रांची: ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल संकट पर झारखंड हाइकोर्ट ने सख्त रवैया अपनाया है। कोर्ट ने राज्य सरकार से मौखिक कहा कि गर्मी को देखते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में यह सुनिश्चित करें कि लोगों को प्रतिदिन कम से कम आधा घंटा पीने का पानी दिया जाये। हरेक व्यक्ति को प्रति दिन एक लीटर या एक बोतल पीने का पानी मिले इसके लिए त्वरित कार्रवाई करें। पेयजल लोगों के लिए स्लाइन की तरह है, जीने के लिए यह काफी जरूरी है। हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पीके मोहंती की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने जलस्रोतों के अतिक्रमण और गांवों में पेयजल को लेकर स्वत: संज्ञान की सुनवाई की। सुनवाई के बाद कोर्ट ने मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया। सुनवाई के दौरान राज्य की मुख्य सचिव राजबाला वर्मा कोर्ट में उपस्थित थीं।

काम नहीं करनेवाले अधिकारियों को हटायें
कोर्ट ने कहा कि सरकार के पास कई योजनाएं हैं। कागजी दावे एवं आंकड़ों पर कोर्ट का विशेष ध्यान नहीं होता है। पेयजल समस्या को दूर करने को लेकर कागज पर काम दिखाने की बजाय धरातल पर काम दिखना चाहिए। कोर्ट ने मुख्य सचिव से कहा कि सही अर्थों में काम हो, जिससे जनता को उसका लाभ मिल सके। गरमी के डेढ़ से दो माह शेष बचे हैं, इसे देखते हुए अविलंब लोगों को पेयजल मुहैया कराने के लिए काम हो। कोर्ट ने मुख्य सचिव से इस बावत अंडरटेकिंग देने की बात कही। कोर्ट ने उनसे कहा कि वे बिना अधिकारियों को बताये स्थलीय निरीक्षण करें। जो अधिकारी काम करने में सक्षम नहीं हैं, उन्हें हटा दिया जाये। कोर्ट ने सरकार के अधिकारियों पर नाराजगी जतायी।

स्थलीय जांच कमेटी ने कोर्ट को बतायी गांवों में पेयजल की स्थिति
राज्य सरकार के शपथ पत्र में गांवों में पेयजल को लेकर किये गये दावों का पता लगाने के लिए कोर्ट द्वारा नियुक्त इंक्वायरी आॅफिसरों ने अपनी रिपोर्ट खंडपीठ के समक्ष प्रस्तुत की। इसमें अधिकांश वकीलों ने राज्य के गांवों में पेयजल संकट होने की बात कोर्ट को बतायी। इंक्वायरी आॅफिसर वरीय अधिवक्ता एके कश्यप, बीएम त्रिपाठी, आरएस मजूमदार, पीपीएन राय, राजीव रंजन, एमएम पॉल, राजीव सिन्हा, अधिवक्ता प्रबीर चटर्जी, पवन कुमार पाठक, राजीव कुमार, एआर चौधरी ने रिपोर्ट प्रस्तुत की। अधिवक्ताओं की जांच कमिटी ने कोर्ट को बताया कि गांवों में पर्याप्त पेयजल लोगों को नहीं मिल रहा है। गांवों में टैंकरों से पानी की आपूर्ति नहीं की जाती है। गांवों के अधिकतर चापानल खराब पड़े हंै। कई गांवों में लोग कुछ तालाबों के पानी पर निर्भर हंै। कई गांवों के लोग चुंआ से पानी निकाल कर अपनी जरूरतें पूरी कर रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की स्थिति काफी खराब है।

लोगों को पेयजल उपलब्ध कराना सरकार की ड्यूटी है : हाइकोर्ट
कोर्ट ने मौखिक कहा, गर्मी शुरू होने के पहले पेयजल को लेकर कोर्ट ने गंभीरता दिखाते हुए गांवों में पेयजलापूर्ति सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था। लेकिन कोर्ट द्वारा गांवों की स्थलीय जांच से प्रतीत हो रहा है कि सरकार 50 प्रतिशत लोगों को पेयजल नहीं दे पा रही है। खंडपीठ ने मुख्य सचिव से मौखिक पूछा कि झारखंड वेलफेयर स्टेट है या नहीं। खंडपीठ ने मुख्य सचिव को बताया कि कोर्ट ने पेयजल को लेकर इंक्वायरी आॅफिसरो के माध्यम से राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों की स्थलीय जांच करवायी है। उनकी रिपोर्ट से यह साबित हो रहा है कि ग्रामीण क्षेत्रों में 40 प्रतिशत से अधिक लोग पेयजल संकट झेल रहे हैं, जबकि पेयजल स्वच्छता विभाग के प्रधान सचिव की ओर से जो शपथ पत्र दाखिल किया गया था, उसमें ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की कमी नहीं होने की बात कही गयी थी।

ऐसे में यह शपथ पत्र तथ्य से परे है और झूठा साबित हो रहा है। कोर्ट ने मार्च माह में जो आदेश दिया था, उस आदेश की अवहेलना हो रही है। इस पर सरकार के अधिकारियों के खिलाफ अवमानना की प्रक्रिया भी शुरू की जा सकती है। खंडपीठ ने मुख्य सचिव से जानना चाहा कि पेयजल को लेकर क्या उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों के किसी स्पॉट का निरीक्षण किया है। सरकार के अधिकारियों की चीफ होने के नाते पेयजल को लेकर अधिकारियों के दावे का क्रॉस चेक करना उनकी ड्यूटी है। कोर्ट ने निर्देश दिया था कि ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिदिन कम से कम आधा घंटा पानी दिया जाये, लेकिन इसका अनुपालन नहीं हुआ। लोगों को पेयजल देना सरकार का कर्तव्य है। कोर्ट ने मुख्य सचिव से पूछा कि राज्य में कितने टैंकर है, कितने टैंकरों से आपूर्ति की जा रही है।

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