विशेष
15 सीटों पर जेएमएम उम्मीदवार उतारने की घोषणा से इंडी अलायंस में टेंशन
बिहार चुनाव पर राजद और कांग्रेस के रुख से पूरी तरह सहमत नहीं है झामुमो
अपनी विस्तार योजना से किसी भी कीमत पर पीछे हटने को तैयार नहीं हैं हेमंत
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
झारखंड की सबसे मजबूत राजनीतिक ताकत झारखंड मुक्ति मोर्चा ने इस साल के अंत में होनेवाले बिहार विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमाने की तैयारी कर ली है। पार्टी ने हेमंत सोरेन के नेतृत्व में अपने विस्तार की योजना पर गंभीरता से काम करते हुए बिहार की 12 से 15 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का मन बना लिया है। झारखंड की सियासत में मजबूती से स्थापित होने और ओड़िशा-पश्चिम बंगाल के बाद झामुमो ने अब बिहार पर अपना ध्यान लगाया है। हेमंत सोरेन के नेतृत्व में तैयार इस विस्तार योजना की पहली सीढ़ी बिहार विधानसभा के चुनाव में उतरने का फैसला है। झामुमो की इस तैयारी से बिहार का चुनावी परिदृश्य बेहद रोचक हो गया है। दरअसल, झामुमो बिहार चुनाव पर राजद और कांग्रेस के रुख से पूरी तरह सहमत नहीं है और इंडी अलायंस की बैठक में इस मुद्दे पर दो टूक बात करने की संभावना है। झामुमो की इस दावेदारी के बाद बिहार को लेकर इंडी अलायंस में खलबली मच गयी है, क्योंकि राजद और कांग्रेस की तरफ से झामुमो को बिहार में इतनी अहमियत दिये जाने की संभावना कम दिख रही है। ऐसे में यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि हेमंत सोरेन ने झारखंड में जिस बड़े दिल के साथ कांग्रेस और राजद को अपनाया है, वैसा बड़ा दिल बिहार में शायद ही राजद और कांग्रेस दिखाये। उस स्थिति में इंडी अलायंस के भीतर उथल-पुथल की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। बहरहाल, झामुमो की दावेदारी से एक बात तो साफ हो गयी है कि हेमंत सोरेन अपनी पार्टी को नयी ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं और यह झामुमो के नये दौर की शुरूआत है। क्या है झामुमो की दावेदारी का सच और बिहार चुनाव में क्या हो सकता है इसका असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले झारखंड में सत्तारूढ़ पार्टी झामुमो ने इंडी अलायंस से नाराजगी जतायी है। पार्टी ने साफ संकेत दिये हैं कि अगर गठबंधन में उसे सम्मानजनक भागीदारी नहीं दी गयी, तो वह बिहार में 15 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। बता दें कि बिहार चुनाव के बारे में हुई इंडी अलायंस की बैठकों में झामुमो को शामिल नहीं किया गया और 21 सदस्यीय समन्वय समिति में भी स्थान नहीं मिला, जिससे पार्टी खुद को उपेक्षित महसूस कर रही है। झामुमो का कहना है कि 2019 में झारखंड विधानसभा चुनाव के दौरान कम सीटें मिलने के बावजूद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राजद को मंत्री पद दिया था। इसके बावजूद बिहार में झामुमो नजरअंदाज किया जा रहा है। पार्टी का मानना है कि सीमावर्ती इलाकों में उसकी मजबूत पकड़ है। और इस प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता।
राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने की तैयारी
दरअसल हेमंत सोरेन द्वारा पार्टी की कमान संभालने के बाद झामुमो अब राष्ट्रीय पार्टी के रूप में पहचान बनाना चाहता है। पार्टी झारखंड के साथ-साथ बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, असम, ओड़िशा और छत्तीसगढ़ में भी अपनी मौजूदगी बढ़ाने की दिशा में काम कर रही है। पहले भी पार्टी का ओड़िशा में छह विधायक, बिहार में एक विधायक और एक सांसद रह चुका है। झामुमो की इस महत्वाकांक्षी योजना के तहत ही पार्टी ने बिहार चुनाव में उतरने का मन बनाया है।
सीमावर्ती सीटों पर झामुमो की मजबूत दावेदारी
