मौजूदा विधानसभा में भाजपा को पूर्ण बहुमत प्राप्त है। अगर आने वाले विधानसभा चुनाव में भी भाजपा इस लोकसभा चुनाव का प्रदर्शन दोहरा पायी, तो ये बहुमत पूर्ण नहीं बल्कि प्रचंड होगा। 14 लोकसभा सीटों पर पार्टी प्रत्याशियों को विधानसभा क्षेत्रवार मिली बढ़त बताती है कि भाजपा अपनी मौजूदा 43 विधानसभा सीटों में से पांच पर पिछड़ गयी है, मगर महागठबंधन की 16 सीटों पर उसने बढ़त बनायी है। यानी 81 में से 57 विधानसभा सीटों पर अकेले भाजपा की बढ़त बनी है। सहयोगी दल आजसू अपनी मौजूदा छह विधानसभा सीटों पर बढ़त बनाये हुए है। यानी विधानसभा में राजग को 81 में से 63 सीटों पर बढ़त मिली है। भाजपा ने मोदी के नाम पर चुनाव लड़ा और इसे झारखंड में भी जन-जन तक पहुंचने में कामयाबी हासिल की। पार्टी अपनी रणनीति के तहत उन क्षेत्रों में भी सेंध मारने में सफल रही, जहां यूपीए के विधायकों का खास प्रभाव था। भाजपा ने यूपीए के प्रभाव वाले कई क्षेत्रों में वोटरों को अपनी ओर खींचने में सफलता हासिल की। अब जबकि लोकसभा चुनाव के विधानसभावार पड़े वोटों का आंकड़ा जारी कर दिया गया है, तो तस्वीर पूरी तरह साफ नजर आ रही है।
राजनीतिक विश्लेषक इसे भाजपा की रणनीति की विशेष सफलता और आम आदमी तक पहुंचने की उसकी क्षमता के रूप में आंक रहे हैं। चुनाव आयोग से मिले आंकड़े ही बता रहे हैं कि यूपीए विधायकों के क्षेत्रों में भी भाजपा प्रत्याशियों को खूब वोट मिले हैं। विजयी सीटों पर भाजपा के विधायकों ने भी बेहतर प्रदर्शन किया है।
लोकसभा चुनाव का विधानसभावार परिणाम देखने पर 81 में से 57 विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा को बढ़त मिली है। वहीं, एनडीए के सहयोगी आजसू को छह विधानसभा क्षेत्र में बढ़त मिली है, जबकि यूपीए में झामुमो सात एवं कांग्रेस 11 विधानसभा में आगे है। कांग्रेस को सिंहभूम के चाईबासा, मझियांव, जगरनाथपुर, मनोहरपुर और चक्रधरपुर विधानसभा क्षेत्र में बढ़त मिली है। खूंटी में तोरपा, खूंटी, सिमडेगा और कोलेबिरा में कांग्रेस को बढ़त मिली है। लोहरदगा में सिसई और गुमला विधानसभा में भी कांग्रेस आगे रही। झामुमो राजमहल लोकसभा सीट में बोरियो, बरहेट, लिट्टीपाड़ा और महेशपुर में बढ़त बनाने में कामयाब रहा। दुमका में झामुमो शिकारीपाड़ा और जामताड़ा विधानसभा क्षेत्र में ही बढ़त ले सका। भाजपा को राजमहल और सिंहभूम में एक-एक, दुमका में चार, गोड्डा में छह, चतरा में पांच, खूंटी में दो, लोहरदगा में तीन, पलामू में छह, हजारीबाग में छह, धनबाद में छह, रांची में छह, जमशेदपुर में छह और कोडरमा में छह सीटों पर बढ़त मिली है। वहीं एनडीए की सहयोगी आजसू ने गिरिडीह की सभी छह विधानसभा में बढ़त बनायी है।
एसटी आरक्षित सीटें हैं भाजपा के लिए चुनौती
पांच एसटी आरक्षित लोकसभा सीटों में कुल 29 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इनमें से 18 पर यूपीए को बढ़त मिली है, जबकि 11 विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा बढ़त बनाने में सफल हुई है। इधर, वर्ष 2014 के चुनाव में मोदी लहर में यदि लोकसभा के साथ झारखंड में विधानसभा चुनाव भी हुए होते, तो भाजपा को पूर्ण बहुमत से ज्यादा सीटें मिलतीं। उस बार भी भाजपा ने 12 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी। विधानसभावार देखा जाये, तो भाजपा ने 51 विधानसभा सीटों पर बढ़त बनायी थी, जो पूर्ण बहुमत से 10 सीट अधिक हैं। यानी भाजपा बिना किसी समर्थन के सरकार बना सकती थी।
