चमकदार कॉरपोरेट दुनिया से सीधे चुनावी मैदान में धमाकेदार इंट्री करनेवाले गोड्डा के सांसद निशिकांत दुबे एक बार फिर चर्चा में हैं। वैसे तो चुनावी राजनीति में 2009 में उनकी इंट्री ही बेहद चर्चित रही थी, लेकिन लोकसभा सांसद के तीसरे कार्यकाल में वह कई तरह के विवाद में फंसते जा रहे हैं। पहले ठगी और जबरन वसूली के आरोप में 2015 में उनके खिलाफ एक मामला दिल्ली में दर्ज किया गया था। कुछ दिन पहले उनकी पत्नी द्वारा देवघर में 20 करोड़ रुपये की जमीन तीन करोड़ नगद देकर खरीदने का मामला भी काफी जोर-शोर से उछला और अब सांसद की शैक्षणिक योग्यता को लेकर ही सवाल उठने लगे हैं। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है और खुद सांसद को सामने आकर स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए, क्योंकि इसमें हो रही देरी से न केवल उनकी, बल्कि उनकी पार्टी की भी किरकिरी हो रही है। उनकी शैक्षणिक योग्यता को लेकर जो आरोप लगाये गये हैं, वे काफी गंभीर हैं और जब तक इनकी जांच नहीं होती, सांसद को सवालों के घेरे में ही रहना होगा। झारखंड में यह पहला अवसर है, जब यहां का कोई सांसद इतने गंभीर आरोपों में घिरा हो और उसकी तरफ से आरोपों का खंडन करने की बजाय इधर-उधर की बातें की जा रही हों। निशिकांत दुबे के बारे में उठे इस नये विवाद का असर राजनीतिक हलकों पर पड़ना स्वाभाविक है और हैरत की बात यह है कि अपने सांसद के बचाव में पार्टी भी सामने आने से बच रही है। इस पूरे विवाद पर आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

डॉ निशिकांत दुबे, झारखंड की राजनीति का एक चमकदार नाम, जो कॉरपोरेट की चमचमाती दुनिया से सीधे चुनावी राजनीति के ऊबड़-खाबड़ पथ पर चलने आया और सीधे लोकसभा सांसद बन गया। एक बार नहीं, दो बार नहीं, तीन बार। मिथिलांचल में एक कहावत है, तीन फुके चानी, मतलब तीन बार फूंक मारने से चांदी की असली चमक सामने आ जाती है। एक सांसद के रूप में निशिकांत दुबे की तीसरी पारी के एक साल के भीतर ही उनकी चमक सामने आने लगी है। गोड्डा के सांसद हर दिन नये विवाद में घिरते जा रहे हैं।
झारखंड के लिए यह पहला मौका है, जब यहां का कोई सांसद इस तरह के विवादों में घिर हो। डॉ निशिकांत दुबे ने इस मायने में कीर्तिमान बना दिया है। लोग उनके बारे में बहुत अधिक नहीं जानते हैं, क्योंकि वह कभी सार्वजनिक जीवन में रहे ही नहीं। भागलपुर से पढ़ाई पूरी करने के बाद वह कॉरपोरेट जगत की नौकरी में चले गये और फिर सीधे दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी का उम्मीदवार बन कर लौटे। झारखंड में बहुत से भाजपाई आज भी इस बात पर आश्चर्य व्यक्त करते हैं कि जिस टिकट के लिए लोग पूरा जीवन खपा देते हैं, वह डॉ दुबे को कैसे मिल गया। क्या वह भी चांदी के चम्मच मुंह में लेकर पैदा हुए थे।
बहरहाल, डॉ निशिकांत दुबे सांसद के रूप में अपने तीसरे कार्यकाल में जिन विवादों में घिर गये हैं, उनसे उनकी छवि पर विपरीत असर पड़ रहा है। उनके बारे में पहला विवाद तब शुरू हुआ, जब देवघर के एलओकेसी में उनकी पत्नी ने एक बेशकीमती भूखंड औने-पौने दाम पर खरीद ली। आरोप लग रहा है कि उस भूखंड की कीमत 20 करोड़ रुपये है, लेकिन सांसद की पत्नी ने उसे महज तीन करोड़ रुपये में खरीद लिया और वह भी नगद भुगतान से।
