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पार्टी के गुजरात अधिवेशन से रहीं दूर, समर्थकों ने साधी चुप्पी
वक्फ विधेयक पर चर्चा के दौरान लोकसभा में नहीं थीं मौजूद

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
कांग्रेस का गुजरात अधिवेशन समाप्त हो गया है। पार्टी ने गुजरात के अलावा बिहार में भी खुद को नये सिरे से खड़ा करने की योजना तैयार की है और राहुल गांधी इसकी कमान संभाल रहे हैं। लेकिन कांग्रेस के भीतर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है, क्योंकि पार्टी की सांसद प्रियंका गांधी इन दिनों पार्टी गतिविधियों से पूरी तरह अलग हैं। उन्होंने न तो लोकसभा के बजट सत्र के अंतिम चरण में भाग लिया और न ही पार्टी के दूसरे कार्यक्रमों में नजर आयीं। वक्फ संशोधन विधेयक पर लोकसभा में हुई चर्चा के दौरान प्रियंका गांधी अनुपस्थित रहीं और उनकी कमी को पार्टी सांसदों ने शिद्दत से महसूस भी किया। इसके बाद पार्टी के अधिवेशन में भी वह शामिल नहीं हुईं और न ही उनकी तरफ से कोई बयान ही आया। प्रियंका गांधी की इस अनुपस्थिति या यूं कहें निष्क्रियता को लेकर कांग्रेस के भीतर फुसफुसाहट शुरू हो गयी है। आधिकारिक रूप से कहा जा रहा है कि प्रियंका गांधी का कोई रिश्तेदार बीमार है और वह उसकी तीमारदारी में लगी हैं, लेकिन पार्टी के भीतर चर्चा यह है कि पार्टी में राहुल गांधी की अत्यधिक सक्रियता से प्रियंका गांधी नाराज हैं। कांग्रेस के भीतर चर्चा यह भी है कि पार्टी में हाल में हुए संगठनात्मक फेरबदल से पहले प्रियंका गांधी से मशविरा नहीं किया गया और यही उनकी नाराजगी का कारण है। सच्चाई जो भी हो, लेकिन इतना तो साफ है कि प्रियंका गांधी इन दिनों सियासी रूप से पूरी तरह निष्क्रिय हैं। क्या है प्रियंका गांधी की निष्क्रियता के कारण और क्या है कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

पूरे तामझाम और चर्चा के साथ राजनीति के मैदान में उतरीं प्रियंका गांधी वाड्रा इन दिनों सियासी परिदृश्य से गायब हैं। संसद के बजट सत्र के अंतिम चरण में भी वह नहीं दिखीं। पार्टी ह्विप के बावजूद वक्फ संशोधन बिल पर चर्चा के दौरान प्रियंका सदन में मौजूद नहीं थीं। वायनाड, जहां से वह सांसद हैं, में हाल में हुए दो कार्यक्रमों में भी वह शामिल नहीं हुईं। पार्टी की दूसरी गतिविधियों में भी प्रियंका इन दिनों शामिल नहीं हो रही हैं। ऐसे में यह चर्चा होने लगी है कि कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति में प्रियंका अकेली पड़ गयी हैं।
यह बात सभी को पता है कि कांग्रेस में सोनिया, प्रियंका, राहुल सभी का अपना अपना ग्रुप है। ये बात कांग्रेस के हाल में संपन्न अधिवेशन में खुल कर सामने आ गयी। प्रियंका अधिवेशन से गायब रहीं, जिसकी बड़ी वजह राहुल गांधी को बताया जा रहा है। इस अधिवेशन में पार्टी ने गुजरात और बिहार में खुद को नये सिरे से खड़ा करने का संकल्प तो लिया, लेकिन अधिवेशन के दौरान जो नजर आया, उसे देखकर तो साफ लग रहा है कि बिहार में भी कांग्रेस को कोई खास हाथ नहीं लगने वाला है।

क्यों गायब रहीं प्रियंका गांधी वाड्रा
गुजरात के अहमदाबाद में कांग्रेस के अधिवेशन के पहले दिन कांग्रेस कार्यसमिति यानी सीडब्ल्यूसी की बैठक हुई। इसमें पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और सोनिया गांधी, राहुल गांधी समेत 158 सदस्यों ने हिस्सा लिया। पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा गैरहाजिर रहीं। सीडब्ल्यूसी की बैठक में प्रियंका गांधी की गैरमौजूदगी पर कई सवाल उठे। बाद में इस मुद्दे पर जब पार्टी नेता जयराम रमेश से सवाल पूछा गया तो उन्होंने अपनी चुप्पी तोड़ी जरूर, लेकिन कुछ ऐसा जवाब नहीं दिया, जिससे सवालों का जवाब मिल जाये। जयराम रमेश ने कहा कि बैठक में 35 सदस्य अनुपस्थित थे और किसी एक शख्स को अलग से चिह्नित करके सवाल उठाना ठीक नहीं। इसी सवाल का जवाब देते हुए पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा कि प्रियंका गांधी ने पार्टी से पहले ही अनुरोध किया था कि उन्हें विदेश में पूर्व व्यस्तताओं में शामिल होने के लिए एआइसीसी सत्र और संसद सत्र को छोड़ने की अनुमति दी जाये और पार्टी ने उनका अनुरोध स्वीकार कर लिया।

