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‘खेला’ के इंतजार में हैं सिंहभूम संसदीय सीट के मतदाता
प्रत्याशियों के प्रभाव ने मिटा दिया है शहरी और ग्रामीण क्षेत्र का अंतर
सिंहभूम संसदीय क्षेत्र में ‘खेला’ ही तय करेगा प्रत्याशियों की जीत और हार। चाइबासा हो या चक्रधरपुर या फिर मनोहरपुर, हर जगह प्रत्याशियों के चुनावी कार्यालयों की भीड़ अब छंटने लगी है। चुनाव प्रचार अभियान खत्म होने के बाद अब यहां सिर्फ वही कार्यकर्ता पहुंच रहे हैं, जिनके इलाके में कोई सभा नहीं हुई है या फिर बूथ मैनेजमेंट का काम पूरा नहीं हुआ है। सभी को जल्दी है। हिसाब- किताब हो जाये, तो बूथ की व्यवस्था भी ठीक हो जायेगी। कार्यकर्ताओं में उत्साह की कोई कमी नहीं है। भाजपा कार्यकर्ताओं को जीत का जितना भरोसा है, तो उससे तनिक भी कम उत्साह झामुमो के कैडर में नहीं है। अब यह साफ- साफ दिख रहा है कि पिछले चुनाव में लगभग 50 फीसदी वोट हासिल करने वाली गीता कोड़ा के लिए चुनावी डगर इस बार उतनी आसान नहीं है, जितनी अब से एक पखवाड़ा पहले तक दिख रही थी। हालांकि पीएम मोदी की सभा के बाद उनकी स्थिति तेजी से सुधरी है। उधर मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन झामुमो प्रत्याशी जोबा की चुनावी नाव के मांझी बन कर मजबूती से प्रचार अभियान की कमान संभाले रहे। कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी आदिवासियों को उनकी अस्मिता में लगायी जा रही सेंध की याद दिला कर जा चुके हैं। स्वयं मुख्यमंत्री के प्रचार की कमान संभालने के कारण इस क्षेत्र से पार्टी के अन्य विधायकों पर भी जोबा मांझी की जीत सुनिश्चित करने का भारी दबाव है। उधर भाजपा प्रत्याशी गीता कोड़ा की जीत के लिए उनके पति मधु कोड़ा अपनी सियासी ताकत और सूझबूझ का इस्तेमाल तो कर ही रहे हैं, जमीन से जुड़े भाजपा नेताओं की फौज के साथ- साथ संघ के भी कई दिग्गज नेता गांव-गांव जाकर पार्टी प्रत्याशी की जीत तय करने के लिए मतदाताओं को रिझाने में जुटे हैं। भाजपा नेताओं का दावा है कि मोदी लहर में गीता कोड़ा की जीत यहां से तय है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी सभा के बाद सारे किंतु-परंतु खत्म हो गये हैं। इन दोनों के अलावा यहां से मैदान में उतरे अन्य 12 प्रत्याशी भी गुणा-भाग कर अपनी जीत तलाशने में जुटे हैं। सिंहभूम संसदीय सीट पर प्रचार खत्म होने के बाद क्या है माहौल, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
कोल्हान के प्रमंडलीय मुख्यालय चाइबासा, यानी सिंहभूम संसदीय सीट पर प्रचार अभियान खत्म हो गया है। यहां 13 मई को पलामू, खूंटी और लोहरदगा के साथ वोट डाले जायेंगे। प्रचार अभियान खत्म होने के बाद इस संसदीय क्षेत्र के मतदाता अब किसी ‘चमत्कार’ का इंतजार कर रहे हैं, जबकि राजनीति के जानकारों का मानना है कि यहां की हार-जीत का फैसला ‘खेला’ पर निर्भर है। इसमें कौन बड़ा ‘खेला’ करता है, इंतजार इसी बात का है।
