नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने गुरुवार को कहा कि भारत ने हमेशा वैश्विक शांति, बंधुत्व और कल्याण में विश्वास किया है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र तब फलता-फूलता है जब अभिव्यक्ति और संवाद एक-दूसरे के पूरक होते हैं। यही लोकतंत्र को अन्य शासन प्रणालियों से अलग करता है। भारत में लोकतंत्र केवल संविधान के लागू होने या विदेशी शासन से स्वतंत्र होने के बाद शुरू नहीं हुआ। हम हज़ारों वर्षों से लोकतांत्रिक भावना के साथ जीते आ रहे हैं।

उपराष्ट्रपति ने नई दिल्ली में अपने आवास पर इंडिया फाउंडेशन के कौटिल्य फेलोज़ से संवाद करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने कौटिल्य के दर्शन को कर्म में उतारा है। कौटिल्य की विचारधारा शासन का एक ग्रंथ है, जो राज्य संचालन, सुरक्षा, और राजा की भूमिका जो अब निर्वाचित प्रतिनिधि होते हैं हर पहलू को समाहित करता है। उन्होंने कहा कि आज के बहुध्रुवीय विश्व में, जहां गठबंधन लगातार बदलते रहते हैं, कौटिल्य ने पहले ही यह कल्पना की थी। उन्होंने कौटिल्य को उद्धृत करते हुए कहा: ‘पड़ोसी राज्य शत्रु होता है और शत्रु का शत्रु मित्र होता है।’ कौन-सा देश इस बात को भारत से बेहतर जानता है? हम सदैव वैश्विक शांति, वैश्विक बंधुत्व और वैश्विक कल्याण में विश्वास रखते हैं।

शक्ति और शासन के मूलभूत सिद्धांतों पर उपराष्ट्रपति ने कहा कि शक्ति को उसकी सीमाओं से परिभाषित किया जाता है। लोकतंत्र तब ही पोषित होता है जब हम शक्ति की सीमाओं को समझते हैं। यदि आप कौटिल्य की दर्शन में गहराई से जाएं तो पाएंगे कि यह सब अंततः जनकल्याण पर केंद्रित होता है, यही सुशासन का अमृत है।

धनखड़ ने कहा, “कौटिल्य ने कहा, राजा की प्रसन्नता उसकी प्रजा की प्रसन्नता में है। यदि आप किसी भी लोकतांत्रिक देश का संविधान देखें, तो पाएंगे कि यही दर्शन लोकतांत्रिक शासन और मूल्यों की आत्मा है।”

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