विशेष
-तीनों ही सीटों पर मोदी चाहिए या नहीं चाहिए के बीच जंग
-हर जगह का मुकाबला अब ‘मोदी बनाम एंटी मोदी’ में बदल रहा है
-कहां किसका जोर और कहां कौन कमजोर, यह आकलन असंभव
-दोनों ही सीटों पर तीसरा उम्मीदवार थर्ड अंपायर की भूमिका में
-यहां कौन कितना वोट काटेगा और उससे किसको होगा फायदा चर्चा यही है

लोकसभा चुनाव की गहमा-गहमी शुरू हो गयी है। झारखंड में चुनाव तो 13 मई को शुरू होगा, लेकिन नामांकन दाखिल करने के साथ ही मुकाबले की शुरूआत हो चुकी है। सिंहभूम, खूंटी और लोहरदगा संसदीय सीटों के लिए नामांकन भरने का काम जारी है और तीनों ही सीटों पर दोनों प्रमुख प्रतिद्वंद्वियों ने अपना-अपना नामांकन दाखिल कर मुकाबले में उतरने का एलान कर दिया है। चुनावी सफलता के लिए रणनीतियां तैयार की जा रही हैं और प्रचार अभियान भी जोर पकड़ने लगा है। भारतीय लोकतंत्र की यह खूबसूरती है कि यहां का मतदाता अंतिम समय तक अपने पसंदीदा उम्मीदवार के बारे में खुल कर नहीं बताता। इसलिए चुनाव परिणाम के बारे में कोई भी भविष्यवाणी खतरनाक होती है, लेकिन जहां तक झारखंड की इन तीन संसदीय सीटों के चुनावी माहौल की बात है, तो एक बात साफ नजर आती है कि यह चुनाव ‘मोदी बनाम एंटी मोदी’ ही हो रहा है, यानी उम्मीदवारों की कम, मोदी की चर्चा अधिक हो रही है। इसी चर्चा के बीच इन तीन संसदीय सीटों से ग्राउंड रिपोर्ट तैयार करने के लिए आजाद सिपाही की टीम ने चाइबासा, खूंटी और लोहरदगा का दौरा किया और लोगों से बातचीत कर माहौल को समझने की कोशिश की। इन्हीं कोशिशों के फलाफल को शब्दों की माला में पिरो कर प्रस्तुत कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

आजाद सिपाही की टीम ने कई लोकसभा क्षेत्रों का दौरा किया। शुरूआती दौरे के क्रम में पता चला कि लोग मुद्दों की बात कर रहे थे। अपनी समस्याओं से अवगत करवा रहे थे, लेकिन जैसे-जैसे लोकसभा का चुनाव करीब आ रहा है, मुद्दों से ज्यादा प्रत्याशियों के बारे में चर्चा जोर पकड़ रही है।

