विशेष
मणिपुर के बाद अब पश्चिम बंगाल पर भी चौतरफा घिर रही मोदी सरकार
कह रहा बहुसंख्यक समाज,जब भाजपा के कोर वोटर ही सुरक्षित नहीं, तब किस पर करें भरोसा
राष्ट्रपति शासन की मांग कर रहे हैं पीड़ित
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
पश्चिम बंगाल हिंसा की आग में झुलस रहा है। राज्य के मुस्लिम बहुल मुर्शिदाबाद जिले में वक्फ कानून के खिलाफ जारी विरोध प्रदर्शन, हिंसा और हिंदुओं के पलायन के बीच अब भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्ववाली केंद्र की एनडीए सरकार की चुप्पी पर सवाल उठने लगे हैं। पश्चिम बंगाल पर केंद्र सरकार की निष्क्रियता से देश भर के बहुसंख्यक समाज का भरोसा हिलने लगा है। लोग अब कहने लगे हैं कि केंद्र सरकार यदि पश्चिम बंगाल के हिंदुओं की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकती है, तो फिर देश के दूसरे हिस्सों में वह इसका दावा कैसे कर सकती है। इस तरह पश्चिम बंगाल में जारी हिंसा और तनाव का साइड इफेक्ट भी दिखने लगा है और इसमें नुकसान भाजपा को ही उठाना पड़ेगा, क्योंकि मणिपुर के बाद पश्चिम बंगाल में केंद्र सरकार की चुप्पी से उसके कोर वोटर निराश होने लगे हैं। क्योंकि वे अब असुरक्षित महसूस करने लगे हैं। यह पहली बार नहीं है जब भाजपा ने उनका भरोसा डगमगाया है। बंगाल में चुनाव के दौरान और बाद में भी उन्होंने भाजपा की चुप्पी का हर्जाना भरा है। कई तो जान देकर भी। उनकी निराशा काफी हद तक वाजिब भी है, क्योंकि यदि केंद्र सरकार ने पिछले एक हफ्ते में कुछ रटे-रटाये बयान जारी करने के अलावा कोई कदम उठाया होता, तो वहां के हिंदुओं में भरोसा जगता। एक तरफ प्रदेश भाजपा के नेता इस हिंसा के कारण पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन की मांग कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ केंद्र के स्तर पर कहीं कोई हलचल दिखाई नहीं दे रही है। राज्य के भाजपा नेता किसी एक्शन के लिए केंद्र की तरफ टकटकी लगाये हुए हैं, लेकिन उन्हें उम्मीद बंधानेवाला भी कोई नहीं है। हद तो तब हो जाती है जब बंगाल की हिंदू महिलाएं कह रही हैं कि उनकी इज्जत सुरक्षित नहीं है। उनका कहना है कि मुस्लिम कट्टरपंथी उनसे कह रहे हैं कि हमें अपनी इज्जत दो, तब तुम्हारे परिवार वालों को सुरक्षित छोड़ेंगे। वहां की जनता कह रही है अब बस। बंगाल अब बांग्लादेश बन चुका है। लेकिन फिर भी केंद्र सरकार चुप्पी साधे हुई है। जाहिर है कि इस चुप्पी का दूरगामी असर होगा। क्या है पश्चिम बंगाल हिंसा का सियासी साइड इफेक्ट, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
पश्चिम बंगाल में वक्फ संशोधन कानून के विरोध के नाम पर जो हिंसा फैली है, वह मात्र विरोध प्रदर्शन नहीं, बल्कि एक सुनियोजित और राज्य प्रायोजित है। मुर्शिदाबाद, मालदा, हुगली और उत्तर 24 परगना जैसे जिलों में हिंदू समुदाय के घरों पर हमले, आगजनी, लूटपाट और हत्या की घटनाएं सामने आयी हैं। इन घटनाओं के बाद सैकड़ों हिंदू परिवारों को अपना घर छोड़ कर पलायन करना पड़ा है, जो कि राज्य सरकार की निष्क्रियता और हिंदू विरोधी रवैये को उजागर करता है। हिंसक झड़पों के बाद से सैकड़ों हिंदू सुती, समसेरगंज, जंगीपुर, धुलियान, फरक्का और अन्य इलाकों से विस्थापित होकर पड़ोसी जिलों में शरण लिये हुए हैं। जो लोग हिंसा के बाद अपने-अपने घरों को छोड़ कर बाहर नहीं जा सके हैं, उन्हें अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। स्थिति कितनी खतरनाक है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हिंसा के दौरान कई घरों को लूटा गया और तोड़फोड़ की गयी। यही नहीं, पीने के पानी के स्रोत, जैसे तालाब और कुएं में जहर डाल दिया गया है।
पीएफआइ और सिमी का है हिंसा से कनेक्शन