चाइबासा के अनुमंडल चक्रधरपुर से मनोहरपुर के रास्ते में एक गांव आता है बड़पोश। करीब चार सौ की आबादी वाले इस गांव में अधिसंख्य लोग मूदी जाति, यानी मिट्टी काटने वाली जाति के हैं। चुनावी चर्चा पर लोग मुस्कुराते हैं और कहते हैं कि राम मंदिर के नाम पर वह नरेंद्र मोदी का समर्थन करेंगे। हालांकि तत्काल वह यह भी कहते हैं कि इस गांव की आधी आबादी झामुमो का झंडा उठाने वाली है। इसी तरह सोनुवा प्रखंड के चांदीपोश गांव के लोगों का कहना था कि यह चुनाव बिल्कुल अलग है। अबकी कोई लहर नहीं है। सड़क के किनारे के लोग भाजपा के पक्षधर हैं, जबकि अंदर के गांवों में झामुमो की स्थिति मजबूत है। आनंदपुर के लोगों की टिप्पणी थी कि अभी तक पलड़ा बराबर का दिख रहा है।
सिंहभूम का इलाका अफ्रीका और आॅस्ट्रेलिया से भी पुराना माना जाता है। दुनिया के कई जाने-माने वैज्ञानिकों का दावा है कि सिंहभूम की धरती दुनिया में सबसे पहले समुद्र से बाहर निकली थी। अब सिंहभूम की इस धरती पर लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए भाजपा की गीता कोड़ा और इंडी अलायंस की ओर से जोबा मांझी चुनाव मैदान में हैं। हालांकि 35 साल का रिकॉर्ड रहा है कि एक चुनाव के बाद दूसरे चुनाव में उस उम्मीदवार की जीत नहीं होती है। गीता कोड़ा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हुई थीं। भाजपा में आते ही उन्हें टिकट मिल गया। कांग्रेस ने सांसद गीता कोड़ा के पाला बदलने के बाद सिंहभूम सीट इंडी अलायंस में शामिल सहयोगी दल झामुमो के लिए छोड़ दी। झामुमो ने जोबा मांझी को मुकाबले में उतार दिया। सिंहभूम लोकसभा सीट की एक विधानसभा सीट सरायकेला भी है। यह सीएम चंपाई सोरेन का गृह क्षेत्र है। ऐसे में सिंहभूम लोकसभा सीट से झामुमो उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित कराना चंपाई सोरेन के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा अपनी पत्नी गीता कोड़ा को फिर से संसद भेजने के लिए जम कर पसीना बहा रहे हैं।
भाजपा के लिए आसान नहीं रही यह सीट
‘हो’ लड़ाकों की भूमि रही सिंहभूम संसदीय सीट भारतीय जनता पार्टी के लिए कभी भी आसान नहीं रही है। जब से देश में आम चुनाव हुए हैं, तब से लेकर आज तक भाजपा प्रत्याशी यहां केवल तीन बार ही जीतने में सफल हुए हैं। इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि सिंहभूम संसदीय सीट पर कमल खिलने में 44 साल लग गये। 1952 से आम चुनाव शुरू हुए। 1952 से लेकर 1991 तक 10 बार लोकसभा चुनाव हुए। भारतीय जनता पार्टी कभी भी चुनाव नहीं जीत पायी थी। यहां पहली बार 1996 में भाजपा का खाता खुला। यह रिकॉर्ड चित्रसेन सिंकू के नाम पर है। चित्रसेन सिंकू ने 1996 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के टिकट से चुनाव लड़ा और पार्टी को जीत दिलायी थी। हालांकि, दो साल बाद 1998 में फिर से चुनाव हो गये और भाजपा के चित्रसेन सिंकू को हार का सामना करना पड़ा। 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा दूसरी बार जीत दर्ज करने में कामयाब रही और लक्ष्मण गिलुवा सांसद बने। इसके बाद 2004 के चुनाव में फिर से उलटफेर हुआ और भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। 10 साल बाद फिर भाजपा को सिंहभूम सीट से जीत मिली और लक्ष्मण गिलुवा दूसरी बार सांसद बने। सिंहभूम संसदीय सीट पर बागुन सम्बुरुई ने एक तरफा राज किया। वह पांच बार सांसद रहे। जहां तक पार्टियों की बात है तो इस सीट पर कांग्रेस और भाजपा के बीच ही अधिकतर समय कांटे की टक्कर देखने को मिली है।
