विशेष
एग्जिट पोल के बाद ‘कर्मयोगी’ मोदी और विपक्षी नेताओं का फर्क
‘खटाखट-फटाफट-धकाधक’ ने डुबो दी राहुल-तेजस्वी-अखिलेश की नाव
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
देश में 18वें आम चुनाव के लिए मतदान की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और जनता का फैसला आने में अब कुछ ही घंटे का वक्त बचा है। अंतिम चरण का मतदान खत्म होने के बाद विभिन्न समाचार चैनलों ने जो एग्जिट पोल के नतीजे बताये हैं, उनसे संकेत मिलता है कि देश में लगातार तीसरी बार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने जा रही है। इन नतीजों ने विपक्षी खेमे में मायूसी फैला दी है, तो भाजपा के लोग उत्साहित हैं। हालांकि एग्जिट पोल अंतिम नहीं होते, लेकिन इनसे मिले संकेतों ने एक बार फिर साफ कर दिया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी जिम्मेदारियों को लेकर कितने गंभीर हैं और उन्हें सत्ता से हटाने की कोशिशों में जुटे इंडी अलायंस के नेता, राहुल गांधी-तेजस्वी यादव और अखिलेश यादव की तिकड़ी में अब भी गंभीरता की कितनी कमी है। एग्जिट पोल के नतीजों के बाद एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक ‘कर्मयोगी’ की तरह अपने नये कार्यकाल का रोडमैप तैयार करने के लिए काम में जुट गये हैं, तो दूसरी तरफ यह तिकड़ी अब भी उम्मीदों की डोर थामे हुई है। दरअसल एग्जिट पोल ने पीएम मोदी और विपक्षी नेताओं के काम करने, जनता से संवाद करने और फैसले लेने के अंतर को एक बार फिर साफ कर दिया है। पीएम मोदी यदि अभी से नये कार्यकाल की तैयारी में जुटे हैं, तो इससे देश के प्रति उनकी जिम्मेदारियों की समझ का पता चलता है और यही कारण है कि विपक्ष एक बार फिर ‘खटाखट-फटाफट-धकाधक’ जैसी भाषा का इस्तेमाल कर मतदाताओं की नजर में विलेन बन गया। आम चुनाव के नतीजे वैसे तो 4 जून को सामने आयेंगे, लेकिन इतना तय है कि यह चुनाव दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सियासी भविष्य का एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित होनेवाला है। चुनाव परिणाम आने से पहले एग्जिट पोल के आधार पर पीएम मोदी और विपक्षी नेताओं के इसी रवैये के असर का विश्लेषण कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र अब अपने मतदाताओं द्वारा सात चरणों में सुनाये गये फैसले के इंतजार में है, लेकिन उससे पहले विभिन्न समाचार चैनलों द्वारा एजेंसियों के साथ मिल कर कराये गये एग्जिट पोल के नतीजों ने देश के भावी राजनीतिक परिदृश्य पर पसरी धुंध की चादर को बहुत हद तक साफ कर दिया है। इन एग्जिट पोल के नतीजों ने बताया है कि देश में लगातार तीसरी बार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने जा रही है और विपक्ष की नाव उसके नेताओं द्वारा की गयी अनाप-शनाप बयानबाजी के कारण एक बार फिर मंझधार में डूब गयी है। यह सही है कि एग्जिट पोल अंतिम नतीजे नहीं बताते, लेकिन देश के राजनीतिक मूड को सामने रखते हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है।
ध्यान से लौटते ही काम में जुटे मोदी
इस बार एग्जिट पोल के नतीजों ने साफ कर दिया है कि देश अपने नेता नरेंद्र मोदी के काम करने के तरीके, फैसला लेने की हिम्मत और उन पर आगे बढ़ने के हौसले के साथ संवाद करने के तरीके का कायल है। प्रधानमंत्री मोदी अपने इसी ‘कर्मयोगी’ स्वरूप को कई अवसरों पर साबित भी कर चुके हैं। इसलिए इस बार भी 48 घंटे के ध्यान से लौटने के तुरंत बाद वह काम में जुट गये हैं। चुनावी व्यस्तताओं के कारण जो काम बाकी रह गया था, मोदी ने सबसे पहले उन्हें निबटाया और फिर नये कार्यकाल का रोडमैप तैयार करने में जुट गये।
नये कार्यकाल का रोडमैप तैयार
कन्याकुमारी से लौटने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पीएमओ के अधिकारियों के साथ बड़ी बैठक की है। इस बैठक में नयी सरकार के पहले एक सौ दिन के काम पर चर्चा की गयी है। चुनाव प्रचार में व्यस्त होने से पहले ही प्रधानमंत्री मोदी ने अधिकारियो को होमवर्क दे दिया था। उन्होंने कहा था कि मोदी सरकार 3.0 के पहले एक सौ दिनों के फैसलों का काम नयी सरकार के काम संभालने से पहले पूरा कर लिया जाये। प्रधानमंत्री मोदी ने अधिकारियों को बता दिया था कि पहले एक सौ दिनों में ही कई बड़े फैसले लिये जायेंगे। इसके लिए 2029 का इंतजार नहीं करना है। ऐसे में माना जा रहा है कि अधिकारियों ने पहले एक सौ दिन के मोदी सरकार के फैसलों का ड्राफ्ट तैयार कर लिया है। माना जा रहा है कि अगस्त 2024 तक सरकार बड़े फैसले लेगी। सरकार बनने के बाद जुलाई में केंद्रीय बजट पेश किया जायेगा। चुनाव की वजह से इस बार फरवरी में अंतरिम बजट पेश किया गया था।
