विशेष
घरेलू और वैश्विक दबाव भी कारण था, पर असली वजह दक्षिण एशिया
अब चीन के मुकाबले भारत को खड़ा करने की है अमेरिका की रणनीति
इसलिए ट्रंप ने पैर पीछे खींचे, लेकिन ड्रैगन को लेकर रुख में बदलाव नहीं

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने टैरिफ पर यू-टर्न ले लिया है। इसका एलान करते हुए उन्होंने कहा कि 75 से ज्यादा देशों पर टैरिफ 90 दिनों के लिए टाल दिया गया है। हालांकि उन्होंने चीन को टैरिफ में किसी तरह की रियायत नहीं दी है। ट्रंप के इस एलान से शेयर बाजारों में जोरदार तेजी दिखी। एशियाई बाजारों को भी पंख लग गये। सवाल है कि आखिर ट्रंप जवाबी टैरिफ लागू करने के कुछ ही घंटों बाद यू-टर्न लेने को क्यों मजबूर हो गये। दरअसल, इस फैसले के पीछे अमेरिका की भारत या यूं कहें, दक्षिण एशिया नीति भी कहीं न कहीं जिम्मेदार है। अमेरिका को दक्षिण एशिया में एक ऐसा विश्वस्त सहयोगी चाहिए, जिस पर वह आंख बंद कर भरोसा कर सके। पहले उसके पास चीन और पाकिस्तान जैसे देश थे, लेकिन व्यापार युद्ध में चीन की चुनौतियों और पाकिस्तान की लगातार खराब होती हालत ने अमेरिका को अपनी भारत संबंधी नीति पर पुनर्विचार करने को मजबूर कर दिया है। अपने दूसरे कार्यकाल की शुरूआत में राष्ट्रपति ट्रंप का भारत के प्रति रुख बेहद रूखा था, लेकिन पीएम मोदी के अमेरिका दौरे के बाद से वह बदल गये हैं। ट्रंप प्रशासन को अब लगता है कि चीन के साथ मुकाबले में यदि उसका कोई मजबूत दोस्त हो सकता है, तो वह भारत है। इसलिए उन्होंने टैरिफ को टालने जैसा महत्वपूर्ण कदम उठाया है। इसे कहीं न कहीं भारतीय कूटनीति की कामयाबी भी कहा जा सकता है। क्या है ट्रंप के यू-टर्न के पीछे का कारण और इसका क्या हो सकता है असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

अपने टैरिफ पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का रुख कभी नरम तो कभी गरम है। दुनिया भर पर टैरिफ की बौछार करने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति के सुर एक बार फिर बदल गये हैं। बुधवार को उन्होंने चीन को छोड़कर दुनिया भर के देशों को एक बड़ी राहत दी। उन्होंने अगले 90 दिनों के लिए अपने जवाबी टैरिफ को टाल दिया, यानी कि टैरिफ की बढ़ी हुई दर इन देशों पर लागू नहीं होगी, लेकिन चीन पर उनके तेवर कड़े हैं। ट्रंप ने चीन पर टैरिफ 104 प्रतिशत से बढ़ाकर 125 प्रतिशत कर दिया। टैरिफ की यह नयी दर चीन पर नौ अप्रैल से लागू भी हो गयी। चीन पर इतना ज्यादा टैरिफ लगाने पर ट्रंप ने कहा कि चीन ने दुनिया के बाजारों के प्रति असम्मान दिखाया है, इसलिए उस पर टैरिफ लगाया गया है। बाकी देशों पर 10 प्रतिशत टैरिफ लगा रहेगा।

चीन ज्यादा उछल रहा था, इसलिए टैरिफ बढ़ाया
अपने सोशल मीडिया ‘ट्रूथ सोशल’ पर अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि चीन ने दुनिया के बाजारों के प्रति असम्मान दिखाया है। मैं उस पर 125 प्रतिशत टैरिफ लगा रहा हूं, जो कि तत्काल प्रभाव से लागू होने जा रहा है। चीन और अन्य देश, जो अमेरिका से कारोबार में जो फायदा उठा रहे थे, मुझे लगता है कि एक दिन उन्हें यह बात महसूस होगी। टैरिफ पर पहले वाली व्यवस्था अब नहीं चल सकती। उन्होंने कहा कि चीन थोड़ा उछल-कूद रहा था। मैंने पहले ही कहा था कि जो देश जवाबी टैरिफ लगायेगा, उस पर मैं टैरिफ दोगुना कर दूंगा। इसके बावजूद चीन उछल रहा था और जवाबी टैरिफ लगा रहा था। हालांकि, ट्रंप ने चीन के राष्ट्रपति की प्रशंसा करते हुए कहा कि वह समझदार व्यक्ति हैं। चीन टैरिफ पर डील करना चाहता है, लेकिन उसे पता नहीं है कि वह शुरूआत कहां से करे।

