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लुगु पहाड़ में हुई मुठभेड़ के बाद पूरी तरह उखड़ गये हैं नक्सलियों के पैर
डीजीपी और दो आइपीएस की रणनीति ने लिखी कामयाबी की पटकथा

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
झारखंड में पहली बार सुरक्षा बलों ने इतनी बड़ी संख्या में नक्सलियों को मार गिराया है। बोकारो के लुगु पहाड़ की तलहटी में सोमवार 21 अप्रैल को हुई मुठभेड़ में एक करोड़ रुपये के इनामी नक्सली समेत कुल आठ नक्सली मारे गये। इस मुठभेड़ के बाद माना जा रहा है कि नक्सलियों का ‘झुमरा चैप्टर’ हमेशा के लिए खत्म हो गया है। मुठभेड़ में विवेक, अरविंद और साहब राम मांझी समेत कुल आठ नक्सलियों के मारे जाने के साथ ही नक्सलियों के पैर पूरी तरह उखड़ गये हैं। इससे पहले झारखंड पुलिस ने गढ़वा-लातेहार के बूढ़ा पहाड़ इलाके से नक्सलियों को पूरी तरह खदेड़ दिया था। लुगु पहाड़ मुठभेड़ में मारे गये विवेक के दस्ते का गिरिडीह और बोकारो जिले में काफी प्रभाव था। विवेक का दस्ता पारसनाथ से झुमरा तक सक्रिय था। दरअसल इस मुठभेड़ की पटकथा झारखंड के डीजीपी अनुराग गुप्ता के नेतृत्व में दो अन्य आइपीएस अधिकारियों ने लिखी, जो पिछले करीब तीन महीने से इस नक्सली दस्ते के मूवमेंट को मॉनिटर कर रहे थे। इस साल अब तक झारखंड पुलिस ने नक्सल विरोधी अभियान में कई बड़ी सफलताएं हासिल की हैं, जिनमें एक दर्जन से ज्यादा नक्सली मुठभेड़ों में मारे गये और कुछ बड़े नक्सलियों की गिरफ्तारी हुई है। लुगु पहाड़ मुठभेड़ के बाद अब ऐसा लगने लगा है कि झारखंड को वास्तव में नक्सल समस्या से हमेशा के लिए छुटकारा मिलनेवाला है। कैसे लिखी गयी लुगु पहाड़ मुठभेड़ की पटकथा और कौन था एक करोड़ का इनामी नक्सली विवेक, जिसने कभी बाबूलाल मरांडी के पुत्र की हत्या की थी, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

झारखंड के 25 साल के इतिहास में पहली बार सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में एक साथ आठ नक्सली मारे गये हैं। बोकारो के ललपनिया इलाके में 21 अप्रैल को हुई मुठभेड़ में ये नक्सली मारे गये, जिनमें एक करोड़ का इनामी नक्सली विवेक भी शामिल है। इस मुठभेड़ को झारखंड पुलिस की बड़ी कामयाबी माना जा रहा है। इसलिए केंद्रीय गृह मंत्रालय तक ने झारखंड पुलिस की तारीफ की है। इस मुठभेड़ के बाद नक्सलियों का गढ़ बना झुमरा अब नक्सल मुक्त हो गया है।

