विशेष
-इनके कारनामों ने राज्य ही नहीं, देश के सामने पेश कर दी है चुनौती
-आम लोग हैं शर्मिंदा, और एक ये हैं कि शर्म इनको आती नहीं
-बड़ा सवाल: ऐसे नौकरशाहों को इतनी ताकत मिलती कहां से है

झारखंड के एक और आइएएस अधिकारी छवि रंजन की प्रवर्तन निदेशालय द्वारा गिरफ्तारी के बाद इस राज्य के सवा तीन करोड़ लोगों के मन में एक बार फिर यह सवाल कौंध गया कि आखिर अफसरों को इस तरह का काम करने की ताकत मिलती कहां से है। 15 नवंबर 2000 को देश के राजनीतिक नक्शे पर 28वें राज्य के रूप में जब झारखंड का उदय हुआ था, तब किसी को इस बात का इल्म नहीं था कि निश्छल समाज और संवेदनशील संस्कृति वाला यह प्रदेश बहुत जल्द भ्रष्टाचार की नयी परिभाषा गढ़ेगा और देश में इसकी चर्चा इसकी खनिज संपदा के साथ भ्रष्टाचार के कारण भी होगी। झारखंड को राजनीति के चतुर खिलाड़ियों, नौकरशाहों की अति महत्वाकांक्षा और पैसा कमाने की अंधाधुंध होड़ में लगे लोगों ने जम कर लूटा और हर दिन यहां भ्रष्टाचार के नये किस्से सामने आने लगे। लेकिन खास बात यह रही कि नौकरशाह कभी-कभार ही लपेटे में आये। हालत यह है कि झारखंड को लूटनेवालों की पहचान अब जरा भी मुश्किल नहीं है। उनकी विलासिता, बेहिसाब दौलत और संपत्ति का अश्लील प्रदर्शन झारखंड के सवा तीन करोड़ लोगों के सीने पर सांप बन कर लोटने लगा है। भ्रष्टाचार ने झारखंड को आर्थिक चोट ही नहीं पहुंचायी है, बल्कि पूरी दुनिया में इसकी इज्जत को मिट्टी में मिला दिया है। आज हर झारखंडी पूछा रहा है कि क्या झारखंड को ऐसे धनलोलुप अधिकारियों से छुटकारा पाने के लिए अभी और इंतजार करना होगा? भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुई कार्रवाई की कोख में पल रहे इन सवालों के जवाब तलाशने के साथ उन चर्चित आइएएस अधिकारियों के कारनामों की पोल खोलती आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह की विशेष रिपोर्ट।

इन दिनों झारखंड पूरे देश में चर्चा के केंद्र में है। यह चर्चा प्रवर्तन निदेशालय द्वारा राज्य के भ्रष्ट नौकरशाहों के खिलाफ शुरू किये गये अभियान और आइएएस अधिकारियों की गिरफ्तारी के कारण हो रही है। करीब एक साल पहले राज्य की महिला आइएएस अधिकारी पूजा सिंघल को इडी ने गिरफ्तार किया था और अब एक और आइएएस अफसर छवि रंजन इडी की गिरफ्त में हैं। इनके अलावा अभी कम से कम तीन आइएएस भी रडार पर हैं। दो अन्य आइएएस राजीव अरुण एक्का और रामनिवास यादव से पूछताछ हो चुकी है। इडी का अभियान लगातार जारी है। लेकिन इसके साथ ही एक सवाल भी उठ रहा है कि क्या झारखंड में भ्रष्टाचार की एकमात्र प्रतीक पूजा सिंघल या छवि रंजन ही हैं या पाप की इस नाली में डुबकी लगानेवाले किरदार और भी हैं?
