टूटी माला के मनकों की तरह झारखंड में बिखरा विपक्ष

कांग्रेस में उथल-पुथल, ऊहापोह की स्थिति
प्रदेश कांग्रेस पार्टी में अंतरकलह खुल कर सामने है। उधर पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व किसके हाथ में होगा, यह भी अभी तय नहीं हो पाया है। जाहिर है, शीर्ष नेतृत्व के बाद ही झारखंड का नेतृत्व तय होगा। कारण एक ओर जहां डॉ अजय कुमार ने प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है, वहीं दूसरी ओर डॉ अजय के खिलाफ खुलेआम बगावत पर कांग्रेस के आधा दर्जन दिग्गज नेता आ गये हैं। लोकसभा चुनाव का ठीकरा भी डॉ अजय के सिर पर फोड़ रहे हैं। कांग्रेस में अभी महागठबंधन को लेकर ऊहापोह की स्थिति है। पार्टी ने जिलाध्यक्षों से इस मुद्दे पर राय मांगी थी। राय आ भी गयी है। उस राय को लेकर प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी के साथ अगले सप्ताह बैठक होगी। उसमें तय होगा कि गठबंधन करना है या नहीं। करना है तो उसका स्वरूप क्या होगा। क्योंकि देश और राज्य की राजनीतिक स्थिति लोकसभा चुनाव के बाद काफी बदल चुकी है। वर्तमान में राष्टÑीय कांग्रेस में उथल-पुथल है। ऐसे में झारखंड के मसले पर पार्टी कितनी गंभीर होगी, यह देखना है। यह भी कयास लगाया जा रहा है कि कुछ वरीय नेता पार्टी छोड़ सकते हैं। ऐसे में सीट शेयरिंग पर फिलहाल पार्टी कुछ ज्यादा करने की स्थिति में नहीं है।
त्रिदेव के फेर में फंसा झाविमो
झाविमो की स्थिति भी कमोेबेश यही है। प्रदीप यादव के महासचिव पद से इस्तीफे के बाद कार्यकारिणी के सदस्यों ने पद से इस्तीफा दे दिया है। झाविमो के त्रिदेव में दो जेल के गेट पर खड़े नजर आ रहे हैं। वहीं तीसरे प्रकाश राम पार्टी की हालत देख कर भाजपा की ओर टकटकी लगाये हुए हैं। झाविमो के कद्दावर नेता प्रदीप यादव यौन शोषण के आरोप में फंसे हैं। उन्हें पुलिस वारंट लेकर रांची से गोड्डा तक तलाश रही है, वहीं बंधु तिर्की के खिलाफ नेशनल गेम्स घोटाले की फाइल खुल चुकी है। मामला कोर्ट में चल रहा है। उनकी अग्रिम जमानत की अर्जी खारिज हो चुकी है। ऐसी स्थिति में पार्टी सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी खुद को अकेला महसूस कर रहे हैं। वह पार्टी की सेहत ठीक करने में लगे हैं। इसके बाद ही झाविमो किसी तरह के फैसले पर पहुंचेगा। महागठबंधन में तीसरे पार्टनर के रूप में झारखंड विकास मोर्चा माना जाता है। लोकसभा चुनाव में बाबूलाल मरांडी ने झामुमो का नेतृत्व स्वीकार कर लिया था, लेकिन गुरुजी के दुमका हार जाने के बाद अब वह नये सिरे से इस पर विचारेंगे। सूत्रों की मानें तो बाबूलाल मरांडी किसी भी सूरत में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में चुनावी मैदान में नहीं उतरना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि किसी को प्रोजेक्ट कर चुनाव लड़ने से गठबंधन को नुकसान हो सकता है।