कैसे मिली यह कामयाबी
झारखंड पुलिस को यह कामयाबी अकस्मात नहीं मिली। इसके पीछे झारखंड के डीजीपी अनुराग गुप्ता के साथ दो वरिष्ठ आइपीएस की मेहनत और रणनीति है। इन दो आइपीएस अफसरों में आइजी अभियान अमोल वी होमकर और सीआरपीएफ के आइजी साकेत सिंह शामिल हैं। इन तीन पुलिस अफसरों ने मिल कर पिछले तीन महीने में ऐसी रणनीति तैयार की, जिससे शीर्ष नक्सली कमांडर विवेक और उसके दस्ते के सात सदस्य मारे गये। बताया जाता है कि पत्नी जया की मौत के बाद विवेक पारसनाथ और झुमरा में अपनी ताकत बढ़ाने की कोशिश में लगा हुआ था। उसकी गतिविधियों पर दोनों अधिकारी नजर रख रहे थे। डीजीपी अनुराग गुप्ता को भी दस्ते के बारे में जानकारी मिल रही थी। इन सूचनाओं के आधार पर विवेक के दस्ते को घेरने की योजना तैयार की गयी। बाकायदा एक वार रूम तैयार किया गया, जिसमें इन तीन अधिकारियों की टीम लगातार रणनीति पर काम करती रही। इन अधिकारियों की रणनीति यह थी कि दस्ते को ऐसी जगह घेरा जाये, जो उसका गढ़ है, ताकि इलाके के लोगों के मन में नक्सलियों का खौफ कम हो सके। फिर डीजीपी को सूचना मिली कि विवेक अपने दस्ते के साथ लुगु पहाड़ की तलहटी में रुका हुआ है। तीनों अधिकारियों ने तत्काल रणनीति को अमल में लाने का फैसला किया और दस्ते को घेर लिया। 20 अप्रैल की देर रात शुरू हुआ यह अभियान 21 अप्रैल की दोपहर तक चला और दोनों ओर से हुई गोलीबारी में विवेक समेत आठ नक्सली मारे गये।
पुलिस नक्सलियों को पहले दबोचने की योजना पर काम कर रही थी, लेकिन जैसे ही सुरक्षाबल नक्सलियों के नजदीक पहुंचे, नक्सल प्रहरी ने पुलिस पर फायरिंग कर दी। इसके बाद बाद बाकी नक्सली भी सक्रिय हुए और पुलिस पर गोलियों की बौछार कर दी। सुरक्षा बलों की रणनीति हर पहलू को ध्यान में रख कर तैयार की गयी थी। इसलिए जवानों ने तत्काल पोजीशन लेकर जवाबी फायरिंग की। नक्सलियों को जल्दी ही पता चल गया कि वे घिर गये हैं। ऐसे में कुछ नक्सली भाग निकलने में कामयाब हो गये, लेकिन आठ को सुरक्षा बलों ने मार गिराया। मारे गये नक्सलियों में विवेक उर्फ प्रयाग मांझी, स्पेशल एरिया कमेटी का सदस्य अरविंद यादव और जोनल मेंबर कमेटी सदस्य साहब राम मांझी शामिल हैं।

क्यों महत्वपूर्ण है विवेक का मारा जाना
मारा गया नक्सली प्रयाग मांझी उर्फ विवेक दा, जिसे फुचना, नागो मांझी और करण दा जैसे कई नामों से जाना जाता था, भाकपा माओवादी की सेंट्रल कमेटी का सदस्य था। वह संगठन के लिए रणनीतिक और सैन्य मोर्चे पर काम करता था और हाल ही में झारखंड के पारसनाथ क्षेत्र की कमान उसे सौंपी गयी थी, ताकि नक्सली गतिविधियों को फिर से संगठित किया जा सके।

कौन था नक्सली कमांडर विवेक
विवेक दा धनबाद जिले के टुंडी थाना क्षेत्र के दलबुढ़ा गांव का रहने वाला था, लेकिन उसकी सक्रियता का क्षेत्र सीमित नहीं था। वह झारखंड के गिरिडीह, बोकारो, लातेहार से लेकर बिहार, बंगाल, ओड़िशा और छत्तीसगढ़ तक फैले रेड कॉरिडोर में संगठन के लिए वर्षों तक सक्रिय रहा। उसके खिलाफ केवल गिरिडीह में ही 50 से अधिक मामले दर्ज थे।

बाबूलाल मरांडी के पुत्र की हत्या में शामिल था अरविंद यादव
लुगु पहाड़ मुठभेड़ में मारा गया दूसरा प्रमुख नक्सली अरविंद यादव था। वह बाबूलाल मरांडी के पुत्र समेत 20 लोगों की हत्या में शामिल था। उसके बारे में कहा जाता था कि पढ़ा-लिखा होने के साथ-साथ बोलने में भी माहिर था। इसलिए वह संगठन के लिए बेहद महत्वपूर्ण था। उसे अविनाश के नाम से भी जाना जाता था। उसने झारखंड के सबसे बड़े चिलखारी नरसंहार की पटकथा लिखी थी। झारखंड‐बिहार की सीमा पर देवरी थाना क्षेत्र के चिलखारी में 2007 में हुए नरसंहार की इस घटना में झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के पुत्र अनूप मरांडी सहित 20 लोग मारे गये थे। अरविंद नये लोगों को संगठन में जोड़ने में माहिर था। सोनो प्रखंड के मोहनपुर में आठ कमरे वाला उसका एक तल्ला मकान आज भी मौजूद है। इसमें उसके माता‐पिता रहते हैं। पूर्व में उसके घर पर इडी ने भी छापेमारी की थी। इसी वर्ष 22 जनवरी को बोकारो के ऊपरघाट में हुई मुठभेड़ में अरविंद यादव बाल‐बाल बच गया था। वह भेलवाघाटी के रास्ते चकाई के बोगी बरमोरिया जंगल भाग गया था।

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