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    Home»विशेष»हेमंत के जेल से रिहा होने के बाद बदला राजनीतिक परिदृष्य
    विशेष

    हेमंत के जेल से रिहा होने के बाद बदला राजनीतिक परिदृष्य

    shivam kumarBy shivam kumarJune 30, 2024No Comments11 Mins Read
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    हेडिंग-अब झामुमो करेगा सवाल, भाजपा को देना होगा जवाब
    -हेमंत के पक्ष में हाइकोर्ट के फैसले ने धो दिया तथाकथित कलंक
    -इडी के कंधे पर बंदूक रख कर आरोप लगा रही भाजपा को तलाशना होगा रास्ता
    -विधानसभा चुनाव में भाजपा और झामुमो की सीधी टक्कर
    -झामुमो सहित इंडी गठबंधन का लोकसभा चुनाव के बाद से बढ़ गया है मनोबल
    -हेमंत की रिहाई ने गठबंधन के कार्यकर्ताओं का उत्साह कर दिया है दोगुना
    – लोकसभा चुनाव में बढ़त वाली 52 विधानसभा सीटों पर भी अब भाजपा के लिए नहीं होगी राह आसान

    इतिहास के पन्नों पर झारखंड के लिए 30 जून अति महत्वपूर्ण है। आदिवासी इतिहास का 30 जून 1855 वह स्वर्णिम दिन है, जब साहिबगंज के भोगनाडीह में हजारों की संख्या में जुटे संताल आदिवासियों ने अपने-अपने हाथों में तीर-धनुष को लहराते हुए अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ बगावत का खुला एलान किया था। इस एलान के साथ ही सिदो को अपना राजा, कान्हू को मंत्री, चांद को प्रशासक और भैरव को सेनापति के रूप में इस उलगुलान को आगे बढ़ाने की जिम्मेवारी सौंपी गयी थी। आज वही 30 जून है। इससे दो दिन पहले राज्य की सियासत में एक नये बदलाव का बीजारोपण हो चुका है। पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को शुक्रवार को हाइकोर्ट से जमानत मिली। सिर्फ जमानत ही नहीं मिली, हाइकोर्ट का फैसला भी ऐसा आया कि प्रवर्तन निदेशालय (इडी) से लेकर विपक्षी भाजपा तक को मुंह पर ताला लगाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा। कोर्ट ने साफ कहा कि हेमंत सोरेन पर जो आरोप लगाये गये हैं, वह संभावनाओं पर आधारित हैं, उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है। जिस इडी के कंधे पर बंदूक रख कर हेमंत सोरेन के जरिए सरकार और इंडी गठबंधन को भाजपा अब तक निशाने पर ले रही थी, उसे अब मुंह की खानी पड़ी है। पिछले पांच-छह महीने से भाजपा भ्रष्टाचार, जमीन घोटाला, हेमंत सोरेन को जेल होने आदि को मुद्दा बनाये हुई थी। लोकसभा चुनाव में इन बातों को खूब उछाला गया। हाइकोर्ट के फैसले के बाद अब भ्रष्टाचार के आरोप की हवा निकल चुकी है। अब भाजपा को हेमंत सोरेन या सरकार को लपेटने के लिए दूसरे मुद्दे की तलाश करनी होगी। वहीं, हेमंत सोरेन और इंडी गठबंधन का मनोबल हाइकोर्ट के फैसले से हाइ हो गया है। जो तथाकथित कलंक हेमंत सोरेन पर लगे थे, वे धुल गये हैं। ऐसे में अब हेमंत समेत इंडी गठबंधन के नेता भाजपा पर सवाल दागेंगे। भाजपा को इसका जवाब देना होगा। हेमंत के जेल से बाहर आने के बाद झारखंड का पूरा राजनीतिक परिदृष्य एक बार फिर बदल गया है। हेमंत सोरेन संभवत: 30 जून को भोगनाडीह से नयी राजनीतिक रणनीति का उलगुलान करेंगे। इस बदलते परिदृष्य और आने वाले विधानसभा चुनाव की राजनीति का आकलन करती आजाद सिपाही के राजनीतिक संपादक प्रशांत झा की रिपोर्ट।

    आषाढ़ का महीना चल रहा है। झारखंड में मानसून दस्तक दे चुका है। आदिवासी, किसान, खेतिहर, मजदूर आदि खेती-किसानी में लग गये हैं। बीज बुआई शुरू हो गयी। जिस तरह आषाढ़ की धूप में तपिश बहुत होती है, वैसे ही झारखंड की राजनीति में तपिश भी धीरे-धीरे बढ़ने लगी है। पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन शुक्रवार को पांच महीने बाद जेल से बाहर आ गये। उनके बाहर आते ही राजनीतिक फिजां बदलने लगी है। जैसे आषाढ़ में बादल आकाश में मंडराते-घुमड़ते हैं, वैसे ही राजनीतिक दलों के नेताओं के दिमाग में चुनावी चौसर की बिसात पर गोटी फिट करने का सोच गहराने लगा है। दरअसल, राज्य में अक्तूबर-नवंबर तक विधानसभा चुनाव होना है। खेती-किसानी की तरह चुनाव के लिए भी अब बीजारोपण होने लगा है। राजनीतिक दल हाल में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव के परिणाम का आकलन कर चुके हैं। विधानसभावार भी वोटों का आकलन किया गया है। कहां किस दल को बढ़त मिली, इसका आंकड़ा सामने आ चुका है। अब विधानसभा की 81 सीटों को समेटने के लिए रणनीति बनाने की तैयारी चल रही है।