झारखंड में राजद हुआ खंड-खंड
राजद में भी घमासान मचा है। अभय कुमार सिंह को झारखंड राजद की कमान मिलने से नाराज राजद के नेताओं ने एक अलग दल राजद लोकतांत्रिक का ही गठन कर लिया। वह दल खुद को असली राजद बता रहा है। अब सवाल है कि आखिर महागठबंधन में कौन सा राजद हिस्सा बनेगा। इधर, तेजस्वी यादव खुद में ही उलझे हुए हैं। कई दिनों तक अज्ञातवाश में रहने के बाद पटना तो लौट आये हैं, लेकिन घर से बाहर नहीं निकल रहे हैं। लालू यादव भी रिम्स में भर्ती हैं। ऐसे में पार्टी का खेवनहार कौन बनेगा, यह ही अभी तय नहीं है। वहीं दूसरी ओर पार्टी में बड़े पैमाने पर हाल के दिनों में टूट हुई है। पार्टी के दिग्गज गिरिनाथ सिंह, अन्नपूर्णा देवी सरीखे नेता साथ छोड़ चुके हैं। गौतम सागर राणा ने अलग ही पार्टी बना ली है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि महागठबंधन में अगर राजद को लेने की बात आती है, तो कौन राजद इसमें शामिल होगा।

विस को लेकर झामुमो के माथे पर भी बल
विधानसभा चुनाव को लेकर झामुमो के माथे पर भी बल आ गया है। कारण दुमका से पार्टी सुप्रीमो शिबू सोरेन चुनाव हार गये हैं। झामुमो का मजबूत किला संथाल अब उसके हाथ से निकलता दिख रहा है। झामुमो तो चाहेगा कि महागठबंधन बने और हेमंत सोरेन उसके नेता, लेकिन अब अकेले उनके बूते की बात नहीं। हेमंत सोरेन लगातार कांग्रेस के नेताओं से संपर्क बनाये हुए हैं। वह समझ रहे हैं कि अगर महागठबंधन नहीं बना, तो हालात 2014 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनाव से भी बदतर होगा। इस लोकसभा में झारखंड मुक्ति मोर्चा महज एक सीट जीत सकी है। उसे 11.51 फीसदी वोट मिले हैं। इसी कारण हेमंत सोरेन विधानसभा चुनाव के लिए सहयोगी दलों के साथ जल्द से जल्द सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय कर लेना चाहते हैं। झारखंड की 81 विधानसभा सीटों में से जेएमएम 40 सीटों की मांग कर रहा है। 2014 के विधानसभा चुनाव में जेएमएम ने 19 सीटें जीती थीं।

नेतृत्व को लेकर झारखंड में फंसेगा कांटा
झारखंड में विपक्ष में नेतृत्व का कांटा फंस सकता है। वैसे भी महागठबंधन को देश नकार चुका है। सबसे मजबूत यूपी में बुआ और बबुआ के महागठबंधन का हश्र सबको पता है। बिहार में भी महागठबंधन की हवा निकल चुकी है। ऐसे में झारखंड के विस चुनाव में यह कितना सफल होगा, देखनेवाली बात होगी। वैसे, झारखंड नामधारी पार्टियों में एका की उम्मीद कम ही है। कारण राजनीति के कद्दावर नेता बाबूलाल मरांडी को किसी हाल में हेमंत का नेतृत्व रास नहीं आयेगा। इसी कारण गठबंधन होने की स्थिति में चुनाव के बाद ही नेता चुनने की स्थिति की बात झाविमो कर रहा है। उसका मानना है कि पहले चुनाव हो, इसके बाद जिस दल के ज्यादा विधायक होंगे, नेता उसके दल का होगा।
झारखंड में झामुमो की चुप्पी भी कई संदेश दे रही है। वहीं टूटी माला के मनकों की तरह बिखरा पड़ा विपक्ष अभी तक पराजय की धूल झाड़ रहा है। इस लिहाज से महागठबंधन के प्रमुख दलों के जानकार नेताओं का मानना है कि इस महीने सीटों के बंटवारे पर सहमति बन जाये, यह संभव नहीं दिखता है। साथ ही यह भी तय है कि महागठबंधन में जितना विलंब होगा, उतना ही खामियाजा महागठबंधन में शामिल दलों को उठाना पड़ेगा।

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