अब तक की सूचना के अनुसार 11 अप्रैल को बिना किसी उकसावे के गोलीबारी हुई और पुलिस जान के डर से छिप गयी। राज्य में 50 से ज्यादा विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां हिंदुओं की आबादी कम है। ऐसी स्थिति में वहां के हिंदू कह रहे हैं कि वोट के समय समस्या उत्पन्न हो सकती है। इसलिए उन इलाकों में राष्ट्रपति शासन लगाया जाना चाहिए और चुनाव करवाने के लिए सेना को उतार दिया जाना चाहिए। वास्तव में पीएफआइ और सिमी के आतंकवादी यहां हिंसा फैलाने में लगे हैं।
ममता के बगावती स्वर और केंद्र की चुप्पी
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हाल ही में वक्फ संशोधन कानून को पश्चिम बंगाल में लागू नहीं करने की घोषणा की। उन्होंने मुस्लिम अल्पसंख्यकों और उनकी संपत्ति की सुरक्षा की बात की, लेकिन हिंदू समुदाय पर हो रहे हमलों पर एक शब्द तक नहीं कहा। इससे यह स्पष्ट है कि मुख्यमंत्री सुनियोजित ढंग से न केवल हिंसा को समर्थन दे रही हैं, बल्कि मुस्लिम समुदाय को हिंदुओं पर हमला करने के लिए चुपचाप तरीके से बढ़ावा दे रही हैं। ममता के इस रवैये से वैसे तो बहुसंख्यक हिंदुओं को आश्चर्य नहीं हो रहा है, बल्कि उन्हें केंद्र सरकार की चुप्पी पर गहरी निराशा है। लोग सवाल कर रहे हैं कि आखिर केंद्र सरकार अब तक चुप क्यों है। क्या एक मुख्यमंत्री को उसके पद पर बने रहने दिया जा सकता है, जो संविधान के आदेशों को खुलेआम ठुकरा दे, सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों को चुनौती दे और एक विशेष मजहब के वोट बैंक को खुश करने के लिए पूरे राज्य को हिंसा की आग में झोंक दे।
भाजपा और केंद्र की निष्क्रियता पर सवाल
अब लोग पश्चिम बंगाल की ताजा स्थिति पर भाजपा और केंद्र सरकार की चुप्पी पर सवाल करते हैं। बंगाल के हिंदू कह रहे हैं कि भाजपा, जो खुद को हिंदू हितों का सबसे बड़ा रक्षक कहती है, आज पश्चिम बंगाल में जब हिंदू मारे जा रहे हैं, तब मौन क्यों है। भाजपा के किसी भी शीर्षस्थ नेता ने भी एक शब्द नहीं कहा। क्या उनका यह स्टैंड बहुसंख्यक समाज को भरोसा दिला सकता है।
क्या बंगाल को बांग्लादेश बनाने की योजना है
मुर्शिदाबाद और मालदा जैसे जिलों में हिंदुओं पर हमले की शैली—हिंदुओं की हत्या, घर जलाना, पत्थरबाजी, पीने के पानी में जहर मिलाना—हमें न सिर्फ 1971 के बांग्लादेशी हिंदू नरसंहार की, बल्कि हाल ही में शेख हसीना सरकार को हटाने की साजिश के बाद बांग्लादेश में हुए जिहादी दंगों की भी याद दिलाते हैं, जहां मंदिरों को जलाया गया, हिंदुओं को निशाना बनाया गया। ऐसे में यह सवाल भी मौजूं है कि क्या ममता बनर्जी बांग्लादेशी घुसपैठियों का उपयोग करके बंगाल को बांग्लादेश में बदलने का प्रयास कर रही हैं। आज हिंदू खुद को अपनी ही भूमि में अनाथ महसूस कर रहा है। बंगाल में हिंदू समुदाय डरा हुआ है और ऐसा लगता है कि उसे असहाय छोड़ दिया गया है।
केंद्र सरकार को हस्तक्षेप करना होगा
अब समय आ गया है कि केंद्र सरकार स्थिति की गंभीरता को समझे और तुरंत कानूनसम्मत कदम उठाये। ममता सरकार को बर्खास्त करना अब राजनीतिक नहीं, संवैधानिक और नैतिक अनिवार्यता बन चुकी है, क्योंकि यह प्रश्न सिर्फ बंगाल का नहीं, पूरे भारत के भविष्य का है। अगर आज बंगाल को बचाया नहीं गया, तो कल कोई भी राज्य इस मजहबी उन्माद की आग में झुलस सकता है। यदि केंद्र सरकार ने अपना मौन नहीं तोड़ा, तो शायद इसका साइड इफेक्ट बेहद खतरनाक होगा, जिसका खामियाजा अंतत: केंद्र सरकार को ही भुगतना होगा। भाजपा को मणिपुर को नहीं भूलना चाहिए, जहां उसकी रणनीति बुरी तरह फेल कर गयी और जब उसने स्थिति को संभालने की कोशिश की, तो काफी देर हो चुकी थी। भाजपा को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि पश्चिम बंगाल ने इस देश के राजनीतिक आंदोलनों का नेतृत्व किया है और यदि यह राज्य उसके हाथ से निकला, तो फिर उसे दूसरे राज्यों में भी सियासी मुश्किलों का सामना करना होगा।