धूर्त दुश्मनों से घिरे भारत के लिए राफेल विमान उस अक्षय कवच की तरह है, जिसे द्वापर युग में सूर्य ने कर्ण को और त्रेता युग में भगवान राम को गुरु विश्वामित्र ने दिया था। जैसे उस कवच पर किसी भी हथियार का प्रभाव नहीं पड़ता था, ठीक उसी तरह फ्रांस में बने राफेल लड़ाकू विमान को दुनिया की कोई भी आंख न देख सकती है और न मार सकती है। भारत की तरफ आंख उठा कर देखनेवालों के लिए यह लड़ाकू विमान वाकई काल बनेगा, क्योंकि इसकी गति और इसकी मारक क्षमता बेमिसाल है। भारतीय वायुसेना ने हर युद्ध में अपनी क्षमता और शौर्य का शानदार प्रदर्शन किया है। अब राफेल से सुसज्जित हमारी वायुसेना और अधिक विनाशक शक्ति हासिल कर रही है। कुछ घंटे बाद पांच राफेल विमानों का पहला जत्था भारतीय आकाश में पहुंचने वाला है, तो इस मौके पर इस अत्याधुनिक लड़ाकू विमान की ताकत और दूसरे पहलुओं को समेटती आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

अब से कुछ घंटे बाद जब करीब साढ़े सात हजार किलोमीटर का सफर तय कर पांच राफेल विमान भारतीय वायु सीमा में प्रवेश करेंगे, तब 130 करोड़ की आबादी वाला दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश दुनिया के सैन्य इतिहास का महत्वपूर्ण अध्याय लिखेगा। अपने धूर्त पड़ोसियों के कारण सीमा पर जारी तनाव के बीच फ्रांस में बने पांच राफेल लड़ाकू विमान हासिल करने के बाद भारत की मारक क्षमता कई गुना बढ़ जायेगी। इसलिए राफेल को बड़ा गेम चेंजर कहा जा रहा है। करीब 59 हजार करोड़ रुपये में फ्रांस से खरीदे गये बेहद आधुनिक और शक्तिशाली राफेल विमानों से भारतीय वायुसेना की ताकत बढ़ेगी। उन्नत हथियार, उच्च तकनीक सेंसर, लक्ष्य का पता लगाने और ट्रैकिंग के लिए बेहतर रडार और प्रभावशाली पेलोड ले जाने की क्षमता वाले ये लड़ाकू विमान भारतीय वायुसेना की शानदार परंपरा में चार चांद लगाने में कामयाब होंगे।
राफेल विमान में हर वह खूबी मौजूद है, जिसकी जरूरत आज के युग में होती है। राफेल जेट दिखाई देने वाले रेंज से बाहर भी मिसाइल से हवा से हवा में मार करने में सक्षम हैं। इसके साथ ही ये मीका मल्टी-मिशन एयर-टू-एयर मिसाइलों और स्कैल्प डीप-स्ट्राइक क्रूज मिसाइलों से लैस होंगे। ये वे हथियार हैं, जिनसे लड़ाकू पायलट पहाड़ों में भी दुश्मनों के हवाई और जमीनी ठिकानों पर हमला कर सकेंगे। दुनिया की सबसे घातक समझी जाने वाली हवा से हवा में मार करने वाली मेटयोर मिसाइल चीन तो क्या, किसी भी एशियाई देश के पास नहीं है। मेटयोर मिसाइल की रेंज करीब 150 किलोमीटर है। हवा से हवा में मार करने वाली यह मिसाइल दुनिया की सबसे घातक हथियारों में गिनी जाती है। राफेल में हैमर मिसाइल भी लगी है। ये 60 से 70 किमी की दूरी से हमला कर सकती है। बंकर समेत किसी भी निशाने को ध्वस्त करने में यह सक्षम है। इसके अलावा राफेल के साथ तीन गेम चेंजर मिसाइलें और लगी हैं।
