विशेष
-प्रतिद्वंद्वी की घोषणा नहीं होने से विद्युत वरण महतो की राह हो रही आसान
-भाजपा के भीतर पैदा हुए असंतोष का खतरा हर दिन बनता जा रहा है गंभीर

झारखंड की औद्योगिक राजधानी जमशेदपुर लोकसभा क्षेत्र से भाजपा को छोड़कर किसी भी दल ने अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। यह तय है कि इस सीट से झामुमो का उम्मीदवार होगा, लेकिन उसने अब तक प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है। ऐसे में जमशेदपुर में भाजपा फ्रंट फुट पर खेलने की बात कह सकती है, लेकिन अंदरखाने में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। इस सीट पर वर्तमान सांसद विद्युत वरण महतो लगातार तीसरी बार टिकट हासिल करने में सफल रहे हैं, लेकिन उनकी राह में बाहरी के साथ-साथ अंदरूनी बाधाएं भी कम नहीं हैं। एक सांसद के रूप में हालांकि जनता से उनका कनेक्ट ठीक ही रहा, लेकिन भाजपा संगठन और पार्टी के दूसरे कामों में उनकी भूमिका लगभग शून्य ही रही। इसलिए भाजपा के भीतर भी वह अब तक स्थिति को अनुकूल नहीं बना सके हैं। भाजपा प्रत्याशी विद्युत वरण महतो हालांकि प्रतिद्वंद्वी की घोषणा नहीं होने का लाभ उठाने में लगे हैं और लगातार जनसंपर्क में व्यस्त हैं। इसका लाभ उन्हें चुनाव में मिल सकता है, लेकिन चुनाव जीतने के लिए कार्यकर्ताओं का समर्थन बहुत जरूरी होता है, जिसका अभाव साफ दिख रहा है। यह स्थिति इंडी गठबंधन के लिए उर्वर जमीन साबित हो सकती है। झामुमो के सामने भाजपा प्रत्याशी की हैट्रिक को रोकने के साथ कोल्हान के अपने दुर्ग को बचाने की दोहरी चुनौती है और वह इसमें कोई रिस्क नहीं ले सकता। इसलिए पार्टी ठोक-बजा कर ही टिकट देगी। जो भी हो, जमशेदपुर की स्थिति दिलचस्प होती जा रही है। यहां अभी क्या है माहौल और चुनाव तक क्या कुछ हो सकता है, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

देश-दुनिया में टाटानगर नाम से प्रख्यात जमशेदपुर झारखंड के महत्वपूर्ण लोकसभा क्षेत्रों में से एक है। इसे राज्य की वीआइपी सीट माना जाता है। शुरूआत के चुनावों में यहां से कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी, लेकिन 1984 के बाद से कभी भी कांग्रेस ने यहां जीत दर्ज नहीं की है। इस सीट पर पहली बार 1957 में मतदान हुआ था। जमशेदपुर लोकसभा सीट की खास बात यह है कि अब तक कोई भी प्रत्याशी दो बार से अधिक जीतने में कामयाब नहीं हो पाया है। इस लोकसभा क्षेत्र में बहरागोड़ा, घाटशिला, पोटका, जुगसलाई, जमशेदपुर पूर्वी और जमशेदपुर पश्चिमी विधानसभा सीटें शामिल हैं।

मतदाता और सामाजिक तानाबाना
आंकड़ों के मुताबिक कर्नाटक की जमशेदपुर लोकसभा सीट पर कुल मतदाताओं की संख्या 11 लाख 44 हजार 226 है। कुल आबादी की बात करें, तो 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां की आबादी 22 लाख 93 हजार 919 है। यहां की लगभग 44.44 फीसदी आबादी गावों में रहती है, वहीं 55.56 फीसदी आबादी शहर में रहती है। जातीय समीकरण की बात करें, तो यहां पर एससी समुदाय की आबादी 4.86 प्रतिशत है और एसटी समुदाय की आबादी 28.51 प्रतिशत है।

