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    Home»ताजा खबरें»नये सीबीआई चीफ की अनसुनी कहानी
    ताजा खबरें

    नये सीबीआई चीफ की अनसुनी कहानी

    sonu kumarBy sonu kumarMay 26, 2021No Comments5 Mins Read
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    : महाराष्ट्र कैडर के आईपीएस अधिकारी सुबोध जायसवाल के सीबीआई चीफ बनाए जाने पर कई लोग आश्चर्यचकित हैं, विशेषकर ऐसे लोग जो कि जायसवाल की शख्सियत को बखूबी जानते हैं. उन्हें इस बात पर शक है कि जायसवाल सीबीआई प्रमुख के तौर पर अपना कार्यकाल पूरा कर सकेंगे. आमतौर पर लोगों के बीच ये छवि बन गई है कि सीबीआई प्रमुख एक ऐसा शख्स होता है जो सरकार की हां में हां मिलाता है और कभी सरकार की बात नहीं काटता है.

     

    इसी वजह से अब से कुछ साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को पिंजरे में कैद तोते की उपाधि दी थी जो कि सरकार की ही बोली बोलता है…लेकिन सुबोध जायसवाल का व्यक्तित्व इसके विपरीत है. उनकी इमेज रही है कि ना तो वे किसी राजनेता की सुनते हैं ना किसी के दबाव में आते हैं और लकीर के फकीर की तरह जो कानून कहता है उसी मुताबिक चलते हैं.

     

    ये बात सभी जानते हैं सुबोध जायसवाल 1985 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं. ये भी लोगों को पता है कि वह भूतकाल में मुंबई के पुलिस कमिश्नर और महाराष्ट्र के डीजीपी रह चुके हैं लेकिन मैं आपको जायसवाल की वो कहानी सुनाऊंगा जो ज्यादा लोगों को नहीं पता है. सिर्फ ऐसे पत्रकार ही यह कहानी जानते हैं जिन्होंने 90 के दशक और इस सदी की शुरुआत में क्राइम रिपोर्टिंग की हो.

     

    सुबोध जायसवाल की कहानी जुड़ी है तेलगी स्कैम से ये वो घोटाला था जिसमें मुंबई पुलिस के कमिश्नर से लेकर कॉन्स्टेबल तक गिरफ्तार हुए थे. जिस स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम ने यह गिरफ्तारियां की थी उनके एक अहम सदस्य थे सुबोध जायसवाल. जायसवाल ने ही तेलगी घोटाले की शुरुआती जांच की थी और दो रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी.

     

    उन रिपोर्ट्स में जायसवाल ने बिना किसी दबाव में आए ये बात रखी थी कि किस तरह से फर्जी स्टांप पेपर छापने का करोड़ों रुपए का रैकेट चलाने वाले अब्दुल करीम तेलगी से महाराष्ट्र पुलिस के अधिकारियों ने रिश्वतखोरी की थी. तेलगी पुलिस वालों के लिए एक सोने का अंडा देने वाली मुर्गी थी. तेलगी को हिरासत में सुख सुविधाएं देने के नाम पर और उसके परिजनों को गिरफ्तार ना करने के लिए ब्लैकमेल किया जाता था और उससे वसूली की जाती थी. सुबोध जायसवाल ने इसका भंडाफोड़ कर दिया.

     

    तेलगी घोटाले की जांच के वक्त सुबोध जायसवाल के हाथ एनसीपी के आला नेता छगन भुजबल और उनके भतीजे समीर भुजबल के गले तक पहुंच गए थे लेकिन साल 2004 में केंद्र में सत्ता परिवर्तन हो गया. वाजपेई की एनडीए सरकार की जगह मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार आ गई. तेलगी घोटाले की जांच एसआईटी से छीन ली गई और सीबीआई के सुपुर्द कर दी गई.

     

    तेलगी घोटाले की जांच की वजह से सुबोध जायसवाल महाराष्ट्र में अपने साथी पुलिस अधिकारियों के बीच एक विलेन बन गए. उन पर ताने कसे जाने लगे कि खुद एक पुलिस अधिकारी होकर अपने साथी पुलिस अधिकारियों का कैरियर में बर्बाद कर रहे थे. पुलिस महकमे में एक तरह से उनका सामाजिक बहिष्कार हो गया. बाकी पुलिस वालों ने उनसे बातचीत करनी बंद कर दी. अपने घर के कार्यक्रमों में बुलाना बंद कर दिया. वे काफी अकेले हो गए थे.

     

    जायसवाल कुछ वक्त तक भले ही मुंबई पुलिस कमिश्नर और महाराष्ट्र के डीजीपी रहे हों लेकिन उनके कैरियर का ज्यादातर वक्त ऐसी जगहों पर बीता जो कि पुलिस महकमे में पनिशमेंट पोस्टिंग मानी जाती है, जैसे कि राज्य आरक्षित पुलिस में और नक्सल प्रभावित गढ़चिरौली में.

     

    जायसवाल की इमेज एक सख्त अनुशासन परस्त और लो प्रोफाइल अधिकारी की रही है जो ना तो कभी पत्रकारों से मिलते हैं और ना कभी मीडिया को इंटरव्यू देते हैं. उनके बारे में कहा जाता है कि अगर वे अपने किसी वरिष्ठ अधिकारी के यूनिफॉर्म में भी कोई गड़बड़ी पाते हैं तो तुरंत उसको टोक देते हैं कि आपने सही यूनिफार्म नहीं पहना. तेलगी स्कैम पर किताब लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार संजय सिंह ने सुबोध जायसवाल के बारे में अपनी किताब में लिखा है कि वे एक अव्वल दर्जे के रूखे, अड़ियल और जिद्दी इंसान हैं.

     

    जो लोग जायसवाल के साथ काम कर चुके हैं वे बताते हैं कि वह एक टीम प्लेयर थे. अगर उनकी टीम का कोई सदस्य बेवजह किसी मुसीबत में फंस गया है तो वे उसको बचाने में अपनी पूरी ताकत झोंक देते थे लेकिन अगर उन्हें कोई भ्रष्टाचार या गड़बड़ी करता दिख जाता तो उनकी कोशिश रहती कि वह शख्स सीधे पुलिस महकमे से बाहर हो जाए.

     

    जायसवाल की राजनेताओं से कभी नहीं बनी और यही वजह है कि महाराष्ट्र के डीजीपी पद पर ज्यादा दिनों तक नहीं बने रह सके. जिस तरह से ठाकरे सरकार की ओर से उन पर अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग के लिए दबाव डाला जा रहा था उससे भी वे नाराज थे इसलिए उन्होंने केंद्रीय एजेंसी सीआईएसफ में अपना डेपुटेशन मांग लिया.

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    sonu kumar

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