विशेष
अंतिम परिणाम 2-1 हो सकता है, पर किसके पक्ष में, कहना मुश्किल
शहरी इलाके में भाजपा का जोर, तो गांवों में बराबरी की है टक्कर

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
झारखंड की राजनीति का केंद्रबिंदु कहे जानेवाले संताल परगना में लोकसभा चुनावों के अंतिम चरण, यानी 1 जून को मतदान होगा। यहां चुनाव प्रचार के लिए अब 24 घंटे से भी कम का समय बचा हुआ है, इसलिए सभी दलों और उम्मीदवारों ने संताल परगना की तीनों सीटों पर अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा के अलावा तमाम छोटे-बड़े नेताओं ने चुनावी रैलियां की हैं, जबकि इंडिया गठबंधन की तरफ से कांग्रेस की नेता प्रियंका गांधी के अलावा मल्लिकार्जुन खड़गे, झामुमो नेता कल्पना सोरेन, तेजस्वी यादव, झारखंड के मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन और अन्य छोटे-बड़े नेताओं ने जम कर पसीना बहाया है। इस धुआंधार चुनाव प्रचार अभियान के बीच अब तक यह साफ नहीं हो सका है कि इस इलाके में चुनावी परिदृश्य क्या है और यहां के मतदाता क्या सोचते हैं। केंद्रीय योजनाओं के लाभ के बारे में उनका विचार क्या है और नयी सरकार बनाने के बारे में उनकी धारणा क्या है। इन तमाम सवालों के जवाब तलाशने के लिए आजाद सिपाही की टीम ने संताल परगना की तीनों सीटों का लगातार तीन दिन तक दौरा किया। इस दौरे के क्रम में सैकड़ों लोगों से भेंट हुई, बात हुई और राजनीतिक मुद्दों पर गंभीर चर्चा भी हुई। इस पूरी बातचीत के आधार पर आजाद सिपाही की टीम में शामिल प्रधान संपादक हरिनारायण सिंह, राजनीतिक संपादक प्रशांत झा और संवाददाता सुनील कुमार ने जो ग्राउंड रिपोर्ट तैयार की है, उसे शब्द रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

झारखंड की उप राजधानी दुमका जिले में अवस्थित बासुकीनाथ मंदिर, यानी फौजदारी बाबा का स्थान इन दिनों चुनावी बुखार से अछूता नहीं है। संताल परगना में आखिरी चरण में एक तारीख को मतदान होना है। देवघर से शुरू हुई आजाद सिपाही टीम की चुनावी यात्रा के क्रम में संताल परगना की तीनों सीटों, दुमका, राजमहल और गोड्डा का हाल समझने की कोशिश की गयी। जहां तक इन तीनों सीटों पर बीजेपी और जेएमएम की स्थिति का सवाल है, तो संताल में माहौल 2-1 का दिख रहा है। अब कौन दो सीट जीतेगा और कौन एक, यह 4 जून को पता चलेगा।

गोड्डा में भाजपा का पलड़ा भारी
गोड्डा में एकदम स्थिति साफ लग रही है। यहां निशिकांत दुबे का पलड़ा भारी है। हमारी मुलाकात एक सफाई कर्मी की पत्नी से हुई, जो अपने डेढ़ साल के बच्चे को नहला रही थी। उसने खुद को बिहार के बांका का बताया और कहा कि उसका पति मंदिर में साफ-सफाई करता है। उन दोनों ने बासुकीनाथ में ही अपना वोटर कार्ड बनवाया है। उस महिला को पता है कि चुनाव कब है और उम्मीदवार कौन है। उसने साफ तौर पर कहा कि उसका वोट तो मोदी जी को मिलेगा, क्योंकि उन्होंने बहुत काम किया है। अनाज-पानी देते हैं। वह भाजपा उम्मीदवार निशिकांत दुबे के नाम से भी परिचित थी। यहां से इंडी गठबंधन के प्रत्याशी प्रदीप यादव चुनाव लड़ रहे हैं और उन्हें भी अच्छा-खासा वोट मिलेगा, लेकिन ऐसा नहीं लगता कि वह निशिकांत दुबे की राह में कोई बहुत बड़ा रोड़ा अटका पायेंगे। इसके पीछे निशिकांत का काम और उस पर से मोदी की लोकप्रियता कारण है।