पहला पड़ाव चाइबासा
जैसे ही सोमवार को सिंहभूम से भाजपा प्रत्याशी गीता कोड़ा ने नामांकन किया, समझो चुनावी शंखनाद हो गया। उसके बाद मंगलवार को महागठबंधन प्रत्याशी झामुमो की जोबा मांझी ने भी नामांकन किया। मंगलवार को ही खूंटी से भाजपा प्रत्याशी अर्जुन मुंडा और कांग्रेस प्रत्याशी कालीचरण मुंडा ने भी नामांकन किया। इन सभी प्रत्याशियों के नामांकन के दौरान कार्यकर्ताओं का उत्साह देखते ही बन रहा था। शहर का शहर गाड़ियों के हुजूम से भरा पड़ा था। सड़कें जाम भी हो गयी थीं। प्रशासन की सांसें भी फूल रही थीं। चाइबासा में जब गीता कोड़ा का नामांकन था, तो खुद उनके पति मधु कोड़ा सड़क पर उतर कर जाम हटवा रहे थे। यह दृश्य देख अच्छा भी लगा कि अपनी पत्नी के लिए खुद पूर्व सीएम मधु कोड़ा पूरी लगन से और कड़ी धूप में सड़क से जाम हटवा रहे थे। सोमवार को चाइबासा जाने के क्रम में पाया कि गांवों-टोलों से गाड़ी भर-भर कर गीता कोड़ा के समर्थक उनके नॉमिनेशन के दिन उनका साथ देने पहुंच रहे थे। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी भी उस दिन गीता कोड़ा का साथ देने पहुंचे। नॉमिनेशन के बाद गीता कोड़ा का पहला शब्द था कि अब लड़ाई विधिवत रूप से शुरू हो गयी है। वहीं जोबा मांझी ने भी मंगलवार को नामांकन किया। उनके नामांकन में मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन, कल्पना सोरेन संग कई नेता पहुंचे। कार्यकर्ताओं का हुजूम देखते बन रहा था। चाइबासा जाने के क्रम में जगह-जगह आजाद सिपाही की टीम ने लोगों से बातचीत की। किसी ने भी दोनों प्रत्याशियों को कम नहीं आंका। जनता का कहना था कि दोनों मजबूत कैंडिडेट हैं। जोबा मांझी का अपने क्षेत्र में अलग ही सम्मान है। कुछ लोग उन्हें देवी के रूप में संबोधित कर रहे थे। वहीं गीता कोड़ा का भी लोगों के बीच में अलग ही क्रेज है। कुछ लोग गीता कोड़ा के पार्टी बदलने से नाराज थे, लेकिन कुछ लोगों ने कहा कि उन्होंने सही किया। चाइबासा के शहरी क्षेत्र में गीता कोड़ा का बोलबाला है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में उन्हें जोबा मांझी से दो-दो हाथ करने होंगे। हाल के दिनों में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने अपना संगठन भी मजबूत किया है, लेकिन इसका सबसे ज्यादा फायदा कांग्रेस उठा रही है। कांग्रेस का संगठन बहुत कमजोर है वह झामुमो के कंधे पर बंदूक रख कर चलाने का काम कर रही है। दौरे के क्रम में कुछ लोग ऐसे भी मिले, जिन्हें मोदी का काम बहुत पसंद है, लेकिन वे वोट देंगे तो महागठबंधन को। एक शख्स ने कहा कि भारत मजबूत हुआ है। उसे घर-घर नल योजना से पानी भी मिल रहा है। सोलर प्लांट की भी सुविधा मिल रही है। राशन तो है ही। आयुष्मान का भी लाभ ले चुके हैं, लेकिन उनका कहना था कि काम तो अच्छा है, लेकिन वोट नहीं देंगे। मैंने पूछा, ऐसा क्यों। लेकिन इसका जवाब उनके पास नहीं था। शायद वह किसी जाति के बंधन में बंधे थे। उसके आगे चक्रधरपुर में एक व्यक्ति से मुलाकात हुई। बातचीत शुरू हुई। वह व्यक्ति चक्रधरपुर चाइबासा पर कम, देश पर ज्यादा बात करने लगा। उसका कहना था, जब देश रहेगा, तब न राज्य में राजनीति रहेगी। कौन देश को सुरखित रखेगा, जवाब था-मोदी। कुछ लोग गीता कोड़ा को अच्छा उम्मीदवार बता रहे थे। उनके ऊपर मधु कोड़ा का प्रभाव झलक रहा था। गीता के बारे में कहना था, ज्यादा नहीं बोलतीं, जरूरत पड़ने पर जनता के काम के लिए अधिकारियों से भी भिड़ जाती हैं। चाइबासा में एक अधिकारी से जनहित के मुद्दे पर हुई लड़ाई आज भी लोगों को याद है।

