विशेष
कांग्रेस ने 90 सीटों पर दावा कर बढ़ा दिया गठबंधन का सिरदर्द
वाम दलों और अन्य पार्टियों ने भी ठोका है अपना-अपना दावा
इसलिए हकीकत से दूर, फसाने पर टिकी है इंडिया ब्लॉक की धुन

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
बिहार में अक्टूबर-नवंबर 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन में अंदरूनी खींचतान तेज हो गयी है। सीट शेयरिंग फाइनल होने से पहले ही घटक दलों ने सीटों को लेकर अपनी-अपनी मांगें सामने रख दी हैं। कांग्रेस ने जहां 90 सीटों पर दावा किया है, वहीं वाम दलों की प्रमुख पार्टी भाकपा माले ने 45 सीटों पर दावेदारी ठोंकी है। उधर इंडिया ब्लॉक की नयी सहयोगी, विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) ने 60 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है और कहा है कि वह इससे कम पर नहीं मानेगी। कांग्रेस ने तो साफ कर दिया है कि वह राजद द्वारा तय फॉर्मूले पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं है, क्योंकि इस बार उसकी स्थिति पहले से ज्यादा मजबूत है। पार्टी का कहना है कि वह राज्य में एक निर्णायक भूमिका निभाने को तैयार है। इससे सीट बंटवारे को लेकर तेजस्वी यादव पर दबाव और बढ़ गया है। जहां तक बिहार में पिछले प्रदर्शन का सवाल है, तो 2020 में महागठबंधन ने वीआइपी को छोड़कर चुनाव लड़ा था, जिसमें राजद ने 144, कांग्रेस ने 70, भाकपा माले ने 19, भाकपा ने छह और माकपा ने चार सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। हालांकि, महागठबंधन को केवल 110 सीटों पर जीत मिली और वह सत्ता से बाहर रह गया। राजद ने 75, कांग्रेस ने 19 और माले ने 12 सीटें जीती थीं। इस बार सहयोगियों के दावे को राजद कैसे सुलझायेगा और इंडिया गठबंधन एकजुट रह सकेगा या नहीं, यह बड़ा सवाल है। क्या है इंडिया गठबंधन में सीट शेयरिंग का पेंच और क्या हो सकता है इसका असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर गहमागहमी जारी है। इस वर्ष के अक्टूबर-नवंबर में होने वाले चुनाव में यहां विपक्षी इंडिया गठबंधन (राजद, कांग्रेस, भाकपा, माकपा, भाकपा (माले) और वीआइपी) की सीधी सियासी लड़ाई सत्ताधारी राजग (जदयू, भाजपा, लोजपा (आर), हम और रालोमो) से प्रतीत हो रही है। कहा जा रहा है कि बिहार में विपक्ष के संघर्ष की दिशा हकीकत से दूर और फसाने के करीब दिख रही है। अभी वक्त है। इसलिए दिशा में बदलाव भी संभव है।

सीट शेयरिंग की हकीकत और घटक दलों का फसाना
इंडिया गठबंधन में सबसे अधिक मुसीबत सीट शेयरिंग को लेकर है। गठबंधन का नेतृत्व कर रहे राजद ने कम से कम 150 सीटों पर प्रत्याशी उतारने का मन बनाया है। बिहार में विधानसभा की कुल 242 सीटें हैं। राजद के दावे के बाद कुल 92 सीटें ही बचती हैं, जो घटक दलों को दी जानी हैं। राजद ने जो फॉर्मूला तय किया है, उसके अनुसार कांग्रेस को 70 और वाम दलों को 20 सीटें दी जायेंगी, जबकि नयी सहयोगी मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी को अधिकतम पांच सीटें दी जा सकती हैं। उस स्थिति में राजद 147 सीटों पर मान सकता है। लेकिन अब कांग्रेस ने कहा है कि वह 90 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जबकि वाम दलों ने 45 और वीआइपी ने 60 सीटों पर दावा ठोका है। कांग्रेस ने कहा है कि इस बार उसकी तैयारी अच्छी है और वह पिछली बार से अच्छा प्रदर्शन करेगी।

