कोरोना के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए 25 मार्च को लागू किया गया देशव्यापी लॉकडाउन अगले सप्ताह खत्म होना शुरू हो जायेगा। वाहनों की आवाजाही तो खैर कल से ही शुरू हो जायेगी। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल जो पैदा होता है, वह यह है कि क्या इस सवा दो महीने के लॉकडाउन से भारत में इस खतरनाक संक्रमण के फैलने पर रोक लग सकी। क्या लॉकडाउन अपने उद्देश्यों में कामयाब रहा। इसकी विवेचना तो खैर होती रहेगी, लेकिन एक बात तय है कि लॉकडाउन खत्म होने के साथ ही चुनौतियों का अंबार खड़ा होगा। सरकार ने लॉकडाउन खत्म करने के साथ ही साफ कर दिया है कि अब आम लोगों को अपनी सुरक्षा के लिए सरकार के तंत्र पर नहीं, बल्कि खुद पर भरोसा करना होगा। कोरोना संकट ने आम लोगों के जीवन में बहुत से बदलाव लाये हैं और अब रोजमर्रा की जिंदगी में इन बदलावों को स्वीकार करना होगा। सोशल डिस्टेंसिंग और क्वारेंटाइन जैसी शब्दावलियों को लोगों को अपने जीवन में पूरी तरह लागू करना होगा। लॉकडाउन के बाद का जीवन कैसा होगा, रोजमर्रा की जिंदगी कैसी होगी और लोगों को अपनी दिनचर्या-आदतों में क्या बदलाव लाने होंगे, यह एक बड़ा विचारणीय मुद्दा है। कोरोना से बचते हुए खुद को, समाज को और राज्य-देश को कैसे स्वस्थ-समृद्ध रखा जा सकता है, इसका विश्लेषण करती आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

पिछली शताब्दी के पहले दशक के अंत में जब दुनिया को स्पेनिश फ्लू नामक महामारी ने अपनी चपेट में लिया था और करीब 10 करोड़ लोगों को अपना शिकार बनाया था, तब यह सवाल नहीं उठा था कि इस महामारी के बाद का जीवन कैसा होगा। लेकिन 110 साल बाद आज जब पूरी दुनिया कोरोना वायरस के कारण कराह रही है, इस सवाल की चर्चा हर तरफ है। कोरोना के इस संकट ने मानव जाति को, खास कर भारत जैसे विकासशील देशों को जीवन के कई नये पहलुओं से परिचित कराया है। करीब सवा दो महीने तक लॉकडाउन के दौरान लोगों ने जीवन की नयी परिभाषाएं तलाश की हैं, गढ़ी हैं। अब, जबकि लॉकडाउन को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने का एलान हो चुका है और अगले एक सप्ताह में सामान्य जनजीवन पुराने ढर्रे पर लौटने लगेगा, झारखंड जैसे राज्यों में एक साथ कई चुनौतियां पैदा होंगी।
लॉकडाउन खत्म करने के एलान के साथ ही यह संदेश भी मिल गया है कि भारत के लोगों को अपनी सुरक्षा के लिए और अपने स्वास्थ्य के लिए खुद जिम्मेदार होना पड़ेगा। झारखंड जैसे राज्यों में, जहां की स्वास्थ्य सेवाओं का बड़ा हिस्सा निजी हाथों में है, यह बड़ी चुनौती होगी। लोगों को सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं से अधिक उम्मीद अब नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इसने पिछले सवा दो महीने में जितना काम किया है, उससे अधिक की कल्पना भी नहीं की जा सकती। तमाम अवरोधों और कमियों के बावजूद कोरोना से होनेवाली मौतों को रोक कर झारखंड के डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों ने साबित कर दिया है कि सीमित संसाधनों के बावजूद किसी भी संकट से पार पाया जा सकता