विशेष
-अन्नपूर्णा देवी की राह को लगातार कंटीला बना रहे हैं विनोद सिंह
-दोनों के पास अपनी-अपनी विरासत और अनुभवों का बड़ा खजाना
-जातीय गोलबंदी और मुद्दों के ढेर में फंसे वोटरों को साधने की चुनौती
कोडरमा झारखंड का सबसे नया संसदीय क्षेत्र है। यह 1977 में अस्तित्व में आया। राज्य के 14 लोकसभा क्षेत्रों में से एक इस क्षेत्र में कोडरमा जिले के साथ-साथ हजारीबाग और गिरिडीह जिले के कुछ इलाके शामिल हैं। इसमें छह विधानसभा क्षेत्र आते हैं। झारखंड का प्रवेश द्वार कहा जानेवाला कोडरमा हमेशा से रोमांचक चुनावी मुकाबले का गवाह रहा है, क्योंकि यहां जातीय गोलबंदी और मुद्दों के ढेर में मतदाताओं का मन टटोलना अक्सर टेढ़ी खीर साबित होता है। इस बार कोडरमा संसदीय क्षेत्र का मुकाबला बेहद रोचक है, क्योंकि पहली बार यहां भाजपा को भाकपा माले से सीधी चुनौती मिल रही है। कोडरमा को भाजपा का गढ़ माना जाता है और कहा जाता है कि इस सीट पर उससे पार पाना मुश्किल है। लेकिन इस बार स्थिति बदली हुई नजर आ रही है। भाजपा ने अन्नपूर्णा देवी को दोबारा मैदान में उतारा है, तो उनके सामने भाकपा माले के विनोद सिंह हैं, जो बगोदर से विधायक भी हैं। इन दोनों प्रत्याशियों में कई समानताएं हैं और सियासी अनुभव के लिहाज से भी दोनों लगभग बराबर हैं। अन्नपूर्णा जहां अपने दिवंगत पति रमेश यादव की विरासत संभाल रही हैं, तो विनोद सिंह के पास अपने पिता महेंद्र सिंह की विरासत है। विनोद सिंह पहली बार संसदीय चुनाव में उतरे हैं, लेकिन राजनीति का लंबा अनुभव उन्हें कहीं से भी अन्नपूर्णा देवी से पीछे नहीं रखता। क्या है कोडरमा संसदीय क्षेत्र का माहौल और कैसी है मुकाबले की जमीन, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
झारखंड के 14 संसदीय क्षेत्रों में से एक कोडरमा एक तरफ झारखंड के प्रवेश द्वार के नाम से जाना जाता है, तो दूसरी तरफ अभ्रक की फीकी पड़ती चमक ने यहां की सियासत को कहीं गहरे प्रभावित किया है। ढीबरा, यानी अभ्रक मजदूरों का मुद्दा कोडरमा की सांसों में घुला हुआ मिलता है, तो यहां की सियासी मुकाबले में इसकी झलक मिलती है। कोडरमा संसदीय क्षेत्र 1977 में अस्तित्व में आया। तब से लेकर अब तक चुनाव दर चुनाव यह क्षेत्र भाजपा के मजबूत गढ़ के रूप में स्थापित हो गया है, हालांकि यहां से राजद और अब भाजपा में विलीन हो चुके झारखंड विकास मोर्चा को भी जीत मिल चुकी है। 2019 में भाजपा से अन्नपूर्णा देवी ने यहां से जीत दर्ज की थी। भाजपा ने एक बार फिर उन पर भरोसा जताया है, जबकि उनके सामने बगोदर के भाकपा माले विधायक विनोद कुमार सिंह हैं, जो पहली बार संसदीय चुनाव में उतरे हैं।
कोडरमा लोकसभा सीट पर कांग्रेस कभी भी मजबूत नहीं रही। यह भाजपा की पारंपरिक सीट मानी जाती है। भाजपा ने यहां हुए 13 लोकसभा चुनावों में छह बार जीत दर्ज की है, जबकि कांग्रेस दो बार। इस लोकसभा क्षेत्र में कोडरमा विधानसभा क्षेत्र के अलावा हजारीबाग जिले का बरकट्ठा, गिरिडीह का धनवार, बगोदर, जमुआ और गांडेय विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इस संसदीय क्षेत्र को अभ्रक के लिए जाना जाता है।