भारत और झारखंड में भ्रष्टाचार की कहानी नयी नहीं है, लेकिन इसके बेलगाम होने का सिलसिला उदारीकरण के बाद शुरू हुआ। लोग कह रहे हैं कि इस काली होती तस्वीर को बदलने का वक्त अब आ गया है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के 28वें राज्य झारखंड को अब उन उपायों को सख्ती से लागू करना होगा, जिसमें काली कमाई करनेवालों को सामने लाया जा सके। लोग मान चुके हैं कि भ्रष्टाचार का यह दानव अब पूरे देश और राज्य को अपने कब्जे में ले चुका है। इसे काबू में करना किसी सरकार या अदालत के वश की बात नहीं है, बल्कि इसके लिए सामाजिक रीति तैयार करनी होगी। भ्रष्टाचार और घूसखोरी को हम चाहे कितना भी कोस लें, यह हकीकत है कि आज यह हमारे सिस्टम का अंग बन गया है। इस अंग को हर हाल में काट कर अलग करना ही होगा। एक तरफ हम विश्व गुरु बनने का सपना देख रहे हैं, तो दूसरी तरफ पूजा सिंघल और छवि रंजन जैसे नौकरशाह हैं, जो 130 करोड़ लोगों के इस सपने को इस सड़ांध में डुबोने के लिए तैयार बैठे दिखायी देते हैं।
यहां मध्यप्रदेश की महिला आइएएस अधिकारी दीपाली रस्तोगी के उस चर्चित लेख को उद्धृत करना जरूरी है, जिसे भारतीय नौकरशाही के लिए ‘आइ ओपनर’ कहा जाता है। इस लेख में वह लिखती हैं: हम अपने बारे में, अपनी बुद्धिमत्ता के बारे में और अपने अनुभव के बारे में बहुत ऊंची राय रखते हैं और सोचते हैं कि लोग इसीलिए हमारा सम्मान करते हैं, जबकि असलियत यह है कि लोग हमारे आगे इसलिए समर्पण करते हैं, क्योंकि हमें किसी को फायदा पहुंचाने या किसी का नुकसान करने की ताकत दी गयी है। हमें वेतन और सुविधाएं इसलिए मिलती हैं कि हम अपने काम को कुशलता से करें और ‘सिस्टम’ विकसित करें। सच्चाई यह है कि हम कुप्रबंध और अराजकता फैला कर पनपते हैं, क्योंकि ऐसा करने से हम कुछ को फायदा पहुंचाने के लिए चुन सकते हैं और बाकी की उपेक्षा कर सकते हैं। हमें भारतीय गणतंत्र का ‘स्टील फ्रेम’ माना जाता है। सच्चाई यह है कि हममें दूरदृष्टि ही नहीं होती। हम अपने राजनीतिक आकाओं की इच्छा के अनुसार औचक निर्णय लेते हैं। हम पूरी प्रशासनिक व्यवस्था का अपनी जागीर की तरह अपने फायदे में या अपने चहेते लोगों के फायदे में शोषण करते हैं। हम काफी ढोंगी हैं, क्योंकि यह सब करते हुए हम यह दावा करते हैं कि हम लोगों की ‘मदद’ कर रहे हैं।
दीपाली रस्तोगी के लेख के इस अंश को छवि रंजन और पूजा सिंघल जैसे झारखंड के नौकरशाहों से जोड़ने पर साफ पता चलता है कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं कहा है। झारखंड के संदर्भ में देश के एक अन्य चर्चित आइएएस अधिकारी रहे अनिल स्वरूप ने कहा था: झारखंड की कुव्यवस्था के लिए नौकरशाही ढांचा और लोकसेवक आंशिक रूप से जिम्मेवार हैं। जब झारखंड अलग राज्य बना, बिहार की नौकरशाही चारा घोटाले के दबाव से गुजर रही थी। ऐसे में आरएस शर्मा और राजीव गौबा जैसे उत्कृष्ट लोक सेवक थोड़े दिनों के लिए नये राज्य में मुख्य सचिव बनने के बाद केंद्र में चले गये। बकौल अनिल स्वरूप, झारखंड में अनेक ऐसे नौकरशाह हैं, जो बेहद काबिल हैं, लेकिन कुछ अधिकारियों की अक्षमता, अनिर्णय और बेइमानी की वजह से यह स्थिति पैदा हुई है।
