विशेष
आतंक के खिलाफ भारत की मुहिम का दुनिया भर में बजा डंका
सांसदों ने विदेश नीति पर एकजुटता दिखा नया उदाहरण सेट किया

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
पहलगाम आतंकी हमले के बाद केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने बड़ा फैसला लिया। भारतीय सेनाओं को आतंकियों पर एक्शन के लिए फ्री हैंड दे दिया। इसके बाद भारतीय सशस्त्र सेनाओं ने आॅपरेशन सिंदूर के जरिये पाकिस्तान को करारी चोट पहुंचायी। भारतीय सशस्त्र बलों ने पड़ोसी मुल्क को इस तरह से ध्वस्त किया कि उसे संघर्षविराम को मजबूर होना पड़ा। यही नहीं, इसके बाद मोदी सरकार ने कूटनीतिक दांव से दुनिया के सामने पाकिस्तान की पोल खोलने का फैसला लिया। भारत ने पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों को बेनकाब करने के लिए बेहद खास रणनीति अपनायी। इस रणनीति में सभी दलों के सांसदों को शामिल किया गया। मोदी सरकार ने इसमें विपक्षी सांसदों शशि थरूर, सलमान खुर्शीद और असदुद्दीन ओवैसी को अहम जिम्मेदारी देकर एक तीर से कई निशाने साधे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि ऐसे नेता की रही है जो अकसर ही अपने फैसलों से चौंकाते रहे हैं। ऐसा ही कुछ आॅपरेशन सिंदूर के बाद नजर आया, जब पाकिस्तान को बेनकाब करने के लिए सरकार ने सांसदों के अलग-अलग दलों को दुनिया भर में भेजने का फैसला किया। पीएम मोदी ने इन सियासी दिग्गजों पर यूं ही भरोसा नहीं जताया, बल्कि इन नेताओं की कूटनीति और मुस्लिम राष्ट्रों के प्रति इनकी अहम जानकारी को ध्यान में रखा गया। यह रणनीति बिल्कुल वैसी ही थी, जैसा कि 1994 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीएम नरसिंह राव ने अपनाया था, जब उन्होंने भाजपा के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी को इसी तरह संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारत का नेतृत्व करने के लिए चुना था। उस समय अटल बिहारी वाजपेयी के वहां पहुंचने पर पाकिस्तान भी हैरान था। पीएम मोदी ने भी कुछ वैसा ही निर्णय लिया। अपनी सरकार के आलोचकों को प्रधानमंत्री मोदी ने इस महत्वपूर्ण मिशन पर भेजा। इन नेताओं ने अलग-अलग देशों में आतंकियों के पनाहगाह माने जाने वाले पाकिस्तान को जमकर सुनाया। इस कूटनीतिक मिशन ने विदेश नीति पर भारत की एकजुटता तो प्रदर्शित की ही, सांसदों ने देश के भीतर की राजनीति को भी नयी दिशा दे दी है। अब जब ये प्रतिनिधिमंडल लौट आये हैं, इस पूरे घटनाक्रम के बारे में बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

‘आॅपरेशन सिंदूर’ के बाद पाकिस्तान दुनिया से सहानुभूति बटोरने के लिए जहां विश्व समुदाय में अनेक भ्रम, भ्रांतियां और भारत की छवि को बदनाम करने में जुटा है, वहीं भारत का डर दिखा-दिखा कर ही पाक अनेक देशों से आर्थिक मदद मांग रहा है। इन्हीं स्थितियों को देखते हुए दुनिया के सामने भारत का पक्ष रखने के लिए केंद्र की मोदी सरकार ने जिस तरह से सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों का गठन किया और इन दलों में विपक्षी दलों के सांसदों ने भारत का पक्ष बिना आग्रह, दुराग्रह और पूर्वाग्रह के दुनिया के सामने रखा, उसकी जितनी सराहना की जाये, कम है। इन विपक्षी नेताओं ने विदेश में भारतीय राष्ट्रवाद को सशक्त और प्रभावी तरीकों से व्यक्त किया। देश ने इन नेताओं को अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते और एक लय में आगे बढ़ते देखा, जबकि संसद में वे केवल आपस में लड़ते दिखायी देते थे। यह सराहनीय पहल भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि बनी है, जो भारत की भविष्य की राजनीति के भी नये संकेत दे रही है, क्योंकि इसने भारत में एक नये और सकारात्मक राजनीतिक नेतृत्व को उभरता हुआ दिखाया है।

थरूर और ओवैसी ने बटोरी तारीफ
वैसे तो सात दलों के सभी सदस्यों ने भरपूर तरीके से शानदार प्रदर्शन करते हुए भारत का पक्ष रखकर दुनिया को भारत के पक्ष में करने की सार्थक पहल की, लेकिन कांग्रेस के शशि थरूर और एआइएमआइएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी एक नये किरदार में नजर आये हैं। थरूर को लेकर कांग्रेस पार्टी में शुरू से ही विरोध और विरोधाभास की स्थितियां बनी रही। विदेशों में सटीक और प्रभावी भारतीय पक्ष रखने के कारण शशि थरूर ने जहां असंख्य भारतीयों की वाहवाही लूटी, वहीं कांग्रेस पार्टी में उनका भारी विरोध हो रहा है।