कोडरमा सीट का सियासी इतिहास
इस संसदीय क्षेत्र में कोडरमा जिले समेत हजारीबाग और गिरिडीह जिले के कुछ इलाके शामिल किये गये हैं। इसमें छह विधानसभा क्षेत्रों को शामिल किया गया है। इस सीट पर 1977 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुआ था। यहां जनता पार्टी के रीतलाल प्रसाद वर्मा सांसद चुने गये थे। 1980 में रीत लाल प्रसाद वर्मा यहां लगातार दूसरी बार सांसद निर्वाचित हुए। वहीं 1984 के चुनाव में कांग्रेस के तिलकधारी सिंह ने बाजी मारी। इसके बाद 1989 में भाजपा के टिकट पर रीतलाल प्रसाद वर्मा तीसरी बार सांसद बनकर लोकसभा पहुंचे, हालांकि 1991 में जनता दल के उम्मीदवार मुमताज अंसारी ने यहां से जीत दर्ज की। इसके बार फिर 1996 और 1998 में चौथी और पांचवी बार भाजपा से रीतलाल प्रसाद वर्मा ने जीत दर्ज की। साल 1999 में कांग्रेस के तिलकधारी सिंह दोबारा सांसद निर्वाचित हुए। वहीं 2004 में बाबूलाल मरांडी भाजपा के टिकट पर, 2006 के उपचुनाव में निर्दलीय और 2009 में झारखंड विकास मोर्चा के टिकट पर लगातार तीन बार सांसद चुने गये। 2014 में भाजपा के रवींद्र कुमार राय और 2019 में भाजपा की अन्नपूर्णा देवी ने यहां से जीत दर्ज कर भगवा लहराया।
मतदाता और सामाजिक तानाबाना
2019 के आंकड़ों के मुताबिक कोडरमा लोकसभा सीट पर कुल मतदाताओं की संख्या 12 लाख नौ हजार 541 है। 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां की आबादी 28 लाख 27 हजार 701 है। यहां की लगभग 93.52 फीसदी आबादी गावों में रहती है, वहीं 6.48 फीसदी आबादी शहर में रहती है। यहां पर एससी समुदाय की आबादी 14.05 प्रतिशत है और एसटी समुदाय की आबादी 5.96 प्रतिशत है।
क्या है सियासी माहौल
कोडरमा संसदीय क्षेत्र में जारी सियासी विमर्शों में देश से लेकर इलाके की राजनीति में अपने समुदाय की भूमिका, भविष्य, उसमें हिस्सेदारी, मान-सम्मान, अपेक्षा, उपेक्षा तक की चर्चा होती है। कई बार एकमत नहीं होने पर विरोधाभास सामने आते हैं। मंथन का यह दौर हर समुदाय में शुरू हो गया है। एक दल विशेष से असंतुष्ट दो-तीन बड़े वोट बैंक की लाइन ही बहुत स्पष्ट है, जबकि अन्य बड़े वोट बैंक में विभाजन की स्थिति है। इसी को तोड़ने-समेटने में पार्टियां अपने-अपने स्तर से लगी हुई हैं। जाति के अनुसार नेताओं को उनके स्वजातीय लोगों के बीच लगाये जा रहे हैं। इधर, सत्ता के आकर्षण में एक छतरी के नीचे जुटे नेताओं की आकांक्षा, महत्वाकांक्षा, घात, भितरघात का खेल भी कौन सा गुल खिलायेगी, यह आनेवाले समय में ही पता चलेगा।
कोडरमा का जातीय समीकरण
