पैंगोंग के फिंगर एरिया के साथ-साथ अब चीन ने डेप्सांग में भारत के खिलाफ नया मोर्चा खोल दिया है। भारतीय सीमा में लगभग 12 किमी. अंदर आकर डेप्सांग में कब्जा जमाए बैठे चीनी सैनिक आखिर वापस क्यों नहीं लौटना चाहते? इन्हें यहां से कैसे पीछे किया जाए? इन्हीं सवालों का जवाब जब कोर कमांडरों की 14 घंटे की बैठक में नहीं मिला तो अब एलएसी के मामलों के लिए बनी ‘हाई पावर्ड कमेटी’ तलाश रही है।
पीपुल्स लिबरेशन ऑर्मी (पीएलए) के सैनिक भारतीय सैनिकों को पेट्रोलिंग पॉइंट्स तक नहीं जाने दे रहे हैं। यह भारतीय सीमा का डेप्सांग मैदानी इलाका है जहां चीनियों ने घुसपैठ कर रखी है। भारत चाहता है कि डेप्सांग के मैदानी इलाके सेे चीनी सेना पूरी तरह हटकर वापस 12 किमी. अपनी सीमा मेें जाए और यहां एलएसी दोनों पक्षों के बीच व्यापक रूप से स्पष्ट हो। यह वही इलाका है जहां पर चीन की सेना ने 2013 में भी घुसपैठ की थी और दोनों देशों की सेनाएं 25 दिनों तक आमने-सामने रही थींं। अब सेटेलाइट तस्वीरों से पता चला है कि चीनियों ने यहां पर नए शिविर और वाहनों के लिए ट्रैक बनाए हैं जिसकी पुष्टि जमीनी ट्रैकिंग के जरिये भी हुई है। इसके अलावा बड़ी तादाद में सैनिक, गाड़ियां और स्पेशल एक्यूपमेंट इकठ्ठा किया है।
चीन ने ये बेस 2016 से पहले ही बनाए थे लेकिन भारत ने मई के अंत में ही भांप लिया था कि चीन अगली लामबंदी डेप्सांग में कर सकता है, इसीलिए भारतीय सैनिकों ने तभी से इस क्षेत्र में अपनी मौजूदगी पुख्ता कर ली थी।भारत और चीन के बीच सीमा विवाद के बीच एक बड़ा मुद्दा डेप्सांग घाटी भी रहा है। डेप्सांग घाटी के पास ही दुनिया की सबसे ऊंची हवाई पट्टी दौलत बेग ओल्डी है जिसे भारतीय वायुसेना ने बनाया है। डेप्सांग घाटी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल ( एलएसी) के पास स्थित है। पूर्वी लद्दाख के जिस डेप्सांग मैैैदानी इलाके में चीनी सेना भारतीय सैनिकों की पेट्रोलिंग में बाधा डाल रही है, वो भारत-चीन सीमा के सामरिक दर्रे काराकोरम पास के बेहद करीब का इलाका है। यहां से चीन के कब्जे वाला अक्साई चिन क्षेत्र लगभग 7 किमी. दूर है।
दुरबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी रोड यानी (डीएसडीबीओ) इसी के करीब से होकर जाती है। यहां से दौलत बेग ओल्डी की दूरी 30 किलोमीटर है। इस डेप्सांग प्लेन में कुल पांच पेट्रोलिंग प्वाइंट (पीपी) 10, 11, 11ए, 12 और 13 हैं जहां चीनी सेना भारतीय सैनिकों को गश्त करने से लगातार रोक रही है। दरअसल यहां एक वाई-जंक्शन बनता है, जो बुर्तसे से कुछ किलोमीटर पर है। उसी से सटे दो नालों जीवन नाला और रकी नाला के बीच में ये पांच पेट्रोलिंग प्वाइंट हैं। साफ है कि गलवान घाटी, फिंगर-एरिया, पैंगोंग झील और गोगरा (हॉट स्प्रिंग) के बाद पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन की सेनाओं के बीच ये पांचवांं विवादित इलाका है।
चीनी सेना एलएसी यानि लाइन ऑफ एक्चयुल कंट्रोल को पश्चिम की तरफ धकेलना चाहती है ताकि डेप्सांग प्लेन्स में कुछ इलाकों उसका कब्जा बना रहे। भारत ने अप्रैल 2013 के फेसऑफ के करीब चार महीने बाद ही वायुसेना ने डीबीओ में सालों से बंद पड़ी 16,614 फीट की ऊंचाई पर अपनी हवाई पट्टी को फिर से शुरू किया था। उस दौरान वायुसेना ने अपने मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट सी-130जे सुपर हरक्यूलिस को यहां पर लैंडिंग कर दुनिया की सबसे ऊंची हवाई पट्टी का खिताब हासिल किया था। ये हवाई पट्टी 62 के युद्ध के दौरान बनाई गई थी लेकिन कुछ साल बाद ही इस इलाके में भूकंप आने के बाद ये क्षतिग्रस्त हो गई थी।
वायुसेना के पूर्व एयर वाइस मार्शल मनमोहन बहादुर बताते हैं कि वे खुद 1980 में डीबीओ और बुर्तसे में अपने चेतक हेलीकॉप्टर्स की लैंडिंग कराते थे। ऐसे में चीन द्वारा एलएसी को पश्चिम की तरफ खिसकना सरासर गलत है।