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    Home»विशेष»हेमंत सोरेन: छात्र नेता से झामुमो के अध्यक्ष पद तक का सफर
    विशेष

    हेमंत सोरेन: छात्र नेता से झामुमो के अध्यक्ष पद तक का सफर

    shivam kumarBy shivam kumarApril 17, 2025No Comments12 Mins Read
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    राजनीति में कदम रखने के बाद कभी संघर्षों से पीछे नहीं हटे हेमंत
    शुरू से ही गंभीर राजनीति करते रहे हैं, सीधे लोगों से कनेक्ट करते हैं
    हर राजनीतिक झंझावात का डट कर मुकाबला किया और सफल हुए
    देश के सबसे मजबूत क्षेत्रीय राजनीतिक दलों में शुमार झारखंड मुक्ति मोर्चा को 38 साल के बाद हेमंत सोरेन के रूप में नया अध्यक्ष मिला है। हेमंत सोरेन ने अपने पिता शिबू सोरेन से यह जिम्मेदारी ग्रहण की है। इससे पहले वह एक दशक से अधिक समय तक पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष रहे और उस दौरान उन्होंने झामुमो को नयी ऊंचाई पर पहुंचाया। एक रूढ़िवादी पार्टी, जिसे लीक पर चलना पसंद था और जो आदिवासियत के रंग में रंगी थी, उसका हेमंत सोरेन ने पूरी तरह रूपांतरण कर दिया। इसमें सबसे खास बात यह रही कि झामुमो नया तो बना, लेकिन उसका पुराना तेवर, पुरानी परंपराएं और पुराना रंग भी बरकरार रहा। इस लिहाज से हेमंत सोरेन ने जो कुछ किया, उसका कोई जोड़ कम से कम भारत में तो नहीं मिलता है। हेमंत सोरेन के साथ सबसे खास बात यह है कि वह गंभीर किस्म की राजनीति करते हैं और कोई भी फैसला करने से पहले उस पर कई बार सोचते हैं। उनका यह गुण झामुमो को नयी ऊर्जा देगा, क्योंकि शिबू सोरेन ने अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में हेमंत सोरेन को संघर्ष और हिम्मत की जो घुट्टी पिलायी है, उससे हेमंत कभी पीछे नहीं हटेंगे। हेमंत सोरेन की सियासी कामयाबी किसी दंतकथा जैसी लगती है, क्योंकि उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा को उस ऊंचाई पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहां कभी उसे हेमंत के पिता और राजनीतिक गुरु शिबू सोरेन ने पहुंचाया था। उन्हें बार-बार राजनीतिक झंझावातों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हर झंझावात का बखूबी सामना करते हुए अपने को एक लौह व्यक्तित्व के रूप में स्थापित कर दिया। एक व्यक्ति के तौर पर हेमंत सोरेन अंतर्मुखी हैं, लेकिन जब बात राजनीति की होती है, तो वह अपने अंतर्मुखी व्यक्तित्व को एक सीधे-सपाट व्यक्ति में बदल देते हैं, जिससे साबित होता है कि राजनीति उनकी व्यक्तिगत पसंद भी है। 49 वर्ष के हेमंत आज एक सियासी शख्सियत ही नहीं, चमत्कारी राजनेता बन चुके हैं। घर के भीतर हेमंत सोरेन एक आम पिता, पति और पुत्र होते हैं, लेकिन उनका एक खास गुण यह है कि वह कभी अपने कर्तव्यों को नहीं भूलते और न अपनी जिम्मेदारियों से पीछे हटते हैं। हेमंत ने राजनीति की शुरूआत छात्र मोर्चा से की और आज झामुमो के अध्यक्ष हैं। कैसा रहा उनका यह सफर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    1947 में आजादी मिलने के कुछ दिन बाद देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू अमेरिका गये, तो वहां उनसे पूछा गया कि भारत का प्रधानमंत्री बनने के बाद उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती क्या थी। पंडित नेहरू ने जवाब दिया कि एक रूढ़िवादी और परंपरावादी देश-समाज को आधुनिक सोच का देश-समाज बनाना ही मेरी सबसे बड़ी चुनौती थी। पंडित नेहरू का यह कथन आज हेमंत सोरेन के लिए भी सही साबित हो रहा है, क्योंकि उन्होंने अपनी पार्टी को भी एक रूढ़िवादी और परंपरावादी पार्टी के रंग और तेवर को बरकरार रखते हुए देश की सबसे मजबूत क्षेत्रीय पार्टियों में शुमार करने में कामयाबी पायी है। झारखंड मुक्ति मोर्चा को 38 साल के बाद हेमंत सोरेन के रूप में नया अध्यक्ष मिला है, तो उसका उत्साह स्वाभाविक रूप से आसमान पर है। झामुमो अध्यक्ष पद की कुर्सी पर विराजमान होने से पहले हेमंत सोरेन को ऐसे राजनीतिक झंझावात का सामना करना पड़ा कि हर व्यक्ति इसका सामना नहीं कर सकता, लेकिन हेमंत सोरेन ने न सिर्फ उन राजनीतिक झंझावातों और साजिशों का सामना करते हुए संघर्ष के रास्ते झारखंड में ऐसी लंबी राजनीतिक लकीर खींच दी, जिसने उन्हें देश के संघर्षशील नेताओं की अग्रिम पंक्ति में खड़ा कर दिया है।