टैरिफ पर रोक की वजह क्या है
टैरिफ को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर अपनी बात मनवाने की कोशिश कर रहे ट्रंप का यह ताजा फैसला यू-टर्न जैसा है। पहले टैरिफ बढ़ाया और फिर पीछे हट गये। इसके पीछे कई वजहें बतायी जा रही हैं। सबसे बड़ी वजह टैरिफ की घोषणा होते ही दुनिया भर के शेयर बाजारों में जिस तरह से हाहाकार मचा और बाजार जिस तरह से धराशायी हुए, उससे अर्थव्यवस्थाओं पर मंदी का खतरा बढ़ने लगा। खुद अमेरिकी शेयर बाजार औंधे मुंह गिरे और अरबों डॉलर का नुकसान हुआ। दूसरा, इस टैरिफ के खिलाफ अमेरिका के कई शहरों में भारी विरोध प्रदर्शन हुए। हजारों की संख्या में लोग सड़कों पर आ गये और इसे वापस लेने की मांग की।

दक्षिण एशिया बड़ा फैक्टर
टैरिफ टालने के फैसले के पीछे दूसरी वजह दक्षिण एशिया को बताया जा रहा है। अमेरिका इन दिनों दक्षिण एशिया, यानी भारतीय उपमहाद्वीप में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए किसी भरोसेमंद मित्र की तलाश में है। पहले चीन और पाकिस्तान उसके मजबूत साथी थे, तो अमेरिका ने इराक और अफगानिस्तान में भी अपना झंडा गाड़ लिया था। लेकिन विश्व व्यापार में चीन के बढ़ते प्रभाव से अमेरिका को चुनौती मिलने लगी है। इससे अमेरिका बौखला गया है। उधर पाकिस्तान की अंदरूनी हालत अब ऐसी नहीं है कि वह अमेरिका की मदद कर सके। ऐसे में अमेरिका अब भारत की तरफ देख रहा है और दक्षिण एशिया में वह भारत को चीन के मुकाबले खड़ा करने की नीति पर चल रहा है। यह सब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे के बाद हुआ है। इसलिए ट्रंप के इस फैसले के पीछे भारतीय कूटनीति को भी एक बड़ा कारण बताया जा रहा है।

सभी के साथ लड़ाई पड़ जायेगी भारी
टैरिफ टालने के फैसले के पीछे एक और कारण यह है कि लोगों के आक्रोश और गुस्से को देखते हुए रिपब्लिकन पार्टी को लगा कि अगर ये विरोध-प्रदर्शन और तेज हुए, तो ट्रंप की लोकप्रियता और अमेरिकी अर्थव्यवस्था, दोनों में तेजी से गिरावट आनी शुरू हो जायेगी। यही नहीं, चीन के अलावा ब्राजील, मैक्सिको, यूरोपीय यूनियन एवं अन्य देश टैरिफ के खिलाफ जिस तरह से लामबंद हो रहे हैं और जवाबी टैरिफ लगाने की योजना पर काम कर रहे हैं, उससे दुनिया में नये सिरे से एक ट्रेड वॉर शुरू हो सकता है। रिपब्लिकन पार्टी को लगता है कि टैरिफ पर एक साथ सभी देशों से लड़ना अमेरिका के हित में नहीं है। देशों की नाराजगी और टैरिफ की लड़ाई का इस्तेमाल चीन अपने फायदे के लिए कर सकता है।

ट्रंप पर घरेलू और वैश्विक दबाव
ऐसे में ट्रंप के इस फैसले पर घरेलू और वैश्विक दबाव दोनों काम कर रहा था। यही नहीं, अमेरिका के वित्त विभाग ने टैरिफ को लेकर चिंता जाहिर की। ट्रेजरी विभाग के प्रमुख स्कॉट बेसेंस ने कहा कि टैरिफ की वजह से अमेरिका के बांड मार्केट में गिरावट दर्ज हुई है। अगर यह जारी रहा, तो बांड मार्केट को भारी नुकसान हो सकता है। इस बीच टैरिफ बढ़ाने वाले अपने फैसले पर ट्रंप ने कहा कि उनका यह फैसला ‘दिल’ से लिया गया था। यानी इसका मतलब यह है कि टैरिफ बढ़ाने की अपनी इस योजना पर उन्होंने विशेषज्ञों और अपने सहयोगियों के साथ लंबा विचार-विमर्श नहीं किया। वित्तीय बाजारों में उथल-पुथल की आशंका को देखते हुए ट्रंप ने अपने स्टैंड में नरमी लाना ही सही समझा।

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