-मेरी रगों में झारखंड का खून : द्रौपदी मुर्मू
-महिला होना या आदिवासी समाज में पैदा होना कोई बुराई नहीं
-झारखंड का जितना विकास होना चाहिए था, उतना नहीं हुआ
आजाद सिपाही संवाददाता
रांची। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा है कि महिला होना या आदिवासी समाज में पैदा होना कोई बुराई नहीं है। हमारे देश में महिलाओं के योगदान के अनगिनत प्रेरक उदाहरण हैं। महिलाओं ने सामाजिक सुधार, राजनीति, अर्थव्यवस्था, शिक्षा, विज्ञान और अनुसंधान, व्यवसाय, खेल, सैन्य बलों और कई अन्य क्षेत्रों में अमूल्य योगदान दिया है। गुरुवार को खूंटी में केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा आयोजित एक महिला सम्मेलन में उन्होंने भाग लिया। इस मौके पर वह महिलाओं को संबोधित कर रही थीं। गुरुवार को राष्ट्रपति मुर्मू के झारखंड दौरे का दूसरा दिन था।
राष्ट्रपति ने कहा कि किसी भी क्षेत्र में सफल होने के लिए अपनी प्रतिभा को पहचानना और दूसरों के पैमाने पर खुद को आंकना महत्वपूर्ण नहीं है। उन्होंने महिलाओं से अपने भीतर की असीम शक्ति को जाग्रत करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा, मैं ओड़िशा से जरूर हूं ,लेकिन मेरी रगों में झारखंड का खून है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने झारखंड के आदिवासियों और महिलाओं की स्थिति और यहां से अपने जुड़ाव को लेकर विस्तार से अपनी बात रखी। उन्होंने कहा, आदिवासी महिलाओं के जीवन में सुधार, उनकी तरक्की देख कर मुझे बेहद खुशी होती है। झारखंड राज्य को अलग हुए 22 साल हो गये। अधिकांश सीएम आदिवासी हुए। 28 से अधिक एमएलए आदिवासी हैं। फिर भी झारखंड को जितनी तरक्की करनी चाहिए थी, उतनी नहीं हो सकी। इसके बारे में सोचने की जरूरत है। राष्ट्रपति ने कहा, सरकार 100 कदम चल रही है, तो आपको भी 10 कदम बढ़ाना होगा। सरकार ही सब कुछ कर दे, ऐसा नहीं होता है। उन्होंने कहा कि बचपन में हम वनोपज जमा करते थे। तब उसकी कीमत पता नहीं चलती थी। आज उसी वनोपज को बाजार मिल रहा है। यह देख कर अच्छा लगता है।
बिरसा मुंडा की धरती को नमन करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि इतने कम उम्र में उनका देश को अमूल्य योगदान है। हमें उन्होंने कई चीजें दे रखी हैं, जिसका अनुसरण करना है।

आदिवासी महिलाएं मजबूत हो रही हैं
राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने कहा, मुझे राज्यपाल बनने के बाद उलिहातू जाने और बिरसा मुंडा के परिजनों से मिलने का अवसर मिला। बिरसा मुंडा ने जनजातीय संस्कृति की रक्षा की। लोग उन्हें भगवान मानते हैं। उन्होंने जो काम किया, वह समाज के लिए प्रेरणादायक हैं।
राज्यपाल ने कहा, राष्ट्रपति महोदया को इस राज्य से विशेष लगाव है। राज्यपाल रहते हुए उन्होंने महिलाओं से बात करने और उन्हें मजबूत करने का काम किया है। स्वयं सहायता समूह और आदिवासी महिलाएं मजबूत हो रही हैं। मैंने भी राज्यपाल होते हुए यह महसूस किया है।
कार्यक्रम में जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा, जनजातीय कार्य राज्यमंत्री रेणुका सिंह सरूता, राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी मौजूद थे।

सरना धर्मकोड सहित आदिवासियों की मांगों को केंद्र पूरा करे: हेमंत सोरेन
सीएम हेमंत सोरेन ने राष्ट्रपति के सामने पलायन पर अपनी चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि आदिवासियों की स्थिति में अभी भी सुधार नहीं हो रहा है। राज्य से पलायन के आंकड़ों को देख चिंतित हो जाता हूं। राज्य अलग होने के 20 साल बाद भी आज भी कोई ऐसा सार्थक प्रयास हमारे यहां के आदिवासियों के बीच नहीं हो पाया। सभी काम सिर्फ कागजों पर हो रहे हैं। यहां कोई संगठन सक्रिय रूप से काम नहीं कर रहा है। हम कहीं मुख्य अतिथि बन कर जायें, तो अधिकारी स्टॉल लगा कर बस दिखा देते हैं, लेकिन वस्तुस्थिति कुछ और होती है। अधिकारी झांकी दिखाते हैं, लेकिन हम इस झांकी के पीछे देखने की कोशिश करते हैं।
मुख्यमंत्री ने अर्जुन मुंडा की तारीफ करते हुए कहा, यह मंत्री रहेंगे, तो तब तक झारखंड को लाभ मिलेगा। इन्होेंने सिदो-कान्हू वनोपज संघ गठित किया है। राज्य में 225 एसएचजी काम कर रहे हैं। राज्य में 14 हजार से अधिक गांव वनोपज से सीधे जुड़े हुए है, लेकिन इनकी सही कीमत नहीं मिलती है। बिचौलिये हावी हैं। एमएसपी भी चिंता का विषय है। लाह का एमएसपी 380 रुपये है, जबकि बाजार में हजारों में बिकता है। सिदो-कान्हू फेडरेशन के माध्यम से सभी वनोपज को एकत्रित कर बाजार मूल्य के बराबर पैसे दिये जायेंगे। सरना धर्म कोड, हो, मुंडारी, कुडूख को आठवीं अनुसूची में शामिल करने सहित आदिवासियों की कई मांगे हैं, जिन्हें केंद्र पूरा करे, तो आदिवासियों का अस्तित्व बचेगा।

 

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