सांसद की पत्नी के पास इतनी रकम नगद कहां से आयी, इस बारे में आज तक कुछ पता नहीं चला है। इस बारे में सांसद ने सफाई दी है कि जमीन का सौदा उनकी पत्नी ने किया है। इससे उनका कोई लेना-देना नहीं है। बाद में उन्होंने कहा कि सौदा कैसे हुआ, यह रजिस्ट्रार से पूछा जाना चाहिए, क्योंकि सभी जमीन का मालिक रजिस्ट्रार होता है।
अब सांसद अपने शैक्षणिक योग्यता को लेकर नये विवाद में फंस गये हैं। 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने जो हलफनामा दिया था, उसमें उन्होंने अपनी शैक्षणिक योग्यता के कॉलम में 1993 में दिल्ली विश्वविद्यालय से एमबीए (पार्ट टाइम) लिखा है। 2019 के लोकसभा चुनाव के समय उनके द्वारा दायर हलफनामे के अनुसार 2018 में उन्होंने प्रताप यूनिवर्र्सिटी, जयपुर से मैनेजमेंट में पीएचडी की उपाधि हासिल की। विवाद तब पैदा हुआ, जब दिल्ली विश्वविद्यालय ने सूचना के अधिकार के तहत मांगी गयी जानकारी में साफ किया कि 1993 में उसके यहां निशिकांत दुबे नामक कोई छात्र नहीं था। इसका मतलब यह है कि 2009 में निशिकांत दुबे द्वारा दिया गया हलफनाम गलत है। तब यदि उन्होंने स्नातकोत्तर की डिग्री नहीं ली है, तो फिर उन्हें पीएचडी की उपाधि कैसे मिल गयी, यह भी बड़ा सवाल है।
इस मामले में सांसद की सफाई दिलचस्प है। जब उनकी शैक्षणिक योग्यता पर सवाल उठा, तब उन्होंने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय ने जो सूचना दी है, वह फर्जी है, क्योंकि वह सूचना मांगनेवाला व्यक्ति फर्जी है। यानी यदि शराब की दुकान में दूध बेची जाये, तो वह भी नशीली हो जायेगी। सांसद ने यह नहीं बताया है कि सूचना सही है या गलत।
दरअसल निशिकांत दुबे का विवादों से पुराना नाता रहा है। 2014 के चुनाव से ठीक पहले तीन अप्रैल को उनके और उनकी पत्नी के खिलाफ जबरन वसूली और मारपीट का आरोप लगाते हुए दिल्ली के तुगलक रोड थाने में एक प्राथमिकी दायर की गयी थी। संदीप शर्मा नामक व्यक्ति ने उसमें आरोप लगाया है कि सांसद और उनकी पत्नी 19 नवंबर, 2013 को उनके घर में घुस गयीं और दो करोड़ रुपये की मांग की। रकम नहीं देने पर अंजाम भुगतने की धमकी दी और मारपीट भी की गयी। इससे पहले भी 2009 में निशिकांत दुबे जब टिकट लेकर जसीडीह स्टेशन पहुंचे थे, तब उनके समर्थकों और विरोधियों में जम कर मारपीट हो गयी थी। यह मामला अब तक अदालत में चल रहा है।
एक सांसद के रूप में इतने आरोपों-विवादों में घिरने के बावजूद डॉ निशिकांत दुबे अपनी सफाई देने की जरूरत महसूस नहीं करते। उल्टे वह सवाल उठानेवालों को ही कठघरे में खड़ा करने लगते हैं। उनका मानना है कि जो खुद दागी हो, उसे किसी पर आरोप लगाने का अधिकार नहीं होता। उनकी यह परिभाषा लोगों के गले नहीं उतर रही है। उन पर जो आरोप लगे हैं, उनसे न केवल उनकी अपनी, बल्कि पूरी पार्टी की छवि पर असर पड़ रहा है। ऐसे में सबसे हैरत की बात यह है कि भाजपा भी उनके साथ खड़ी दिखाई नहीं दे रही है।
अब जब तक इन आरोपों की जांच नहीं हो जाती है, डॉ निशिकांत दुबे की छवि दागदार बनी रहेगी। इसलिए अच्छा यही है कि वह खुद इन आरोपों की जांच की मांग करें, ताकि जनता की अदालत में वह एक बार फिर गुहार लगाने के लायक बने रह सकें।

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