    कौन हैं हेमंत सोरेन
    हेमंत का जन्म 10 अगस्त, 1975 को शिबू सोरेन और रूपी सोरेन के दूसरे पुत्र के रूप में हुआ। उनके बड़े भाई दुर्गा सोरेन की असामयिक मौत ने हेमंत को राजनीति में धकेल दिया। चूंकि शिबू सोरेन हमेशा घर से बाहर रहते थे और अलग झारखंड राज्य बनाने के लिए राजनीतिक आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे, हेमंत की बाल्यावस्था को उनकी मां ने सजाया-संवारा। पूरा परिवार पटना (एकीकृत बिहार की राजधानी) के अलावा रांची और दुमका में रहता था, हालांकि यह परिवार मूल रूप से रामगढ़ के पास नेमरा गांव का रहनेवाला है। हेमंत ने पटना हाइ स्कूल से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की और बीआइटी मेसरा में इंजीनियरिंग में नामांकन लिया। बाद में उन्हें बीच में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ी। तब तक राजनीति में उनके नाम की पुकार होने लगी थी।
    हेमंत एक दयालु, गंभीर और कोमल हृदय के व्यक्ति हैं। अपने पिता की तरह उनके भीतर मानवीय संवेदनाएं हिलोरें मारती रहती हैं। ऐसा शायद इसलिए है, क्योंकि हेमंत अपना खाली समय किताबों के साथ बिताते हैं। उन्हें पढ़ना बहुत पसंद है। संवेदनाओं को वह जल्दी अभिव्यक्त नहीं करते, लेकिन उन संवेदनाओं से वह हिम्मत ग्रहण करते हैं। चुनौतियों से भरे शुरूआती जीवन से लेकर मुख्यमंत्री बनने तक का उनका सफर संघर्षपूर्ण रहा। जमीन घोटाले में जेल भेज दिये जाने के बाद उनकी छवि और मजबूत हुई। जेल से वह तपे-तपाये नेता बन कर उभरे और झारखंड में सबसे लोकप्रिय नेता के रूप में अपने को स्थापित कर लिया। लोगों की सहानुभूति का कारवां उनके साथ चल पड़ा। पत्नी कल्पना सोरेन के साथ मिल कर उन्होंने पार्टी को चुनावी सफलता दिलायी। झामुमो का कार्यकारी अध्यक्ष रहते हुए वर्ष 2024 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को दोबरा सत्ता में लाने वाले हेमंत सोरेन के हाथों में अब संगठन की पूरी बागडोर है। हेमंत सोरेन ने दृढ़ संकल्प, राजनीतिक कौशल और लचीलेपन के साथ झामुमो को एक नये मुकाम तक पहुंचाने में सफलता हासिल की। रणनीतिक कौशल और राजनीति में साम-दंड-भेद नीति से हेमंत सोरेन ने स्टीफन मरांडी, साइमन मरांडी, हेमलाल मुर्मू और चंपाई सोरेन जैसे वरिष्ठ नेताओं के आंतरिक प्रतिरोध के बावजूद खुद को शिबू सोरेन के उत्तराधिकारी के रूप में स्थापित करने में सफलता हासिल की। इसका परिणाम यह निकला कि फिलहाल चंपाई सोरेन को छोड़ कर झामुमो के सभी पुराने नेता फिर से पार्टी में लौट आये हैं और हेमंत सोरेन के नेतृत्व में पूरी आस्था व्यक्त करते हुए पार्टी के लिए काम कर रहे हैं। अपने तपे-तपाये चेहरे के साथ हेमंत सोरेन अब पार्टी में सर्वमान्य चेहरा बन कर उभर गये हैं।