विद्युत जीते तो होगी भाजपा की लगातार चौथी जीत
जमशेदपुर में भाजपा लगातार दो बार हैट्रिक (1996, 1998, 1999 और 2009, 2014 व 2019) लगा चुकी है। 1996 में नीतीश भारद्वाज, 1998 और 1999 में आभा महतो, 2009 में अर्जुन मुंडा, 2014 तथा 2019 में विद्युत वरण महतो ने जीत हासिल की। व्यक्तिगत तौर पर रुद्र प्रताप षाड़ंगी (1977-80), शैलेंद्र महतो (1989-91), आभा महतो (1998-99) और विद्युत वरण महतो (2014-2019) ऐसे जनप्रतिनिधि हैं, जिन्होंने दो-दो बार जीत हासिल की। भाजपा से फिर विद्युत वरण महतो प्रत्याशी बनाये गये हैं। अगर वे जीत दर्ज करते हैं, तो वे पहले प्रत्याशी होंगे, जो इस सीट से हैट्रिक लगायेंगे। साथ ही चौथी बार लगातार भाजपा की झोली में यह सीट जायेगी।

लगातार दो बार से अधिक कोई प्रत्याशी नहीं जीता
जमशेदपुर लोकसभा सीट पूर्वी सिंहभूम जिले में है, जो पश्चिम बंगाल और ओडिशा की सीमा तक फैली है। इस क्षेत्र की खासियत है कि अब तक लगातार दो बार से अधिक कोई प्रत्याशी चुनाव नहीं जीता है। वर्ष 1952 के चुनाव में इस सीट का नाम मानभूम साउथ लोकसभा था। पहले चुनाव में भजोहरि महतो ने कांग्रेस प्रत्याशी माइकल जॉन को पराजित कर सांसद के रूप में अपना नाम दर्ज कराया था। 1957 के दूसरे चुनाव में जमशेदपुर लोकसभा सीट अस्तित्व में आयी, जिसमें कांग्रेस प्रत्याशी एमके घोष ने जीत हासिल की। इस सीट से सर्वाधिक छह बार भाजपा ने जीत हासिल की। इसके बाद कांग्रेस और झामुमो का दबदबा रहा। 1984 में इंदिरा गांधी की लहर के बाद 40 साल के अंतराल में कांग्रेस अपना खाता यहां से नहीं खोल पायी।

आदिवासी, ओड़िया, कुड़मी, मुस्लिम वोटर प्रभावी
जमशेदपुर लोकसभा सीट पर कुड़मी, आदिवासी, ओड़िया, बंगाली और बिहारी वोटर निर्णायक साबित होते हैं। मुस्लिम, छत्तीसगढ़ी, कुशवाहा, यादव जैसी अन्य जातियों और समुदायों के वोटरों की भी अहम भूमिका होती है। देखा गया है कि ओड़िया, वैश्य, बिहारी मतदाताओं का रुझान भाजपा प्रत्याशी की तरफ रहता है, जबकि आदिवासी और महतो मतदाता परस्थिति के अनुसार वोट तय करते हैं। कुड़मी जाति इनका बड़ा वोट बैंक है, जिसका झुकाव अब तक भाजपा की ओर रहा है। किसी अन्य दल में कोई मजबूत कुड़मी प्रत्याशी खड़ा होने पर इनके अधिकतर वोट उनके पक्ष में चले जाते हैं। खास कर झामुमो ने जब भी कुड़मी प्रत्याशी मैदान में उतारा, तब उसे सफलता हासिल हुई है। आदिवासियों एवं मुसलमानों के अधिकतर वोट गैर-भाजपाई दल या गठजोड़ के साथ होते हैं।

