विशेष
-छोटी पार्टियों को लुभाने के साथ नीतीश के वोट बैंक में सेंध लगाने की तैयारी
-अमित शाह के नवादा दौरे के बाद से फॉर्मूले पर काम तेज

देश में 2024 के आम चुनाव को लेकर माहौल बनने लगा है। लगातार तीसरी बार सत्ता में आने के लिए कमर कस चुकी भाजपा अब एक-एक कर उन राज्यों पर फोकस कर रही है, जहां विपक्षी दलों की सरकार है और लोकसभा चुनाव में वहां कुछ ‘खेल’ हो सकता है। ऐसा ही एक राज्य है बिहार, जहां अभी नीतीश कुमार के नेतृत्व में जदयू-राजद-कांग्रेस की सरकार सत्ता में है। 2019 में भाजपा का नीतीश कुमार की पार्टी के साथ गठबंधन था और इसी कारण इन दोनों ने मिल कर राज्य की 40 में से 39 सीटों पर जीत हासिल कर ली थी। इस बार स्थिति अलग है। इसलिए भाजपा ने बिहार के लिए नया फॉर्मूला तय किया है। उसे इस बात का एहसास है कि बिहार में उसकी जीत का रास्ता नीतीश कुमार के वोट बैंक में सेंध लगाने से ही निकलेगा। भाजपा जानती है कि राजद के वोट बैंक में सेंध लगाना इतना आसान नहीं है, क्योंकि उसका वोट जातीय आधार के कारण भावनात्मक रूप से राजद से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा नीतीश कुमार के विरोध में छोटे दलों को अपने साथ लाना भी जरूरी है। इसलिए भाजपा इस अनोखे सामाजिक समीकरण पर ध्यान केंद्रित कर रही है, जिसमें ‘अगड़ी’ जातियों के साथ-साथ ज्यादातर पिछड़े दलित समुदाय शामिल हैं। जदयू को लंबे समय से गैर-यादव पिछड़ी जातियों और दलित समुदायों का व्यापक समर्थन हासिल है। इसलिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पिछले दिनों मौर्य शासक सम्राट अशोक की जयंती पर नवादा आये थे, जो कुशवाहा समुदाय का इलाका माना जाता है। आबादी के लिहाज से कुशवाहा (कोइरी) समुदाय बिहार की दूसरी सबसे बड़ी आबादी है। इसकी आबादी सात से आठ फीसदी है। इस समुदाय का दावा है कि सम्राट अशोक भी इसी समुदाय के थे। इसलिए भाजपा ने पहले उपेंद्र कुशवाहा को नीतीश से अलग किया और फिर सम्राट चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बना कर कुशवाहा समुदाय को संदेश दिया। बिहार के लिए इस दोहरे प्लान का विश्लेषण कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

लगातार तीसरी बार देश की सत्ता हासिल करने के लिए कमर कस चुकी भाजपा ने अपने मिशन 2024 की रणनीति में थोड़ा बदलाव करते हुए उन राज्यों के लिए अलग-अलग फॉर्मूला तैयार कर लिया है, जहां विरोधी दलों की सरकार है। इन राज्यों में 2019 में हालांकि पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया था, लेकिन बदली राजनीतिक परिस्थितियों और विपक्ष के एकजुट होने के खतरे को देखते हुए भाजपा ने इस फॉर्मूले पर तेजी से काम शुरू कर दिया है। भाजपा की नजर में दो ऐसे राज्य हैं, जहां पांच साल में राजनीतिक हालात बदले हैं। ये राज्य हैं बिहार और महाराष्ट्र। महाराष्ट्र में चूंकि भाजपा सत्ता में है, इसलिए उसे अधिक चिंता नहीं है, लेकिन बिहार में 2019 का प्रदर्शन दोहराने के लिए भाजपा को यह फॉर्मूला तैयार करना पड़ा है। इस फॉर्मूले में भाजपा छोटे दलों को अपने खेमे में लाने के साथ अब सामाजिक समीकरणों पर ध्यान दे रही है।
इस बात में कोई संदेह नहीं कि भाजपा के सामने अभी सबसे बड़ी चुनौती 2024 का लोकसभा चुनाव है। इस चुनाव में बिहार में जदयू-राजद-कांग्रेस और अन्य दलों की महागठबंधन सरकार को हरा कर भाजपा 2025 में राज्य में होनेवाले विधानसभा चुनाव के लिए भी अपने हक में सकारात्मक माहौल बनाना चाहती है। लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए भाजपा ने अब लंबे समय तक अपने सहयोगी रहे नीतीश कुमार के वोट बैंक पर ही नजर गड़ा दी है। बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में चल रही महागठबंधन सरकार की सबसे मजबूत पार्टी वैसे तो राजद है, लेकिन भाजपा को इस बात का एहसास हो गया है कि राज्य में पार्टी का जनाधार बढ़ाने के लिए या यूं कहें कि भाजपा की जीत का रास्ता नीतीश कुमार के वोट बैंक में ही सेंध लगाने से निकलेगा। ऐसे में भाजपा अब उत्तरप्रदेश की तर्ज पर बिहार में भी एक नया सामाजिक राजनीतिक समीकरण या वोट बैंक बनाने की कोशिश में जुट गयी है।