    34 साल की उम्र में पहली बार राज्यसभा के लिए चुने गये
    हेमंत सोरेन के राजनीतिक जीवन की शुरूआत झारखंड छात्र मोर्चा के अध्यक्ष के रूप में हुई। बड़े भाई दुर्गा सोरेन के असामयिक निधन के बाद पिता शिबू सोरेन की मदद के लिए हेमंत ने पढ़ाई छोड़ दी और राजनीति के मैदान में उतर गये। 2009 में 34 साल की उम्र में वह पहली बार राज्यसभा के लिए चुने गये। उसी साल उन्होंने दुमका विधानसभा सीट भी जीती। 35 साल की उम्र में वह पहली बार उप मुख्यमंत्री बने और 38 साल की उम्र में मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे।

    बरहेट से लगातार तीन बार जीत मिली
    इस बीच नेमरा से दुमका होते हुए 2014 में हेमंत सोरेन बरहेट पहुंचे और पिछले तीन चुनावों से वे बरहेट से ही जीत रहे हैं। हेमंत सोरेन का नेमरा से बरहेट तक का यह राजनीतिक सफर काफी दिलचस्प है। अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान हेमंत पर खनन और भूमि घोटाले सहित कई गंभीर आरोप लगाये गये। जनवरी 2024 में उन्हें मनी लांड्रिंग मामले में अंतत: जेल भेज दिया गया, जिसके कारण उन्हें करीब पांच महीने के लिए सीएम पद छोड़ना पड़ा। हालांकि, उनकी जेल की अवधि ने एक दृढ़ नेता के रूप में उनकी छवि को और मजबूत किया। संघर्ष के रास्ते चलते हुए उन्होंने अपने को लौह पुरुष के रूप में स्थापित कर लिया। इस बीच, उनकी पत्नी कल्पना सोरेन एक राजनीतिक ताकत के रूप में उभरीं और साथ मिल कर उन्होंने झामुमो को चुनावी सफलता दिलायी।

    शुरूआती जीवन चुनौतियों भरा
    हेमंत सोरेन का शुरूआती जीवन चुनौतियों से भरा रहा। उनके पिता दिशोम गुरु शिबू सोरेन के पास खेती के अलावा कोई और रोजगार नहीं था। इस वजह से परिवार को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा। महाजनों के शोषण के खिलाफ लड़ाई और झारखंड आंदोलन में सक्रिय भागीदारी के कारण शिबू सोरेन को वर्षों जंगल की शरण में रहना पड़ा। लेकिन वे टूटे नहीं, उस परिस्थिति में हेमंत सोरेन की मां रूपी सोरेन ने अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने की पूरी कोशिश की।
    शिबू सोरेन 1970 के दशक में अलग झारखंड राज्य की मांग को लेकर झामुमो की स्थापना में सक्रिय रूप से शामिल थे। जिस समय हेमंत सोरेन का जन्म हुआ था, उनके पिता टुंडी स्थित एक आश्रम में संताली समुदाय को जागरूक करने के लिए अभियान चला रहे थे। हेमंत सोरेन की मां रूपी सोरेन अपने पैतृक गांव नेमरा में रह कर अपनी बेटी अंजली सोरेन, बड़े बेटे दुर्गा सोरेन, दूसरे बेटे हेमंत सोरेन और छोटे बेटे बसंत सोरेन का पालन-पोषण करती रहीं।

