विशेष
-लोकतंत्र के मंदिर की पवित्रता पर इस फैसले से लगेगा दाग
-यह किसी दल या सरकार का नहीं, देश की गरिमा का समारोह है
-इस तरह के आयोजनों को सियासत से दूर रखा जाना चाहिए

लोकतांत्रिक व्यवस्था की परिकल्पना में सत्ता पक्ष और विपक्ष की भूमिकाओं को परिभाषित तो किया गया है, लेकिन दोनों पक्षों की भूमिका के पहलुओं को सही तरीके से बताया नहीं गया है। यह बात भारतीय परिप्रेक्ष्य में विशेष रूप से लागू होती है, जहां विपक्ष का मतलब सत्ता पक्ष के हर कदम का विरोध माना जाता है। अब नये संसद भवन के उद्घाटन को लेकर मचे सियासी संग्राम को ही लिया जाये। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई को इस नये संसद भवन का उद्घाटन करनेवाले हैं, लेकिन विपक्षी दलों ने देश की गरिमा के इस समारोह का बहिष्कार करने की घोषणा की है। कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों का कहना है कि सर्वोच्च संवैधानिक पद पर होने के नाते राष्ट्रपति को नये संसद भवन का उद्घाटन करना चाहिए। विपक्ष का कहना है कि समारोह में राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति को नहीं बुलाया जाना दोनों का अपमान है। विपक्ष के इस बहिष्कार की मुहिम का नेतृत्व कांग्रेस नेता राहुल गांधी कर रहे हैं। विपक्ष का यह भी कहना है कि 28 मई की तारीख को जानबूझ कर चुना गया है। इस दिन एक तरफ वीर सावरकर की जयंती है, जो भाजपा के सबसे बड़े आदर्श माने जाते रहे हैं, तो दूसरी तरफ देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की अंत्येष्टि की वर्षगांठ है। इसलिए इस दिन संसद भवन का उद्घाटन देश के संस्थापक पिताओं का ‘अपमान’ है। दरअसल, नये संसद भवन के उद्घाटन को लेकर जो विवाद है, वह मूलत: राजनीतिक है। सौ साल पुराने भवन के स्थान पर भविष्य की आवश्यकताओं को देखते हुए नया भवन बनना चाहिए, यह तो सभी दल मान रहे थे। मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल से ही इसे प्राथमिकता दी और अब दूसरा कार्यकाल पूरा होने से पहले ही इसका उद्घाटन होने जा रहा है, तो यह बड़ी उपलब्धि है। सरकार इसे अपने पक्ष में भुनायेगी ही। अगर इसकी बनावट में कोई गड़बड़ हुई है, कोई घोटाला हुआ है, कोई काम सही नहीं हुआ है, तो विपक्ष को उसे उठाना चाहिए। उद्घाटन कौन कर रहा है, इस मुद्दे को उठाने से विपक्ष को कोई लाभ नहीं मिलने वाला। इतना ही नहीं, विपक्ष के इस फैसले का जनता में गलत संदेश भी जायेगा। नये संसद भवन के उद्घाटन पर उठे सियासी तूफान के विभिन्न पहलुओं के बारे में बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र इन दिनों एक नये सियासी विवाद में घिरा हुआ है। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि विवाद की वजह लोकतंत्र के सर्वोच्च मंदिर का उद्घाटन है। कांग्रेस और 18 अन्य विपक्षी दलों ने नये संसद भवन के उद्घाटन का बहिष्कार करने का फैसला किया है। नये संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई को करेंगे। विपक्ष ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के बिना भवन का उद्घाटन करने का निर्णय उच्च कार्यालय का अपमान करता है। राष्ट्रपति का, और संविधान के पत्र और भावना का उल्लंघन करता है। विपक्षी दलों ने कहा कि प्रधानमंत्री द्वारा स्वयं भवन का उद्घाटन करने का निर्णय लोकतंत्र पर सीधा हमला है, जो एक समान प्रतिक्रिया की मांग करता है। विपक्षी दलों के साझा बयान में कहा गया है कि जब लोकतंत्र की आत्मा को संसद से चूस लिया गया है, तो हमें नयी इमारत में कोई मूल्य नहीं मिलता है। हम नये संसद भवन के उद्घाटन का बहिष्कार करने के अपने सामूहिक निर्णय की घोषणा करते हैं। हम इस निरंकुश प्रधानमंत्री और उनकी सरकार के खिलाफ, पत्र में, भावना में, और पदार्थ में लड़ाई जारी रखेंगे, और हमारे संदेश को सीधे भारत के लोगों तक ले जायेंगे। विपक्ष का कहना है कि संसद का कस्टोडियन राष्ट्रपति होता है। वैसे भी राष्ट्रीय महत्व के समारोहों में राष्ट्रपति का शामिल होना देश की संप्रभुता को मजबूती देता है। ऐसे में नये संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति द्वारा नहीं किया जाना संविधान का अपमान है।

