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    Home»Breaking News»कोरोना जांच की तेज रफ्तार ही बचायेगी झारखंड को
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    कोरोना जांच की तेज रफ्तार ही बचायेगी झारखंड को

    azad sipahiBy azad sipahiMay 10, 2020Updated:May 10, 2020No Comments6 Mins Read
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    • संक्रमण को रोकने के लिए संक्रमितों की पहचान जरूरी
    • खतरनाक बीमारी से उबरने की क्षमता है यहां के लोगों में
      खतरनाक कोरोना संक्रमण से लड़ते हुए अब डेढ़ महीने का समय बीत चुका है और अब भी लगातार संक्रमितों की संख्या पूरे देश में तेजी से बढ़ती जा रही है। झारखंड जैसे राज्यों में, जहां बाहर से लोगों का आना अभी शुरू ही हुआ है, संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ रहा है। झारखंड के परिप्रेक्ष्य में एक बात साफ हो गयी है कि कोरोना का संक्रमण यहां बाहर से ही आया और अब भी आ रहा है। इसलिए अब जरूरत तेजी से जांच करने की है। पहले से कहा जा रहा था कि जब बाहर फंसे लोग झारखंड वापस आयेंगे, तब झारखंड की स्वास्थ्य मशीनरी की असली परीक्षा होगी और यदि इस परीक्षा में हम पिछड़ गये, तो फिर तबाही का मंजर सामने दिखने लगेगा। वह समय आ गया है, जब स्वास्थ्य मशीनरी को अतिरिक्त सक्रियता दिखानी होगी, क्योंकि अब लोग भी कोरोना संक्रमण के प्रति जागरूक हो गये हैं। वे खुद जांच कराने के लिए आगे आ रहे हैं। बाहर से आनेवाले प्रवासी मजदूर और विद्यार्थी भी मोटे तौर पर होम क्वारेंटाइन का सख्ती से पालन कर रहे हैं। इसलिए अब जरूरत संक्रमित लोगों की पहचान की है, ताकि उनसे संक्रमण न फैले। झारखंड के संदर्भ में एक बात बेहद राहत की है कि यहां संक्रमण मुक्त होने की दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है। यह सरकार के लिए और आम लोगों के लिए संतोष की बात है। चूंकि कोरोना का कोई इलाज नहीं है, इसलिए यदि कोई संक्रमित बिना इलाज के ही संक्रमण मुक्त हो रहा है, तो इसके लिए उसकी प्रतिरोधक क्षमता की तारीफ होनी चाहिए। कोरोना संकट के दौर में झारखंड के सामने पैदा हुई नयी चुनौती का विश्लेषण करती आजाद सिपाही ब्यूरो की विशेष रिपोर्ट।

    शुक्रवार आठ मई को झारखंड में कोरोना संक्रमितों की संख्या में रिकॉर्ड वृद्धि हुई। पिछले डेढ़ महीने में एक दिन में 22 मरीज कभी नहीं मिले थे। यह आंकड़ा स्वाभाविक रूप से बेचैन करनेवाला है। लोगों के मन में इस बात की आशंका होने लगी कि झारखंड में कोरोना का संक्रमण तेजी से फैलने लगा है। लेकिन हकीकत यह नहीं है। हकीकत यह है कि झारखंड में संक्रमितों की पहचान के लिए जांच की गति तेज होने लगी है। हालांकि यह गति अब भी संतोषजनक नहीं है। कुछ दिन पहले हमने कहा था कि राज्य की स्वास्थ्य मशीनरी के सामने बड़ी चुनौती आनेवाली है। वह चुनौती है जांच की गति बढ़ाने की। अब वह समय आ गया है, जब जांच की गति को तेज किया जाये।