    गांव के ही सरकारी प्राथमिक स्कूल में मिली शिक्षा
    बड़े बेटे दुर्गा सोरेन को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए गुहियाजोरी गांव स्थित संत जोसेफ हाइ स्कूल में दाखिला कराया गया। यह स्कूल कभी संताल परगना का सबसे अच्छा शिक्षण संस्थान माना जाता था। वहीं, हेमंत सोरेन ने गांव के ही सरकारी प्राथमिक स्कूल में शिक्षा प्राप्त की। बाद में, उन्हें उच्च माध्यमिक स्तर की शिक्षा के लिए पटना के एमजी हाइ स्कूल में दाखिला दिलाया गया, जहां उन्होंने 12वीं तक की पढ़ाई पूरी की। उन्होंने 1990 में मैट्रिक और 1994 में इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद उन्होंने रांची के बीआइटी मेसरा में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में दाखिला लिया, लेकिन राजनीति में आने के लिए उन्होंने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी।

    छात्र मोर्चा के अध्यक्ष में राजनीतिक करियर की शुरूआत
    2003 में हेमंत सोरेन ने झामुमो की छात्र शाखा, झारखंड छात्र मोर्चा के अध्यक्ष के रूप में अपना करियर शुरू किया। हेमंत सोरेन का सपना इंजीनियर बनने का था, लेकिन पिता के राजनीति में रहने के कारण घर की परिस्थितियां बदल गयीं। एक मामले में उनके पिता शिबू सोरेन को गिरफ्तार कर लिया गया। वहीं उनके बड़े भाई दुर्गा सोरेन भी किडनी की बीमारी से पीड़ित रहने लगे। परिवार में ऐसी समस्याएं आने से हेमंत सोरेन विचलित हो गये।

    शिबू सोरेन के सीएम नहीं बनने से गहरा सदमा लगा
    वर्ष 2000 में अलग झारखंड राज्य बनने के बाद विधायकों की पर्याप्त संख्या नहीं होने के कारण शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया। इस घटना ने परिवार के साथ-साथ हेमंत सोरेन को भी झकझोर कर रख दिया, क्योंकि शिबू सोरेन के नेतृत्व में ही लंबे समय तक अलग राज्य के लिए आंदोलन चलाया जा रहा था और जब अलग राज्य का गठन हुआ, तो शिबू सोरेन की जगह भाजपा के बाबूलाल मरांडी पहले मुख्यमंत्री बन गये। इस घटना के बाद हेमंत सोरेन ने झामुमो कार्यकर्ताओं और झारखंड आंदोलनकारियों के साथ शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री बनाने का संकल्प लिया। पिता शिबू सोरेन के मुख्यमंत्री नहीं बनने से आहत होकर हेमंत सोरेन जैसे कई युवा झामुमो से जुड़ने लगे।

    हेमंत सोरेन को पहले चुनाव में मिली हार
    झामुमो को मजबूत बनाने के लिए युवाओं को जोड़ने के उद्देश्य से हेमंत सोरेन सक्रिय रूप से काम करने लगे। इसके परिणामस्वरूप पार्टी नेतृत्व ने 2005 में पार्टी के कद्दावर नेता प्रो स्टीफन मरांडी के बदले युवा हेमंत सोरेन को दुमका सीट से प्रत्याशी घोषित किया। इससे नाराज होकर प्रो स्टीफन मरांडी ने बगावत कर दी और हेमंत सोरेन के खिलाफ निर्दलीय चुनाव में उतर गये। इस चुनाव में स्टीफन मरांडी ने झामुमो के टिकट पर पहली बार चुनाव लड़ रहे युवा हेमंत सोरेन को हरा दिया।

