चीन की सरकारी मीडिया ने भारत को धमकी दी है कि उनका देश सिक्किम-डोकलाम विवाद में पीछे नहीं हटेगा। यदि नई दिल्ली सीमा पर आमने-सामने आकर क्षेत्र पर अपना आधिपत्य जमाने की कोशिशें बंद नहीं करता है तो ऐसी स्थिति में बीजिंग भी सिक्किम की आजादी के समर्थन में अपीलों का साथ दे सकता है। गौरतलब है कि सिक्किम बॉर्डर पर भूटान ट्राइजंक्शन के पास डोकलाम में भारत और चीनी सैनिकों के बीच 20 दिन से गतिरोध जारी है।
ग्लोबल टाइम्स ने कहा, भारत के दलाई लामा कार्ड के प्रति चीन पहले से चौकन्ना है लेकिन भारत इसका पहले ही काफी इस्तेमाल कर चुका है और इसलिए तिब्बत मामले पर इसका और कोई असर नहीं पड़ने वाला। लेकिन यदि बीजिंग भारत से संबंधित संवेदनशील मुद्दों पर अपना रख बदलता है तो नई दिल्ली से निपटने के लिहाज से यह काफी शक्तिशाली कार्ड होगा। अपने आक्रामक रख के लिए जाने जाने वाले इस अखबार ने कहा कि चीन को सिक्किम पर अपने रुख पर फिर से विचार करना चाहिए।
इसमें कहा गया, हालांकि वर्ष 2003 में चीन ने सिक्किम के प्रति भारत के लगाव को पहचाना, लेकिन इस मुद्दे पर वह अपना रुख बदल भी सकता है। इसमें आगे कहा गया, सिक्किम में ऐसे लोग हैं जो उसके अलग राज्य के इतिहास को पसंद करते हैं और वे इसके प्रति भी संवेदनशील हैं कि बाहरी दुनिया सिक्किम मुद्दे को किस तरह देखती है। जब तक चीनी समाज में सिक्किम की आजादी का समर्थन करने वाले लोग हैं, वे अपनी आवाज उठाएंगे और सिक्किम में आजादी समर्थक अपीलों को बल देंगे।
सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के अखबार ने आरोप लगाया कि भारत हैरतंगेज ढंग से भूटान का दमन और नियंत्रण कर रहा है। इसी के परिणाम स्वरूप भूटान ने चीन या संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के किसी भी अन्य स्थायी सदस्य के साथ राजनयिक संबंध स्थापित नहीं किए हैं।
संपादकीय के अनुसार, सिक्किम की आजादी के समर्थन को लेकर चीनी समाज में जो आवाजें बुलंद हैं, वहीं आवाजें सिक्किम में आजादी की मांग को फैलाएंगी और सुलगाएंगी। संपादकीय में यह भी कहा गया है कि सिक्किम के लोग इस बात को लेकर ‘संवेदनशील’ हैं कि दुनिया उन्हें किस नजर से देखती है। सिक्किम का विलय भूटान के लिए भयावह सपने जैसा है। सिक्किम साल 1976 में भारत का हिस्सा बना। यह भारत का एक मात्र राज्य है, जिसकी सीमा चीन से सीमाबद्ध है।
ग्लोबल टाइम्स में कहा गया, 2003 में चीन ने सिक्किम पर भारत के कब्जे को स्वीकार कर लिया था, मगर अब वह इस मामले को लेकर अपने रुख पर पुनर्विचार कर सकता है। आपको बता दें कि डोकलाम में भारत की मजबूत स्थिति के चलते चीनी मीडिया लगातार बयानबाजी कर रहा है।