झामुमो बिहार-झारखंड की सीमावर्ती सीटों, जैसे चकाई, झाझा, तारापुर, कटोरिया, बांका, मनिहारी, रूपौली, बनमनखी, जमालपुर और धमदाहा में चुनाव लड़ना चाहती है। पार्टी का दावा है कि इन क्षेत्रों में झारखंडी संस्कृति, भाषा और आदिवासी पहचान की गहरी पैठ है, जिसे देखते हुए झामुमो को इन क्षेत्रों में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। झामुमो का तर्क है कि सीमावर्ती जिलों में पड़ने वाली विधानसभा सीटों पर उसका जनाधार है। अतीत में वहां झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक भी रहे हैं। झामुमो का कहना है कि इन सीटों पर न सिर्फ उसके कार्यकर्ता हैं, बल्कि उसके पास प्रत्याशी भी हैं। पार्टी को उम्मीद है कि उसकी मांगों पर सकारात्मक तरीके से विचार किया जायेगा। पार्टी का दावा है कि 2024 के दो चुनावों से साफ हो गया है कि पार्टी का प्रभाव तेजी से बढ़ा है। तानाशाही तत्वों के खिलाफ लड़ कर जिस प्रकार हेमंत सोरेन के नेतृत्व में बड़ी जीत मिली है, उसकी स्वाभाविक तौर पर पार्टी की राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा हो रही है। झामुमो को चाहने वालों की संख्या में इजाफा हुआ है। बड़ी संख्या में लोग झामुमो से जुड़ रहे हैं।
क्या है झामुमो की दावेदारी का आधार
झामुमो की यह दावेदारी दरअसल उसकी विस्तार योजना का हिस्सा है। पार्टी ने झारखंड के अलावा बंगाल और ओड़िशा में अपना विस्तार किया है और अब वह बिहार में अपने पैर फैलाना चाहती है। राजनीति के जानकार मानते हैं कि बिहार में चुनाव मैदान में उतरने के झामुमो के फैसले का इंडी अलायंस पर सबसे अधिक असर पड़ेगा और इससे राजनीति में नया गुल खिल सकता है। झामुमो झारखंड में इंडी अलायंस की सबसे बड़ी पार्टी है, वहीं बिहार में उसकी भूमिका सहयोगी की है।
पहले भी प्रत्याशी दे चुका है झामुमो
वैसे यह पहली बार नहीं है कि झामुमो बिहार चुनाव में प्रत्याशी उतारने की बात कह रहा है। झामुमो पहले भी बिहार में चुनाव लड़ चुका है। 2020 में हुए चुनाव में झामुमो ने बिहार की चार सीटों से अपने उम्मीदवार उतारे थे, हालांकि किसी को जीत नहीं मिली। पार्टी ने चकाई से एलिजाबेथ सोरेन, झाझा से अजीत कुमार, कटोरिया से अंजेला हांसदा, मनिहारी से फूलमनी हेंब्रम और धमदाहा से अशोक कुमार हांसदा को चुनाव मैदान में उतारा था।
झामुमो की दावेदारी से खलबली
बिहार चुनाव में झामुमो द्वारा उम्मीदवार उतारे जाने की घोषणा के बाद से ही सियासी हलकों में खलबली दिखने लगी है। राजद की तरफ से हालांकि इस बारे में आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा गया है, लेकिन कांग्रेस ने इस पर उचित समय पर विचार करने की बात कही है। कांग्रेस का कहना है लोकतंत्र में चुनाव लड़ने का अधिकार हर राजनीतिक दल को है। बिहार में कौन कितनी सीटों पर लड़ेगा, कौन कहां से चुनाव लड़ेगा, इन तमाम बिंदुओं पर जब महागठबंधन के शीर्ष नेता बैठेंगे, तब फैसला हो जायेगा। इतना जरूर है कि इंडी अलायंस पूरी मजबूती के साथ चुनाव लड़ेगा और संविधान विरोधी ताकतों के खिलाफ चुनाव जीतेगा भी।
झामुमो के दावे का सियासी असर
झामुमो की दावेदारी और रणनीति से साफ है कि वह इस बार बिहार के चुनावी परिदृश्य में बड़ी भूमिका निभाने की तैयारी कर रहा है। पार्टी को महागठबंधन से काफी उम्मीदें हैं और यदि सीट बंटवारे पर सहमति बनती है, तो यह चुनावी समीकरणों को नया मोड़ दे सकता है। जानकार बताते हैं कि हेमंत सोरेन ने जिस तरह झारखंड में राजद और कांग्रेस को समुचित सम्मान और सीटें दी थीं, वह अपनी पार्टी के साथ भी बिहार में वैसा ही व्यवहार चाहते हैं। लेकिन राजद और कांग्रेस के रुख से ऐसा नहीं लगता कि वे झामुमो को तवज्जो देने के मूड में हैं। इंडी अलायंस में हेमंत सोरेन ने अपनी जो जगह बनायी है, उसके बाद से राजद और कांग्रेस के लिए उनको नजरअंदाज करना भी आसान नहीं होगा। लेकिन यदि ऐसा हुआ, तो कुछ नया गुल खिल सकता है और इस संभावना से पूरी तरह इनकार भी नहीं किया जा सकता है।