    इंडी गठबंधन का हाथ ऊपर:
    इस वक्त इंडी गठबंधन का हाथ ऊपर है, क्योंकि हेमंत सोरेन जेल से बाहर आ गये हैं। कांग्रेस भले ही राष्ट्रीय दल हो, लेकिन राज्य में झामुमो का नेतृत्व है। यहां गठबंधन के नेता झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ही हैं। इंडी गठबंधन ने उनके बिना लोकसभा चुनाव लड़ा था। हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन समेत अन्य नेताओं ने काफी मेहनत की। सभी ने एकजुटता दिखायी। इसका परिणाम भी अच्छा रहा। इंडी गठबंधन को तीन सीटों का फायदा हुआ। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के पास 14 में 12 सीटें थीं और गठबंधन के पास दो सीटें थीं। वहीं, 2024 के चुनाव में भाजपा को नुकसान हुआ और वह नौ सीटों पर सिमट गयी, तो इंडी गठबंधन ने पांच सीटों पर कब्जा जमा लिया। अब सामने विधानसभा चुनाव है। इस चुनाव में अब हेमंत का नेतृत्व होगा। लोकसभा चुनाव के परिणाम से उत्साहित इंडी गठबंधन के नेता और कार्यकर्ताओं का उत्साह 28 जून से और बढ़ गया है। इंडी कार्यकर्ता तो बोलने भी लगे हैं कि जब हेमंत के बिना लोकसभा में अच्छा प्रदर्शन किया, तो उनके साथ होने के बाद विधानसभा में क्या होगा खुद ही सोच लें। हेमंत पर भाजपा जितने भी आरोप लगा रही थी, हाइकोर्ट ने उसे खारिज कर दिया। हेमंत बेदाग हैं। भाजपा अब क्या बोलेगी जनता को? जनता के सामने सच आ गया है। अब भाजपा जब जनता के बीच जायेगी, तो उसको उन आरोपों का जवाब देना होगा। इन बातों में नेताओं और कार्यकर्ताओं का मनोबल और उत्साह दिखाता है। वह यह सबित करता है कि फिलहाल इंडी गठबंधन का हाथ ऊपर है।

    हेमंत के जेल से बाहर आने का मिलेगा फायदा:
    जेल से निकलते ही हेमंत सोरेन के बयान से साफ है कि वह रिहाई के बाद और आक्रामक होंगे। उन्होंने कहा कि मुझे झूठे आरोपों में पांच महीने जेल के अंदर रखा गया। झारखंड की जनता को इस बारे में सोचना होगा। सुनियोजित तरीके से लोगों की आवाज दबायी जा रही है। हाइकोर्ट ने जो फैसला दिया है, उसको देखना-पढ़ना चाहिए। उनकी रिहाई ने झामुमो के साथ-साथ इंडी गठबंधन को नयी ऊर्जा दी है। विधानसभा चुनाव में एक नया जोश दिखने को मिलेगा। गठबंधन के नेता हेमंत की गिरफ्तारी को लेकर केंद्रीय एजेंसी, केंद्र की सरकार और विपक्षी दल भाजपा को घेर सकेंगे। एजेंसियों के दुरुपयोग की बात को मजबूती से रख सकेंगे। हेमंत का कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद हो सकेगा। वहीं, हेमंत सोरेन अगर चुनाव से पहले मुख्यमंत्री का पद फिर नहीं संभालते हैं, फिर भी सरकार में चीजों को व्यवस्थित करने, झारखंड के हित में योजनाएं बनाने और उन योनाओं का चुनावी फायदा उठाने की रणनीति आसानी से बना सकेंगे। उधर, गठबंधन को मजबूती भी मिलेगी। इसका उदाहरण है कि जेल से हेमंत के निकलते ही कांग्रेस सांसद सह लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने उन्हें फोन किया। शरद पवार ने उन्हें संदेश भेजा। ममता बनर्जी ने हेमंत सोरेन को शाबाशी दी। इसका सीधा अर्थ यही है कि अब हेमंत सोरेन का उपयोग इंडी गठबंधन देश स्तर पर करेगा। हेमंत सोरेन से इंडी गठबध्ांन को मजबूती मिलेगी। देश स्तर पर उसे आदिवासी नेता के रूप में एक बड़ा चेहरा मिलेगा। गठबंधन दलों के बीच चीजें और स्पष्ट रहेंगी। झामुमो-कांग्रेस-राजद के बीच विधानसभा चुनाव में सीट शेयरिंग से लेकर चुनावी रणनीति पर सही तरीके से विचार हो सकेगा। यानी कुल मिला कर गठबंधन को भी मजबूती मिलेगी।

