राजनीति की रपटीली राहों पर महिलाओं के लिए कदमताल करना हमेशा से मुश्किल भरा रहा है। हालांकि आजादी से पहले और बाद में भारतीय उपमहाद्वीप में महिलाओं ने सियासत के मैदान पर जौहर भी खूब दिखाये हैं। तमाम दुश्वारियों के बाद भी महिला नेत्रियों की नयी पौध न सिर्फ राजनीति में आ रही है, बल्कि अपने कार्यों की छाप भी छोड़ रही है। वह चाहे झामुमो महासचिव और जामा विधायक सीता सोरेन हों या बड़कागांव की जुझारू विधायक अंबा प्रसाद। भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा की राष्ट्रीय मंत्री मिस्फीका हसन हों या कोडरमा की जिला परिषद अध्यक्ष शालिनी गुप्ता या फिर बोकारो की समाजसेवी प्रगति शंकर। झरिया की विधायक पूर्णिमा नीरज सिंह हों या महागामा की दीपिका पांडेय सिंह, रामगढ़ विधायक ममता देवी हों या फिर भाजपा महिला मोरचा की अध्यक्ष आरती कुजूर या बिना पद के संघर्ष कर रहीं तमाम महिलाएं। इन सबने झारखंड में अपने जुनून से सेवा और समर्पण की राजनीति का एक नया मुहावरा गढ़ा है। अपनी काबिलियत के दम पर अपनी पहचान को विस्तारित फलक देनेवाली महिला नेत्रियों के कार्यों पर नजर डालती आजाद सिपाही के मुख्य संवाददाता दयानंद राय की रिपोर्ट।

झारखंड की पांचवीं विधानसभा के दूसरे बजट सत्र के सातवें दिन आठ मार्च को विधानसभा के गलियारों में दो बातें सबकी जुबान पर थीं। इनमें से एक थी जामा विधायक सीता सोरेन का 37 मिनट तक स्पीकर की जिम्मेवारी निभाना और दूसरा बड़कागांव विधायक अंबा प्रसाद का घोड़े पर सवार होकर विधानसभा पहुंचना। स्पीकर के रूप में जिस तरह से सीता सोरेन ने विधानसभा की कार्यवाही का संचालन किया, उसकी सबने सराहना की और अंबा प्रसाद तो बड़कागांव में जैसे संघर्ष की राजनीति का दूसरा नाम ही हो चुकी हैं। चाहे वह विस्थापितों का मुद्दा हो या जनता के हक की बात, अंबा सदा जनता के हक के लिए खड़ी रहती हैं। यही वजह है कि अंबा प्रसाद के सोशल मीडिया पर फॉलोअर्स लगातार बढ़ रहे हैं। वहीं जिस तरह से सीता सोरेन ट्विटर पर जनता की मदद के लिए लगातार मुखर रही हैं, उसने उनकी लोकप्रियता में जबर्दस्त इजाफा किया है। 13 मई को उनके ट्विटर पर 50 हजार फॉलोअर्स पूरे हुए और यह संख्या लगातार बढ़ रही है।

राष्ट्रीय फलक पर मिस्फीका
अब बात करते हैं मिस्फीका की। पूर्व की भाजपा की प्रदेश कमिटी में प्रदेश प्रवक्ता की जिम्मेवारी निभानेवाली मिस्फीका हसन ने बहुत कम समय में जिस तरह राष्ट्रीय राजनीति के फलक पर अपनी पहचान बनायी, उसने सबको हैरत में डाल दिया है। पाकुड़ की इलमी पंचायत की मुखिया मिस्फीका की नेतृत्व क्षमता को देखते हुए पार्टी ने उन्हें अल्पसंख्यक मोर्चा का राष्ट्रीय मंत्री बनाया है। अपनी नयी जिम्मेवारी की बाबत मिस्फीका ने कहा कि पार्टी ने मुझ जैसे छोटे से कार्यकर्ता को बड़ी जिम्मेवारी सौंपी है। अब मैं राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक समाज के कल्याण, सामाजिक कुरीतियों को दूर करने और दूसरे मसलों पर काम करने में अपना दमखम लगाऊंगी। राजनीति में अपनी काबिलियत दिखानेवाली मिस्फीका मेधावी छात्रा भी हैं। वह पढ़ाई के सिलसिले में दिल्ली में रही हैं। जामिया मिलिया से उन्होंने 2013 में बायोटेक में मास्टर डिग्री कोर्स किया। इसके बाद एम्स से जुड़कर कैंसर पर शोध कार्य शुरू किया था। वर्तमान में वह यूनिवर्सिडाड एजटेका यूनिवर्सिटी, मेक्सिको से मेडिकल बायोटेक्नोलॉजी में डॉक्टरेट कर रही हैं।

