झारखंड में 19 जून को होनेवाले राज्यसभा चुनाव की तैयारियों के साथ ही अब दुमका और बेरमो सीट के उपचुनाव की सुगबुगाहट भी तेज होने लगी है। दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव के बाद इन दोनों सीटों पर होनेवाला उपचुनाव कितना कांटे का होगा, इस बात का एहसास इसी से हो जाता है कि सत्तारूढ़ झामुमो और कांग्रेस जहां इन दोनों सीटों पर अपना कब्जा बरकरार रखने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेगी, वहीं भाजपा विधानसभा चुनाव में हुई करारी पराजय की पीड़ा को भुलाने की हरसंभव कोशिश करेगी। इसके अलावा इन दोनों सीटों पर होनेवाला उपचुनाव राज्य सरकार के कामकाज का छोटा टेस्ट भी होगा। इसलिए दोनों पक्ष इसमें पूरी ताकत झोंकेंगे। दुमका झामुमो की परंपरागत सीट मानी जाती है, लेकिन 2014 में भाजपा ने इस पर कब्जा जमाया था, हालांकि 2019 में यहां से हेमंत सोरेन को जीत मिली थी। उधर कोयला क्षेत्र की प्रमुख सीट बेरमो में राजेंद्र प्रसाद सिंह का दबदबा जगजाहिर था। हालांकि बीच में भाजपा ने यहां से जीत हासिल की थी। इन दोनों सीटों पर चुनाव की तारीख की घोषणा हालांकि अभी नहीं हुई है, लेकिन इसके लिए सियासी दांव-पेंच और उम्मीदवारों के नामों की चर्चा जोर पकड़ने लगी है। राजनीतिक दलों के भीतर इन दोनों सीटों पर होनेवाले चुनाव की बाबत विचार-विमर्श का सिलसिला भी शुरू हो गया है। क्या है इन दोनों सीटों के लिए होनेवाले चुनाव का परिदृश्य और कौन हैं संभावित योद्धा, इस पर पेश है आजाद सिपाही ब्यूरो का विशेष विश्लेषण।
वैसे तो संसदीय लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में हर चुनाव बेहद महत्वपूर्ण होता है, लेकिन झारखंड में इसका अलग ही महत्व होता है। दो दशक के राजनीतिक इतिहास में झारखंड में अब तक जितने भी चुनाव हुए हैं, उनमें बेहद दिलचस्प मुकाबला हुआ है। इसके अलावा राज्य में अब तक हुए उप चुनाव तो और भी रोमांचक हुए हैं। जिन सीटों पर निर्वाचित विधायकों के निधन के कारण उप चुनाव हुए, उनमें से एक को छोड़ बाकी सभी सीटों पर दिवंगत विधायकों के राजनीतिक उत्तराधिकारी की जीत हुई, लेकिन दूसरे कारणों से रिक्त होनेवाली सीटों पर हुए उपचुनावों में प्रतिद्वंद्वियों ने कब्जा जमाया है। गोमिया और सिल्ली इसमें अपवाद रहा है, क्योंकि यहां अदालत से सजायाफ्ता होने के बाद जिन विधायकों की सदस्यता गयी, उनकी पत्नियों ने उपचुनाव में जीत हासिल की। संयोग से ये दोनों झामुमो से ही थीं। इस रोचक रिकॉर्ड की पृष्ठभूमि में दुमका और बेरमो में होनेवाला उपचुनाव बेहद दिलचस्प होने की पूरी संभावना है।
दुमका सीट जहां हेमंत सोरेन के इस्तीफा देने के कारण खाली हुई है, वहीं राजेंद्र प्रसाद सिंह के निधन के कारण बेरमो सीट पर उपचुनाव होना है। बता दें कि बीमारी के बाद बेरमो के विधायक राजेंद्र सिंह का 24 मई को निधन हो गया था।
झारखंड की स्थापना के बाद से यहां अब तक जितने भी उपचुनाव हुए हैं, उनका परिणाम चौंकानेवाला रहा है। यहां उपचुनाव में मुख्यमंत्री की हार भी हुई है और प्रतिद्वंद्वियों की जीत भी। तमाड़ उपचुनाव में जहां तत्कालीन मुख्यमंत्री उपचुनाव हार गये थे, वहीं लोहरदगा और कोलेबिरा में प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवारों ने जीत का परचम लहराया था। हालांकि बरकट्ठा और गोड्डा में दिवंगत विधायकों के राजनीतिक उत्तराधिकारियों ने ही जीत हासिल की।