खूंटी में हर तरफ मोदी की ही चर्चा
मंगलवार को आजाद सिपाही की टीम जब खूंटी पहुंची, तब खूंटी एक चुनावी मैदान का रूप ले चुका था, क्योंकि उसी दिन दोनों प्रमुख प्रतिद्वंद्वियों का नामांकन था। कार्यकर्ता झंडा ढो रहे थे। नारे लगा रहे थे। नाच रहे थे। खुशी मना रहे थे। मेरे मन में सवाल आया कि इन कार्यकर्ताओं को क्या मिलता होगा। नेता चुनाव जीतता है और अपनी दुनिया में चला जाता है, लेकिन कार्यकर्ता तो वहीं का वहीं रह जाता है। लेकिन कार्यकर्ताओं की ऊर्जा और सच्ची लगन देख समझा कि चुनाव में कार्यकर्ताओं का स्थान क्यों महत्वपूर्ण होता है। क्यों नेता चुनाव में समर्थकों और जनता को देवतुल्य कहने लगते हैं। नेता बिना कार्यकर्ता कुछ नहीं। नेताओं को ऐसे कार्यकर्ताओं का सम्मान करना चाहिए, क्योंकि ये वही लोग हैं, जो भूखे-प्यासे पार्टी के लिए काम करते हैं। जरूरत पड़ने पर वे मारपीट करने पर भी उतारू हो जाते हैं, उन्हें अपने नेता का अपमान बर्दाश्त नहीं होता। ऐसा नहीं है कि हर समय उनका सम्मान ही होता है। उनका निरादर भी होता है, तो भी वे विचारधारा से इतने बंधे हुए होते हैं कि वे अपनी पार्टी को समर्थन अंत में कर ही देते हैं।

आजाद सिपाही की टीम जब खूंटी लोकसभा में भ्रमण कर रही थी, तो पता चला कि वहां भी लड़ाई एकतरफा नहीं है। अर्जुन मुंडा और कालीचरण मुंडा में बहुत टाइट फाइट है। दोनों के समर्थकों में कमी नहीं है। कहीं-कहीं कालीचरण मुंडा खास कर इसाई और मुसलिम बहुल इलाकों में भारी ही दिखाई पड़ रहे हैं, लेकिन अर्जुन मुंडा भी अर्जुन मुंडा हैं। वह भी कोई कच्चे खिलाड़ी नहीं हैं। उन्होंने भी स्थिति को भांपा हुआ है। वह दिन-रात एक किये हुए हैं। जनता के बीच जा रहे हैं। किसी क्षेत्र की जनता अपनी नाराजगी भी जाहिर कर रही है, लेकिन अर्जुन मुंडा चूंकि केंद्र के मंत्री भी हैं, तो उनकी मजबूरी को भी जनता समझ रही है। समर्थक लोगों को यह बता रहे हैं कि किस तरह उनके ऊपर पूरे देश के आदिवासियों का जीवन स्तर ऊपर उठाने का दायित्व मोदी जी ने सौंपा है। जिन लोगों के मन में गुस्सा था, वह गुस्सा काम को लेकर कम, समय को लेकर ज्यादा दिखा। लेकिन जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है, ये मुद्दे अब पीछे छूट रहे हैं। पंद्रह दिन पूर्व जब यह संवाददाता खूंटी में था, तो ज्यादातर लोगों का कहना था कि अर्जुन मुंडा क्षेत्र में समय नहीं देते। लेकिन इन पंद्रह दिनों में अर्जुन मुंडा ने अपनी उपस्थिति से उस गुस्से को कम कर दिया है। कुछ मुखिया लोगों से पहले भी बात हुई थी। उस समय उनकी नाराजगी बात-बात पर सामने आ रही थी, लेकिन इस बार के भ्रमण में उन लोगों का मिजाज बदला हुआ था। वह कह रहे थे कि अर्जुन मुंडा पर अकेले खूंटी की ही जिम्मेदारी नहीं है, वह देश के लिए काम कर रहे हैं। यह हम लोगों के लिए खुशी की बात है। उनका कहना था कि मोदी सरकार के तीसरी बार शासन में आते ही अर्जुन मुंडा फिर जिम्मेदार पद पर होंगे, उस समय खूंटी को बहुत कुछ मिल जायेगा। विपक्ष के उम्मीदवार जीतेंगे, भी तो क्या होगा। आखिर वह विपक्ष की कुर्सी पर बैठ कर खूंटी के लिए क्या कर सकते हैं। चुनाव नजदीक आते ही खूंटी में बदलाव दिखाई दिया। अब जनता को मुद्दों में नहीं, अपने नेताओं में इंटरेस्ट है। खूंटी में खास कर ‘मोदी बनाम एंटी मोदी’ ही फाइट है। वहां के लोग या तो मोदी की तारीफ कर रहे हैं या आलोचना।

