रांची। एक जमाना था जब रांची हर मामले में बिल्कुल ही शांत शहर के रूप में जाना जाता था। चाहे आपराधिक हो या सांप्रदायिक। यहां हमेशा शांति कायम रहती थी, लेकिन इधर कुछ सालों से रांची में भी अशांति फैलाने की कोशिश हो रही है। खासकर माहौल को बिगाड़ने की साजिश की जा रही है। बीते शुक्रवार को सड़क पर उतरी उत्पाती भीड़ ने रांची को अशांत करने की पूरी कोशिश की। विशेष समुदाय का नाम पूछ कर जानलेवा हमला किया गया। इस तथाकथित मॉब लिंचिंग में रांची के दो युवक शिकार हो गये, लेकिन आश्चर्य यह है कि यह घटना न तो सोशल मीडिया में आयी और न ही अखबारों की सुर्खिया बनी। हर तरफ सिर्फ तबरेज घटनाक्रम की बात हुई, हेथू की घटना की चर्चा रही, लेकिन मेन रोड में दो अमनपसंद और पारिवारिक युवक काम निबटा कर घटर जा रहे थे, तो सिर्फ नाम और धर्म पूछ कर बेरहमी से पिटाई की गयी, जान लेने की कोशिश की गयी, लेकिन यह घटना कहीं भी चर्चा में नहीं रही।
आइये जानते हैं क्या है पूरा घटनाक्रम
शुक्रवार को तबरेज हत्याकांड के विरोध में एक समुदाय विशेष ने विरोध सभा का आह्वान किया था। इसमें काफी संख्या में लोगों का जुटान भी हुआ। इसमें मॉब लिंचिंग का विरोध भी हुआ। आक्रोश भी व्यक्त किया गया। इसमें शामिल लोग मुंह पर काली पट्टी बांध कर हाथ में झंडा लेकर आग उगल रहे थे। इसी बीच मेन रोड की एक बस्ती के तीन युवकों ने बताया कि उनके साथ हेथू गांव में एक समुदाय विशेष के लोगों ने मारपीट की। इन युवकों का कहना था कि उस गांव में फुटबॉल मैच देखने गये थे, इसी क्रम में धर्म पूछने के बाद मारपीट की। दौड़ा-दौड़ा कर पीटा। जान बचाकर भागे हैं। इनके अभिभावक और कई लोगों ने मोबाइल पर यह सूचना वायरल कर दी कि प्रोसेशन के दौरान ही एक समुदाय के लोगों ने मारपीट की है। धर्म पूछ कर मारा है, यह ठीक नहीं है। इसके बार एकरा मसजिद के बाहर उत्पाती भीड़ जमा होने लगी। यहां क्या हुआ, यह बताने के पहले आजाद सिपाही हेथू गांव के उन ग्रामीणों से बात की, उनकी बात अब तक नहीं आ पायी है। पूरी रांची और एक समुदाय विशेष को यह पता है कि तीन युवक फुटबॉल मैच देखने के लिए हेथू गये थे। इसी दौरान गांववालों ने संप्रदाय पूछ कर सजा दे दी।
अब हेथू की ग्रामीणों को सुनिये
हेथू के ग्रामीणों का कहना है कि ये लड़के शुक्रवार को ही नहीं, दो-तीन माह से लगातार आ रहे थे। आने-जानेवाली लड़कियों और महिलाओं के साथ छेड़खानी कर रहे थे। इनकी तस्वीरें भी मोबाइल में कैद कर रहे थे। इन्हें मना भी किया जा रहा था, लेकिन यह मानने को तैयार नहीं थे। शुक्रवार को तीन नहीं, बल्कि चार लड़के हेथू गांव गये थे। इसमें एक लड़की भी थी। एक गैर मुस्लिम युवक भी था। जो घटना के बाद भाग गया। इन लोगों ने बताया कि इसलिए उन्हें पीटा गया कि गांव वालों को यह पसंद नहीं हुआ कि दूसरे संप्रदाय के लोग यहां मैच देखने कैसे आ गये। यह बात अपने आप पर हास्यापद है। काश! एकरा मसजिद के पास खड़ी भीड़ यह जानने की कोशिश की होती कि आखिर हेथू गांव की सच्चाई क्या है। उस समय पुलिस