प्रियंका को कोई बड़ी जिम्मेदारी कब मिलेगी
लेकिन यह बयान चर्चाओं को कहां रोक सकता था। प्रियंका का अधिवेशन में शामिल न होना कई सवाल खड़े करता है। अधिवेशन से ठीक पहले कांग्रेस के एक सीनियर नेता ने कहा था कि पार्टी इस वक्त इस बात पर ध्यान दे रही है कि प्रियंका गांधी वाड्रा को कैसे और बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है, खासकर जब कुछ बड़े राज्य में चुनाव होने हैं। पार्टी के कुछ अंदरूनी सूत्रों ने भी ये संकेत दिया कि उन्हें कोई अहम राज्य का प्रभारी या कोई बड़ी चुनावी जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। फिलहाल प्रियंका गांधी कांग्रेस की महासचिव हैं, लेकिन उनके पास कोई खास विभाग या जिम्मेदारी नहीं है। इसी वजह से कई राज्यों की इकाइयों और पार्टी के सीनियर नेताओं ने ये सुझाव भी दिया था कि उनके राजनीतिक अनुभव और जनता से जुड़ने की क्षमता का बेहतर इस्तेमाल किया जाना चाहिए। लेकिन प्रियंका तो सीडब्ल्यूसी की बैठक में ही नहीं पहुंचीं।

सियासी समझ और काबिलियत की वजह से किया जा रहा किनारा
कांग्रेस अधिवेशन में प्रियंका की गैरमौजूदगी के बाद एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया। प्रियंका गांधी जब वायनाड से जीत कर संसद पहुंची थीं, तब से ही उन्हें बड़ा सीमित रखा गया है। कई बार अंदरखाने से इसकी चर्चा भी हुई कि वह राहुल गांधी की राजनीति के लिए खतरा हो सकती हैं। अक्सर सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा होती रही है कि प्रियंका में राहुल से ज्यादा सियासी समझ और काबिलियत है। शायद यही वजह है कि उन्हें हर बार पीछे धकेल दिया जाता है, जिसका खामियाजा अब तक पार्टी भुगत रही है। प्रियंका गांधी वाड्रा अब तक चुनावी राजनीति का हिस्सा नहीं रही हैं। कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और नेताओं में उनकी एक खास जगह जरूर है। लोकसभा में प्रियंका का मौजूद होना कांग्रेस के लिए कई मायनों में खास भी रहा। अब तक प्रियंका संगठन को मजबूत करने की कोशिशों में लगी रहीं। हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और दक्षिण भारत में उन्होंने संगठन के स्तर पर काफी काम भी किया। प्रियंका गांधी के संसद में पहुंचने से उनके व्यक्तिगत, राजनीतिक ब्रांड को थोड़ी मजबूती जरूर मिली है। लेकिन पार्टी में उनके कद को राहुल के मुकाबले हमेशा कमतर आंका गया। इस बात को शायद प्रियंका भी अच्छे से समझती हैं। शायद यही वजह रही हो कि उन्होंने एआइसीसी की बैठक से दूरी बना ली।

कब बनेगा चुनाव प्रबंधन विभाग
प्रियंका गांधी अभी कार्यसमिति में हैं। खड़गे से उनकी दो बार बैठक हुई। कांग्रेस अध्यक्ष ने उन्हें कहा कि पार्टी के अंदर चुनाव प्रबंधन विभाग बनने जा रहा है और उसकी जिम्मेदारी वह संभालें। प्रियंका गांधी ने सोचने का समय मांगा और फिर जिम्मेदारी लेने से मना कर दिया। अगर चुनाव प्रबंधन विभाग प्रियंका गांधी को मिल जाता, तो यह केसी वेणुगोपाल के समानांतर होता और उनकी ताकत कम हो जाती। इस विभाग का काम बूथ कमेटी से लेकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बीच संगठन खड़ा करना है। उदयपुर में 2022 में हुए अधिवेशन में कांग्रेस को इसकी कमी महसूस हुई थी। तीन साल बीत गये, लेकिन अभी तक यह बस विचारों में है।

फेरबदल से भी नाराज हैं प्रियंका
चर्चा है कि कांग्रेस ने हाल में कुछ ऐसे फैसले लिये हैं, जिन पर प्रियंका गांधी से मशविरा नहीं किया गया। खास कर संगठनात्मक बदलाव को लेकर प्रियंका गांधी असहज हैं। उन्होंने बिहार में प्रदेश अध्यक्ष और प्रभारी बदलने के फैसले के प्रति नाराजगी दिखायी है। प्रियंका गांधी की यह नाराजगी कांग्रेस के लिए नुकसानदेह साबित होगी, इसमें कोई संदेह नहीं।

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