रांची। गो कृषि आधारित प्राकृतिक खेती से प्राप्त कृषि उत्पाद न केवल हानिकारक रसायनों के दुष्प्रभावों से मुक्त होते हैं, बल्कि उनमें पोषक तत्वों की मात्रा भी अधिक होती है। अनाज, फल और सब्जी में प्रोटीन, विटामिन आयरन, मिनरल आदि की उपलब्धता बढ़ाने के लिए प्राकृतिक खेती ही एकमात्र रास्ता है। ऐसे उत्पादों के सेवन से ही शरीर के रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होगी। उक्त बातें बीएयू के बिजिनेस प्लानिंग एंड डेवलपमेंट सोसाइटी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सिद्धार्थ जयसवाल ने सुकुरहुटू गोशाला में प्राकृतिक खेती पर व्याख्यान देते हुए कहीं।
कहा कि रसायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के इस्तेमाल से कृषि उत्पादों में पोषक तत्वों की उपलब्धता लगातार घट रही है और कैंसर जैसी बीमारी फैल रही है। गोबर का इस्तेमाल कास्ट बनाने के बजाय खेतों में करना चाहिए। गाय के गोमूत्र में 500 प्रकार के माइक्रोब्स हैं, जो मिट्टी का स्वास्थ्य संवर्धन करते हैं। खेती में देशी बीज, अमृत जल और अमृत मिट्टी के इस्तेमाल से पोषक तत्वों की उपलब्धता में पर्याप्त वृद्धि होती है। अमृत मिट्टी तैयार करने में लगभग पांच महीने का समय लगता है, किंतु उसके बाद इस मिट्टी में 15 वर्षों तक किसी खाद या कीटनाशक की आवश्यकता नहीं पड़ती और बिना जुताई की खेती होती है। पहली फसल से ही उत्पादकता में वृद्धि होती है और उत्पादों का सेल्फ लाइफ भी अधिक होता है।
गोशाला प्रबंधन समिति के अध्यक्ष पुनीत कुमार पोद्दार ने कहा कि सुकुरहुटू और हुटूप गोशाला में गो आधारित प्राकृतिक कृषि का विस्तृत मॉडल स्थापित किया जायेगा। इस अवसर पर गोशाला के सचिव प्रदीप राजगढ़िया, गोशाला ट्रस्ट के अध्यक्ष रतन जालान, उपाध्यक्ष एसएन राजगढ़िया, कोषाध्यक्ष दीपक पोद्दार, मुरारी लाल अग्रवाल, पंकज वत्सल, भानु प्रसाद जालान, आरके चौधरी, प्रकाश काबरा, अमरजीत गिरिधर, सुरेश जैन, मनीष लोधा सहित अन्य उपस्थित थे।