ने भी इस मामले की सच्चाई जानने की कोशिश नहीं की। बिना जाने-समझे भीड़ ने फर्जी कहानी पर एक जानलेवा घटना को अंजाम दे दिया। अब सवाल यह है कि आखिर भीड़ को बिना समझे कानून हाथ में लेने का अधिकार किसने दे दिया है। हेथू गांव की घटना को जिस तरह से तीन उत्पाती युवकों ने बयान किया, इसके बाद लोगों को लगने लगा कि अन्याय हुआ है, लेकिन किसी ने भी उस घटना की सच्चाई जाने बगैर रांची की जान को सांसत में डाल दिया। दो युवकों को अपना शिकार बना लिया।
तबरेज की घटना दुखद है, लेकिन इसमें रांची को भी आत्ममंथन करने की जरूरत है कि हर घटना को मॉब लिंचिंग के रूप में देखा नहीं जा सकता है। कहीं टेंपोवाला गंजा पीकर मारपीट करता है, तो कहीं छेड़खानी और चोरी की घटना के बाद मारपीट की जाती है, इसे मॉब लिंचिंग की तरह नहीं देखा जाना चाहिए। इसे समुदाय विशेष से भी जोड़ कर देखा जाना उचित नहीं है। कारण अपराध और अपराधी का कोई जाति-धर्म नहीं होता है, उसका मकसद तो सिर्फ समाज में अशांति फैलाना होता है। कहीं न कहीं कुछेक लोग इस मकसद में शायद कुछ देर के लिए कामयाब भी हो गये। लेकिन यह कहीं से भी रांची की सेहत के लिए ठीक नहीं माना जा सकता है। अगर अब भी समाज के प्रबुद्ध लोग और ठेकेदार नहीं चेते, तो दोनों समुदाय के बीच बड़ी खाई से कोई रोक नहीं सकता है। अगर हेथू में गलत हुआ था, तो इसे उचित मंच पर बात रखनी चाहिए थी, भीड़ को आखिर कानून हाथ में लेने का अधिकार किसने दे दिया। अगर ऐसे में सब कुछ चलता रहा, तो वह दिन दूर नहीं, जब रांची की शांति को कुछ असामाजिक लोगों की नजर लग जायेगी। समुदाय विशेष के लोगों को यह भी बताना चाहिए कि आखिर काम से घर लौट रहे विवेक और दीपक का कसूर क्या था। कसूर सिर्फ यही था कि अव उनकी जाति और संप्रदाय के नहीं थे। आज स्थिति यह है कि दीपक अंदरुनी चोट से मेडिका में कराह रहा है, तो विवेक जिंदगी की जंग लड़ रहा है। समाज के उन ठेकेदारो को यह बताना चाहिए कि जब भीड़ जमा किये, लेकिन इस भीड़ को मारने की जरूरत कहां थी। सेहत समाज के लिए यह कलंक है। अगर इस तरह से जाति और धर्म पूछ कर लोगों को मारा-पीटा जायेगा, तो रांची की फिजा में अमन-चैन कैसे रहेगा।
एकरा मसजिद के पास क्या हुआ
घटना की कहानी, पीड़ित दीपक की जुबानी
मेडिका में भर्ती दीपक और विवेक ने बताया कि काम कर घर लौट रहे थे। रातू रोड के इंद्रपुरी रोड नंबर 13 में रहते हैं। किसी अनहोने से अंजान घर जल्दी लौटने की बेचैनी में दोनों युवक बेखौफ घर जा रहे थे। पंजाब स्वीट से आगे बढ़े, तो कुछ लोगों ने उन्हें रोका। पूछा कि नाम क्या है। बड़ी ही आत्मीयता से दोनों ने अपना नाम बताया। इसके बाद भीड़ में शामिल लोगों को नाम सुनते ही गुस्सा आ गया। इसके बाद फिर क्या था। लगे पीटने। फुटबॉल की तरह उछाल-उछाल कर पीटा। इसी बीच एक युवक ने विवेक पर चाकू से वार कर दिया। वह वहीं पर खून से लथपथ कराहने लगा। इसी बीच दो पुलिसकर्मियों की नजर उन पर पड़ी। दोनों पुलिसकर्मी भीड़ से युवकों को बचा कर सदर अस्पताल ले गये, यहां से इन्हें रेफर कर दिया गया। इसी पूरी घटना की जानकारी दीपक ने विवेक और अपने परिजनों को दी। स्थिति यह थी कि दीपक एक ओर दर्द से कराह रहा था, तो दूसरी ओर विवेश जिंदगी की जंग लड़ रहा था। दोनों का इलाज अभी मेडिका में चल रहा है। यह खबर शनिवार की सुबह रांची में फैली, इसके बाद सांसद, मंत्री तक पहुंचे। परिजनों का ढांढस बंधाया और उचित इलाज का आश्वासन भी दिया।
