विशेष
कूटनीतिक जीत है मुंबई आतंकी हमले के आरोपी को भारत लाया जाना
आसान नहीं है अमेरिका समेत पश्चिमी देशों से आतंकवादियों का प्रत्यर्पण

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
26/11 मुंबई आतंकी हमले के आरोपी तहव्वुर हुसैन राणा को भारत लाया जा चुका है। भारत के इस पहले नंबर के दुश्मन का समय अब तिहाड़ जेल में बीतेगा, जहां उसकी सुरक्षा को लेकर विशेष इंतजाम किये गये हैं। तहव्वुर राणा का भारत लाया जाना या यूं कहें कि अमेरिका सरकार द्वारा इसे भारत को सौंपना कोई मामूली घटना नहीं है। यह आतंकी अमेरिका में छुपा हुआ था, लेकिन भारत के दबाव में अमेरिका को इस आतंकी को भारत को सौंपना पड़ा। यह नया भारत है, जो झुकता नहीं, झुकाता है। यह भारत की कूटनीतिक जीत और दुनिया भर में उसके बढ़ते दबदबे का प्रतीक है। तहव्वुर राणा को लेकर भारत ने इंतजार किया, लेकिन हार नहीं मानी। उसका प्रत्यर्पण भले देर से हुआ हो, पर यह संदेश साफ है कि भारत की कूटनीति ने फिर साबित किया कि हम अन्याय के सामने न तो झुकते हैं, न ही रुकते हैं, हम डटकर सामना करते हैं। भारत के दबदबे का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि तहव्वुर राणा को लेकर जैसे ही विशेष विमान दिल्ली पहुंचा, पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर तहव्वुर हुसैन राणा से पल्ला झाड़ लिया। उसने तहव्वुर राणा से खुद को अलग करते हुए कहा कि उसने बीते दो दशक से पाकिस्तान के अपने दस्तावेजों को रिन्यू नहीं करवाया है। अब वह पूरी तरह से कनाडाई नागरिक है। राणा का प्रत्यर्पण इसलिए भी महत्वरपूर्ण है, क्योंकि किसी भारत विरोधी आतंकी को अमेरिका ने पहली बार भारत को सौंपा है। इसके साथ ही अब इस बात की उम्मीद बंधने लगी है कि दुनिया भर में छिपे भारत के दुश्मनों और दूसरे भगोड़ों को भी भारत लाया जा सकेगा। क्या है तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण के मायने और क्या हो सकता है इसका असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

मुंबई हमलों के मुख्य आरोपी तहव्वुर राणा अब भारत के शिकंजे में है। उसे अमेरिका से भारत ले आया जा चुका है और अब उसके गुनाहों का हिसाब भारत की अदालत में भारतीय कानूनों के अनुसार होगा। इस दौरान इस पाकिस्तानी आतंकी का दिन तिहाड़ जेल में बीतेगा। तहव्वुर राणा का भारत प्रत्यर्पण देश की कूटनीति की बड़ी जीत है। तहव्वुर राणा को भारत लाना काफी मुश्किल था, लेकिन दो तथ्यों ने आतंकी के भारत प्रत्यर्पण को आसान बना दिया।

गृह मंत्री अमित शाह के कार्यालय ने अपने आधिकारिक एक्स हैंडल पर अमित शाह की ओर से पोस्ट करके लिखा, जिन लोगों ने भी भारत की जमीन और भारत के लोगों के साथ दुर्व्यवहार किया है, उन सभी को देश के कानून के अधीन भारत लाना भारत सरकार का दायित्व है। तहव्वुर राणा की वापसी मोदी सरकार की कूटनीति की बहुत बड़ी सफलता है, क्योंकि जिन सरकारों के शासन में बम धमाके हुए, वे उसे वापस नहीं ला पाये।

दोहरे खतरे के सिद्धांत का बखूबी किया सामना
राणा के प्रत्यर्पण का पहला फैक्टर है कानूनी दांव-पेच। दरअसल तहव्वुर राणा ने अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दोहरे खतरे सिद्धांत का हवाला दिया था। इसके तहत किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक से अधिक बार सजा नहीं दी जा सकती। तहव्वुर राणा ने तर्क दिया कि मुंबई आतंकी हमले की साजिश रचने के आरोप में वह अमेरिका में सजा काट चुका है। ऐसे में उसे अब भारत प्रत्यर्पित करना दोहरे खतरे के सिद्धांत का उल्लंघन होगा। हालांकि भारत का प्रतिनिधित्व एक मजबूत कानूनी टीम कर रही थी, जिसने अपने तर्कों से तहव्वुर राणा के भारत प्रत्यर्पण से बचने की हर कोशिश को नाकाम कर दिया।