हक दिलाने के लिए जुटी हुई हैं शालिनी गुप्ता
पंचायत समिति से अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत करनेवाली कोडरमा जिला परिषद की अध्यक्ष शालिनी गुप्ता जनता को हक दिलाने के लिए लगातार काम कर रही हैं। 2019 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा छोड़कर आजसू पार्टी में आनेवाली शालिनी गुप्ता को उनकी दक्षता देखते हुए पार्टी में केंद्रीय संगठन सचिव की जिम्मेवारी दी गयी है। क्षेत्र की जनता की समस्याएं दूर करने के लिए शालिनी गुप्ता लगातार जुटी रहती हैं और यही उनकी लोकप्रियता का कारण भी है। चाहे वह झुमरी तालाब का अस्तित्व बचाने की लड़ाई हो या फिर जिले के ब्लैक फंगस के मरीज को आर्थिक सहायता देने की बात, शालिनी गुप्ता हर मोर्चे पर जनता के साथ खड़ी नजर आती हैं। कोरोना संक्रमण काल में भी उनकी सक्रियता की जनता ने सराहना की।

महिलाओं को सबल बना रही प्रगति शंकर
बोकारो की गरीब महिलाओें के लिए समाजसेवी प्रगति शंकर उम्मीद की किरण बनकर सामने आयीं हैं। वे गरीब महिलाओं को आर्थिक रूप से सबल बनाने में जुटी हुई हैं। अपना घर-परिवार संभालते हुए वे जीवन में कैसे आगे बढ़ें, इसके लिए उन्हें प्रेरित करने में लगी रहती हैं। उनके प्रयास से बोकारो और चास के ग्रामीण तथा स्लम एरिया में रहनेवाली गरीब महिलाएं स्वावलंबन की डगर पर बढ़ चली हैं। चीरा चास निवासी प्रगति शंकर छह साल से गरीबी के बीच जीवन गुजार रही महिलाओं के उत्थान में लगी हैं। इन्होंने महतो टोला, तुरी मोहल्ला, ऊपर टोला, मांझी मोहल्ला के अलावा आसपास के ग्रामीण क्षेत्र की गरीब महिलाओं का समूह बनाया। इसमें एक सौ महिलाएं हैं। इनको ठोंगा, मूढ़ी और सैनिटरी नैपकिन बनाने का प्रशिक्षण दिलाया। ये अब हर माह कच्चे माल के लिए रुपये इकट्ठे करती हैं। प्रगति शंकर भी इनका सहयोग करती हैं। चास के अलावा कोलकाता के बाजार से कच्चा माल खरीदा जाता है। इससे ये ठोंगा, मूढ़ी और सैनिटरी नैपकिन बनाती हैं। इनके उत्पाद की बिक्री के लिए आॅनलाइन और आॅफलाइन बाजार की व्यवस्था प्रगति ने की है। बाई बोकारो-बाय बोकारो ह्वाट्सएप समूह के माध्यम से उत्पाद की आॅनलाइन बिक्री भी की जाती है। चास के बाजार में भी ये उत्पाद खूब बिकते हैं। इसके अलावा महतो टोला में गरीब महिलाओं को गेहूं की पिसाई के लिए जांता भी उपलब्ध कराया है। पिसे आटे की भी आॅनलाइन और आॅफलाइन बिक्री की जाती है। इस काम से समूह की हर महिला को चार से पांच हजार रुपये महीने की आय होती है।

सिंह मेंशन के तिलिस्म को तोड़ा पूर्णिमा ने
झरिया की विधायक पूर्णिमा नीरज सिंह ने विधानसभा में चुने जाने के बाद जिस तेजी से देश की कोयला राजधानी में अपना जौहर दिखाया है, उससे सभी अचंभित हैं। उन्होंने अपने कार्यों की बदौलत न केवल कोयला मजदूरों के चेहरे पर मुस्कान लायी है, बल्कि धनबाद की सियासत में सिंह मेंशन के तिलिस्म को भी तोड़ा है।

रामगढ़ की जाइंट किलर हैं ममता देवी
रामगढ़ की विधायक ममता देवी को सियासत में जाइंट किलर के रूप में जाना जाता है। उन्होंने चुनाव से पहले और बाद में भी इलाके के लिए कई उल्लेखनीय काम किये हैं। लॉकडाउन के दौरान उनके काम से रामगढ़ की सियासत में नयी ऊर्जा पैदा हुई है।

झारखंड की राजनीति में एक उभरता हुआ नाम है आरती कुजूर का। भाजपा महिला मोरचा की अध्यक्ष आरती कुजूर आंदोलन के लिए जानी जाती हैं। कोरोना काल में उन्होंने अपनी पूरी टीम के साथ जिस तरह गरीब-गुरुबों और जरूरतमंदों की मदद की है, वह काबिलेतारीफ है। अपने नेतृत्व में उन्होंने महिला मोरचा में नयी जान फूंक दी है। अपने सेवा कार्य से महिला मोरचा तमाम संगठनों से आगे निकल चुकी है।

कांग्रेस विधायक दीपिका पांडेय सिंह ने तो बहुत ही अल्प समय में राष्ट्रीय राजनीति में जगह बना ली है। अभी-अभी उन्हें कांग्रेस की राष्ट्रीय कमेटी में सचिव की जिम्मेदारी सौंपी गयी है। उन्हें राजनीति में उनके आक्रामक रुख के कारण जाना जाता है। जनहित के मामलों में वह पुलिस-प्रशासन के खिलाफ आवाज उठाने से भी नहीं हिचकतीं। इन महिला नेत्रियों ने अपने संघर्ष और काम की बदौलत अपनी पहचान बनायी है। जरूरत इन्हें समुचित अवसर प्रदान करने की है, ताकि इनका फलक विस्तारित हो सके।

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