दोषियों पर होगी कार्रवाई: सांसद
दीपक और विवेक को देखने पहुंचे सांसद संजय सेठ ने कहा कि किसी भी हाल में दोषियों को छोड़ा नहीं जायेगा। साथ ही मेन रोड में जुलूस-प्रदर्शन का आदेश देनेवाले अधिकारी पर भी कार्रवाई की जायेगी। धर्म विशेष का नाम पूछ कर मारपीट करना कतई बर्दाश्त नहीं होगा। रांची के अमन चैन को बिगाड़ने का अधिकार किसी को नहीं है। साथ ही कहा कि इलाज का समुचित इंतजाम कर दिया गया है। परिजनों को इसकी चिंता नहीं करनी है।
घर की माली हालत जान कर रो पड़ेंगे आप
दर्द से बिलबिला रहा दीपक, आंसू बता रहे विवेक की बेबससी
रांची। इस घटना के शिकार बने दीपक और विवेक के घर की माली हालत जान कर आप रो पड़ेंगे। आर्थिक तंगी का आलम जिंदगी की जंग लड़ रहे 25 वर्षीय विवेक कुमार की आंखों में शनिवार की दिखाई पड़ी। आॅक्सीजन लगा है, लोगों को वह इशारे में जरूर कह रहा है कि ठीक है। लेकिन शून्य में टिकी उसकी निगाहें कई सवाल खड़े कर रही है। मानो यह पूछ रही है कि आखिर हमारा क्या कसूर था। आखिर परिजनों को इस मुसीबत में क्यों डाल दिया। विवेक का फिलवक्त आॅपरेशन नहीं हुआ है, लेकिन मेडिकल बोर्ड की टीम लगी है। बावजूद इसके विवेक की आंखें कई सवाल खड़े कर रही है। वह अपनी मां कुंती का हाथ पकड़ कर यह बताने की कोशिश कर रहा है कि वह ठीक है। लेकिन जैसे ही वह मां का हाथ पकड़ता है, मां के आंसू भी छलक जा रहे थे। वह किसी तरह से आंचल में आंसू को समेट कर बाहर निकलती है और फफक पड़ती है। कहती हैं कि आखिर मेरे लाल का क्या कसूर था। अगर कुछ हो गया तो इसके पापा के दवाई कौन लाकर देगा। वह ह्रदय रोग से पीड़ित हैं। इसमें होनेवाले खर्च का वहन कैसे हो पायेगा। कारण इस मां के पास अभी इलाज के नाम पर महज कुछ रुपये ही हैं। हालांकि उसे सांसद संजय सेठ के आश्वासन पर पूरी उम्मीदें हैं। इसी बीच विवेक के बहनोई सास को कुछ खिलाने की कोशिश करते हैं, लेकिन इस मां की आंखों से अविरल आंसुओं की धार निकल रही है। लाख कहने पर भी वह मानने को तैयार नहीं है, लेकिन पानी की घूंटें जरूर पीती हैं। बताती हैं कि विवेक घर का एकमात्र कमाऊ पुत है। उसके वेतन से ही घर का पूरा खर्च चलता है। अब घर का क्या होगा। इधर, दीपक भी दर्द से बिलबिला रहा है। उसके घर की बेबसी भी कुछ विवेक की तरह ही है। दोनों बेटे के इलाज और दवा का खर्च कैसे होगा। क्या शहर को अशांत करनेवाले तथाकथित धर्म के ठेकेदारो को इस मां का दर्द नहीं समझ आ रहा है। अब सवाल है कि अगर ऐसे ही धर्म और जाति पूछ कर लोगों को आग में झोंका गया, तो वह दिन दूर नहीं जब अमनपसंद रांची को नजर लग जायेगी।