विशेष
-खूंटी एसडीओ से साथ हुई घटना ने पुलिस के इकबाल पर खड़े किये सवाल
-गढ़वा से लेकर देवघर-गोड्डा तक इसलिए फल-फूल रहा है अवैध खनन

झारखंड की राजधानी रांची से सटे खूंटी जिले में तीन दिन पहले हुई वारदात ने एक बार फिर प्रमाणित कर दिया है कि राज्य के पुलिस प्रशासन का इकबाल यदि खत्म नहीं हुआ है, तो कम जरूर हो गया है। खूंटी में अवैध खनन का कारोबार करने वाले माफिया तत्वों ने वहां के एसडीएम को हाइवा से रौंदने की कोशिश की। एसडीएम किसी तरह बच गये और डीसी द्वारा एफआइआर दर्ज कराये जाने के बावजूद अब तक न तो हाइवा का पता लग सका है और न ही कोई गिरफ्तारी हुई है। वैसे तो यह घटना न पहली है और न आखिरी, लेकिन इसने एक बड़ा सवाल यह खड़ा कर दिया है कि आखिर किसकी शह पर अवैध खनन के कारोबारी और माफिया इतने बेखौफ हो गये हैं कि वे प्रशासनिक अधिकारियों की जान लेने तक के लिए तैयार दिखते हैं। खूंटी से पहले देवघर, गुमला, हजारीबाग, गढ़वा, गिरिडीह और चतरा में भी इस तरह की वारदातें हो चुकी हैं और आश्चर्य इस बात का है कि अब तक किसी भी मामले में एक भी गिरफ्तारी नहीं हुई है। हालांकि यह बात भी सही है कि खनन माफिया का आतंक झेलनेवाला झारखंड अकेला राज्य नहीं है, लेकिन झारखंड में यह समस्या दिन-प्रतिदिन गंभीर होती जा रही है। मुख्य रूप से बालू और पत्थर के अवैध कारोबार पर नकेल कसना अब सबसे जरूरी हो गया है, क्योंकि इससे झारखंड चौतरफा घिरता जा रहा है। आज यह केवल विधि-व्यवस्था की समस्या नहीं है, बल्कि राज्य के आर्थिक हितों का भी नुकसान इससे हो रहा है। झारखंड में अवैध खनन माफिया के बेखौफ होने की कहानी बयां कर रहे हैं आजाद सिपाही के राज्य समन्वय संपादक अजय शर्मा।

