विधानसभा चुनाव से पहले राज्य के कुछ हिस्सों में नक्सलियों की सक्रियता खतरनाक संकेत दे रही है। खासकर जंगल-पहाड़ी इलाकों में हार्डकोर नक्सलियों के दस्तों का जमावड़ा होने लगा है। निशाने पर सुरक्षा बलों के साथ उनके ठिकाने-कैंप, आने-जाने के रूट एवं अन्य जगह तक हैं। शुक्रवार की शाम भरी बाजार में सरायकेला इलाके में पांच पुलिसकर्मियों की खुलेआम हत्या उनकी अचानक सक्रियता को ही दर्शाती है। आशंका है कि विधानसभा चुनाव से पहले और चुनावी प्रक्रिया को बाधित करने के लिए नक्सली बड़ी वारदातों को अंजाम दे सकते हैं। खासकर अपने गढ़ में नक्सलियों का अगल-अलग दस्ता विभिन्न जगहों पर हमले या हिंसा की तैयारी में लगा है। इसकी आहट भी मिलने लगी है। 20 मई को सरायकेला खरसावां जिला में पुलिस और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ में तीन जवान घायल हो गये थे। दरअसल, 20 मई की सुबह करीब आठ बजे खरसावां थाना क्षेत्र के हुड़गड़ा गांव के समीप नक्सलियों ने सड़क पर विस्फोट कर दिया था। विस्फोट के तुरंत बाद नक्सलियों ने फायरिंग भी शुरू कर दी। इसमें पुलिस के तीन जवान घायल हो गये थे।
हाल के दिनों में दुमका, सरायकेला, चाईबासा, लातेहार, गुमला के जंगली इलाकों में नक्सलियों की मौजूदगी के ठोस सबूत मिले हैं। ऐसे हालात नक्सलियों के नापाक मंसूबों की ओर इशारा कर रहे हैं। झारखंड के सराइकेला में नक्सलियों ने 28 मई को बड़ी घटना को अंजाम दिया था। यहां कुचाई इलाके में 209 कोबरा बटालियन और झारखंड पुलिस की टुकड़ी पर नक्सलियों ने आइइडी धमाका किया। सुरक्षा बल और पुलिस का दस्ता स्पेशल आॅपरेशन पर था। इसी बीच आइइडी धमाका हुआ, जिसमें कोबरा बटालियन और झारखंड पुलिस के 15 जवान जख्मी हो गये। जिस इलाके में नक्सलियों ने धमाके कर पुलिस को निशाना बनाने की कोशिश की, वहां पर चुनाव समाप्ति के ठीक दूसरे दिन भी सुरक्षा बलों पर नक्सलियों ने हमला किया था। सराइकेला के कुचाई इलाके में पिछले चार महीने से कई बड़े नक्सली नेता कैंप कर रहे हैं। झारखंड पुलिस के खुफिया विभाग को जो सूचनाएं मिली हैं, उसके मुताबिक एक करोड़ का इनामी माओवादी और पोलित ब्यूरो सदस्य प्रशांत बोस भी फिलहाल सराइकेला में ही है। प्रशांत बोस के साथ 25 लाख का इनामी पतिराम मांझी उर्फ अनल, 15 लाख का इनामी जोनल कमांडर महाराज प्रमाणिक, 10 लाख का इनामी अमित मुंडा समेत 200 लोकल नक्सली सदस्य दस्ते के साथ सराइकेला-खरसावां में जमे हुए हैं। अभी गुरुवार की ही बात है गुमला के बिशुनपुर थाना के कटिया गांव में मुर्गा कारोबारी सह भाजपा कार्यकर्ता ब्रजेश साहू का नक्सलियों ने सरे बाजार से अपहरण कर लिया। अपहरण के बाद नक्सलियों ने ब्रजेश साहू की कटिया गांव में गोली मारकर हत्या कर दी है। मदन गोप के आत्मसमर्पण करने के बाद पहली बार नक्सलियों ने अपहरण एवं हत्या की घटना को अंजाम दिया है।
दरअसल, नक्सलियों को चुनाव में उगाही की आदत लगी हुई है। नक्सलियों के मुंह में खून लगा हुआ है और वह अपना भय दिखा कर हर चुनाव में प्रत्याशियों से मोटी रकम वसूलते रहे हंै। बड़ी कंपनियों के अधिकारियों से भी लेवी वसूली करते रहे हैं और यह सब पुलिस फाइल में भी अंकित है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि कुछ आपराधिक सिरफिरे भी नक्सलियों की आड़ में अपना सिक्का चला लेते हैं। गुमला में भाजपा नेता ब्रजेश साहू की अपहरण के बाद हत्या सिर्फ दहशत फैलाने के इरादे से ही नहीं की गयी, बल्कि नक्सली यह एहसास कराना भी चाह रहे हैं कि झारखंड से उनका सफाया नहीं हुआ है। पूर्व डीजीपी डीके पांडेय के उस घोषणा को भी नक्सली खोखला करना चाहते हैं, जिसमें उन्होंने कहा था कि झारखंड लगभग नक्सलमुक्त हो गया है। जिस तरह से गुमला बाजार से भाजपा नेता का अगवा कर हत्या कर दी जाती है, वह कई सवाल खड़ा करती है। झारखंड सरकार ने राज्य में सभी जगहों पर मोबाइल पुलिसिंग की व्यवस्था की है। सवाल यह है कि आखिर बीच बाजार से अपहरण होने के बाद पुलिस क्या कर रही थी।
हाल के दिनों में देखा जाये तो कोई बड़ा नक्सली ना तो पकड़ा गया है और न ही समर्पण किया है। यह सच है कि झारखंड में नक्सली घटनाओं में कमी आयी है। सरकार को नक्सलियों पर अंकुश लगाने में सफलता मिली है। पुलिस का घेरा मजबूत हुआ है। पुलिस को सरकार की तरफ से खुला हाथ मिला हुआ है। दूसरे पक्ष को देखते हैं तो नक्सली समर्पण तो कर रहे हैं लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या वे बिना हथियार के ही वारदात को अंजाम देते थे।
जिन्होंने भी समर्पण किया, अपने साथ टूटहा हथियार लेकर ही आये। आप कुंदन पाहन को ही ले लीजिए। पंद्रह सालों तक वह आम लोगों ही नहीं, पुलिस के लिए भी आतंक बना हुआ था। जंगलों में उसका शासन चलता था। उसने समर्पण किया। पुलिस ने उसके मोटी रकम दी। सुविधाएं दीं, लेकिन हथियार के नाम पर उसने पुलिस को क्या सौंपे! उसने तो पुलिस को वे हथियार ही दिये, जिसे लेकर रोड छाप गुंडा भी चलना नहीं चाहते। दूसरी तरफ आंकड़े को देखा जाये तो अलग राज्य बनने के बाद झारखंड में हर नक्सली हमले में पुलिस के ही कितने हथियार लूटे गये।
दूसरी बात यह है कि नक्सली नेता ने तो समर्पण कर दिया, लेकिन उनका गैंग जिंदा है। कुंदन पाहन ने समर्पण तो किया, लेकिन उसने महाराज प्रमाणिक को जंगल में ही खुला छोड़ दिया। हथियार उसे ही सौंप दिये। वह वही प्रमाणिक पुलिस के लिए सिरदर्द बना हुआ है। झारखंड पुलिस ने गैंग को समाप्त नहीं किया। सूत्रों से मिली जानकारी के कई अनुसार आत्मसमर्पण कर जेल में बंद नक्सली जेल से ही जंगल में अपना साम्राज्य चला रहे हैं। जब वे नक्सली जंगल में थे, तो उन्होंने गांवों में कुछ मुखबिर पाल रखे थे।
अब वही मुखबिर पुलिस की मदद के नाम पर पैसे ले रहे हैं और सूचनाएं नक्सलियों को दे रहे हैं। यह भी जांच का विषय है। पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार 18 साल में 5,688 नक्सली हमले और घटनाओं में अब तक 510 पुलिसकर्मी शहीद हुए हैं, वहीं पुलिसिया कार्रवाई में 846 नक्सली मारे गये हैं। सरकार की आत्मसमर्पण नीति से प्रभावित होकर दर्जनों नक्सलियों ने सरेंडर भी किया है। लगातार आॅपरेशन चल रहे हैं। मगर 19 मई को आखिरी चरण के मतदान के बात से ही नन्क्सलियों ने अपने मंसूबे को उजागर कर दिया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि विधानसभा चुनाव से पहले झारखंड की पुलिस किस तरह नक्सलियों पर नकेल कसती है। जाहिर है, जब तक नक्सलियों के आर्थिक स्रोत पर चोट नहीं होगी। उन्हें पैसे देनेवालों की जब तक शिनाख्त नहीं होगी, उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं होगी, तब तक उनके आतंक का खात्मा नहीं हो सकता।
विस चुनाव में प्रत्याशियों से लेवी वसूली को सक्रिय हुए नक्सली
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