देश के अधिकांश राज्यों में कोरोना की दूसरी लहर के कारण लॉकडाउन की अवधि लगातार बढ़ायी जा रही है। कहीं एक सप्ताह, तो कहीं दो सप्ताह के लिए पाबंदियां लगा दी गयी हैं। यह सिलसिला पिछले तीन सप्ताह से जारी है। संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए लॉकडाउन जरूरी हो गया है, लेकिन इसका साइड इफेक्ट इतना भयानक होगा, यह किसी को अंदाजा नहीं था। लॉकडाउन का सबसे बुरा असर उन छोटे दुकानदारों पर पड़ा है, जो किसी तरह अपनी छोटी सी पूंजी लगाकर अपने परिवार का पेट पाल रहे थे। ऐसे दुकानदारों में भी सबसे अधिक वे प्रभावित हो रहे हैं, जो अपने घर के निचले या बगल के हिस्से में कपड़े या जूता-चप्पल की दुकान चलाते हैं और इसके अलावा उनका कोई दूसरा धंधा नहीं है। इनमें से अधिकांश ऐसे हैं, जिन्होंने पाई-पाई जोड़ कर या पीएफ के पैसे को छोटी सी कपड़े की दुकान खोलने में लगा दिया। सोचा था कि बुढ़ापे में वे अपने घर में भी रहेंगे और उस दुकान से जो दो पैसा आयेगा, उससे अपना परिवार पाल लेंगे। आज दुकान बंद हो जाने से वे दाने-दाने को मोहताज हो गये हैं। इन दुकानदारों की सामाजिक हैसियत ऐसी नहीं है कि ये किसी से मदद ले लें। लोक-लाज के कारण ये चावल दाल के लिए किसी के समक्ष हाथ भी नहीं फैला सकते। इन्हें सूद पर भी कोई व्यक्ति पैसे नहीं देगा। लिहाजा उनकी जिंदगी में अंधेरा ही अंधेरा छा गया है। ऐसे छोटे दुकानदारों की पीड़ा का विश्लेषण करती आजाद सिपाही के टीकाकार राहुल सिंह की विशेष रिपोर्ट।
राजधानी रांची के होटवार स्थित खेलगांव आवासीय परिसर के गेट के पास इस साल की शुरूआत में एक स्थानीय युवक ने छोटी सी दुकान खोली। गुमटीनुमा इस दुकान में करीब एक लाख रुपये की पूंजी लगी थी। युवक पहले पास में स्थित अरविंद मिल्स की इकाई में काम करता था और उसके बंद होने पर बेरोजगार हो गया था। तब उसने पाई-पाई जोड़ कर और कुछ कर्ज लेकर कपड़े का व्यवसाय करना शुरू किया। गुमटी में बाजार से सस्ते दाम पर कपड़े उपलब्ध थे और उसकी बिक्री भी ठीक-ठाक हो रही थी। दिन भर में वह चार-पांच हजार की बिक्री कर लेता था। उसमें उसे पांच-छह सौ रुपये बच जाते थे। अचानक कोरोना की दूसरी लहर आयी और युवक की दुकान लॉकडाउन की वजह से बंद हो गयी। आज वह युवक न व्यवसायी रह गया है और न ही उसके पास आय का दूसरा साधन है। वह किसी के समक्ष चावल-दाल के लिए हाथ भी नहीं फैला सकता। गढ़वा के एक कपड़े की दुकान के मालिक पर तो दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ा। उस दुकान मालिक की पुश्तैनी दुकान है। आसपास के ग्रामीण उसके स्थायी ग्राहक हैं। वह सालों पर उसके यहां से जरूरत के कपड़े उधार में ले जाते थे और फिर जैसे-जैसे उनके पास पैसे आते थे, वह चुकता करते थे। छोटे जिलों या ब्लॉक स्तर की दुकानों की यही कहानी है। लॉकडाउन की घोषणा के बाद उसकी दुकान बंद हो गयी। इसी बीच उसके पास दो स्थायी कस्टमर आये। उनमें से एक के यहां लड़की की शादी थी। उन्होंने उससे आग्रह किया कि किसी तरह उन्हें कपड़े का इंतजाम किया जाये। उसमें दूल्हे और दुल्हन के लिए कुछ तो कपड़े चाहिए थे। पुराना ग्राहक होने के कारण दुकानदार उन्हें मना नहीं कर पाया। उसमें अंदर से शटर खोल कर उन्हें कपड़े देने लगा। इसी