बहुचर्चित हिंदी फिल्म ‘सिंघम’ का एक डायलॉग पुलिस महकमे में बहुत मशहूर है कि यदि पुलिसवाले चाह लें, तो कोई एक चप्पल तक चोरी नहीं कर सकता। यह डायलॉग पुलिस या खाकी वर्दी के इकबाल का उदाहरण है, लेकिन झारखंड में पुलिस प्रशासन का असर अब इतना भी नहीं रह गया है कि वह प्रशासन के अधिकारियों को अवैध खनन कारोबारियों और माफिया तत्वों से महफूज रख सके। तीन दिन पहले 15 अप्रैल को खूंटी के एसडीएम को बालू का अवैध खनन करनेवालों ने जिस तरह रौंदने का प्रयास किया, उससे साफ पता चलता है कि इन माफिया तत्वों का हौसला कितना बढ़ गया है। वैसे खूंटी की घटना न तो पहली है और न आखिरी। इससे पहले गढ़वा, गुमला, चाईबासा, हजारीबाग, गिरिडीह, धनबाद, देवघर और गोड्डा इलाके में कई बार इस तरह की घटनाएं हो चुकी हैं। संयोग केवल इतना ही है कि झारखंड में अब तक किसी अधिकारी को जान नहीं गंवानी पड़ी है। लेकिन देश के दूसरे हिस्सों में तो बालू और पत्थर माफियाओं ने पुलिस प्रशासन के कई अधिकारियों की जान तक ले ली है।
अवैध खनन का धंधा करने वाले माफिया बेखौफ हो चुके हैं। न सिर्फ झारखंड में, बल्कि हरियाणा और उत्तर प्रदेश में भी खनन माफियाओं का दुस्साहस जगजाहिर है। झारखंड अपनी खनिज संपदा के लिए पूरी दुनिया में प्रख्यात है, तो यहां अवैध खनन का कारोबार भी सबसे अधिक होता है। कोयला और लौह अयस्क जैसे प्रमुख खनिजों के अलावा बालू और पत्थर जैसे लघु खनिजों का अवैध कारोबार यहां खूब फल-फूल रहा है।
झारखंड के पिछड़े होने का राजनीतिक कारण चाहे कोई भी हो, हकीकत यही है कि यहां की खनिज संपदा ही उसके लिए अभिशाप बन गयी है। बड़े पैमाने पर माफिया, बिचौलिये और दुनिया भर के पूंजीपति इस राज्य की संपदा को इतनी बेदर्दी से लूट रहे हैं कि यहां का नैसर्गिक सौंदर्य भी खत्म होता जा रहा है। यह जानकर आश्चर्य होता है कि झारखंड में कोयला, लौह अयस्क, बालू, पत्थर और अभ्रक के अलावा अन्य खनिजों का जिस पैमाने पर अवैध कारोबार होता है, यदि उस पर नकेल लग जाये, तो यह राज्य न केवल सबसे विकसित हो जायेगा, बल्कि दुनिया के कई मुल्कों को पीछे छोड़ देगा।
एक गैर-सरकारी संगठन द्वारा एकत्र आंकड़ों से पता चलता है कि झारखंड में बालू और पत्थर के अवैध कारोबार में हर महीने करीब तीन सौ करोड़ का लेन-देन होता है। इस अवैध कारोबार में माफिया, बिचौलिये और मजदूरों के साथ चालक तथा ट्रक संचालक भी बड़ी संख्या में जुड़े हैं। इनकी संख्या करीब सवा लाख अनुमानित है।
झारखंड में बालू और पत्थर के अवैध कारोबार का किस्सा कम दिलचस्प नहीं है। संथाल के तीन जिलों, साहेबगंज, पाकुड़ और दुमका में पत्थरों का अवैध कारोबार इतना फैल चुका है कि यहां की आबादी का बड़ा हिस्सा इससे जुड़ गया है। साहेबगंज में तो दो दर्जन पहाड़ गायब हो चुके हैं। इन तीन जिलों से ही हर महीने करीब एक सौ करोड़ रुपये के पत्थरों का अवैध कारोबार होता है। साहेबगंज से गुजरनेवाली गंगा नदी और छोटानागपुर में बहनेवाली छोटी-बड़ी नदियां बालू के अवैध कारोबार के कारण खतरनाक हो चुकी हैं। कई पुल ध्वस्त हो गये हैं और यह सिलसिला लगातार जारी है। अनुमान के अनुसार बालू का अवैध कारोबार भी करीब एक सौ करोड़ रुपये हर महीने का है। गंगा नदी में रात के अंधेरे में स्टीमर चलते हैं, जिन पर बालू लदा होता है। यह बालू उस पार बिहार के कटिहार जिले के मनिहारी तक पहुंचा दिया जाता है और वहां से बंगाल और बांग्लादेश तक इसका कारोबार फैला हुआ है। बालू का कारोबार तो राज्य के हर हिस्से में फैला हुआ है। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण की रोक के बावजूद आज भी बालू घाटों पर उत्खनन बेरोक-टोक जारी है।
झारखंड अलग राज्य बनने के बाद से अक्सर राज्य में होनेवाले खनिजों के अवैध कारोबार की चर्चा होती रहती है। पिछली सरकार में तो शीर्ष स्तर पर इस पर रोक लगाने की हिदायतें लगभग हर बैठक में दी जाती थीं, लेकिन न कभी इस पर रोक लगाने की कोशिश हुई और न ही किसी ने इस पर ध्यान ही दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि यह अवैध कारोबार आज इतना फैल चुका है कि इसने राज्य की राजनीति से लेकर नौकरशाही तक को अपने जाल में लपेट लिया है। जाहिर है, इतने बड़े अवैध कारोबार का हिस्सा अकेले कारोबारी नहीं लेते होंगे। इसका लाभ कुछ राजनेताओं, पुलिस-प्रशासन के कतिपय अधिकारियों और खनन उद्योग से जुड़े लोगों तक पहुंचता है।
खनिज तस्करों और अवैध कारोबारियों के नेटवर्क की कहानियां मीडिया में खूब आती रहती हैं। अवैध कारोबार का इतना संगठित और निरापद कारोबार किसी दूसरे क्षेत्र में शायद ही कभी देखा-सुना गया हो। झारखंड में खनन माफिया इतने दुस्साहसी हो गये हैं कि उनमें कानून का जरा भी भय नहीं है। वे और उनके गुर्गे अवैध खनन को रोकने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों पर जानलेवा हमला करने में जरा भी देर नहीं करते हैं।
झारखंड के लिए बालू और पत्थरों के अवैध कारोबार को रोकना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि यह संपदा केवल झारखंड की है। जमीन के नीचे के खनिज तो केंद्र सरकार के हिस्से में हैं, नदियां और पहाड़ राज्य सरकार के पास हैं। इनका संरक्षण कर न केवल ‘जल-जंगल-जमीन’ के नारे को हकीकत में बदला जा सकता है, बल्कि झारखंड की विरासत और सदियों पुरानी संस्कृति को भी अक्षुण्ण रखा जा सकता है।

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