लौटते हैं झारखंड में। छवि रंजन ने रांची डीसी के पद पर रहते हुए जमीन लूटने के जिस नेटवर्क का पोषण किया, वह शर्मनाक है। चाहे सेना की जमीन हो या किसी आम व्यक्ति की, एक बार उनकी या उनके गुर्गों की नजर उस पर पड़ी, तो वह उनके कब्जे में चली जाती थी। छवि रंजन जैसे अधिकारियों को भरोसा हो गया था कि उनका पद, उनका रुतबा हमेशा उनका रक्षा कवच बना रहेगा। लेकिन प्रवर्तन निदेशालय (इडी) ने जिस तरह से जांच शुरू की है, इसकी आंच झारखंड के कई भ्रष्ट अधिकारियों को अपने लपेटे में लेगी। फिलहाल कई वरिष्ठ आइएएस अधिकारियों के नाम चर्चा में हैं। इस चर्चा की पुख्ता वजह भी है। आइएएस छवि रंजन जैसे चर्चित अधिकारियों के अपने कारनामे हैं। वह जब जिला या विभाग में महत्वपूर्ण पदों पर रहे, तो भ्रष्टाचार का आरोप लगता रहा। किसी के खिलाफ विभागीय कार्रवाई, तो किसी के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) की कार्रवाई चली या फिर चल रही है। कुछ ऐसे अधिकारी भी हैं, जिनके खिलाफ जांच के लिए फाइल ही आगे नहीं बढ़ी। अभी भी वह सरकार के स्तर पर लंबित है और वे बेधड़क अपने काले कारनामों को अंजाम दे रहे हैं।
पिछले साल राजभवन ने झारखंड सरकार से पूछा था कि राज्य में कितने अफसरों के खिलाफ कौन-कौन से मामले कब से चल रहे हैं। इसके जवाब में सरकार ने एसीबी द्वारा तैयार रिपोर्ट राजभवन को भेजी। सूत्रों के मुताबिक रिपोर्ट में केवल पांच अधिकारियों के नाम थे। इनमें छवि रंजन के अलावा आइएएस अधिकारी के श्रीनिवासन और सुनील कुमार के नाम शामिल थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि भ्रष्टाचार को लेकर 10 कांड अंकित हैं, जिनमें ये अधिकारी नामजद अभियुक्त नहीं हैं। ना ही जांच में दोनों के खिलाफ कोई साक्ष्य मिला है।
कहते हैं कि दस्तावेज कभी मरते नहीं है। इसी तरह फाइल में दर्ज बातें कभी नहीं मिटती हैं। कभी न कभी मामला उजागर होता ही है। यह छवि रंजन के मामले में भी देखा जा सकता है। पद और पैसे के रसूख के गुमान में उन्हें अंदेशा भी नहीं होगा कि वह इस तरह लपेटे में आयेंगे। इसलिए भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों के पास अभी भी संभलने का मौका है। वे संभल जायें। पूर्व के कारनामों को तो नहीं मिटा सकते, भविष्य के लिए तो कम से कम शपथ ले ही सकते हैं।
यहां प्रख्यात हास्य कवि काका हाथरसी की उस मशहूर कविता का उल्लेख जरूरी है, जिसमें वह कहते हैं, ‘क्यों डरता है बेटा रिश्वत लेकर-छूट जायेगा तू भी रिश्वत देकर’। अच्छी और कमाऊ पोस्टिंग की लालच में अफसर अपने राजनीतिक आकाओं के आगे दुम हिलाते हैं और बदले में भ्रष्टाचार का लाइसेंस पाते हैं। झारखंड को लूटनेवाले इन अफसरों के खिलाफ अब कार्रवाई का समय आ गया है। इनकी महंगी पार्टियों का शोर, जिनमें विदेशी शराब पानी की तरह बहायी जाती है और संपन्नता का अश्लील प्रदर्शन किया जाता है, अब झारखंड के जंगलों-बस्तियों में सुनी जानेवाली मांदर की थाप की गूंज में दबाने के लिए यह मुफीद वक्त है।

 

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