विशेष
-भारत जोड़ो यात्रा के अनुभव ने परिपक्व बनाया कांग्रेस के युवराज को
-विपक्षी दलों के खेमे में अचानक से कई गुना बढ़ गया राजनीतिक कद
-ममता-नीतीश जैसे क्षेत्रीय क्षत्रपों की महत्वाकांक्षा को लगा झटका

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली बंपर जीत के बाद जिस एक व्यक्ति को इस सफलता का सबसे अधिक श्रेय दिया जा रहा है, वह है राहुल गांधी। पिछले साल सितंबर से पांच महीने तक भारत जोड़ो यात्रा करने के बाद मानहानि के एक मामले में सजायाफ्ता होने और इस कारण सांसदी के अयोग्य ठहराये जा चुके कांग्रेस के इस नेता को कर्नाटक ने एक झटके में ‘पप्पू’ से ‘हीरो’ बना दिया है। वास्तव में कर्नाटक चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने जितनी मेहनत की और जिस अंदाज में अपनी पार्टी के लिए प्रचार किया, उससे साफ हो गया है कि भारत जोड़ो यात्रा के अनुभवों ने उन्हें बहुत परिपक्व बना दिया है। पूरे प्रचार अभियान के दौरान राहुल लोगों से निजी संपर्क बढ़ाते रहे और बड़ी-बड़ी रैलियों-सभाओं और रोड शो के बदले छोटे स्तर पर समूहों से मिले। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान सबसे अधिक समय उन्होंने कर्नाटक में ही बिताया था, इसलिए उन्हें यहां की जमीनी हकीकत का पता था। राहुल गांधी में सबसे बड़ा बदलाव देखने को यह मिला कि पूरे प्रचार अभियान के दौरान उन्होंने कोई ऐसी बात नहीं कही, जिनका कोई गलत मतलब निकाला जा सके। इसलिए राहुल गांधी का कद अब स्वाभाविक रूप से विपक्षी खेमे में बहुत बड़ा हो गया है। यह उनकी बड़ी कामयाबी तो है, लेकिन इसका एक असर यह भी हुआ है कि उनके बढ़े कद से नीतीश कुमार और ममता बनर्जी जैसे क्षेत्रीय क्षत्रपों की महत्वाकांक्षा को झटका लगा है। कर्नाटक में मिली जीत के बाद कांग्रेस और राहुल गांधी के सामने सबसे बड़ी चुनौती विपक्षी एकता की धुरी बनने और 2024 में उसे कायम रखने की है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणाम की पृष्ठभूमि में राहुल गांधी के राजनीतिक कद का विश्लेषण कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बंपर जीत से कांग्रेस की बल्ले-बल्ले हो गयी है। पिछले एक दशक में कई चुनावों में बुरी तरह शिकस्त झेलने वाली देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी को पहले हिमाचल प्रदेश और फिर कर्नाटक में जीत मिलना किसी बूस्टर डोज से कम नहीं है। लगातार दो चुनावों में जीत मिलने से विपक्ष में भी कांग्रेस का पलड़ा भारी हुआ है। लेकिन कर्नाटक चुनाव ने कांग्रेस के जिस एक नेता को राष्ट्रीय राजनीति के फलक पर मजबूती से स्थापित कर दिया है, उसका नाम राहुल गांधी है। कर्नाटक चुनाव से पहले तक भारतीय राजनीति के ‘पप्पू’ कहे जानेवाले राहुल गांधी ने कर्नाटक में साबित कर दिया कि उन्हें भारत जोड़ो यात्रा ने काफी परिपक्व बना दिया है, उनकी राजनीतिक समझ कई गुना बढ़ गयी है।
कर्नाटक चुनाव को अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले का लिटमस टेस्ट भी माना जा रहा था। जिस तरह से पीएम मोदी की अगुवाई में भाजपा ने कर्नाटक में जोरदार चुनाव प्रचार किया और उसके बाद भी कांग्रेस ने कर्नाटक में बड़ी जीत हासिल कर अपने कार्यकर्ताओं में नयी जान फूंक दी है। तमाम कांग्रेसी इस जीत का श्रेय राहुल गांधी को दे रहे हैं। कांग्रेस पिछले एक दशक से राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रही है। 2014 के बाद से अब तक 50 से ज्यादा चुनावों में कांग्रेस को हार मिली, लेकिन पिछले छह महीने के अंदर यह कांग्रेस की दूसरी बड़ी जीत है। पहले हिमाचल प्रदेश में उसने भाजपा से सत्ता छीनी और अब कर्नाटक में उसने शानदार जीत हासिल की। कर्नाटक की इस जीत के बाद ढोल की थाप पर जीत का जश्न मनाया गया। पार्टी दफ्तर में राहुल गांधी का जोरदार स्वागत हुआ। जैसे ही कर्नाटक में कांग्रेस की जीत सुनिश्चित हुई, राहुल गांधी दिल्ली में पार्टी दफ्तर पहुंचे और मीडिया के सामने आकर छह बार नमस्कार बोले। इसके बाद उन्होंने सीधे कर्नाटक की जनता और कांग्रेस कार्यकर्ताओं, नेताओं को धन्यवाद और बधाई दी। राहुल ने कहा, कर्नाटक में नफरत की हार हुई है और मुहब्बत की जीत हुई है।
कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के साथ देश का राजनीतिक नक्शा भी बल गया है. कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों ने तय कर दिया है कि भाजपा भारत के मानचित्र पर कांग्रेस मुक्त अभियान चला रही थी, उसके उलट अब कांग्रेस के शासन वाले राज्यों में कर्नाटक भी जुड़ गया है। राजस्थान, छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस सरकार चला रही है। झारखंड और बिहार में भी महागठबंधन की सरकार है।