राफेल का खाली वजन 10 टन है और इसका अधिकतम टेक-आॅफ वजन लगभग 25 टन है। यहां तक कि परिवहन विमान की भी इस तरह की क्षमता नहीं होती है। राफेल एक बार में बहुत सारे हथियार ले जा सकता है। राफेल कई तरह के मिशनों को अंजाम देने में सक्षम है। जमीनी और समुद्री हमला, वायु रक्षा, टोही और परमाणु हमले को रोकने में भी सक्षम है। यह लगभग 10 टन हथियार और पांच टन ईंधन ले जा सकता है। इसकी अधिकतम रफ्तार 1389 किलोमीटर प्रति घंटा है। एक बार उड़ान भरने के बाद यह 37 सौ किलोमीटर तक का सफर तय कर सकता है। राफेल की ईंधन क्षमता 17 हजार किलोग्राम है। यह एक मिनट में 60 हजार फुट की ऊंचाई तक जा सकता है। आकार में सुखोई से छोटा होने के चलते इस्तेमाल करना आसान है।
आधुनिक युद्ध सिस्टम के बीच लड़े जाते हैं। राफेल को वायुसेना के युद्ध लड़ने वाले आर्किटेक्चर में एकीकृत किया जाना है। यह एक ऐसा काम है, जिसे वायुसेना निश्चित रूप से तेज गति से करेगी। लेकिन इसके लिए एक निश्चित समय की आवश्यकता होगी। पूरी तरह से एकीकृत होने के बाद राफेल भारतीय वायुसेना की आक्रामक योजनाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होगा। राफेल के हथियार पैकेज और द एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैंड ऐरे (एइसा) रडार इसे एक शक्तिशाली प्लेटफॉर्म बनाती है। राफेल भारतीय वायुसेना के लिए एक युद्ध विजेता और चीन के साथ सैन्य तनाव के समय एक विशाल मनोबल बढ़ाने वाला होगा। वायुसेना के बेड़े में राफेल के शामिल होने से उसकी युद्ध क्षमता में महत्वपूर्ण वृद्धि होगी। भारत को यह लड़ाकू विमान ऐसे समय में मिल रहा है, जब उसका पूर्वी लद्दाख में सीमा के मुद्दे पर चीन के साथ गतिरोध चल रहा है।
36 राफेल युद्धक विमानों को फ्रांस से खरीदने की घोषणा अप्रैल 2015 में की गयी थी। इस समझौते पर एक साल से अधिक समय के बाद हस्ताक्षर किये गये थे। एक विमान की कीमत करीब 90 मिलियन यूरो, यानी करीब 673 करोड़ रुपये है, लेकिन इस विमान में लगने वाले हथियार, सिम्यूलेटर, ट्रेनिंग मिलाकर एक राफेल की कीमत करीब 16 सौ करोड़ रुपये पड़ेगी।
राफेल का पहला घर अंबाला स्थित एयरबेस होगा। इसकी पहली स्क्वाड्रन का नंबर 17 होगा और इसे ‘गोल्डन-एरोज’ नाम दिया गया है। इस स्क्वाड्रन में 18 राफेल लड़ाकू विमान होंगे, तीन ट्रेनर और बाकी 15 फाइटर जेट। राफेल विमानों की दूसरी स्क्वाड्रन बंगाल के हाशिमारा में तैनात की जायेगी। उसमें भी 18 राफेल होंगे। अंबाला एयरबेस पर राफेल को तैनात करने के पीछे का कारण यह है कि यहां पर भारत के जंगी बेड़े की सबसे घातक और सुपरसोनिक मिसाइल, ब्रह्मोस की स्क्वाड्रन भी तैनात है।
राफेल का निर्माण फ्रांस की कंपनी दसॉल्ट ने किया है। इस कंपनी का भारत से रिश्ता 67 साल पुराना है। 1953 में पहली बार नेहरू जी ने भारतीय वायुसेना के लिए ‘तूफानी’ का सौदा इसी कंपनी के साथ किया था। भारत ने इस विमान का इस्तेमाल 1961 में भारत के द्वीप दीव को पुर्तगाली कब्जे से आजाद कराने के लिए उसके ठिकानों पर किया। 1962 में असम और नगालैंड में उग्रवादियों को खदेड़ने में भी ये विमान कारगर रहे। 1962 में चीन के साथ युद्ध के दौरान भी इसका इस्तेमाल किया गया। राफेल शब्द का मतलब ही होता है तूफान। विस्तार से कहें तो ‘अचानक उठा हवा का झोंका’। इतिहास के पन्ने को पलटें तो ‘तूफानी’ से शुरू हुआ यह रक्षा सफर राफेल यानी की ‘तूफान’ तक आता दिखायी दे रहा है।

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