है। सरकार ने भी इस लड़ाई का नेतृत्व पूरी क्षमता और ताकत से किया। लेकिन अब स्थिति विकट होनेवाली है। कोरोना संकट और लॉकडाउन ने लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग, आइसोलेशन और क्वारेंटाइन जैसे शब्दों से परिचित कराया है, तो लॉकडाउन के बाद के दौर में इन शब्दों की जरूरत अधिक होगी, इस बात को समझना जरूरी है। मास्क, फेस शील्ड और सेनेटाइजर जैसे उपकरण अब हमारे जीवन में वही स्थान लेंगे, जो मोबाइल-पर्स और रूमाल का है।
लोगों को यह भी समझ लेना चाहिए कि लॉकडाउन खत्म होने का यह मतलब कतई नहीं है कि कोरोना का संकट टल गया है। जब तक इस खतरनाक संक्रमण का कोई प्रभावी इलाज ढूंढ़ नहीं लिया जाता, तब तक लोगों को इसके खतरों के साथ जीने की आदत डालनी होगी। समाज के हर वर्ग को अपनी सुरक्षा के उपाय तलाशने होंगे। यह काम जितनी जल्दी हो जाये, उतना ही अच्छा होगा। इसके साथ ही झारखंड के सामने जो चुनौतियां आनेवाली हैं, उन पर भी विचार किया जाना जरूरी है। झारखंड दो दशक के अपने जीवन के शायद सबसे भयावह दौर से गुजर रहा है। सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद राज्य की माली हालत में सुधार नहीं हो रहा है, क्योंकि पहले की फिजूलखर्ची और वित्तीय कुप्रबंधन ने इसे पूरी तरह कंगाली के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। इस स्थिति में लोगों के लिए बेहतर विकल्प यही होगा कि वे सब कुछ सरकार के भरोसे न छोड़ दें और अपने प्रयासों से ही खुद को अपने पैरों पर खड़ा करने की कोशिश करें। बहुत पुरानी कहावत है कि पांच अंगुलियां जब मुट्ठी बन जाती हैं, तो उसकी ताकत कई गुना बढ़ जाती है। झारखंड के लोगों को अब एकजुट होकर न केवल कोरोना से लड़ना है, बल्कि राज्य को आगे ले जाने के लिए हरसंभव कोशिश करनी है।
लॉकडाउन खत्म होने के बाद लोगों के रोजमर्रा के जीवन में कई बदलाव आयेंगे। इन बदलावों का अनुभव लॉकडाउन के दौरान लोग कर चुके हैं और जब सब कुछ खुल जायेगा, तब भी इन बदलावों के साथ जीने की आदत डालनी होगी। लोगों को यह समझना होगा कि सरकार पर जितना कम दबाव होगा, झारखंड के सुनहरे भविष्य के लिए उतना ही अच्छा होगा। कानून-व्यवस्था से लेकर स्वास्थ्य और कल्याण से लेकर जन सुविधाओं तक, अब हर क्षेत्र में लोगों को अपनी जगह खुद बनानी होगी। इस मायने में कोरोना ने लोगों को आत्मनिर्भर बनने का एक सुनहरा अवसर प्रदान किया है, जिसका लाभ उठाने की जरूरत है। समाज के हर वर्ग को अपने अधिकार की जगह कर्तव्य को तरजीह देनी होगी, तभी न केवल लोग, बल्कि झारखंड सुरक्षित भी रह सकेगा और समृद्ध भी बन सकेगा।
कोरोना के खिलाफ जंग अभी खत्म नहीं हुई है और इसमें निर्णायक जीत हासिल करने के लिए झारखंड के लोगों को नये तौर-तरीकों में खुद को ढालना ही होगा। यदि हम ऐसा करने में कामयाब हो गये, तो यकीन मानिये, कोरोना या उससे भी बड़ी कोई आपदा हमारे इस खूबसूरत प्रदेश का बाल भी बांका नहीं कर सकेगी। इसलिए सतर्क हो जाइये, लॉकडाउन खत्म होने के साथ ही चुनौतियां अनलॉक होंगी और झारखंड को उन चुनौतियों से पार पाना है।

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