पांचवीं पुण्यतिथि पर विशेष
कोयला श्रमिकों के चहेते नेता के रूप में उनका योगदान बेमिसाल है
आज भी कोयला उद्योग में राजेंद्र बाबू को शिद्दत से याद किया जाता है
सबकी सुनते थे, इसलिए शून्य से चलकर पहुंचे थे शिखर तक
मजदूर राजनीति में शिखर पर पहुंचने के बावजूद उनका कोई दुश्मन नहीं था
राकेश सिंह
कोयला उद्योग को झारखंड ने एक ऐसा रत्न सौंपा था, जिसने ताउम्र मजदूरों के लिए अपना सब कुछ झोंक दिया था। देश की श्रमिक राजनीति में ऐसे कम ही लोग हैं, जिन्हें आज भी पूरे शिद्दत से याद किया जाता है। इस शख्सियत का नाम है राजेंद्र प्रसाद सिंह, जिनकी 24 मई को पुण्यतिथि है। राजेंद्र बाबू को केवल कोयलांचल ही नहीं, देश-विदेश के श्रमिक जानते थे। इंटक के राष्ट्रीय महासचिव रहे राजेंद्र प्रसाद सिंह एक ऐसे नेता थे, जो सबकी सुनकर और सबको साथ लेकर चलते थे। इसी गुण के कारण झारखंड की राजनीति और मजदूर राजनीति में शिखर पर पहुंचने के बावजूद उनका कोई दुश्मन नहीं था। कांग्रेस और इंटक की बात छोड़िए, विरोधी राजनीतिक पार्टियों और ट्रेड यूनियनों के नेताओं से भी उनके मजबूत व्यक्तिगत संबंध थे। मजदूर और मजदूर संगठन के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ऐसी थी कि सत्ता के शिखर पर पहुंचने के बावजूद उन्होंने खुद को कभी भी मजदूर और मजदूर संगठन से अलग नहीं किया। टेÑड यूनियन और राजनीति, दोनों को साथ लेकर चलने का राजेंद्र सिंह ने एक उदाहरण पेश किया था।

कांग्रेस से जनम-जनम का नाता रहा
राजेंद्र बाबू सच्चे कांग्रेसी थे। इसलिए अपने सोशल मीडिया बायो में उन्होंने लिखा था, कांग्रेस संगठन से जनम-जनम का नाता, जनता की सेवा में चौबीसों घंटा समर्पित। सही अर्थों में जीवन भर कांग्रेस से और कांग्रेस के लिए राजनीति करने वाले राजेंद्र प्रसाद सिंह एक अद्भुत व्यक्ति थे।

छह बार बेरमो के विधायक बने थे
राजेंद्र प्रसाद सिंह बेरमो के छह बार विधायक बने थे। वह हर बार कांग्रेस के टिकट पर ही जीते। 1985, 1990, 1995 और 2000 में लगातार चार बार उन्होंने बेरमो का प्रतिनिधित्व किया। 2005 के विस चुनाव में भाजपा के नये चेहरे योगेश्वर महतो बाटुल से हार गये, लेकिन 2009 के विस चुनाव में पुन: उन्होंने भाजपा प्रत्याशी योगेश्वर महतो बाटुल को पराजित कर दिया। फिर 2019 में वह एक बार फिर से चुनाव जीते। 2019 में भी उन्होंने जीत हासिल की।

शून्य से शुरूआत की थी राजेंद्र बाबू ने
भुवनेश्वर प्रसाद सिंह के पुत्र राजेंद्र प्रसाद सिंह ने नवादा के लौंध हाइ स्कूल से 1958-59 में दसवीं की परीक्षा पास की थी। गया कॉलेज से सन 1962-63 में प्री यूनिवर्सिटी उत्तीर्ण किया था। छात्र जीवन के दौरान ही वह बिंदेश्वरी दूबे के संपर्क में आये और कोयला उद्योग में काम करने लगे। कोयला मजदूरों के लिए उनके समर्पण को देखते हुए बिंदेश्वरी दूबे ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।

कई पदों पर रहे राजेंद्र बाबू
कांग्रेस के कद्दावर नेता राजेंद्र प्रसाद सिंह पहले बिहार और बाद में झारखंड में ऊर्जा के साथ-साथ अन्य कई महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री रहे। इसके अलावा वह इंटक के राष्ट्रीय महामंत्री, राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर संघ, इंडियन नेशनल माइंस वर्कर्स फेडरेशन और झारखंड इंटक के अध्यक्ष के अलावा गांधी श्रम प्रतिष्ठान (पुरी) के संरक्षक पद पर रहे।

