रांची। सीएम चंपाई सोरेन से जिलों के डीसी और डीएफओ को स्पष्ट तौर पर चेताया है, अबुआ बीर अबुआ दिशोम अभियान को हल्के में न लें। नहीं तो कार्रवाई की जाएगी। साथ ही वन पट्टा क्यों रद्द हुआ, इसका भी जवाब देना होगा। वे सोमवार को एटीआई में वन अधिकार अधिनियम पर आयोजित कार्य़शाला में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि सारंडा और पोड़ाहाट के जंगलों में वनों पर अधिकार के लिए लंबे समय तक संघर्ष चला। गोली कांड में आदिवासी शहीद भी हुए। सारंडा के जंगलों में सैकड़ों गांव बसे हुए हैं। वे अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करते रहे हैं।

संघर्षों की बदौलत आया वन अधिकार कानून
सीएम ने कहा कि वन अधिकार कानून लंबे संघर्षों के बाद आया। उन्होंने फिर दुहराया कि सरकार द्वारा चलाई गई अभियान को हल्के में ना लें। लोगों को दो-चार डिसमिल का पट्टा देने के लिये यह कानून नहीं बना है। वन अधिकार कानून का यह अभियान पीछे नहीं होगा। डीसी, डीएफओ को इसलिए बुलाया गया है, वन आधिकार आधिनियम के आवेदन क्यों रद्द हुआ, इसका जवाब भी देना होगा। लोगों ने वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत वन पट्टा के लिए आवेदन किये थे। लेकिन उनके आवेदन रद्द हो गए। आवेदन रद्द करने वाले को जवाब देना होगा।

आदिवासियों के साथ सौतेला व्यवहार क्यों
सीएम ने कहा कि आदिवासियों के साथ सौतेला व्यवहार क्यों हो रहा है। 3000 अदिवासियों पर वनों पर अधिकार के मामले पर मुकदमे भी हुये। सभी उपायुक्त और डीएफओ इस अभियान को इस तरह चलाएं कि एक से डेढ़ माह में इस अभियान में सफल हो जाएं। किसी तरह का भेदभाव नहीं हो। ग्रामसभा से भी जो बातें आती हैं, उसको मनाना है। हम लोग उसके साथ विश्वासघात नहीं करेंगे। काम करने की इच्छा शक्ति लानी होगी। वन पट्टा के आवेदनों को रद्द करने पर सरकार कार्रवाई करेगी।

अबुआ बीर अबुआ दिशोम अभियान को एक स्कीम तरह नहीं देखेः मुख्य सचिव
मुख्य सचिव ने एल खियांग्यते ने कहा कि जिस उद्देश्य से वन अधिकार कानून 2006 लाया गया था, उसका लाभ लोगों को नहीं मिल सका या फिर हम वनआश्रितों को इसका लाभ नहीं दिला सके हैं। डीसी, डीएफओ और अन्य पदाधिकारी अबुआ बीर अबुआ दिशोम अभियान को एक स्कीम तरह नहीं देखें। इसे अपनी दायित्व की तरह देखना होगा। मुख्य सचिव ने डीसी और डीएफओ से पूछाः आप कभी ग्राम सभा की बैठक में उपस्थित हुये हैं। जमीन का सीमांकन के समय मौजूद रहे हैं। आप लोग कभी गांव जाते हैं। हाथ उठाइए। इस सवाल पर मौजूद डीसी और डीएफओ ने चुप्पी साध ली। किसी भी अफसर ने हाथ नहीं उठाया। फिर मुख्य सचिव ने कहा कि आप स्वयं गांव में नहीं जायेंगे तो अनुभव कैसे करेंगे। वनआश्रितों को अधिकार कैसे दिलाएंगे। आप गांव-गांव जाकर इस एक्ट को लागू करें। गांव से लौट कर कमरे में बैठकर विश्लेषण कर कोई निर्णय करेंगे, तो यह फैसला सही होगा।

मुख्य सचिव ने सुनाई अपनी व्यथा
मुख्य सचिव ने कहा, इस अभियान को लेकर मैं दो गांव गया। जब गांव का वन क्षेत्र का नक्शा सीमांकन किया जा रहा था, तो दो गांव आपस में ही उलझ गये। एक नई सोच के साथ अपने अनुभव को गांव से लौट कर निर्णय देने में काम लाये।

वन अधिकार कानून की भावना को समझने की जरूरतः दीपक
मंत्री दीपक बिरुआ ने कहा कि वन अधिकार कानून की भावना को समझने की जरूरत है। इस कानून को झारखंड बेहतर तरीके से लागू नहीं कर पाया है। दवा को खारिज करने की मानसिकता खत्म करनी होगी। वन विभाग को अपना मानसिकता में बदलाव लाना होगा। जब मुख्य सचिव ने पूछे कि आप गांव गए हैं तो किसी डीएफओ, डीसी ने हाथ नहीं उठाया। इसलिए आपको कामकाज के तरीके और मानसिकता में बदलाव लानी होगी। पीसीसीएफ संजय श्रीवास्तव ने कहा, वन अधिकार अधिनियम 2006 को लागू हुए 18 साल बीत गए, लेकिन हम लोग इस पर चर्चा कर रहे हैं कैसे इसे लागू किया जाए। वन विभाग की प्रधान सचिव वंदना दादेल ने कहा कि वंचितों के अधिकार दिलाना हम सबका कर्तव्य है, वन विभाग के अधिकारियों को भी न्याय पूर्वक कार्य करना होगा।सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता संजय उपाध्याय ने कहा कि इस कानून में ग्राम सभा का महत्वपूर्ण स्थान है। विस्थापितों को भी वन अधिकार अधिनियम के तहत पत्ता मिल सकता है वन विभाग ना कभी टाइगर को हेल्प करता है ना कभी ट्राइबल को। पट्टा मिलने के बाद इस रेवेन्यू रिकॉर्ड और वन विभाग के रिकॉर्ड में दर्ज करना महत्वपूर्ण काम हो जाता है।

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