तमाड़ और अड़की में राजा पीटर की चर्चा
तमाड़ में राजा पीटर का अर्जुन मुंडा के समर्थन में उतरना, भाजपा के लिए सुकून वाली बात दिखी। इसमें दो राय नहीं कि गोपाल कृष्ण पातर उर्फ राजा पीटर का काम करने का तरीका निराला है। वह हुजूम में चलना पसंद नहीं करते। प्रभावी लोगों के घरों पर दस्तक देना और उनके साथ चाय-नाश्ता करना लोगों को पसंद है। उनके कार्यकर्ता मुखर नहीं हैं, वे दिखावा में रुचि नहीं रखते। उनको काम से मतलब है। राजा पीटर ग्रामीण क्षेत्रों में खासी पैठ रखते हैं। इतने दिनों तक जेल में रहने के बाद भी उनके समर्थकों में उनको लेकर सम्मान कम नहीं हुआ है। वह राजा पीटर पर आंख मूंंद कर विश्वास करते हैं। तमाड़ और अड़की के सुदूर गांवों में राजा पीटर काफी अंदर तक घुसे हुए हैं। युवाओं में उनकी स्टाइल भी पसंद है। कुछ युवा तो उनकी तरह अपने बाल भी बढ़ा लिये हैं। लोगों से बातचीत करने पर भ्रमण टीम को यह एहसास हुआ कि उन्होंने जब शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री रहते हुए यहां हराया था, तो वह महज संयोग नहीं था। उनकी स्टाइल, उनकी पहुुंच ही जीत का मुख्य कारण बनी थी। उस समय वह नक्सलियों की मांद में भी घुस जा रहे थे, जहां जाने से सामान्य प्रत्याशी या पुलिस तक साहस नहीं कर पाती थी।

