रांची। हाल के दिनों में मीडिया की सुर्खियों में आये मनोज गुप्ता की पुलिस विभाग में पहुंच-पैरवी की एक बानगी और सामने आयी है। यह जानकर आपको हैरानी होगी कि उसने रांची के साइबर थाना तक अपनी पहुंच बना ली थी।
मनोज गुप्ता ने सीआइडी के अधीन चल रहे इस थाने में अपने रिश्तेदार को रखवाने के लिए एक आइपीएस का सहारा लिया। उद्देश्य यह था कि साइबर थाना में दर्ज होनेवाले हर मामले की जानकारी उस तक पहुंचे। आर्थिक अपराध के अधिकांश मामले साइबर थाने में ही दर्ज होते हैं। यहां मनोज गुप्ता के रिश्तेदार युवक सौरव कुमार के रहने से इस थाने की सारी गतिविधि की जानकारी उसे मिल जा रही थी। यहां पर सौरव को अनुबंध पर रखा गया था, यह भी नियम विरुद्ध है। अनुबंध पर नौकरी देने के लिए संबंधित विभाग को अखबारों में इश्तेहार जारी करना पड़ता है। यहां पर किसी को रखने से पहले एक साक्षात्कार बोर्ड का गठन होता है।

यह बोर्ड अभ्यर्थी की शैक्षणिक योग्यता और प्रमाण पत्रों की जांच करता है। जैसा कि झारखंड सरकार के दूसरे विभागों में हुआ भी है। सीआइडी ने सरकारी नियम को ताक पर रख कर सौरव को अनुबंध पर बहाल कर दिया था। इसका वेतन किस मद से दिया जा रहा था, इसकी भी जांच शुरू कर दी गयी है। उसके बारे में पता चला है कि वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर चुका है। वह साइबर थाना में पांच दिन ड्यूटी करता था और दो दिन वह विशेष शाखा के अवैध समानांतर कार्यालय में बैठा रहता था। अब सौरव की भी परेशानी बढ़नेवाली है। फिलहाल उसे नोटिस भेजा गया है कि वह खुद बताये कि उसने किसके माध्यम से साइबर थाने में नौकरी पायी। यह मामला सामने आने पर जब पुलिस के कुछ अधिकारियों ने उसकी खोज-खबर ली, तो पता चला कि फिलहाल वह छत्तीसगढ़ के कोरबा में लॉकडाउन में फंसा हुआ है। झारखंड के अधिकारी इसे भी गोपनीयता भंग करने की कड़ी के रूप में देख रहे हैं।

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