    2009 में बड़े भाई दुर्गा सोरेन की मौत के बाद बने उत्तराधिकारी
    2009 में उनके बड़े भाई दुर्गा सोरेन की अचानक मृत्यु हो गयी। 2009 में उनकी मृत्यु के पहले तक दुर्गा सोरेन को ही शिबू सोरेन का राजनीतिक उत्तराधिकारी माना जाता था, लेकिन इस घटना ने हेमंत सोरेन के राजनीतिक जीवन में एक नया मोड़ ला दिया। दुर्गा सोरेन की कमी को अब हेमंत सोरेन ने भरपाई करने का बीड़ा उठाया। हेमंत सोरेन अपने शोकग्रस्त परिवार को सहारा देने के लिए आगे आये और जून 2009 में राज्यसभा के लिए चुने गये। हालांकि, उसी वर्ष बाद में उन्होंने दुमका विधानसभा सीट जीती और राज्य की राजनीति पर ध्यान केंद्रित करने के लिए राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया।

    2010 में पहली बार उपमुख्यमंत्री का मिला पद
    2010 में झामुमो ने भाजपा के साथ मिल कर गठबंधन सरकार बनायी, जिसमें हेमंत सोरेन अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में उपमुख्यमंत्री के रूप में शामिल हुए। हालांकि जनवरी 2013 में उन्होंने स्थानीय मुद्दों पर नीतिगत असहमति का हवाला देते हुए मुंडा सरकार से समर्थन वापस ले लिया, जिसके कारण राष्ट्रपति शासन लागू हो गया।

    2013 में हेमंत सोरेन पहली बार सीएम बने
    छह महीने बाद हेमंत सोरेन ने अपना पहला राजनीतिक कार्ड खेला, जब उन्होंने कांग्रेस और राजद के साथ गठबंधन सरकार बनायी। जुलाई 2013 में उन्होंने पहली बार झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली, लेकिन 17 महीने तक मुख्यमंत्री के रूप में संक्षिप्त कार्यकाल के बाद 2014 के विधानसभा चुनावों में झामुमो को हार का सामना करना पड़ा। हालांकि, विपक्ष के नेता के रूप में हेमंत सोरेन ने अपनी राजनीतिक रणनीति को फिर से परिभाषित किया। उन्होंने आदिवासी पहचान को प्रभावित करने वाले भूमि कानूनों जैसे मुद्दों पर रघुबर दास के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के खिलाफ आंदोलन किया।

    2019 में झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन को बहुमत
    हेमंत सोरेन की रणनीति और उनके प्रयासों के कारण 2019 के विधानसभा चुनाव में झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन ने भाजपा को सत्ता से बेदखल करते हुए 47 सीटें हासिल कीं। हेमंत सोरेन 29 दिसंबर, 2019 को दूसरी बार मुख्यमंत्री बने।

    जेल जाने के बावजूद हेमंत सोरेन की पकड़ मजबूत हुई
    अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान हेमंत सोरेन पर खनन और भूमि घोटाले सहित कई गंभीर आरोप लगे। जनवरी 2024 में उन्हें मनी लांड्रिंग मामले में जेल भेजा गया, जिसके कारण उन्हें पांच महीने के लिए पद छोड़ना पड़ा। हालांकि, उनकी जेल की अवधि ने एक दृढ़ नेता के रूप में उनकी छवि को और मजबूत किया। जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने तीसरी बार फिर से सीएम के रूप में शपथ ली। इस बीच, उनकी पत्नी कल्पना सोरेन एक राजनीतिक ताकत के रूप में उभरीं और साथ मिल कर उन्होंने झामुमो को चुनावी कामयाबी दिलायी। संघर्ष, कुशल नेतृत्व और दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति के कारण ही हेमंत सोरेन आज झामुमो के अध्यक्ष बनाये गये हैं। पार्टी को उनसे और भी काफी अपेक्षाएं हैं। हेमंत सोरेन ने भी संकल्प लिया है कि वे पार्टी हित में अपना सब कुछ न्योछावर कर देंगे।

     

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