झारखंड गठन के बाद से इसकी सबसे बड़ी विडंबना अस्थिर सरकार रही थी, लेकिन जब 2014 में विधानसभा का चुनाव हुआ तो भाजपा 37 सीटों पर सिमट गयी। झारखंड के परिप्रेक्ष्य में देखा जाये, तो यह पहला मौका नहीं है, जब भाजपा ने 12 सीटें लोकसभा में जीती हों। अलग राज्य बनने से पहले 1999 में भी उसने झारखंड इलाके में 12 सीटेें जीती थीं। उस समय भाजपा को झारखंड की 81 विधानसभा सीटों में से 48 पर बढ़त मिली थी, लेकिन जब विधानसभा का चुनाव हुआ, तो भाजपा झारखंड में 32 सीटों पर सिमट गयी। इतिहास को देखते हुए भी हम बात करते हैं, तो लोकसभा चुनाव में बढ़त का जो ग्राफ भाजपा का रहता है, विधानसभा चुनाव आते-आते वह घट जाता है। अलग राज्य बनने के बाद पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी की लहर थी और इस बार मोदी की सुनामी देखी गयी है। सवाल यह उठता है कि जिस तरह मोदी लहर के बाद भी भाजपा अपने लोकसभा के रिकार्ड को विधानसभा में कायम नहीं रख पायी, तो क्या इस बार मोदी के सुनामी का परिणाम विधानसभा में भाजपा दोहरा पायेगी। पिछले चुनाव के समय और अभी के समय में काफी अंतर देखा जा रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव के समय झारखंड में यूपीए की सरकार थी। इस बार भाजपा की सरकार है। जाहिर है कि भाजपा अपने उन क्षेत्रों में ज्यादा फोकस करेगी, जहां विपक्षी भारी हैं। लोकसभा चुनाव में दुमका जैसी सीट से झामुमो के भीष्म पितामह शिबू सोरेन को हराकर भाजपा ने संथाल फतह का आगाज तो कर दिया है, लेकिन देखना दिलचस्प होगा कि इस आगाज को वह विधानसभा चुनाव के समय अंजाम तक पहुंचा पाती है या नहीं। लेकिन भाजपा के लिए राहत की बात यह है कि इस समय उसका नेतृत्व रघुवर दास के हाथ में हैं। जो अपनी धुन के पक्के हैं और परिश्रम तो कोई उनसे करना सीखे। यही नहीं, उनमें फैसला लेने की क्षमता भी है। इसी परिश्रम और फैसला लेने की क्षमता के कारण उन्होंने संथाल में शिबू सोरेन जैसे कद्दावर नेता को मात दी। पिछले साढ़े चार साल में रघुवर दास ने सौ से अधिक बार संथाल परगना का दौरा किया।
वहां के लिए विकास योजनाओं का पिटारा खोला। संथालियों के विश्वास पर वह खरा उतरे। उसी का परिणाम है कि वोटों का बिखराव नहीं होने के बाद भी भाजपा संथाल में तीन में से दो सीटों को अपने पक्ष में किया। हां, रघुवर दास के लिए झारखंड की कम से कम चार सीटें बड़ी चुनौती हैं, जहां उसके विधानसभा अध्यक्ष दिनेश उरांव, गुमला में शिवशंकर उरांव, खूंटी में कैबिनेट मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा और सिमडेगा में विमला प्रधान जैसे कद्दावर नेताओं के रहते भी पार्टी प्रत्याशियों को करारा झटका लगा। उसमें खूंटी और सिसई जहां से क्रमश: नीलकंठ सिंह मुंडा और दिनेश उरांव विधायक हैं, कांग्रेस के प्रत्याशियों को बंपर वोट मिला। उन विधानसभा सीटों पर भाजपा की हार पार्टी के साथ-साथ वहां के विधायकों के लिए कड़ी चेतावनी है। इस चेतावनी ने नीलकंठ सिंह मुंडा, दिनेश उरांव, शिवशंकर उरांव और विमला प्रधान की लोकप्रियता को कठघरे में खड़ा कर दिया है। अब देखना यह है कि अपनी धुन के पक्के रघुवर दास और लोकसभा चुनाव में आत्मविश्वास से भरी भाजपा कैसे इन सीटों पर फिर से कब्जा जमाती है। इसमें भी खूंटी और सिसई में मिली बड़ी हार तो सीधे-सीधे नीलकंठ सिंह मुंडा और दिनेश उरांव को दिन में ही तारे दिखा रहा है। इस परिणाम से निश्चित रूप से उनकी सांसें अटक गयी होंगी।