अन्य सांसदों ने भी खींची बड़ी लकीर
बड़ी लकीरें तो प्रतिनिधिमंडल में गये अन्य विपक्षी दलों के नेताओं ने भी खींची। इनमें एआइएमआइएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने विश्व की राजधानियों में भारत की स्थिति और मौजूद विकास को भी रेखांकित किया है। ओवैसी, जो भारत के अल्पसंख्यकों को प्रभावित करने वाले मुद्दों को उठाने के लिए जाने जाते हैं, ने पाकिस्तान को कड़ी भाषा में आड़े हाथों लिया। यहां तक कि उन्होंने पाकिस्तान द्वारा जारी की गयी फर्जी तस्वीरों का जिक्र करते हुए कहा कि नकल के लिए भी अकल चाहिए। ओवैसी की राष्ट्रवादी सोच तो समय-समय पर सामने आती रही है। इस तरह मुस्लिम नेतृत्व अगर उदारता दिखाता, तो देश के करोड़ों मुसलमानों के प्रति एक विश्वास और भाइचारे की भावना बढ़ती है। ओवैसी ने तो सबकी निगाहें अपनी ओर खींच ली थीं। इसी तरह डीएमके सांसद कनिमोझी करुणानिधि ने अपनी तल्ख और चतुरायी भरे अंदाज से भारतीयों एवं दुनिया का दिल जीत लिया। सांसद कनिमोझी ने स्पेन में अपने हिस्से का पक्ष रखते हुए भारत की राष्ट्रीय भाषा एकता और विविधता का जिक्र कर ऐसी बात कही है, जिसके बाद वह जमकर वाहवाही लूट रही हैं। कनिमोझी ने इसके साथ ही कहा कि हमारे अपने मुद्दे हो सकते हैं, अलग-अलग विचारधाराएं हो सकती हैं, संसद में हमारे बीच तीखी बहस हो सकती है, लेकिन जब भारत की बात आती है, तो हम एक साथ खड़े होते हैं, यही संदेश हम लेकर आये हैं। इसी तरह शिवसेना यूबीटी की प्रियंका चतुर्वेदी ने भारत को न केवल बुद्ध और गांधी, बल्कि श्रीकृष्ण की भूमि भी बताया, जिन्होंने पांडवों से आग्रह किया था कि धर्म की रक्षा के लिए आवश्यक हो तो युद्ध करने से न हिचकिचायें। अब यह देखना बाकी है कि क्या सरकार ऐसे और कूटनीतिक प्रयासों में विपक्षी नेताओं का इस्तेमाल करना जारी रखेगी।

अपने फैसलों से चौंकाते रहे हैं पीएम मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि ऐसे नेता की रही है, जो अक्सर ही अपने फैसलों से चौंकाते रहे हैं। दुनिया भर में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजने का फैसला भी ऐसा ही कुछ था। पीएम मोदी ने इन सियासी दिग्गजों पर यूं ही भरोसा नहीं जताया, बल्कि इन नेताओं की कूटनीति और मुस्लिम राष्ट्रों के प्रति इनकी अहम जानकारी को ध्यान में रखा गया।

असरदार रहा भारत का दांव
भारत के इस दांव का असर हुआ। भारतीय प्रतिनिधिमंडल जहां-जहां भी गया, वहां की सरकार ने सभी मुद्दों को समझा। कई देशों ने आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति का समर्थन किया। इस कदम से पाकिस्तान पर एक तरह का अंतरराष्ट्रीय दबाव जरूर बढ़ा है कि वह आतंकवाद को लेकर अपनी हरकतों से बाज आये।

पीएम मोदी के कूटनीतिक दांव से पाकिस्तान पड़ा अलग-थलग
पीएम मोदी के ओवैसी को प्रतिनिधिमंडल में शामिल करने कई वजहें थीं। इनमें सबसे प्रमुख बात यही थी कि वह बड़े मुस्लिम चेहरा हैं। ओवैसी जब मुस्लिम देशों के सामने भारत का पक्ष रखेंगे, तो उनकी बात में एक अलग वजन होगा। इसका असर नजर आया। पाकिस्तान के खिलाफ दुनिया के देशों ने आवाज बुलंद की।

क्या किया था नरसिंह राव ने
मोदी सरकार का यह कदम 1994 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव द्वारा अपनाये गये कदम के अनुरूप था। उस समय भारत सरकार ने जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार से जुड़े सत्र में एक प्रतिनिधिमंडल भेजने का फैसला किया था। इसका उद्देश्य कश्मीर समस्या पर भारत का पक्ष रखना और पाकिस्तान द्वारा समर्थित एक प्रस्ताव को विफल करना था, जिसमें नयी दिल्ली की निंदा की जाती। उस समय यह प्रयास बहुत सफल रहा था। वाजपेयी के नेतृत्व वाले प्रतिनिधिमंडल के हस्तक्षेप के कारण पाकिस्तान का प्रस्ताव गिर गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने विदेश नीति के धुरंधर माने जाने वाले विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को प्रतिनिधिमंडल का प्रमुख नियुक्त किया था। उनके साथ कश्मीर के फारूक अब्दुल्ला और राव सरकार के विदेश राज्यमंत्री सलमान खुर्शीद भी थे। संयुक्त राष्ट्र के बारे में गहन जानकारी के साथ प्रतिनिधिमंडल को मजबूत करने के लिए संयुक्त राष्ट्र में भारत के तत्कालीन राजदूत हामिद अंसारी को भी शामिल किया गया था।

 

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