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    Home»स्पेशल रिपोर्ट»मणिपुर की हिंसा का काला सच, जिस पर सब मौन हैं
    स्पेशल रिपोर्ट

    मणिपुर की हिंसा का काला सच, जिस पर सब मौन हैं

    adminBy adminJune 26, 2023Updated:June 27, 2023No Comments9 Mins Read
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    -जाति-धर्म के साथ नशीले पदार्थों के सौदागरों ने हिंसा भड़कायी है इस राज्य में
    -राज्य सरकार को बदनाम करने के लिए सोच-समझ कर रची गयी है साजिश
    -अभी नहीं चेते, तो खतरे में पड़ जायेगी इस देश की एकता और अखंडता

    पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर हिंसा की आग में जल रहा है। 3 मई से शुरू हुई जातीय हिंसा में एक सौ से अधिक लोग मारे जा चुके हैं, आगजनी की डेढ़ हजार से अधिक घटनाएं हुई हैं और लाखों लोग पलायन कर चुके हैं। सेना और सुरक्षा बल लगातार इस स्थिति पर काबू पाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उनके हथियार लूट लिये जा रहे हैं और उनकी गिरफ्त से आरोपियों को छुड़ा लिया जा रहा है। पूर्वोत्तर के इस खूबसूरत राज्य में आखिर इतनी अशांति क्यों फैल गयी है कि लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गये हैं। कुछ ही महीने पहले चुनी गयी अपनी सरकार के खिलाफ वे बगावत पर उतारू हैं। सबसे गंभीर बात यह है कि देश के बाकी हिस्सों में मणिपुर की चर्चा तक नहीं हो रही है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा बुलायी गयी सर्वदलीय बैठक में किसी भी राजनीतिक दल ने इस हिंसा के पीछे के कारणों के बारे में कुछ नहीं कहा। मुख्यधारा की मीडिया तक में इस पर कोई चर्चा नहीं हो रही है, क्योंकि इससे एक बड़ी साजिश का खुलासा हो सकता है। दरअसल, मणिपुर की इस हिंसा के पीछे राज्य में लगातार बढ़ रही धार्मिक असहिष्णुता और जातीय मतभेदों के साथ नशीली दवाओं के सौदागरों के नेटवर्क का हाथ है, जो राज्य की भाजपा सरकार द्वारा चलाये जा रहे अभियान को हर कीमत पर विफल करने की कोशिश में जुटा हुआ है। राज्य के कुकी और मैतेई समुदाय के बीच शुरू हुई हिंसा ने अब अराजकता का रूप ले लिया है। इस पर तत्काल नियंत्रण पाना जरूरी है, क्योंकि स्थिति अब हाथ से बाहर निकलती जा रही है। मणिपुर की हिंसा का असर देश के दूसरे हिस्सों में भी पड़ सकता है और इससे देश की एकता और अखंडता को खतरा पैदा हो सकता है। मणिपुर हिंसा से जुड़े तमाम पहलुओं को उजागर कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
    मणिपुर पिछले करीब एक महीने की हिंसा के बाद पटरी पर लौटने की कोशिश कर रहा है। स्थिति अब भी पूरी तरह सामान्य नहीं है, लेकिन मणिपुर के बाहर के लोगों के लिए इस हिंसा की वजहों को समझना भी आसान नहीं है। देश के पूर्वोत्तर भाग में स्थित करीब 50 लाख की आबादी वाला यह राज्य इतना अशांत क्यों है, इसका कारण समझने के लिए इतना ही जानना काफी है कि इस अशांति की वजह इस इलाके में चल रहे धर्मांतरण के खेल और नशीली दवाओं के नेटवर्क के खिलाफ हाल के दिनों में शुरू किये गये अभियान हैं।
    मणिपुर में इसी साल की शुरूआत में विधानसभा के चुनाव हुए और एन बीरेन सिंह के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी। इस सरकार ने राज्य में धर्मांतरण करा रहे धार्मिक संगठनों और नशीली दवाओं के कारोबार से जुड़े नेटवर्क पर करारा प्रहार करना शुरू किया। उसके बाद मई की शुरूआत से मणिपुर में जातीय संघर्ष शुरू हो गया। प्रत्यक्ष तौर पर मई के पहले सप्ताह में मैतेइ समुदाय को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने पर विचार करने के कदम के विरोध में जनजातीय कुकी समुदाय की एक रैली के बाद हिंसा फैली। 3 मई की यह रैली मणिपुर के सभी पहाड़ी जिलों में निकाली गयी थी। इसके बाद सुनियोजित ढंग से मणिपुर के व्यापक क्षेत्रों में हिंसा फैलती गयी। हिंसा प्रभावित मुख्य इलाके तोरबंग बांग्ला, चुराचांदपुर, कांगपोकपी और तेंगनौपाल हैं। इन जिलों के सभी मैतेई बसावट वाले क्षेत्रों, गांवों, पहाड़ी और घाटी जिलों के आसपास के क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई।

