विशेष
बड़े बेटे तेज प्रताप को नैतिकता के आधार पर बेदखल करना बहुतों को पच नहीं रहा
राजद सुप्रीमो को अब नैतिकता की याद आ रही, पहले तो कभी नहीं आयी, जब बिहार की रूह कांप जाती थी
तेज प्रताप को तो बेदखल कर दिया, ऐश्वर्या के घावों का प्रायश्चित कब करेंगे
राजनीति भी अजीब खेल है, किसी खास अपने के लिए अपनों की ही बलि देना पुरानी प्रथा है
वैसे बिहार में चुनाव है, भाजपा के पास ‘ब्रह्मोस’ है, तो लालू के पास नैतिकता वाली ‘मिसाइल’ तो नहीं

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
बिहार के प्रमुख राजनीतिक परिवार, यानी राजद सुप्रीमो लालू यादव का परिवार इस समय चारों तरफ चर्चा में है। यह चर्चा परिवार को मुखिया लालू यादव के एक फैसले के कारण हो रही है, जिसमें उन्होंने अपने बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को परिवार और पार्टी से निष्कासित कर दिया है, क्योंकि तेज प्रताप ने कथित तौर पर अनुष्का यादव नामक एक महिला से अपने रिश्ते की बात सार्वजनिक रूप से स्वीकार की थी, जबकि उनका अपनी पत्नी ऐश्वर्या राय से तलाक का मामला अदालत में लंबित है। लालू यादव ने ‘नैतिकता’ और ‘पारिवारिक मूल्यों’ की दुहाई देकर तेज प्रताप को परिवार से निष्कासित तो कर दिया है, लेकिन परिवार के अंदरूनी मामलों को सड़क पर लाकर उसका तमाशा बना दिया है। इतना ही नहीं, अब तो राजद सुप्रीमो से यह सवाल भी पूछा जा रहा है कि यह नैतिकता उस समय कहां थी, जब बिहार में सरेआम लूट-खसोट हो रही थी, महिलाओं की इज्जत लूटी जा रही थी और भ्रष्टाचार चरम पर था। कई लोग यह भी कह रहे हैं कि लालू यादव का परिवार चुनाव पास आने के चलते मिलकर ड्रामा रच रहा है। इन सवालों से ऊपर सबसे बड़ा सवाल यह है कि अपने परिवार की नैतिकता की खाई में उस ऐश्वर्या राय को क्यों धकेला गया, जिसे तेज प्रताप ब्याह कर लाये थे। क्या यही लालू परिवार की नैतिकता है। इन सवालों के जवाब भले ही तत्काल नहीं मिलें, लेकिन बिहार और देश भर के लोग इसे लेकर कभी चुप नहीं होंगे। बिहार में इसी साल विधानसभा का चुनाव है और चर्चा यह है कि लालू की नैतिकता इसलिए अभी जगी है, क्योंकि वह इसे भाजपा के ‘ब्रह्मोस’ के सामने ‘मिसाइल’ के रूप में इस्तेमाल करने का मन बनाये हुए हैं। क्या है लालू परिवार का पूरा मामला और कौन से सवाल उठ रहे हैं, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

शुक्र है कि यह सोशल मीडिया का दौर है। शुक्र है कि बिहार जंगल राज से काफी आगे निकल चुका है। वरना इंतजाम तो तेज प्रताप यादव की ‘लव स्टोरी’ को हैकिंग और एआइ के दावों में दफना देने की थी। आशंका अनुष्का के अभिषेक हो जाने की थी। पर नेटिजंस ने तेज प्रताप यादव और अनुष्का की तस्वीरों/वीडियो की बाढ़ लाकर लालू प्रसाद यादव और राजद को मजबूर कर दिया। सवाल यह नहीं है कि ये तस्वीरें/वीडियो लीक कैसे हुईं? किसने की? क्यों की? सवाल है कि सब कुछ जानते हुए भी ऐश्वर्या राय के जीवन को तमाशा क्यों बनाया गया? इसी सवाल को दबाने के लिए लालू यादव ने ‘नैतिकता’ और ‘पारिवारिक मूल्यों’ का बुर्का ओढ़कर तेज प्रताप यादव को परिवार और पार्टी से ‘बेदखल’ करने का ऐलान किया है। संभव है कि बिहार में विधानसभा चुनाव के पूर्ण होते ही इस बेदखली की समय सीमा भी समाप्त हो जाये, लेकिन लालू यादव का पाखंड इस बात से भी उजागर होता है कि जिस ‘नैतिकता’ और ‘पारिवारिक मूल्यों’ का हवाला देकर वे स्वजातीय अनुष्का यादव को ठुकरा रहे हैं, उन्हीं नैतिकता और पारिवारिक मूल्यों के साथ उन्होंने अपने छोटे बेटे तेजस्वी यादव की पत्नी के तौर पर इसाइ महिला रचेल गोडिन्हो को राजश्री बनाकर कबूल किया है। फिर अपनी ही स्वजातीय अनुष्का यादव को सार्वजनिक तौर पर बड़े बेटे की पत्नी के तौर पर स्वीकार करने में उनकी कौन सी ‘नैतिकता’, कौन से ‘पारिवारिक मूल्य’ आड़े आ गये? इस रिश्ते को स्वीकार करने से तो उनकी कथित ‘नैतिकता’ और ‘पारिवारिक मूल्य’ के साथ-साथ राजद की आधार जाति को भी मजबूती मिलती। यदि ऐसा न भी होता, तो सब जानते हैं कि राजनीतिक तौर पर तेज प्रताप यादव को न तो लालू यादव के उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जाता है और न ही उनका वैसा राजनीतिक प्रभाव है। उन्होंने कुछ मौकों पर पार्टी को हांकने की कोशिश की, इस कोशिश में जगदानंद से लेकर रघुवंश बाबू तक को रेल गये, फिर भी खुद को न पार्टी में और न जनता की नजर में एक नेता के तौर पर स्थापित कर पाये। आश्चर्यजनक तौर पर जब राजद के इन बुजुर्ग नेताओं को सार्वजनिक तौर पर तेज प्रताप यादव ने अपमानित किया, तब भी लालू यादव की ‘नैतिकता’ और ‘पारिवारिक मूल्यों’ को कोई खतरा नहीं दिखा।