भाजपा ने किया पलटवार
नये संसद भवन का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों उद्घाटन करने का विरोध कर रहे विपक्ष को सत्ता पक्ष की तरफ से केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने करारा जवाब दिया। उन्होंने याद दिलाया कि प्रधानमंत्री के रूप में इंदिरा गांधी ने पार्लियामेंट एनेक्सी का उद्घाटन किया था और फिर राजीव गांधी ने पीएम रहते लाइब्रेरी भवन की आधारशिला रखी थी। बता दें कि 24 अक्टूबर 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संसदीय एनेक्सी का उद्घाटन किया था और 15 अगस्त 1987 को राजीव गांधी ने पार्लियामेंट लाइब्रेरी की नींव रखी थी। अब अगर 28 मई को पीएम मोदी नये संसद भवन का उद्घाटन करने जा रहे हैं, तो हल्ला क्यों। साथ ही उन्होंने कांग्रेस पर राष्ट्रीय चेतना और देश की उपलब्धियों को लेकर गौरव की भावना की कमी का आरोप भी लगाया। पुरी ने याद दिलाया कि किस तरह पहले कांग्रेसी नेता द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने पर अभद्र टिप्पणी कर रहे थे और अब उसी कांग्रेस के नेता नये संसद भवन के उद्घाटन के लिए उनका चुनाव नहीं किये जाने पर अनावश्यक टिप्पणी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह दुखद है कि राष्ट्रीय पार्टी होने का दावा करनेवाली कांग्रेस में भारत की प्रगति में राष्ट्रीय भावना और गर्व की भावना का अभाव है। पुरी ने कहा कि अब अपने पाखंड को सही ठहराने के लिए संविधान के अनुच्छेद खोजने की बजाय विपक्ष को देश की इस महत्वपूर्ण उपलब्धि में शामिल होना चाहिए। पुरी ने कहा कि खुद राष्ट्रपति मुर्मू भी चाहती हैं कि प्रधानमंत्री मोदी नये भवन का उद्घाटन करें। राहुल गांधी की अराजकतावादी राजनीति के कारण कांग्रेस की विकृत मानसिकता अधिक गहरी हो गयी है। उनके अनुसार देश की जनता संसद के नये भवन के उद्घाटन का बेसब्री से इंतजार कर रही है। यह भारतीय लोकतंत्र का प्रतीक होगा। उन्होंने कहा कि कांग्रेस नेताओं की टिप्पणियां नकारात्मक और पराजयवादी मानसिकता को दर्शाती हैं।

किसे भेजा गया है समारोह का निमंत्रण
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला 28 मई को नये संसद भवन को राष्ट्र को समर्पित करेंगे। दोनों सदनों के सांसदों को भौतिक और डिजिटल दोनों रूपों में निमंत्रण भेजा गया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा इस अवसर पर बधाई संदेश जारी किये जाने की संभावना है। समारोह में देश की जानी-मानी हस्तियों के अलावा सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों, विधानसभा अध्यक्षों, सेना और अर्द्धसैनिक बलों के शीर्ष अफसरों, राजनयिकों और खिलाड़ियों-कलाकारों को आमंत्रित किया गया है।

ढाई साल के रिकॉर्ड समय में बना है संसद भवन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 दिसंबर, 2020 को नये संसद भवन की आधारशिला रखी। इसे रिकॉर्ड समय में गुणवत्तापूर्ण निर्माण के साथ बनाया गया है। संसद के वर्तमान भवन में लोकसभा में 543 तथा राज्यसभा में 250 सदस्यों के बैठने का प्रावधान है। भविष्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए संसद के नवनिर्मित भवन में लोकसभा में 888 और राज्यसभा में 384 सदस्यों की बैठक कराने की व्यवस्था की गयी है। दोनों सदनों का संयुक्त सत्र लोकसभा कक्ष में होगा।

विपक्ष के फैसले से देश में गया गलत संदेश
नये संसद भवन के उद्घाटन के बहिष्कार के फैसले का देश भर में गलत संदेश गया है। विपक्ष को यह समझना चाहिए कि संसद भवन देश की गरिमा और संप्रभुता का सर्वोच्च प्रतीक होने के साथ-साथ लोकतंत्र का मंदिर भी है। यह किसी एक दल या सरकार की संपत्ति नहीं है और न ही यह समारोह किसी राजनीतिक दल या सरकार का है। इसके उद्घाटन का बहिष्कार करने का मतलब इसकी पवित्रता को कलंकित करना ही माना जायेगा। इसलिए कहा जा सकता है कि विपक्ष का यह कदम निश्चित रूप से नये संसद भवन के रूप में देश की गरिमा को कम करनेवाला है।

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