    गहरी हैं समस्या की जड़ें
    मणिपुर की वास्तविक समस्या न केवल बहुत उलझी हुई है, बल्कि उसकी जड़ें भी बहुत गहरी हैं। इसे समझने के लिए इसकी पृष्ठभूमि में जाना होगा। मणिपुर में दो मुख्य जातियां हैं, मैतेइ और कुकी। मैतेई अधिकांशत: हिंदू हैं। 10-15 प्रतिशत मैतेई इसाई तथा मुस्लिम भी हैं और 55-60 प्रतिशत होने के नाते बहुसंख्यक कहे जाते हैं। दूसरा बड़ा समुदाय कुकी जाति का है, जो लगभग सभी इसाई हैं और 40 प्रतिशत होने के नाते अल्पसंख्यक कहे जाते हैं। मैतेइ घाटी में रहते हैं, जिनमें राजधानी इंफाल भी शामिल है। घाटी मणिपुर का मात्र 20-25 प्रतिशत भू-क्षेत्र है। कुकी बहुत विकसित जनजाति है। इनकी लगभग शत-प्रतिशत बसावट पहाड़ियों पर है, जो मणिपुर का 75-80 प्रतिशत भूमि क्षेत्र है। हालांकि अब घाटी और मैदानी क्षेत्रों में भी कुकी रहने लगे हैं।

    आबादी और जमीन का असंतुलन
    विवाद का एक स्रोत जनसंख्या और जमीन का असंतुलन है। 60 प्रतिशत मैतेइ जनसंख्या 20-25 प्रतिशत भूमि क्षेत्र में रह रही है, जबकि 40 प्रतिशत कुकी जनसंख्या 75-80 प्रतिशत भूमि क्षेत्र पर रह रही है। इस कारण राज्य सरकार ने मैतेइ समुदाय की अनुसूचित स्थिति में परिवर्तन पर विचार करने की बात कही। जब तक मैतेइ को अनुसूचित जनजाति का दर्जा नहीं दिया जाता, उन्हें पहाड़ियों में जमीन खरीदने और बसने की पात्रता नहीं मिल सकती है। कानून के अनुसार केवल अनुसूचित जनजातियां ही पहाड़ियों में बस सकती हैं। टकराव का दूसरा पहलू नौकरियों से सीधे तौर पर नहीं जुड़ता है, जैसा कि आम तौर पर समझा जा रहा है। जानकारों का कहना है कि मात्र 50 लाख जनसंख्या वाले मणिपुर में एक हजार से अधिक सरकारी नौकरियां नहीं हैं और उनके लिए भी कुकी और मैतेइ प्रतिस्पर्धा करनी होगी। भूमि के अलावा अन्य वास्तविक कारण थोड़े जटिल हैं। इनमें ड्रग्स, पोस्ते की खेती, हथियार, म्यांमार में इसाई विद्रोह, पूर्वोत्तर में चर्च की भूमिका, चीन, रोहिंग्या, मणिपुर-म्यांमार-लाओस-कंबोडिया-थाइलैंड का ड्रग व्यापार जैसे उलझे हुए मामले शामिल हैं।

    मादक पदार्थों का मजबूत नेटवर्क
    मादक पदार्थों के उत्पादन का विश्व का सबसे बड़ा केंद्र पहले मेक्सिको, मध्य और दक्षिण अमेरिका था। 1990 के दशक में यह केंद्र अफगानिस्तान-पाकिस्तान हो गया। खुफिया सूत्रों के अनुसार मणिपुर-नागालैंड-म्यांमार के इसाई गठजोड़ की कोशिश है कि मादक द्रव्यों के उत्पादन और कारोबार का वैश्विक केंद्र मणिपुर-नागालैंड-म्यांमार के पहाड़ हो जायें। म्यांमार-थाइलैंड-लाओस-कंबोडिया में होनेवाले ड्रग उत्पादन को यूरोप और अमेरिका के बाजारों तक पहुंचने के लिए जिस रास्ते की तलाश हो सकती है, मणिपुर उसमें अहम हो सकता है। यह आश्चर्य की बात हो सकती है, क्योंकि भारत इन सभी देशों से भूमि मार्ग से जुड़ा हुआ है।
    वर्ष 2007 में खुफिया सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी कि मणिपुर की पहाड़ियों के जंगलों में लगभग दो हजार एकड़ भूमि का उपयोग पोस्ता (अफीम) की खेती के लिए किया जा रहा था। 2013 में फिर संशोधित रिपोर्ट प्रकाशित हुई, जिसमें बताया गया कि 19 हजार एकड़ के पहाड़ी जंगलों में पोस्ते की खेती की जा रही है। संयोग से दोनों रिपोर्ट यूपीए-1 और यूपीए-2 के शासनकाल में आयी थी। स्थिति और अधिक जटिल इस कारण हो जाती है कि म्यांमार के रखाइन प्रांत से रोहिंग्या 360 किलोमीटर लंबी भारत-म्यांमार सीमा के माध्यम से भारत में प्रवेश कर रहे थे, जो मूल रूप से कुकी नियंत्रित पहाड़ी क्षेत्र में पड़ती है।