विपक्षी एकता की धुरी बन सकते हैं राहुल
कर्नाटक के चुनाव परिणाम ने राहुल गांधी को एक बार फिर राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में ला दिया है। भारत जोड़ो यात्रा के बाद जिस तरह उन्होंने अपना अंदाज बदला था, उसका असर शुरू ही हुआ था कि सूरत की अदालत द्वारा मानहानि के मामले में सजायाफ्ता होने और इस कारण सांसदी से अयोग्य ठहराये जाने के बाद 2024 में उनकी मौजूदगी पर संदेह व्यक्त किया जाने लगा था। समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव, बंगाल की सीएम ममता बनर्जी, बिहार के सीएम नीतीश कुमार समेत कई विपक्षी नेताओं के कांग्रेस के साथ आने और राहुल को नेता मानने में हिचकिचाहट हो रही थी। अखिलेश यूपी में कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करने का पहले ही ऐलान कर चुके हैं, तो ममता भी ‘एकला चलो’ की भूमिका में हैं। अब कर्नाटक में जीत के बाद तमाम विपक्षी दल कांग्रेस के साथ गठबंधन में आ सकते हैं और राहुल गांधी इसकी धुरी बन सकते हैं।

भाजपा के खिलाफ गठबंधन को मिलेगी मजबूती
इसमें कोई दो राय नहीं है कि कांग्रेस ने बढ़त हासिल कर ली है और कर्नाटक ने 2024 की तैयारी में लगी भाजपा को झटका दिया है। अब देखना है कि कांग्रेस इस मनोवैज्ञानिक खेल में कब तक बढ़त बनाये रखती है। सवाल यह भी था कि भाजपा के खिलाफ जो महागठबंधन बनाने की कवायद चल रही है, उसका नेतृत्व कौन करेगा. लेकिन कर्नाटक की जीत से तय हो गया है कि नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्षी चेहरे के चयन की बात आयेगी, तो इसमें राहुल गांधी एक कदम आगे निकल गये हैं। यह भी सच है कि भले ही कर्नाटक में राहुल गांधी की भारत जोड़ा यात्रा के दौरान डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया ने मेहनत की, प्रियंका गांधी भी इस यात्रा में गयी थीं, लेकिन अब राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को कांग्रेस दूर तलक ले जायेगी।

नीतीश और ममता के अरमानों पर फिरा पानी
कर्नाटक में कांग्रेस की जीत से पूरा विपक्ष गदगद दिख रहा है। अखिलेश यादव से लेकर ममता बनर्जी तक ने कांग्रेस को बधाई दी है। कांग्रेस की जीत से विपक्षी दलों में उम्मीद जगी है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा को एकतरफा बढ़त नहीं है। यदि बेहतर रणनीति के साथ चुनावी मैदान में उतरा गया, तो कोई बदलाव हो भी सकता है। लेकिन यह भी हकीकत है कि जहां एक तरफ नीतीश और ममता जैसे नेता कांग्रेस की जीत से खुश हैं, तो व्यक्तिगत तौर पर उनके लिए यह जनादेश किसी झटके से भी कम नहीं है। दरअसल इन सभी नेताओं के बारे में ये चर्चाएं चलती रहती हैं कि इनकी ख्वाहिश भी प्रधानमंत्री बनने की है। भले ही आधिकारिक रूप से नीतीश कुमार इससे इनकार करते रहे हों, लेकिन माना जाता है कि एनडीए से अलग होकर उनके विपक्ष के साथ आने के पीछे प्रमुख वजह यही है, लेकिन अब कर्नाटक नतीजों से साफ है कि लोकसभा चुनाव में विपक्षी दलों में राहुल गांधी या फिर कांग्रेस का ही दबदबा रहने वाला है। सीट बंटवारे से लेकर पीएम उम्मीदवारी तक में नेतृ्तव की भूमिका में कांग्रेस ही रहने वाली है। इससे नीतीश, ममता सरीखे नेताओं के अरमानों पर पानी भी फिरता दिखाई दे रहा है। वहीं, चुनावी जीत से राहुल गांधी का भी न सिर्फ कांग्रेस के भीतर, बल्कि पूरे विपक्ष में कद बढ़ गया है। ऐसे में कांग्रेस पीएम उम्मीदवारी के लिए राहुल का भी नाम आगे कर सकती है। मालूम हो कि कांग्रेस के कई दिग्गज नेता पीएम उम्मीदवारी के नाम पर राहुल गांधी के नाम का जिक्र करते रहे हैं। अब यह समय ही बतायेगा कि क्या विपक्ष कांग्रेस के नेतृत्व में अगला लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए राजी होता है या कोई नयी रणनीति बनायी जायेगी।

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