    भाजपा को पूरी रणनीति पर करना होगा विचार:
    लोकसभा चुनाव में भाजपा अपने हाथ से तीन सीट निकलने के बाद भी थोड़ी राहत महसूस कर रही थी, क्योंकि विधानसभावार पार्टी का प्रदर्शन अच्छा था। राज्य में 14 लोकसभा सीटों के अधीन आनेवाली 81 विधानसभा सीटों में से 52 सीटों पर भाजपा और सहयोगी दल आजसू के उम्मीदवारों ने बढ़त हासिल की थी। यह बढ़त दिखा रही है कि विधानसभा में बहुमत के लिए 42 सीट से कहीं अधिक है। भाजपा केवल इन बढ़त वाली 52 सीटों पर ही फोकस रखती तो शायद विधानसभा चुनाव जीत कर सरकार बनाने की स्थिति में आ जाती। लेकिन अब हेमंत सोरेन के मैदान में आ जाने के बाद उसके लिए ये सीटें आसान नहीं हैं। कारण साफ है, लोकसभा चुनाव में विधानसभा की 23 आदिवासी सीटों पर भाजपा बुरी तरह पिछड़ गयी है। इसके बाद भी भाजपा के लिए 52 सीटों की वजह से आगामी चुनाव थोड़ा आसान दिख रहा था। अब परिस्थितियां बदल गयी हैं। हेमंत सोरेन के जेल से बाहर आने के बाद इन सीटों पर भी समीकरण बदलने की बात को सिरे से नहीं नकारा नहीं जा सकता है। क्योंकि भाजपा 31 जनवरी 2024 को हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद ज्यादा आक्रामक हो गयी थी। इसके बाद से लोकसभा चुनाव तक हेमंत पर लगे भ्रष्टाचार का आरोप और उनके जेल जाने को खूब भुनाया। अगर यों कहें कि लोकसभा चुनाव में भाजपा का मुख्य मुद्दा और केंद्र बिंदु में ‘हेमंत’ थे, तो गलत नहीं होगा। इस बार विधानसभा में यह नहीं चलेगा। इसके उलट भाजपा को इंडी गठबंधन द्वारा केंद्रीय एजेंसियों के दुरूपयोग, हेमंत सोरेन को जेल भेजने समेत अन्य मुद्दों को उठाने पर जवाब देना होगा। लिहाजा भाजपा को अपनी रणनीति पर नये सिरे से विचार करना होगा।

    विधानसभा चुनाव में लोकसभा से मुद्दा होगा जुदा:
    लोकसभा चुनाव भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे, केंद्र की योजनाओं, राज्य सरकार की विफलता, पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी, भ्रष्टाचार आदि मुद्दों को लेकर लड़ा था। वहीं, भाजपा के पास 2019 को विधानसभा चुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास के कार्यकाल में किये गये गये काम को गिनाने के लिए था। डबल इंजन की सरकार की बात थी। उस वक्त भाजपा की सरकार थी। हालांकि इसके बाद भी 2014 की बहुमत वाली भाजपा 2019 के चुनाव में 25 सीटों पर सिमट गयी थी। इस बार भाजपा न ही राज्य में सरकार में है और न ही राज्य सरकार की उपलब्धियों को गिना सकती है। लोकसभा चुनाव के तमाम मुद्दे विधानसभा चुनाव में शायद ही चलें। केवल राज्य सरकार की खामियों को गिनाने के अलावा भाजपा के पास कुछ भी नहीं होगा। हालांकि इस बार एक फायदा भाजपा को है कि आजसू उसके साथ है। वहीं, इंडी गठबंधन (झामुमो कांग्रेस और राजद) सरकार में है। जनहित के लिए लगातार कदम उठाये जा रहे हैं। इन बातों को चुनावी मुद्दा बनाया जा सकेगा। चूंकि इंडी गठबंधन की सरकार राज्य में है, इसलिए आचार संहिता लागू होने से पहले कई लोकलुभावन योजनाएं शुरू कर सकती है। चंपाई सरकार ने योजनाओं की झड़ी लगा दी है। उसने कई लोक लुभावन योजनाएं शुरू की हैं।

    2019 विधानसभा चुनाव की स्थिति
    पार्टी                  चुनाव लड़ी                 जीती                             हानि/फायदा
    झामुमो                   41                         30                                   +11
    कांग्रेस                   31                          16                                   +10
    राजद                      7                             1                                     +1
    भाजाप                  79                          25                                    -12
    आजसू                 53                             2                                      -3
    झाविमो                81                            3                                      -5
    एनसीपी                 7                            1                                      +1
    सीपीआई (एमएल) 14                          1                                      +1

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