-अब हकीकत बन गयी हेमंत की कल्पना
-हेमंत बिन जेएमएम की कल्पना को मिली मजबूती
राहुल सिंह
लोकसभा चुनाव 2024 का जनादेश बहुत कुछ कहता है और देश की खूबसूरत लोकतांत्रिक व्यवस्था को दर्शाता है। यह जनादेश किसी की जीत या हार को नहीं दर्शाता, यह लोकतंत्र को मजबूत बनाता है। यह जनादेश जात-पात और धर्म से ऊपर उठ कर कर्म को दर्शाता है।
अगर झारखंड के परिणाम की समीक्षा की जाये तो इस बार के लोकसभा चुनाव परिणाम को लोकतंत्र की जीत कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा।
भले ही झारखंड में एनडीए को नौ सीटों पर जीत मिली, लेकिन चर्चा हेमंत की कल्पना की हो रही है। हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद जेएमएम की जीत की कल्पना अधूरी थी, लेकिन हेमंत की कल्पना ने झारखंड में जेएमएम को ना सिर्फ जीत दिलायी, बल्कि जेएमएम को हेमंत बिन हिम्मत भी दिलायी।
कल्पना की जीत से यह साफ हो जाता है कि कहीं ना कहीं हेमंत का जेल जाना भाजपा के लिए भारी पड़ गया और जेएमएम को कल्पना जैसा योद्धा भी मिल गया। जाहिर है 11 सीट से खिसक कर नौ सीट पर आना भाजपा के लिए आगामी विधानसभा चुनाव में कई चुनौतियों को उत्पन्न करेगा और साथ ही जेएमएम जैसी मजबूत क्षेत्रीय पार्टी को आत्मविश्वास के साथ-साथ और मजबूत बनायेगा। आज भले ही एनडीए को बहुमत मिला हो, लेकिन इंडिया गठबंधन ने हिम्मत दिखायी।
यहां उल्लेखनीय है कि जब हेमंत सोरेन को इडी ने गिरफ्तार किया था, तब भाजपा को शायद लगा था कि जेएमएम अब बिखर जायेगा। इसी को ध्यान में रख कर भाजपा ने शिबू सोरेन की बड़ी बहू को अपने पाले में भी कर लिया। ठीक उसी समय कल्पना सोरेन घर की चहारदीवारी से निकल कर राजनीति के मैदान में उतरीं और उन्होंने घर की जिम्मेदारियों को संभालते हुए झामुमो की कमान भी संभाल ली। पूरे चुनाव के दौरान उन्होंने जिस तरह से आक्रामक चुनाव प्रचार किया और झामुमो कार्यकर्ताओं में जोश का संचार किया, उसी का परिणाम है कि अब कल्पना सोरेन झारखंड का भविष्य बन गयी हैं। उन्होंने न सिर्फ झामुमो को एक सीट से तीन सीट दिलवायी, बल्कि कांग्रेस के खाते में भी खूंटी और लोहरदगा सीट डलवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। उन्होंने झामुमो को इंडिया गठबंधन में भी स्थापित करवाया। सबसे पहले उन्होंने मुंबई और दिल्ली जाकर अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करायी और फिर रांची में झामुमो के नेतृत्व में सफलतापूर्वक रैली का आयोजन कर खुद को इंडिया गठबंधन का अहम हिस्सा बना लिया। कांग्रेस के साथ उन्होंने मजबूत राजनीतिक रिश्ता कायम किया। उनके प्रयास और व्यवहार का ही परिणाम है कि आज चाहे सोनिया गांधी हों या राहुल गांधी, प्रियंका गांधी हों या मल्लिकार्जुन खड़गे, सभी कल्पना सोरेन के साहस की दाद दे रहे हैं। कल्पना की इस अकल्पनीय मेहनत से आज झामुमो एक से तीन सीट और कांग्रेस एक से दो सीट पर पहुंच गयी है। यानी एनडीए के किले में पांच सीट की सेंध लग गयी है। इस चुनाव में कल्पना सोरेन ने जितनी मेहनत झामुमो प्रत्याशियों के लिए की, उतनी ही मेहनत कांग्रेस उम्मीदवारों को जिताने में भी की। यह उनकी राजनीतिक परिपक्वता का उदाहरण है।