लोहरदगा में कड़े मुकाबले का माहौल
आजाद सिपाही की टीम लोहरदगा भी गयी थी। वहां भी फाइट टाइट ही है। कोई भी प्रत्याशी किसी से कम नहीं है। समीर उरांव और सुखदेव भगत चैन की सांस तो न ही लें। कोई भी एक-दूसरे को हलके में भी नहीं ले। अभी दोनों प्रत्याशियों को मैदान में डटे रहना होगा। लोहरदगा की लड़ाई भी अंत तक जायेगी, चाहे वह लड़ाई लोहरदगा क्षेत्र के किसी कोने में हो। झारखंड मुक्ति मोर्चा ने भी यहां अपना संगठन मजबूत कर लिया है। सुखदेव भगत अगर मैदान में पूरी मुश्तैदी से डंटे हैं, तो इसमें झामुमो का भी बहुत बड़ा योगदान है। कहीं-कहीं कांग्रेस कार्यकर्ताओं से ज्यादा झामुमो के कार्यकर्ता उनके लिए ज्यादा पसीना बहा रहे हैं। हां, कुछ झामुमो कार्यकर्ता यहां से झामुमो का उम्मीदवार नहीं देने के कारण नाराज भी दिखे। दूसरी तरफ समीर उरांव को लेकर लोगों में वह शिकायत नहीं दिखी, जो सांसद सुदर्शन भगत को लेकर थी। समीर उरांव के मिलनसार स्वभाव की चर्चा भी सुनने को मिली। वहीं बाबूलाल मरांडी ने भी जिस तरीके पूरा झारखंड भ्रमण किया, उससे भाजपा को बहुत लाभ मिला है। लोहरदगा में भी उनके भ्रमण का असर दिखा। भाजपा भी झारखंड में संगठनात्मक स्तर बहुत मजबूत हुई है। बाबूलाल मरांडी का काम दिखाई भी दे रहा है। वहीं कांग्रेस की बात करें, तो सबसे कमजोर संगठन अगर किसी दल का है, तो वह कांग्रेस ही है। कांग्रेस में कार्यकर्ता कम, नेताओं की बाढ़ सी आ गयी है। कांग्रेस आज उसी राह पर दिख रही है, जिस राह पर 2919 में भाजपा थी। भाजपा सरकार के समय कार्यकर्ताओं की संख्या कम हो गयी थी। सभी नेता बन गये थे। उनको नेता जी का संबोधन ज्यादा प्रिय लगने लगा था। लेकिन झारखंड की सत्ता से उतरने के बाद भाजपा की यह बीमारी लगभग समाप्त हो गयी है। यह लोहरदगा लोकसभा क्षेत्र में भ्रमण के समय देखने को मिला। यहां सुदर्शन भगत से लेकर दिनेश उरांव, शिवशंकर उरांव से लेकर ओम सिंह तक तमाम लोगों के व्यवहार में गजब का परिवर्तन आया है। आज की तारीख में सभी अपने को भाजपा का सिपाही बता रहे हैं और समीर उरांव के लिए पसीना बहा रहे हैं। लोहरदगा लोकसभा भ्रमण के दौरान इस टीम ने पाया कि कांग्रेस को अगर झामुमो का साथ नहीं मिलेगा, तो झारखंड में भी उसका हाल यूपी वाला हो जायेगा। कांग्रेसी भी कह रहे हैं कि पार्टी का हाल कैसा हो गया है। टिकट दे-देकर वापस ले लिया जा रहा है। कांग्रेस अपना दुश्मन खुद तैयार कर रही है। अभी तक पूरी सीटों पर इसने अपना उम्मीदवार नहीं दिया है। पता नहीं अब और कौन कौन सा उम्मीदवार बदलेगा। लोहरदगा में खांटी कांग्रेस कार्यकर्ताओं का कहना था कि यहां जनता से ज्यादा कांग्रेसी गुटों को एक करने की जरूरत है। उनका कहना था कि जब तक मंत्री रामेश्वर उरांव, बंधु तिर्की और धीरज साहू सुखदेव भगत के लिए कंधा से कंधा मिला कर नहीं चलेंगे, लड़ाई कांग्रेस के हाथ से दूर चली जायेगी। अभी भी समय है, पार्टी आलाकमान को इन नेताओं को एक मंच पर लाना ही होगा, अगर लोहरदगा में टाइट फाइट देनी है, तो। वैसे सुखदेव भगत दिन रात एक किये हुए हैं। वह हर उस दरवाजे पर जा रहे हैं, जहां उन्हें जाना चाहिए। लोकप्रियता उनके लिए समस्या नहीं है।

हर तरफ है मिला-जुला जोर
लोहरदगा और खूंटी के गावों में झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए प्रेम दिखता है, तो शहरों में भाजपा का कोई तोड़ नहीं। प्रत्याशी एक-दूसरे को कमजोर करने के लिए तीसरे का भी सहारा लेने से भी नहीं चूंकेंगे, क्योंकि जहां मामला टाइट होता है, वहां तीसरा प्रत्याशी ही किसी के लिए वरदान साबित होता है। खूंटी और लोहरदगा की बात की जाये, तो तीसरे आदमी वाला खेल होगा, तभी किसी का खेल बनेगा या बिगड़ेगा। लोहरदगा में चमरा लिंडा और खूंटी में एनोस एक्का की झापा के उम्मीदवार किसी प्रत्याशी की किस्मत चमका सकते हैं, तो किसी की खराब करने की स्थिति में हैं। सबकी निगाहें उनकी तरफ हैं। अब यह थर्ड मैन ही थर्ड अंपायर का काम करेगा। वैसे बड़े स्तर पर देखा जाये, तो इस बार का चुनाव ‘मोदी बनाम एंटी मोदी’ होने वाला है। राम मंदिर को लेकर जनता में बहुत गहरा प्रभाव है। केंद्रीय योजनाओं की भी चर्चा है। मुद्दे तो कई हैं, लेकिन चुनाव आते-आते मुद्दा सिर्फ ‘ओनली मोदी’। या तो मोदी चाहिए या नहीं चाहिए।

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