प्रतिद्वंद्वी के इंतजार में है भाजपा
जमशेदपुर संसदीय क्षेत्र का चुनावी मुकाबला इस बार भी बेहद रोमांचक होगा। हालांकि विपक्षी खेमे की तरफ से अब तक प्रत्याशी की घोषणा नहीं की गयी है। बताया जाता है कि इस सीट से इस बार भी झामुमो ही प्रत्याशी देगा। जमशेदपुर सीट की खासियत यह है कि यहां महतो (कुड़मी) मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। यहां से सात बार महतो प्रत्याशी चुनाव जीत चुके हैं। इसलिए झामुमो महतो जाति से बड़ा चेहरा ढूंढ़ रहा है, जो भाजपा प्रत्याशी को टक्कर दे सके। जमशेदपुर सीट पर 1957 से लेकर 2019 तक चार महतो उम्मीदवारों ने इस सीट पर विजय प्राप्त की है। शैलेंद्र महतो ने 1989 में जीत हासिल की। उसकी पत्नी आभा महतो ने 1998 और 1999 में भाजपा से, सुनील महतो ने 2004 में झामुमो से, उनकी पत्नी सुमन महतो ने 2007 (उप चुनाव) में झामुमो से और विद्युत वरण महतो ने 2014 और 2019 में भाजपा से जीत हासिल की। इस सीट पर डेढ़ लाख से अधिक महतो मतदाता हैं, जो चुनाव के दौरान हार-जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

क्या कहते हैं पिछले चुनाव के आंकड़े
2019 के लोकसभा चुनाव में यहां से झामुमो ने चंपाई सोरेन को मैदान में उतारा था। विद्युत वरण महतो ने उन्हें तीन लाख से अधिक वोटों के अंतर से पराजित किया था। महतो को 678934 वोट मिले थे, जबकि चंपाई को 377352 वोट से ही संतोष करना पड़ा था। लेकिन उसी साल दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव में पूरा परिदृश्य ही बदल गया था। जमशेदपुर संसदीय क्षेत्र के तहत आनेवाले छह विधानसभा क्षेत्रों, जमशेदपुर पूर्वी, जमशेदपुर पश्चिमी, जुगसलाई, पोटका, घाटशिला और बहरागोड़ा में भाजपा बुरी तरह पराजित हो गयी थी। जमशेदपुर पूर्वी में निर्दलीय सरयू राय ने राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास को हरा दिया था, जबकि जमशेदपुर पश्चिमी पर कांग्रेस ने कब्जा जमाया था। बाकी चार विधानसभा क्षेत्रों पर झामुमो ने कब्जा कर लिया था।

रेल सुविधा व हवाई कनेक्टिविटी होंगे प्रमुख मुद्दे
2024 के चुनाव में जमशेदपुर की जनता के अपने मुद्दे अहम होंगे। इनमें जमशेदपुर में कानून-व्यवस्था की स्थिति और बेरोजगारी प्रमुख है। बेरोजगारी के कारण यहां पलायन बढ़ रहा है। जमशेदपुर के जागरूक मतदाताओं का मानना है कि कानून व्यवस्था को यहां का चुनावी मुद्दा बनना चाहिए। जमशेदपुर में चिकित्सा सुविधा और उच्च शिक्षण संस्थान की कमी को भी स्थानीय मतदाता बड़ी समस्या मानते हैं। अस्पतालों में डॉक्टर और सुविधाओं की भारी कमी है। 12वीं के बाद जमशेदपुर में उच्च शिक्षण संस्थान नहीं है। एक बार युवा बाहर का रुख करते हैं, तो वे लौट कर जमशेदपुर आना नहीं चाहते हैं। कनेक्टिविटी के मामले में जमशेदपुर की स्थिति बेहतर नहीं है। टाटानगर से अमृतसर, जम्मू, पटना, दुर्ग, कोलकाता के लिए गिनती की ट्रेनें हैं, जबकि यहां से देश के विभिन्न राज्यों के लिए कई ट्रेनें गुजरती हैं, जिसके कारण जमशेदपुर के यात्रियों को टिकटों के लिए काफी परेशानी होती है। धालभूम हवाई अड्डा के निर्माण के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास के कार्यकाल में आधारशिला रखी गयी थी। भूमि पूजन भी हुआ, लेकिन उनके बाद झारखंड सरकार ने इस योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया। इतना नहीं एक रिपोर्ट बना कर भेज दी गयी कि जिस स्थान को हवाई अड्डा क्षेत्र के लिए चुना गया है, वहां हाथी विचरण करते हैं। इसके बाद इस परियोजना को रद्द कर रही सही कसर केंद्र सरकार ने पूरी कर दी।

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