रांची: झारखंड में पहाड़ों के गायब होने एवं अवैध माइनिंग को लेकर कोर्ट के स्वत: संज्ञान से दर्ज जनहित याचिका की सुनवाई झारखंड हाइकोर्ट में हुई। हाइकोर्ट ने मामले में राज्य सरकार से मौखिक कहा कि आप राज्य के सभी पहाड़ को तोड़ देंगे, तो झारखंड में आनेवाली पीढ़ी के लिए क्या बचेगा। मामले की सुनवाई हाइकोर्ट के न्यायमूर्ति अपरेश कुमार सिंह एवं न्यायमूर्ति बीबी मंगलमूर्ति की खंडपीठ ने की। खंडपीठ ने राज्य सरकार से पूछा कि माइनिंग के तहत पहाड़ों को तोड़ने के लिए क्या कोई पॉलिसी बनायी गयी है। कोर्ट ने मामले में विस्तृत सुनवाई के लिए सोमवार की तिथि निर्धारित की।
कोर्ट ने मौखिक कहा कि झारखंड से स्टोन चिप्स, मिनरल देश के विभिन्न राज्यों में जाते हैं, जिससे दूसरे राज्यों में कंस्ट्रक्शन का काम होता है। राज्य में पहाड़ों का अस्तित्व धीरे-धीरे खत्म हो रहा है। किस पहाड़ को तोड़ना है और किसे नहीं, इसे लेकर पॉलिसी होनी चाहिए।
एमिक्स क्यूरी इंद्रजीत सिन्हा ने कोर्ट को बताया कि पहाड़ों को तोड़ने के लिए राज्य सरकार की कोई पॉलिसी नहीं है। यहां बिना नीलामी के मिनरल्स के उत्खनन की अनुमति दी जाती है। सरकार द्वारा यह भी चिह्नित नहीं किया गया है कि पहाड़ के कौन से हिस्से से माइनिंग करनी है और इसके किस क्षेत्र को छोड़ देना है। माइनिंग के लिए जो भी आवेदन देता है, उसके द्वारा निर्धारित जगह पर उसे मिनरल के उत्खनन की अनुमति दे दी जाती है।
इस पर कोर्ट ने मौखिक कहा कि सरकार द्वारा राज्य से सभी पहाड़ों को तोड़ने की अनुमति दे दी जाती है, तो आने वाले वर्षों में यहां की इकोलॉजी सिस्टम पर क्या असर पड़ेगा। यह चिह्नित किया जाना चाहिए कि पहाड़ के किस क्षेत्र से माइनिंग की जा सकती है और कहां से नहीं की जा सकती है।
राज्य के सभी पहाड़ को तोड़ देंगे, तो झारखंड में आनेवाली पीढ़ी के लिए क्या बचेगा: हाइकोर्ट
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