दुमका सीट पर दिसंबर में हुए चुनाव में हेमंत सोरेन ने भाजपा की लुइस मरांडी को 13 हजार से अधिक वोटों के अंतर से हराया था। हेमंत को 81 हजार से कुछ अधिक, जबकि लुइस मरांडी को 68 हजार से कुछ कम मत मिले थे। हेमंत ने बरहेट सीट से भी चुनाव जीता था। इसलिए उन्होंने बाद में दुमका सीट छोड़ दी। बेरमो सीट से कांग्रेस के दिग्गज राजेंद्र प्रसाद सिंह ने भाजपा के योगेश्वर महतो बाटुल 25 हजार से अधिक वोटों के अंतर से हराया था। राजेंद्र सिंह को 89 हजार से कुछ कम वोट मिले थे, जबकि बाटुल को 63 हजार से कुछ अधिक। राजेंद्र सिंह के निधन के कारण यह सीट खाली हुई है। 2014 के चुनाव में ये दोनों सीटें भाजपा के कब्जे में गयी थीं।
जहां तक दुमका सीट का सवाल है, तो इसे झामुमो के गढ़ के रूप में जाना जाता है। हालांकि लोकसभा चुनाव में इस पर भाजपा ने कब्जा जमाया था। जब हेमंत ने यह सीट छोड़ी थी, तभी से इस सीट के संभावित उम्मीदवारों के बारे में अटकलें लगायी जाने लगी थीं।
अब यह बात लगभग पक्की हो गयी है कि इस सीट से झारखंड के पहले राजनीतिक परिवार, यानी शिबू सोरेन के परिवार का कोई सदस्य ही चुनाव लड़ेगा। इस परिवार के मुखिया शिबू सोरेन का राज्यसभा में जाना तय है, इसलिए केवल तीन और लोग बचते हैं। इनमें शिबू सोरेन की पत्नी रूपी सोरेन, हेमंत के छोटे भाई बसंत सोरेन और हेमंत की पत्नी कल्पना सोरेन शामिल हैं। झामुमो के लोग चाहते हैं कि बसंत सोरेन को दुमका से उम्मीदवार बनाया जाये। इस बारे में हालांकि अभी तक कोई फैसला नहीं हुआ है, लेकिन चर्चा है कि पार्टी के लोगों का विचार ही प्रत्याशी तय करेगा। वहां भाजपा की ओर से लुइस मरांडी को एक बार फिर उतारे जाने की संभावना है। चुनाव हारने के बाद से वह लगातार इलाके में सक्रिय हैं।
बेरमो से राजेंद्र सिंह के राजनीतिक उत्तराधिकारी कुमार जयमंगल सिंह उर्फ अनूप सिंह को कांग्रेस का प्रत्याशी बनाया जाना लगभग तय है। वह अपने पिता के जीवनकाल में ही इंटक के साथ-साथ कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय हो गये और इलाके में उनकी अलग छवि भी है। हालांकि उनके छोटे भाई कुमार गौरव भी युवा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हैं , लेकिन इस बात की संभावना कम ही है कि वह अपने बड़े भाई की उम्मीदवारी को स्वीकार नहीं करेंगे। कांग्रेस यदि अनुप सिंह को उम्मीदवार बनाती है, तो भाजपा को बाटुल जैसे बुजुर्ग उम्मीदवार से बहुत अधिक लाभ मिलेगा, इसकी संभावना कम है। हालांकि बेरमो से गिरिडीह के पूर्व सांसद रवींद्र पांडेय भी भाजपा के टिकट के सशक्त उम्मीदवार हो सकते हैं, क्योंकि उनका कार्यक्षेत्र भी बेरमो ही रहा है। लेकिन विधानसभा में चूंकि गिरिडीह जिले से उनके पुत्र भाजपा के उम्मीदवार थे, ऐसे में रवींद्र पांडेय को टिकट मिलना संभव नहीं दिखता।
इस तरह इन दोनों सीटों पर होनेवाले उपचुनाव का बेहद रोमांचक होना तय है। झामुमो और कांग्रेस के साथ भाजपा के इस चुनावी झकझूमर का अंतिम परिणाम क्या होगा, यह तो अभी नहीं कहा जा सकता है, लेकिन इतना तय है कि किसी के लिए भी ये दोनों सीटें जीत पाना आसान नहीं होगा।