दुमका में बराबरी की टक्कर
जहां तक दुमका का सवाल है, तो सीता सोरेन को पार्टी में लाते वक्त भाजपा को यह उम्मीद थी कि उनके आने से जेएमएम का सारा वोट ट्रांसफर हो जायेगा और भाजपा खुद के वोट के सहारे दुमका सीट जीत लेगी। दुमका से दो बार बाबूलाल मरांडी और एक बार सुनील सोरेन भाजपा प्रत्याशी के रूप में जीत चुके हैं। वैसे आम तौर पर दुमका को लोग शिवू सोरेन की सीट मानते हैं। बीच में दो-तीन बार भाजपा जरूर जीती है, लेकिन शिवू सोरेन का नाम यहां पर सबसे आगे है। लोगों से बातचीत में साफ हुआ कि दोनों प्रमुख उम्मीदवारों, भाजपा की सीता सोरेन और झामुमो के नलिन सोरेन, दोनों का दो प्लस है, तो दो माइनस भी है। नलिन सोरेन शिकारीपाड़ा से विधायक हैं, यह उनका प्लस प्वाइंट है। उनका दूसरा प्लस प्वाइंट जामताड़ा है। यहां एक जगह है मसलिया। यहां जेएमएम कितना लोकप्रिय है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता कि प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में शामिल होनेवाले लोगों ने भी खुल कर यह कहा कि सिमलिया में हेमंत सोरेन ने बहुत काम किया है। बच्चों के लिए काम किया है। महिलाओं के लिए काम किया है। जामताड़ा और मसलिया से जेएमएम पहले भी लीड करता था और इस बार भी वह मजबूत है। सीता सोरेन के प्लस प्वाइंट में पहला नाम जामा है, जहां से वह विधायक हैं और दूसरा दुमका का शहरी इलाका। शहरी इलाके में भाजपा बहुत आगे है। उसका पूरा वोट बैंक इंटैक्ट है। इस स्थिति में अब सब कुछ बूथ प्रबंधन पर निर्भर करता है। कौन सी पार्टी कैसे किलेबंदी करती है, अंतिम परिणाम उसी पर निर्भर करेगा। नलिन सोरेन के पास शिकारीपाड़ा से अपराजेय रहने का रिकॉर्ड है और लंबा राजनीतिक अनुभव है, तो सीता सोरेन के पास अपने पति दुर्गा सोरेन की विरासत के साथ कुछ-कुछ सहानुभूति भी है। सीता सोरेन ने शिकारीपाड़ा में कैंप कर अपने पक्ष में माहौल बनाया है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में उनकी कितनी पैठ बनी है, इसका अंदाजा अभी नहीं लग पाया है। दुमका की यात्रा के दौरान एक बात जरूर नजर आयी कि जिस तरह चाइबासा में गीता कोड़ा बीजेपी में बहुत जल्दी स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं से घुल-मिल गयीं, वैसा सीता सोरेन नहीं कर सकी हैं। सीता सोरेन को लोग आज भी दुर्गा सोरेन की पत्नी होने के नाते ही जानते हैं। भाजपा के लोगों का भी यही कहना था कि सीता सोरेन अभी पूरी तरह से पार्टी में रच-बस नहीं पायी हैं। तीसरी बात यह है कि हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद जिस तरह कल्पना सोरेन ने कमान संभाली है, उससे परिदृश्य में बहुत बड़ा बदलाव आया है। लोग अब कल्पना को मानने लगे हैं। झामुमो कार्यकर्ताओं में उनकी स्वीकार्यता बढ़ गयी है। कल्पना भी दुमका के लोगों का मिजाज समझने लगी हैं। वह जिस तरह लोगों से खुद को कनेक्ट कर रही हैं, वह बहुत असर कर रहा है। इस चुनाव में कल्पना ने गुरुजी और हेमंत की कमी नहीं खलने दी है और यह जेएमएम के लिए बड़ा प्लस प्वाइंट है। कल्पना की स्वीकार्यता जेएमएम कार्यकर्ताओं में ही नहीं, लोगों में भी बहुत बढ़ी है। उनके बोलने की शैली से भी लोग और खासकर झामुमो के समर्थक प्रभावित हो रहे हैं। 25 मई के बाद से कल्पना सोरेन लगातार संताल परगना में चुनावी रैलियां कर रही हैं। उनकी रैलियों से झामुमो कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ा भी है। हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद झामुमो के कुछ समर्थक और स्थानीय नेता निराश हो गये थे कि अब क्या होगा, लेकिन कल्पना सोरेन ने उस निराशा को पाट दिया है और झामुमो समर्थकों में नयी ऊर्जा का संचार कर दिया है।