    झारखंड के संदर्भ में एक बात साफ हो गयी है कि यहां कोरोना का वायरस बाहर से आया। 31 मार्च को रांची के हिंदपीढ़ी में छिप कर रह रही मलेशियाई महिला से राजधानी में संक्रमण फैला, तो बोकारो में बांग्लादेश-दिल्ली से लौटी महिला से। हजारीबाग के जिस मजदूर को संक्रमित पाया गया था, वह भी आसनसोल से लौटा था। इसलिए बाहर से यहां आनेवालों की शीघ्रता से जांच बेहद जरूरी है।
    कोरोना के खिलाफ जंग के सामाजिक मोर्चे पर हेमंत सोरेन सरकार ने बहुत अच्छा काम किया है। अब वह देश के दूसरे हिस्सों में फंसे प्रवासी मजदूरों, पर्यटकों और विद्यार्थियों को वापस लाने के काम में जुटी हुई है। अब तक करीब 50 हजार लोग वापस भी आ चुके हैं, लेकिन इन सभी की जांच नहीं हुई है। अब स्वास्थ्य मशीनरी को बेहद सक्रिय होना होगा, क्योंकि बाहर से आनेवाले लोगों की जितनी जल्दी जांच होगी, झारखंड के लिए उतना ही अच्छा होगा। वैसे भी कोरोना के बारे में कहा जाता है कि इससे बचना ही एकमात्र विकल्प है, क्योंकि इसका कोई इलाज अब तक नहीं ढूंढ़ा जा सका है। ऐसी परिस्थिति में हम जितनी जल्दी संक्रमितों की पहचान कर लेंगे, हम उतने ही सुरक्षित रह सकेंगे।

    इन सभी हालात में एक सुखद संकेत यह है कि झारखंड के लोगों में कोरोना से लड़ने की क्षमता बहुत अधिक है। झारखंड में कोरोना से होनेवाली मौत की दर दूसरे राज्यों की अपेक्षा बहुत कम है। इसलिए भी इस संक्रमण को जल्द से जल्द पहचानने और फिर संक्रमित को ठीक होने तक अलग-थलग रखने की आवश्यकता है। यह हकीकत है कि हमारे पास संसाधन बहुत कम हैं और हमारी स्वास्थ्य सेवाएं इतनी बड़ी आबादी को इस खतरनाक महामारी से बचाने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। इसलिए अब आम लोगों को भी जिम्मेदार बनना होगा। वैसे पिछले कुछ दिनों के दौरान देखा भी गया है कि लोग अधिक जागरूक हो गये हैं और उनका व्यवहार भी जिम्मेदारी वाला हो गया है। चाहे लॉकडाउन के दौरान घरों में रहने का मामला हो या कोरोना की जांच का, लोग अब खुद सामने आ रहे हैं। उन्हें आभास हो गया है कि ऐसा करना आवश्यक है। बाहर से आये लोग भी क्वारेंटाइन की शर्तों का पालन कर रहे हैं, लेकिन जो संक्रमित हो गये हैं, उनकी पहचान यदि जल्दी नहीं होगी, तो आखिर वे कितने दिन तक घर में बंद रहेंगे। इस बात पर स्वास्थ्य मशीनरी को तत्काल ध्यान देना होगा। कोरोना के खिलाफ जंग का यह निर्णायक दौर है। झारखंड भी इस दौर में एक दोराहे पर खड़ा है। इसका एक रास्ता कोरोना मुक्त झारखंड की ओर जाता है, तो दूसरा संभावित तबाही की ओर ले जा सकता है। समय आ गया है कि हम कोरोना मुक्त झारखंड के रास्ते पर तेजी से कदम बढ़ायें। सरकार तो पूरी तरह सक्रिय है ही, अब स्वास्थ्य मशीनरी को तेजी दिखाने की जरूरत है। यदि संदिग्धों की जांच तेजी से हो गयी, तो हम वह लक्ष्य हासिल कर लेंगे। संक्रमित पाये जानेवाले झारखंड के लोग वैसे भी ठीक हो रहे हैं, तो उनके इलाज की व्यवस्था बहुत कठिन नहीं होनी चाहिए। केवल उनकी पहचान जरूरी है। झारखंड सरकार ने कोरोना से जंग में अब तक जो शानदार काम किया है, उसकी तो मिसालें दी जायेंगी ही, स्वास्थ्य मशीनरी अब कैसे इस चुनौती का सामना करती है, यह देखना बाकी है। अब तक की लड़ाई में लोगों के जज्बे और संकल्प के आधार पर कहा जा सकता है कि झारखंड ऐसा कर दिखाने में सक्षम है और हम कोरोना के खिलाफ जंग जरूर जीतेंगे।

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