ध हो गया है। लेकिन विकास की प्रतीक हमसफर एक्सप्रेस के उद्घाटन समारोह में जो कुछ हुआ, उसने एक नया विवाद पैदा कर दिया है, जो झारखंड के लिए खतरनाक हो सकता है।
इस नयी ट्रेन सेवा को शुरू करने का श्रेय लेने की होड़ स्वाभाविक रूप से जन प्रतिनिधियों में लगी हुई थी। सांसद निशिकांत दुबे जहां इसे अपनी और भाजपा की बड़ी उपलब्धि बता रहे हैं, वहीं प्रदीप यादव सरीखे जनप्रतिनिधि और भाजपा के विरोधी विधायकों ने इस उपलब्धि पर अपना हक जताया है। दोनों पक्षों के तर्क अपनी-अपनी जगह सही हो सकते हैं, लेकिन ट्रेन के उद्घाटन समारोह में अड़ंगा डालने के प्रयास के लिए जिले के उपायुक्त को हमेशा याद किया जायेगा। उपायुक्त ने कोरोना गाइडलाइन का हवाला देते हुए इस समारोह के आयोजन पर रोक लगाने को कहा था और संक्रमण फैलने की स्थिति में रेलवे को जिम्मेवार बता दिया था। प्रावधानों के नजरिये से उनका यह कदम सही हो सकता है, लेकिन व्यवहार में यह अटपटा लगता है कि केंद्रीय मंत्री के किसी कार्यक्रम को उस गाइडलाइन का हवाला देकर रोक दिया जाये, जो केंद्र सरकार ने ही तय की है। गोड्डा के उपायुक्त द्वारा ट्रेन के उद्घाटन समारोह को रोकने के प्रयास से यह संकेत भी मिल रहा है कि आज भी विकास की गाड़ी का स्टीयरिंग ह्वील नौकरशाही के पास ही है। यह खतरनाक है और राजनीतिक नेतृत्व के साथ लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के लिए चुनौती भी है।
उपायुक्त के निर्देश के अनुरूप ट्रेन का उद्घाटन समारोह तो सादे ढंग से निपट गया, लेकिन इसमें स्थानीय सांसद और विधायक ने जिस आचरण का प्रदर्शन किया, उसके लिए भी हमसफर एक्सप्रेस के पहले सफर को हमेशा याद रखा जायेगा। गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे और पोड़ैयाहाट के विधायक प्रदीप यादव के बीच ट्रेन के उद्घाटन समारोह में नूरा कुश्ती जैसी स्थिति ने झारखंड की विकास यात्रा पर बड़ा सवालिया निशान खड़ा कर दिया है।
आखिर इन दोनों जन प्रतिनिधियों ने विकास की प्रतीक इस ट्रेन को सकुशल विदा क्यों नहीं होने दिया, यह सवाल आज पूरे झारखंड की जुबान पर है। महज एक ट्रेन सेवा शुरू कराना ही किसी जन प्रतिनिधि का अंतिम लक्ष्य हो सकता है, इसे माननेवाले यह भूल जाते हैं कि गोड्डा को विकास यात्रा में अभी लंबा सफर तय करना है। विकास का श्रेय लेने की इस अंधी होड़ में सांसद और विधायक के बीच नूरा कुश्ती बेहद दुखद है और निराशाजनक भी।
हमसफर एक्सप्रेस की शुरूआत झारखंड के लिए बड़ी उपलब्धि है, इसमें कोई संदेह नहीं है, इसके लिए सांसद का प्रयास सराहनीय भी है, लेकिन एक ट्रेन को लेकर सांसद और विधायक के बीच इतनी राजनीति को किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं किया जा सकता है। जिस ट्रेन को शुरू करने का श्रेय लेने की होड़ मची है, उसका अंतिम लाभुक आम व्यक्ति ही होगा, जो हर चुनाव में अपना वोट देकर अपना प्रतिनिधि चुनता है। उसकी आकांक्षा यही होती है कि उसके इलाके का विकास हो, ताकि उसका भविष्य भी सुरक्षित हो सके। आम व्यक्ति की इस आकांक्षा पर राजनीति करने का किसी को कोई हक नहीं होना चाहिए, चाहे वह कोई भी हो। इसलिए गोड्डा में आज जो कुछ हुआ, उसके लिए इन जन प्रतिनिधियों को खेद प्रकट करना चाहिए और जिस अव्यवस्था के बीच उद्घाटन समारोह हुआ, उसके लिए उपायुक्त को जिम्मेवार ठहराया जाना चाहिए। उन्होंने वहां कोरोना गाइडलाइन का पालन क्यों नहीं करवाया, यह बताया जाना चाहिए। सिर्फ पत्र भेज देने से उपायुक्त की जिम्मेदारी पूरी नहीं हो जाती। ऐसा करने से ही इस शर्मनाक प्रसंग का अंत हो सकेगा।