राजमहल में लोबिन पेश कर रहे हैं कड़ी चुनौती
राजमहल संसदीय क्षेत्र में लेबिन हेंब्रम के उतरने के बाद विजय हांसदा के लिए कड़ी चुनौती है। जेएमएम को अंदाजा भी नहीं लग पा रहा है कि लोबिन कितना वोट काटेंगे। इतना तय है कि वह जो भी वोट काटेंगे, वह जेएमएम का ही होगा। यदि वह अधिक वोट काट ले गये, तो जेएमएम को सीधा नुकसान होना तय है। भाजपा के ताला मरांडी के लिए भी राह आसान नहीं दिख रही है। यदि लोबिन को छोड़ कर विजय और ताला की तुलना की जाये, तो इसमें कोई दो राय नहीं है कि आज की तारीख में विजय हांसदा आगे हैं। ताला मरांडी के लिए स्थिति तभी अनुकूल हो सकती है, जब लोबिन हेंब्रम झामुमो के कोर वोटरों में बड़ी सेंधमारी कर दें। ताला मरांडी वैसे भी भाजपा में आते-जाते रहे हैं, इसलिए लोग बहुत उत्साहित नजर नहीं आ रहे हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वह जरूर थे, लेकिन बेटे की शादी वाले विवाद के बाद एक तरह से वह राजनीतिक क्षेत्र से आउट हो गये थे। अब भाजपा ने उन्हें टिकट देकर मैदान में उतारा है और भाजपा कार्यकर्ताओं की बदौलत वह माहौल को बदलने की फिराक में हैं। यह भी तय है कि खुद की बदौलत ताला मरांडी कोई बड़ा चमत्कार नहीं कर सकते, उन्हें जो भी वोट मिलेगा वह भाजपा और मोदी के कारण मिलेगा, उनका अपना खुद का उतना वोट नहीं है कि उसकी गिनती की जाये। यानी कह सकते हैं कि ताला मरांडी के राजनीतिक भाग्य का ताला तभी खुलेगा, जब लोबिन हेंब्रम झामुमो मतदाताओं में बड़ी सेंधमारी करेंगे।

अंतिम दो रात हमेशा होती है कातिल
संताल परगना के बारे में मशहूर है कि यहां की हर सीट पर अंतिम दो रात कातिल होती है। जो उम्मीदवार इन दो रातों में अपने ‘हथियार’ का जितना प्रभावी ढंग से इस्तेमाल करता है, बाजी उसके हाथ होती है। वैसे संताल परगना की तीन सीटों पर इंडिया गठबंधन कल्पना सोरेन पर निर्भर है, उसमें चंपाई सोरेन का भी साथ मिल रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि संताल में कल्पना सोरेन का प्रभाव ज्यादा है। वहीं ताला मरांडी को भाजपा के केंद्रीय नेताओं पर भरोसा है। बाबूलाल मरांडी भी स्थिति को अनुकूल बनाने की कोशिश में जुटे हैं। वह भी 25 मई से लगातार वहां कैंप किये हुए हैं। हां बीच में दो दिन वह बंगाल में चुनाव प्रचार करने जरूर गये थे। वहीं असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री और भाजपा के दूसरे राज्यों के अन्य नेताओं ने भी लगातार यहां चुनावी सभाएं की हैं, लेकिन सबसे ज्यादा असर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 28 मई को यहां हुई रैली का पड़ा है। मोदी की रैली के बाद राजनीतिक फिजां में पैदा हुई ऊर्जा को 1 जून तक संजो कर रखने की फिराक में बाबूलाल मरांडी लगे हुए हैं। कुल मिला कर संताल परगना का चुनावी फैक्टर भी झारखंड के अन्य हिस्सों की तरह ‘मोदी’ ही है। यहां लड़ाई मोदी समर्थकों और मोदी विरोधियों के बीच है। दुमका और राजमहल में राजनीतिक लड़ाई इतनी कांटे की है कि अभी वहां के बारे में कोई टिप्पणी करना या निष्कर्ष निकालना संभव नहीं है। हां इतना तय है कि फैसला वहां 2-1 से ही होने की संभावना है।

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