प्रमुख नियुक्तियों पर होगा फैसला
नयी सरकार बनने के बाद सबसे पहले प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पीके मिश्कार और एनएसए अजित डोभाल की नियुक्ति हो सकती है। एक महीने के अंदर ही नये थलसेना प्रमुख और इंटेलिजेंस ब्यूरो के निदेशकों की भी नियुक्ति की जा सकती है। प्रधानमंत्री मोदी के विकसित और आत्मनिर्भर भारत के संकल्प के तहत मिलिट्री इंडस्ट्रियल कांप्लेक्स पर मोदी सरकार का फोकस रहेगा। पीएमओ के अधिकारियों ने शपथ के बाद के एक सौ दिन का जो एजेंडा तैयार किया है, उसके अनुसार चुनाव घोषणा पत्र में भाजपा द्वारा किये गये वादों पर भी काम शुरू हो जायेगा। 13 जून को प्रधानमंत्री मोदी जी-7 की बैठक में भी शामिल हो सकते हैं। इसके अलावा पीएम मोदी ने चक्रवात रेमल से मची तबाही और हीट वेव से पैदा हुए हालात की भी समीक्षा की।
इसलिए लोकप्रियता के शिखर पर हैं मोदी
जिम्मेदारियों के प्रति इसी गंभीरता के कारण पीएम मोदी आज भी लोकप्रियता के शिखर पर हैं। वह काम ही नहीं करते हैं, फैसले भी लेते हैं और उन्हें जमीन पर उतारते भी हैं। इसलिए देश-दुनिया में उन्हें ‘कर्मयोगी’ कहा जाता है और लोग उनकी गारंटी पर भरोसा करते हैं। आलोचनाओं से बेपरवाह पीएम मोदी अपने काम से काम रखते हैं और उनके सामने केवल देश होता है।
इसलिए डूबी विपक्ष की नाव
एग्जिट पोल के नतीजों ने विपक्षी खेमे को निराशा के अंधेरे में धकेल दिया है। तमाम कोशिशों के बावजूद इस चुनाव में भी विपक्ष अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो रहा है, जैसा कि एग्जिट पोल के नतीजे बताते हैं। लेकिन अहम सवाल यह है कि विपक्ष को जनता का समर्थन क्यों नहीं मिला। इस सवाल का जवाब बहुत मुश्किल नहीं है। दरअसल विपक्ष हर बार की तरह इस बार भी पीएम मोदी को निशाने पर रखने की गलती करता रहा। उसके द्वारा पहले चरण के मतदान को लेकर आरक्षण और संविधान खत्म करने कोे लेकर शुरू हुई सियासी लड़ाई ‘खटाखट, फटाफट, धकाधक’ जैसी सस्ती भाषा तक पहुंच गयी।
खटाखट, फटाफट, सफाचट और धकाधक
अयोध्या में प्रभु श्रीराम को भव्य मंदिर में स्थापित किये जाने और सीतामढ़ी में मां जानकी के भव्य मंदिर निर्माण कराने के वादे को भी भाजपा ने मुद्दा बनाया। चैत्र नवरात्र में हेलीकॉप्टर में तेजस्वी यादव और मुकेश सहनी का मछली खाने का वीडियो वायरल होने पर एनडीए ने इसे सनातन से जोड Þकर बड़ा मुद्दा बना दिया। हालांकि, अंतिम चरण के मतदान के एन पहले राहुल गांधी, अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव की तिकड़ी की देश में ‘खटाखट, फटाफट, सफाचट और धकाधक’ जैसी सड़क छाप भाषा ने मतदाताओं की आंखें खोल दीं।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सबसे पहले इन शब्दों का इस्तेमाल किया। इसके बाद अखिलेश और तेजस्वी के साथ इंडिया गठबंधन के दूसरे नेताओं ने पीएम मोदी पर हमले के लिए इन शब्दों को हथियार की तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। मंच से तेजस्वी यादव अपनी सभाओं में कहते रहे, मिजाज रखिये टनाटन, टनाटन, टनाटन, मतदान के दिन वोट डालिए खटाखट, खटाखट, खटाखट। 4 जून के बाद भाजपा हो जायेगी सफाचट, सफाचट, सफाचट। नौकरी मिलेगी फटाफट, फटाफट, फटाफट। दीदी के खाते में एक लाख जायेंगे सटासट,
सटासट, सटासट।
इंडिया गठबंधन के नेताओं द्वारा इस तरह की भाषा का इस्तेमाल लोगों को पसंद नहीं आया। उन्हें पता चल गया कि यह गठबंधन केवल सत्ता हासिल करने के लिए है। दरअसल, भारत का मतदाता आज भी संस्कारों को सबसे अधिक महत्व देता है। इसलिए वह किसी भी ऐसी भाषा को स्वीकार नहीं करता है, जो उसके संस्कार में नहीं है। इंडिया गठबंधन की इस तिकड़ी ने इस तरह की सस्ती भाषा का खूब इस्तेमाल किया, जिसे मतदाताओं ने पूरी तरह नकार दिया।