प्रत्यर्पण का यह घटनाक्रम राणा के लिए एक बड़े कानूनी झटके के बाद हुआ है। पिछले सप्ताह प्रक्रिया को रोकने का उसका अंतिम प्रयास विफल हो गया, जब अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने उसके आपातकालीन आवेदन को अस्वीकार कर दिया, जिससे उसे भारतीय हिरासत में स्थानांतरित करने का रास्ता साफ हो गया। 64 वर्षीय राणा लॉस एंजिल्स के मेट्रोपॉलिटन डिटेंशन सेंटर में बंद था। 27 फरवरी को उसने अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट की एसोसिएट जस्टिस एलेना कगन के समक्ष बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के लंबित मुकदमे के लिए स्थगन के लिए आपातकालीन आवेदन दायर किया था, जिन्होंने बाद में पिछले महीने अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था।

भारत की बढ़ती कूटनीतिक ताकत का सबूत
राणा के प्रत्यर्पण का दूसरा फैक्टर है भारत का बढ़ता हुआ कूटनीतिक प्रभाव। वास्तव में तहव्वुर राणा का भारत प्रत्यर्पण भारत की बढ़ती हुई कूटनीतिक पहुंच, इसके अमेरिका के साथ मजबूत संबंधों का सबूत है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पूर्व की बाइडन सरकार या मौजूदा ट्रंप सरकार दोनों ने ही तहव्वुर राणा के भारत प्रत्यर्पण को मंजूरी दी। ट्रंप ने तो अपने एक बयान में साफ कर दिया था कि तहव्वुर राणा को भारत प्रत्यर्पित किया जायेगा। तहव्वुर राणा के भारत प्रत्यर्पण में कई बार मुश्किलें भी आयीं, लेकिन भारत ने अमेरिका के साथ अपने कूटनीतिक संबंधों का फायदा उठाते हुए उन मुश्किलों को समाप्त कर दिया।

कौन है तहव्वुर हुसैन राणा
तहव्वुर राणा एक पाकिस्तानी-कनाडाई नागरिक है, जो पाकिस्तानी सेना में भी काम कर चुका है। तहव्वुर राणा को आतंकी संगठन लश्कर ए तैयबा के लिए काम करने के लिए दोषी पाया गया था। वह साल 2009 से अमेरिका की जेल में बंद था। अब भारत लाकर उसे 2008 के मुंबई हमले के मामले में न्याय के कटघरे में लाया जायेगा। तहव्वुर राणा पेशे से डॉक्टर रह चुका है। इसे भारत के प्रति गहरी दुश्मनी रखने वाला एक कट्टरपंथी बताया जाता है। वह पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आइएसआइ) के मेजर इकबाल के साथ निकट संपर्क में था, जब वह हमले की योजना बनाने में मदद कर रहा था। राणा ने हमले को योजना के अनुसार अंजाम देने के लिए दुबई के रास्ते मुंबई की यात्रा की। उसने हमले को सफल बनाने की योजना में हेडली का भरपूर साथ दिया।

तहव्वुर राणा पर क्या है आरोप?
राणा पर 26/11 के मुंबई हमले में भूमिका का आरोप है। तहव्वुर राणा को पाकिस्तानी-अमेरिकी लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादी डेविड कोलमैन हेडली से जुड़ा हुआ माना जाता है, जो 2008 में मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले के मुख्य साजिशकतार्ओं में से एक है। साल 2008 में मुंबई आतंकवादी हमलों में छह अमेरिकियों सहित कुल 166 लोग मारे गये थे। इस हमले में 10 पाकिस्तानी आतंकवादियों ने 60 घंटे से अधिक समय तक मुंबई में अलग-अलग जगहों पर हमला और धमाका किया था और लोगों की हत्या की थी।

ऐसे हुआ तहव्वुर राणा का प्रत्यर्पण
भारत ने पहली बार दिसंबर 2019 में राणा के प्रत्यर्पण का अनुरोध किया। उसके बाद जून 2020 में भी औपचारिक अनुरोध किया। भारत-अमेरिका प्रत्यर्पण संधि के तहत बाइडेन प्रशासन ने इसे मंजूरी दे दी। राणा ने अमेरिकी अदालतों में प्रत्यर्पण के खिलाफ लड़ाई लड़ी, लेकिन उसकी अपीलें खारिज कर दी गयीं। 21 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने भी उनकी याचिका खारिज कर दी, जिससे उसके प्रत्यर्पण का रास्ता साफ हो गया था।

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