कोडरमा संसदीय क्षेत्र का जातीय समीकरण कई बार अलग-अलग दलों की जीत का कारण बन चुका है। इसी समीकरण के बूते यह सीट एक समय भाजपा का गढ़ रहा। इस सीट से भाजपा के रीतलाल प्रसाद वर्मा इसी समीकरण के बूते छह बार जीते थे, जबकि एक बार अदालत से उनके पक्ष में निर्णय हुआ था। इस सीट पर कोयरी, वैश्य और अन्य पिछड़ी जातियों के वोटरों की किसी पार्टी के पक्ष में एकजुटता कई बार उनकी जीत का कारण बना है। कोडरमा संसदीय सीट से पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवार ज्यादातर अवधि में विजयी होते रहे हैं। इंदिरा गांधी की लहर में जब दूसरी सीटों से जनसंघ के दिग्गज नेता पराजित हो गये थे, उस समय भी रीतलाल प्रसाद वर्मा विजयी हुए थे। कोडरमा का भंडारो गांव भाजपा के ‘गुरुकुल’ के रूप में चर्चित रहा है। रीतलाल प्रसाद वर्मा के बड़े भाई जगदीश प्रसाद कुशवाहा को लोग भाजपा के भीष्म पितामह के रूप में जानते थे। उनके सान्निध्य में रीतलाल प्रसाद वर्मा चुनाव लड़ते थे और विजयी हुआ करते थे। कई अन्य नेताओं ने भी भंडारो से अपनी राजनीतिक शुरूआत की और बाद में अन्य स्थानों से विधायक बने।
क्या है 2024 का परिदृश्य
कोडरमा में इस बार राजनीतिक परिवर्तन बड़ा रूप ले चुका है। 2019 में अन्नपूर्णा देवी ने भाजपा से, जबकि बाबूलाल मरांडी ने झारखंड विकास मोर्चा से चुनाव लड़ा था। अन्नपूर्णा देवी को 62.3 फीसदी और बाबूलाल मरांडी को 24.6 फीसदी वोट मिले। अब जब बाबूलाल मरांडी भाजपा का हिस्सा बन गये हैं और अन्नपूर्णा देवी भी मोदी सरकार में मंत्री हैं, ऐसे में माना जा रहा है कि कोडरमा सीट भाजपा के लिए काफी सुरक्षित है।
मजबूत प्रतिद्वंद्वी हैं विनोद सिंह
तमाम अनुकूल परिस्थितियों के बावजूद इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अन्नपूर्णा देवी के सामने भाकपा माले के विनोद कुमार सिंह कड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं। भाकपा माले के दिग्गज नेता रहे महेंद्र सिंह के पुत्र विनोद सिंह बगोदर से तीन बार के विधायक हैं। हत्या से पहले महेंद्र सिंह भी बगोदर से तीन बार विधायक रहे थे और अब विनोद सिंह के साथ भी यही स्थिति है। उनकी उम्मीदवारी के साथ बगोदर में उनके द्वारा अब तक किये गये कार्यों की भी चर्चा होगी और कोडरमा लोकसभा क्षेत्र में भाजपा द्वारा किया गया विकास भी मुद्दा होगा। मंत्री पद पाने वाली अन्नपूर्णा देवी के काम और विनोद सिंह के काम के बारे में भी बात होगी।
दोनों में हैं कई समानताएं
अन्नपूर्णा देवी और विनोद सिंह में कई समानताएं हैं। अन्नपूर्णा देवी अपने पति रमेश प्रसाद यादव के निधन के बाद राजनीति में आयीं और विधायक बनीं। वह पहले राजद में थीं और झारखंड की प्रदेश अध्यक्ष भी रहीं। 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उन्होंने राजद छोड़ दिया और भाजपा में शामिल हो गयीं। 48 वर्षीय विनोद सिंह ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से स्नातकोत्तर की पढ़ाई की और महेंद्र सिंह की हत्या के बाद राजनीति में आये। 2022 में उन्हें झारखंड के उत्कृष्ट विधायक पुरस्कार से सम्मानित किया गया।