बीच एक दूसरा कस्टमर भी उस दुकान में आया। उसने उस दुकानदार से आग्रह किया कि उसके घर में एक व्यक्ति का देहांत हो गया, लिहाजा उसे कफन चाहिए। कफन के साथ-साथ रामनामी चादर भी उसने मांगी। दुकानदार उन्हें मना नहीं कर पाया और कपड़े देने लगा। इसी बीच किसी ने इस बात की सूचना अधिकारियों को दे दी। अधिकारी पूरे लाव-लश्कर के साथ वहां पहुंचे और लॉकडाउन उल्लंघन करने के आरोप में दुकान को सील कर दिया और दुकानदार पर 20 हजार रुपये का जुर्माना लगा दिया गया। अब वह दुकानदार व्यवसाय छोड़ कोई दूसरा काम करने की सोच रहा है, क्योंकि उसके पास 20 हजार का जुर्माना भरने की औकात नहीं है।
झारखंड में कोरोना के बढ़ते संक्रमण का सबसे बुरा असर इन छोटे दुकानदारों पर ही पड़ा है। इन दुकानदारों का जीवन अंधकारमय हो गया है। क्योंकि अपनी मध्यवर्गीय सामाजिक पृष्ठभूमि के कारण ये किसी से मदद भी नहीं मांग सकते हैं। उनके पास इतनी पूंजी भी नहीं है कि वे महीनों तक दुकान खोले बिना अपने परिवार का पेट पाल सकें।
एक तरफ कोरोना का कहर है, तो दूसरी तरफ पापी पेट का सवाल है। अगर लॉकडाउन का मुश्तैदी से पालन नहीं कराया गया, तो कोरोना के प्रसार को रोका नहीं जा सकता। इसका फैलाव भयंकर तरीके से होगा और अगर पूरी तरह से सख्ती बरती गयी, तो छोटे दुकानदारों के समक्ष रोजी-रोटी का संकट उत्पन्न हो रहा है। लोगों का यह भी पता नहीं कि यह बीमारी कब तक चलेगी और कितने दिनों तक उनको कारोबार बंद करना पड़ेगा। ऐसे में वे डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं। उनका कहना है कि अगर कुछ प्रोटोकॉल का पालन कराते हुए शराब की दुकान खुलवायी जा सकती है, तो इसी तरह का कोई प्रावधान छोटे-छोटे कपड़ा दुकानदारों के लिए भी किया जाना चाहिए। मसलन दो से ज्यादा व्यक्ति दुकान में नहीं बैठे और एक साथ दो से ज्यादा कस्टमर दुकान में नहीं जायें। उसमें भी दो गज दूरी और मास्क अनिवार्य कर दिया जाये। लोग यह कह रहे हैं कि लॉकडाउन में जब शादी समारोह के आयोजन की अनुमति दी गयी है, तो उसी तरह कुछ कपड़े खरीदने की अनुमति भी मिलनी चाहिए। कपड़ों की दुकान बंद है, तो फिर शादी कैसे हो सकती है, इस पर भी विचार करने की जरूरत है। यहां बात छोटे दुकानदारों की हो रही है। उन दुकानदारों के साथ दूसरी दिक्कत यह है कि उनके ग्राहकों के छूटने का खतरा भी पैदा हो गया है। आम भारतीय मध्यवर्ग किसी खास दुकान से ही कपड़ा खरीदता है। उसके घर में यदि कोई सामाजिक आयोजन है, तो वह अपने उसी दुकानदार से संपर्क करेगा। ऐसे में दुकानदार उस स्थायी ग्राहक के अनुरोध को टाल भी नहीं सकते, क्योंकि उन्हें भी इसी समाज में रहना है।
कोरोना महामारी के कारण लगाये गये लॉकडाउन का असर समाज के सभी तबकों पर पड़ा है, लेकिन छोटे-छोटे दुकानदार अब खुद को पूरी तरह से लाचार महसूस कर रहे हैं। उनकी समस्याओं पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करना जरूरी हो गया है। इन छोटे दुकानदारों के पास ऐसा कोई दूसरा धंधा भी नहीं है, जिसकी मदद से वे अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकें। यदि यह लॉकडाउन लंबा खिंचा, तो यह सामाजिक संतुलन को इतनी बुरी तरह गड़बड़ा देगा, जिसे दोबारा पटरी पर आने में कई साल लग जायेंगे।