बिंदेश्वरी दूबे की उंगली पकड़ सीखी थी राजनीति
राजेंद्र प्रसाद सिंह ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और इंटक नेता बिंदेश्वरी दूबे की उंगली पकड़ कर राजनीति सीखी थी। राजेंद्र सिंह उन्हें अपना गुरु मानते थे। बेरमो विधानसभा सीट से कांग्रेस के विधायक रहे बिंदेश्वरी दूबे एकमात्र ऐसे नेता हुए, जिन्होंने एकीकृत बिहार में मुख्यमंत्री से लेकर कांग्रेस की राजीव गांधी सरकार में केंद्रीय कानून और श्रम मंत्री तक का सफर तय किया था।

लोडिंग इंस्पेक्टर की नौकरी छोड़ दी
राजेंद्र सिंह ने राजनीति का सफर शून्य से शुरू किया था और अपने संघर्ष के बलबूते शिखर तक पहुंचे थे। एनसीडीसी की ढोरी कोलियरी में वह लोडिंग इंस्पेक्टर थे। दिग्गज मजदूर नेता बिंदेश्वरी दूबे के सानिध्य में आकर उन्होंने नौकरी छोड़ दी थी और मजदूर राजनीति मेंं जुड़ गये थे। बिंदेश्वरी दुबे ने उन्हें 1985 में पहली बार अपनी बेरमो सीट से कांग्रेस के टिकट पर उतारा था। पहले चुनाव मेंं ही वह जीत गये थे। इसके बाद उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा था। बिंदेश्वरी दूबे के दिवंगत होने के बाद उनकी इंटक और राकोमसं की विरासत भी राजेंद्र बाबू ने ही संभाली थी। छह बार विधायक, संयुक्त बिहार में दो बार और झारखंड में एक बार मंत्री और कांग्रेस विधायक दल के नेता रहे राजेंद्र सिंह ने इंटक और राकोमसं को चोटी पर पहुंचाया था। राजनीति और ट्रेड यूनियन के समन्वय का वह एक उदाहरण थे।

राजनीति में अलग पहचान बनायी
बेरमो समेत कोयलांचल के मजदूरों के हमदर्द के रूप में राजेंद्र सिंह आज भी याद किये जाते हैं। अपने मुखर व्यक्तित्व के कारण जब सत्ता में रहे और जब विपक्ष में रहे, सभी स्थितियों में उन्होंने अपना लोहा मनवाया। राज्य की राजनीतिक दशा और दिशा बदलने के लिए वह लगातार संघर्षशील रहे। राजेंद्र बाबू के संघर्षों के कारण ही बोकारो जिले की बेरमो एक ऐसी विधानसभा सीट रही, जहां वर्ष 1957 के बाद से लगातार कांग्रेस का कब्जा रहा। इस बीच दो बार भाजपा और दो बार अन्य दलों को प्रतिनिधित्व करने का जरूर मौका मिला, लेकिन विपक्ष में रहने के बाद भी उनकी लोकप्रियता कम नहीं हुई। इस कारण बार-बार उन्हें जनता का साथ मिला।

मेघदूत मार्केट फुसरो में व्यवसाय से जुड़े
70 के दशक में राजेंद्र बाबू ने अपने कार्यक्षेत्र की शुरूआत फुसरो बाजार स्थित मेघदूत मार्केट में जेनरल स्टोर खोलकर की। इसके बाद सीसीएल में श्रमिक बने और फिर लोडिंग इंस्पेक्टर तक पहुंचे। इस दौरान मजदूरों का दर्द कम करने के लिए कंपनी प्रबंधन के विरुद्ध कई आंदोलन किये। इसके बाद मजदूरों और बेरमो के लोगों ने राजेंद्र बाबू के हाथों को मजबूत किया। फिर वह राजनीति में प्रवेश कर नौकरी छोड़ सक्रिय राजनीति का हिस्सा बने। इस दौरान कई बड़े नेताओं के संपर्क में आये। पहले कोयलांचल के मजदूरों के मुद्दे को उठाया
80 के दशक में सीसीएल श्रमिक के रूप में सेवा देते हुए बेरमो कोयलांचल के मजदूरों के मुद्दे को जोर-शोर से उठाना शुरू किया। साथ ही कांग्रेस से संबद्ध राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर संघ के सीसीएल ढोरी प्रक्षेत्र के सचिव बनाये गये। इसके बाद मजदूरों के साथ इनका जुड़ाव बढ़ते चला गया। मजदूर राजनीति में आगे बढ़ते हुए इंटक के राष्ट्रीय महामंत्री बनाये गये। उन्होंने मजदूरों की समस्याओं के प्रति संवेदनशीलता दिखाते हुए तमाम समस्याओं के निदान के लिए जोरदार आवाज उठायी।

राजेंद्र सिंह की राजनीतिक और ट्रेड यूनियन की विरासत उनके पुत्र कुमार जयमंगल उर्फ अनुप सिंह संभाल रहे हैं। उनकी बेरमो विधानसभा सीट जीतकर अनुप सिंह ने राजनीतिक विरासत संभाल ली है। ट्रेड यूनियन की राजनीति में भी वह तेजी से अपनी जगह बना रहे हैं।

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