तब कहां थी लालू की यह ‘नैतिकता’ और ‘पारिवारिक मूल्य’
लालू यादव की यह ‘नैतिकता’ और ‘पारिवारिक मूल्यों’ तब भी न जगे, जब चंदा बाबू के बेटों को तेजाब से नहला दिया गया। नहलाने वाले को वे संसद में भेजते रहे। तब भी न जगी, जब जंगल राज में फल-फूल रहे अपहरण उद्योग को खाद-पानी देने के लिए बिहार के लोगों के बच्चे उठाये गये। तब भी न जगी, जब एक शादी के लिए शोरूम से फर्नीचर से लेकर गाड़ी तक जबरन उठा लिये गये और कारोबारी बिहार को छोड़कर चले गये। तब भी न जगी, जब एक जाति को दूसरी जाति के खिलाफ खड़ा कर नरसंहार करवाये गये और सैकड़ों बच्चे अनाथ हो गये।

यह पारिवारिक राजनीति का हिस्सा तो नहीं
फिर अचानक से सजायाफ्ता लालू यादव के ‘नैतिकता’ और ‘पारिवारिक मूल्य’ एक प्रेम की स्वीकारोक्ति पर क्यों और कैसे जग उठी? इन्हीं सवालों का जब आप जवाब खोजते हैं, तो पता चलता है कि लालू यादव जिस ‘नैतिकता’ और ‘पारिवारिक मूल्य’ की बात कर रहे हैं, असल में वह खोट पर खड़ी है। तेजस्वी यादव से लेकर रोहिणी आचार्य तक पापा के जिन मूल्यों की दुहाई दे रहे हैं, वह पारिवारिक राजनीति में एक कांटा के साफ होने की खुशी से अधिक कुछ भी नहीं दिखती। सब जानते हैं कि बेटे ही नहीं, बल्कि बेटियों को भी राजनीति में सेट करने का लालू यादव पर भारी दबाव है। मीसा भारती के बाद अब रोहिणी आचार्य को विरासत में हिस्सा चाहिए। चंदा यादव, रागिनी यादव, हेमा यादव, अनुष्का राव और राजलक्ष्मी यादव भी अपना हिस्सा पाने के लिए लाइन में लगी हुई हैं। सबको सेट करने के लिए चाहिए सत्ता। बिहार की सत्ता। ऐसे में जिस तरह से तेज प्रताप यादव की लव स्टोरी सार्वजनिक हुई, जिस तरह यह तथ्य सामने आया कि वे 12 साल से अनुष्का यादव के साथ रिलेशन में हैं, उसने लालू परिवार के उस छल को भी चर्चा में ला दिया, जो उसने 12 मई 2018 को बिहार की ही अपनी एक स्वजातीय बेटी ऐश्वर्या राय के साथ किया था।

प्रेम करना गुनाह कैसे
न किसी से प्रेम करना गुनाह है, न पति-पत्नी के रिश्तों में कड़वाहट आने के बाद उनका अलग हो जाना असामान्य है। इसलिए 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद जब ऐश्वर्या राय को ससुराल से बेइज्जत कर निकाला गया, तब बिहार के लोग इसे लालू यादव का पारिवारिक मामला मान आगे बढ़ गये। लेकिन आज अनुष्का के साथ 12 साल पुराने रिश्ते की सच्चाई सामने आयी है, तो इसने बताया है कि असल में लालू यादव का ‘पारिवारिक मूल्य’ अपनी राजनीति के लिए किसी की भी बेटी की जिंदगी को तमाशा बना देना ही है।

आज राजनीति पर चोट पहुंचते देख उन्होंने तेज प्रताप यादव को बेदखल किया है, क्योंकि ‘माई-बहिन’ की बात कर बिहार की सत्ता में लौटने का ख्वाब पाल रही राजद और लालू परिवार को इस प्रकरण ने ‘माई-बहिन’ की नजरों में ही नंगा कर दिया है। लालू नहीं चाहते कि बिहार की ‘माई-बहिन’ इस चुनावी मौसम में ऐश्वर्या के न्याय की बात करें। पर लालू यादव और उनके कुनबे को पता होना चाहिए कि ये वो बिहार है, जिसकी ‘नैतिकता’ और ‘पारिवारिक मूल्य’ उनके तरह खोटे नहीं हैं। इन सवालों के बोझ तले दफन हो जाना ही अब उनकी नियति है।

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