क्या है वर्तमान स्थिति
बिहार विधानसभा में इंडिया गठबंधन के प्रमुख घटक राष्ट्रीय जनता दल के 77 विधायक हैं। अपनी अनूठी संवाद शैली के लिए पहचाने जाने वाले लालू प्रसाद की पार्टी इस बार राज्य में 155-165 सीट पर चुनाव लड़ सकती है। इसकी तैयारियां जोरों पर चल रही हैं। शायद यही वजह है कि पार्टी ने अति पिछड़ी जाति के वरिष्ठ नेता मंगनी लाल मंडल को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया है। जानकार बताते हैं कि राजद की इस तैयारी की काट के लिए राजग भी धरातल पर डटा हुआ है। राजद जिन मुद्दों के सहारे मैदान में उतरने की तैयारी में है, वह हकीकत से परे है, जबकि भाजपा अलग रणनीति पर काम कर रही है। राजद का अभियान आमजन से जुड़ना और मतदान के लिए तैयार करना है। इसके लिए राजद के कार्यकर्ता बूथ स्तर तक लगातार काम कर रहे हैं। पार्टी का मानना है कि उसकी रणनीति अभेद्य है। इसे समझना अन्य दलों के वश की बात नहीं।

राजद के बिना कांग्रेस के अस्तित्व पर संकट
इंडिया गठबंधन की दूसरी मुख्य घटक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस है। बिहार में कांग्रेस के 19 विधायक हैं। यह वही कांग्रेस है, जिसका 90 के दशक से पूर्व बिहार में एकछत्र राज हुआ करता था। परिस्थितियां बदलीं और इसका जनाधार सिमटता चला गया। आज इसकी सियासी कहानी बदल चुकी है। स्थिति यह है कि राज्य में बिना राजद के कांग्रेस के अस्तित्व पर संकट सा दिखने लगता है। हालांकि हाल के दिनों में पार्टी ने कुछ प्रयोग किये हैं, लेकिन आत्मविश्वास अब भी कम ही है। बिहार में अन्य अभियानों के अलावा कांग्रेस माई-बहिन मान योजना पर ध्यान केंद्रित किये हुए हैं। इसके तहत पार्टी के कार्यकर्ता घर-घर जाकर महिलाओं से प्रपत्र भरवा रहे हैं। पार्टी को भरोसा है कि प्रपत्र भरने वाली महिलाएं उन्हें वोट देंगी। राजनीति को समझने वाले कहते हैं कि बदले हालात में आक्रामकता जरूरी है, जो कांग्रेस के अभियान में नहीं दिख रहा। पार्टी का कहना है कि परिणाम इस बार अप्रत्याशित होगा। केंद्रीय नेतृत्व के मार्गदर्शन में स्थानीय कार्यकर्ताओं की मेहनत रंग लायेगी।

वामदलों के पास कुल 15 विधायक
अब बात बिहार में इंडिया गठबंधन के घटक वाम दलों की। यहां भाकपा (माले) के 11 और भाकपा और माकपा के दो-दो विधायक विधानसभा में हैं। इस प्रकार वाम दलों के पास कुल 15 विधायक हैं। यहां भाकपा (माले) बिहार में जनाधार की बदौलत अपनी आक्रामकता के लिए पहचानी जाती है। हालांकि पूरे बिहार में उसका असर नहीं है, लेकिन जहां भी मौजूदगी है, वहां ठीक-ठाक है। पार्टी को विस्तार देने के लिए संगठन में लगातार काम चल रहा है। इन तीनों दलों के नेता भी अपनी समृद्धशाली सियासी अतीत की ओर लौटने की कोशिश में हैं। वाम दलों के हौसले इस बार पहले से अधिक बुलंद हैं। ये तीनों दल इस बार 45 सीटें मांग रहे हैं।

60 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कर रहे मुकेश सहनी
वीआइपी के मुखिया मुकेश सहनी हैं। पिछले चुनाव में उनकी पार्टी के तीन विधायक चुने गये थे। बाद में तीनों ने उनका साथ छोड़ दिया। फिलहाल वीआइपी का एक भी सदस्य विधानसभा में नहीं है। हालांकि तैयारियां जबरदस्त हैं। अपनी तैयारियों के बल पर मुकेश सहनी इस बार 60 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं। हालांकि उन्हें पता है कि इतनी सीटें नहीं मिलेंगी। फिर भी मुंह खोलने में क्या दिक्कत है। बताते हैं कि मुकेश सहनी इंडिया गठबंधन की कमजोर कड़ी हैं।

इंडिया गठबंधन के घटक दलों के इन दावों के बीच अब सबसे बड़ी चुनौती राजद के सामने है। पार्टी ने तेजस्वी यादव के लिए अपना सब कुछ झोंकने की तैयारी की है। ऐसे में सहयोगी दलों के दावों का बोझ वह कितनी दूर तक ढो सकेगी, यह देखना बेहद दिलचस्प होगा। फिलहाल तो इंडिया गठबंधन का सामूहिक नेतृत्व सब कुछ ठीक होने का दावा कर रहा है, लेकिन इस दावे में आत्मविश्वास की कमी साफ दिखाई दे रही है।

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