जोबा मांझी को उतार कर झामुमो ने बदला माहौल
सिंहभूम सीट से जोबा मांझी को उतार कर झामुमो ने एक तीर से दो शिकार कर लिया है। एक तो उसने इस मुकाबले को दो महिलाओं के बीच बना दिया है, जिसमें जोबा मांझी के साथ इलाके के लोगों की सहानुभूति है और दूसरे इसने पार्टी के भीतर चल रही गुटबाजी को भी खत्म कर दिया है।
पांच बार की विधायक हैं जोबा मांझी
जोबा मांझी को उनके दिवंगत शहीद पति देवेंद्र मांझी की पत्नी होने का राजनीतिक लाभ हमेशा मिलता रहा है। शहीद देवेंद्र मांझी की कोल्हान और पोड़ाहाट के साथ-साथ सारंडा क्षेत्र के जंगल गांवों में काफी मजबूत पकड़ थी। 1994 में उनकी हत्या के बाद से जोबा मांझी लगातार पांच बार मनोहरपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक रही हैं। बिहार और झारखंड में कई बार मंत्री भी रही हैं। जोबा मांझी की ईमानदारी और सादगी सबसे बड़ी पहचान है। उनकी ईमानदार छवि और सादगी के कारण सभी राजनीतिक दलों के नेता उनकी आलोचना करने से बचते हैं।
जोबा मांझी को क्यों उतारा झामुमो ने
वास्तव में झामुमो ने सिंहभूम में कोड़ा दंपति की राजनीतिक पकड़ को चुनौती देने के लिए ही जोबा मांझी को मैदान में उतारा है। झामुमो के सभी विधायकों को अपने विधानसभा क्षेत्र में भाजपा से अधिक से अधिक मतों से जोबा मांझी को लीड दिलाने का टास्क दिया गया है। यहां तक कहा जा रहा है कि जिस विधानसभा क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी से कम मत मिलेगा, उस विधायक को पुन: टिकट देने पर विचार नहीं किया जायेगा।
क्या है गीता कोड़ा की ताकत
गीता कोड़ा ‘हो’ जनजातीय समुदाय से आती हैं। उनके पति मधु कोड़ा राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उनका राजनीतिक सफर भी भाजपा से ही शुरू हुआ था और पार्टी से अलग होकर वह भले ही सत्ता शीर्ष तक पहुंचे, लेकिन कांग्रेस और अन्य दलों के साथ ने उनके राजनीतिक जीवन पर ऐसा ग्रहण लगा दिया कि वह आज भी इसके फेर में फंसे हैं। चाइबासा के जगन्नाथपुर विधानसभा क्षेत्र में कोड़ा परिवार की तूती बोलती है। इस दंपति के पास करीब सवा दो लाख वोटों की ऐसी ताकत है, जिसे कोई भी नजरअंदाज नहीं कर सकता है। 2014 में जब गीता कोड़ा जय भारत समानता पार्टी से सिंहभूम सीट से चुनाव मैदान में उतरी थीं, तो उन्हें करीब इतने ही वोट मिले थे। हालांकि वह भाजपा के लक्ष्मण गिलुवा से हार गयी थीं, लेकिन उनका वोट बैंक पूरी तरह उनके साथ बना रहा। 2019 में झामुमो और कांग्रेस का वोट इसमें जुड़ गया, तो गीता कोड़ा ने लक्ष्मण गिलुवा को पटखनी दे दी थी। गीता कोड़ा की यह ताकत अब भाजपा के पाले में चली गयी है, जबकि कांग्रेस-झामुमो की जोड़ी शून्य पर आ गयी है।
अब, जबकि वोटिंग में कुछ ही घंटे का वक्त बचा है, तो हर प्रत्याशी अपने हिसाब से तैयारी में जुटा है। दूसरी तरफ मतदाता ‘खेला’ और ‘चमत्कार’ के इंतजार में चुप्पी साधे हुए हैं।