    यहीं से शुरू होता है धार्मिक संगठनों का खेल
    इस इलाके में आसानी से प्रवेश करने की अनुमति के बदले में ये रोहिंग्या क्या दे रहे थे? वास्तव में यहां से पूर्वोत्तर में सक्रिय धार्मिक संगठनों की भूमिका अहम हो जाती है। कुकी क्षेत्र में मौजूद एक खास धर्म से संबंधित ड्रग माफिया को ड्रग उत्पादों को लाओस, कंबोडिया, थाइलैंड और म्यांमार से बाहर निकलने के मार्गों तक ले जाने के लिए ड्रग्स ढोने वालों की जरूरत होती है, जिन्हें ‘ड्रग म्यूल्स’ कहा जाता है। बदले में इन धार्मिक संगठनों से समर्थित कुकी ड्रग माफिया उनके (रोहिंग्या) परिवारों को म्यांमार-मणिपुर-नागालैंड की खुली सीमाओं से भारत में सुरक्षित प्रवेश करने देता है। यही स्थिति नागालैंड में नागा ड्रग माफिया की है, जिसका नगालैंड में पोस्ते की खेती और नशीली दवाओं के व्यापार पर शत-प्रतिशत नियंत्रण है। नागालैंड की भी म्यांमार के साथ खुली सीमा है।

    भाजपा सरकार ने कसी नकेल
    केंद्र और राज्य में भाजपा की सरकारें बनने के बाद दोनों राज्यों में बढ़ती नशीली दवाओं की समस्या से निपटने के लिए कार्य शुरू हुआ। मणिपुर में भाजपा के लिए अपने दम पर सरकार बनाना पहली आवश्यकता थी। यह काम होने के बाद राज्य के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने मई 2022 में ‘वॉर आन ड्रग्स 2.0’ आॅपरेशन शुरू किया। असम राइफल्स की मदद से चले इस आॅपरेशन को बड़ी सफलता मिल रही थी। मैतेइ को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिलवाना इसी आॅपरेशन का दूसरा चरण था, ताकि मैतेइ समुदाय को पहाड़ियों में बसने के लिए सक्षम बनाया जा सके और वहां चल रही अफीम की खेती पर अंकुश रखा जा सके।
    इस आॅपरेशन के कारण धार्मिक संगठन समर्थित ड्रग माफिया नेटवर्क पहले से ही बुरी तरह घिर चुका था और दबाव में था। असम राइफल्स ने उसका जीना मुश्किल कर दिया था। ऐसे में बीरेन सिंह के इस नये कदम को ड्रग माफिया ने युद्ध के संकेत के रूप में लिया। कुकी लोगों को भड़काया गया। यही मुख्य कारण था कि रैली के बाद हजारों कुकी घाटी में तबाही मचाने के लिए उतर पड़े। जब मैतेइ ने भी उतनी ही बड़ी संख्या में जवाबी कार्रवाई की तो स्थिति बदल गयी। स्थिति ऐसी बदली कि हिंसा बढ़ने पर सरकार को सेना बुलानी पड़ी। सेना तैनात होते ही केंद्र सरकार रोहिंग्या घुसपैठ पर नकेल कसने में और सक्षम हो गयी। सेना मणिपुर-म्यांमार और नागालैंड-म्यांमार सीमाओं तक पहुंच गयी, जो घुसपैठ का मुख्य रास्ता है और जिसके बूते रोहिंग्याओं के साथ इसाइ कुकी और नागा ड्रग माफियाओं के बीच पारस्परिक समझौता चलता आ रहा था। यह ड्रग माफिया के लिए दम घुटने जैसी बात थी। दूसरे, पहाड़ी जंगलों में चल रही अफीम की विशाल खेती पर भी सेना का अंकुश लग गया। मणिपुर की वर्तमान अशांति में निहित यह सकारात्मक संकेत माना जा सकता है कि अब इन मार्गों से घुसपैठ और ड्रग्स का उत्पादन और आपूर्ति ठप हो गयी है।
    लेकिन अब इस स्थिति पर काबू जरूरी है, क्योंकि यह बीमारी कैंसर की तरह फैल रही है। इसलिए सभी राजनीतिक दलों और सरकारों को एकजुट होकर इस बड़ी साजिश के खिलाफ खड़ा होना होगा, वरना देश की एकता और अखंडता को खतरा हो सकता है।

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