नीतीश के वोट बैंक पर भाजपा की नजरें
नीतीश कुमार गैर यादव पिछड़ी जातियों, दलित समुदाय और मध्यम वर्ग के एक बड़े तबके, खासकर महिलाओं के समर्थन के बल पर बिहार में भाजपा के सहयोग से लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे और वर्तमान में राजद के सहयोग से मुख्यमंत्री हैं। भाजपा ने एक खास रणनीति के तहत अब नीतीश कुमार के इसी वोट बैंक पर निशाना साधना शुरू कर दिया है। भाजपा ने बिहार में महागठबंधन की सरकार को हराने के लिए एक तरफ जहां उत्तरप्रदेश की तर्ज पर एक नये सामाजिक राजनीतिक समीकरण को तैयार करने की रणनीति बनायी है, जिसके तहत भाजपा अपने परंपरागत जनाधार, अगड़ी जातियों को तो मजबूती से अपने साथ बनाये रखने की कोशिश करेगी ही, तो वहीं साथ ही नीतीश के समर्थक पिछड़ी जातियों को भी पार्टी से जोड़ने की कोशिश करेगी।
बिहार की राजनीति के लिहाज से देखा जाये, तो यह अपनी तरह का एक अनोखा सामाजिक राजनीतिक समीकरण होगा। बिहार में जातियों की बात करें, तो यादव समुदाय के बाद कुशवाहा समुदाय को सबसे बड़ा और सबसे ठोस वोट बैंक माना जाता है, जो लगातार नीतीश कुमार के साथ रहा है। बिहार की आबादी में कुशवाहा समाज की आबादी सात से आठ प्रतिशत के लगभग है।

सम्राट चौधरी को बनाया प्रदेश अध्यक्ष
भाजपा ने हाल ही में कुशवाहा समुदाय से जुड़े सम्राट चौधरी को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बना कर अपने इरादे को जाहिर भी कर दिया है। भाजपा नीतीश कुमार पर यह आरोप लगा रही है कि कुशवाहा समाज ने हमेशा नीतीश कुमार का साथ दिया, लेकिन बदले में नीतीश कुमार ने उन्हें सिर्फ धोखा ही दिया है। सम्राट चौधरी के जरिये भाजपा द्वारा बिहार के कुशवाहा मतदाताओं को यह राजनीतिक संदेश देने का प्रयास भी किया जा रहा है कि राज्य में यादव और कुर्मी मुख्यमंत्री रह चुके हैं और अब उनके समाज के किसी शख्स को मुख्यमंत्री बनना चाहिए। कुशवाहा समाज के साथ-साथ भाजपा राज्य में अत्यंत पिछड़ा वर्ग में आनेवाली कुछ ऐसी जातियों को भी पार्टी के साथ जोड़ने की कोशिश कर रही है, जिनकी संख्या चुनावी रणनीति के हिसाब से बहुत ज्यादा भले ही ना हो, लेकिन अगर यहे जातियां मिल कर भाजपा को वोट देती हैं, तो उसके उम्मीदवारों की जीत की राह और ज्यादा आसान हो जायेगी।

छोटे दलों पर भाजपा का फोकस
यही वजह है कि भाजपा ने अब बिहार में जातिगत जनाधार रखनेवाले छोटे-छोटे राजनीतिक दलों पर भी फोकस करना शुरू कर दिया है। इसी रणनीति के तहत भाजपा की निगाहें चिराग पासवान, उपेंद्र कुशवाहा, मुकेश सहनी, जीतन राम मांझी और आरसीपी सिंह जैसे नेताओं पर बनी हुई है। भाजपा इस बार इन छोटे-छोटे दलों को साथ लेकर लोकसभा चुनाव में उतरने का मंसूबा बना रही है। मध्यम वर्ग और महिलाओं में नीतीश कुमार की लोकप्रियता को कम करने के लिए भाजपा लगातार राज्य में फेल हो चुकी शराबबंदी, नकली शराब से हो रही लोगों की मौत और लगातार बिगड़ रही कानून-व्यवस्था के मसले को जोर-शोर से उठा रही है। यहां तक कि भाजपा नीतीश कुमार की अपनी जाति कुर्मी समुदाय को भी लुभाने की कोशिश कर रही है। यादव समाज से आनेवाले नित्यानंद राय को पार्टी ने केंद्र की मोदी सरकार में गृह राज्यमंत्री बनाया हुआ है।

महागठबंधन को पस्त करना चाहती है भाजपा
भाजपा की कोशिश बिहार में अगड़ी जातियों और अत्यंत पिछड़ी जातियों का एक ऐसा वोट बैंक तैयार करना है, जिसके सहारे पार्टी बिहार में मजबूत जनाधार वाली महागठबंधन सरकार को परास्त कर सके। अगर भाजपा राज्य में इस तरह का जातीय राजनीतिक सामाजिक समीकरण तैयार करने में कामयाब हो जाती है, तो फिर देश के कई अन्य राज्यों की तरह बिहार में भी 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी 50 प्रतिशत के आसपास वोट हासिल कर सकती है और अगर ऐसा हुआ, तो निश्चित तौर पर 2025 के विधानसभा चुनाव में भाजपा एक बड़े दावेदार के रूप में नीतीश-तेजस्वी महागठबंधन के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरेगी।

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