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    Home»Jharkhand Top News»झारखंड में स्वास्थ्य विभाग की कठिन परीक्षा
    Jharkhand Top News

    झारखंड में स्वास्थ्य विभाग की कठिन परीक्षा

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskJuly 27, 2020No Comments5 Mins Read
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    कोरोना महामारी के दौर में झारखंड ने बहुत कुछ सीखा और समझा है, इसकी ताकत सामने आयी है, तो इसकी कई कमजोरियां भी उजागर हुई हैं। जिस तरह पूरे देश में आजकल सिर्फ और सिर्फ कोरोना संकट को लेकर माथापच्ची हो रही है, उसी तरह सरकार के विभागों में सबसे ज्यादा अगर किसी पर ध्यान जा रहा है, तो वह है स्वास्थ्य विभाग। झारखंड की सवा तीन करोड़ जनता का भी ध्यान यहां के स्वास्थ्य विभाग पर है। जनता हर दिन यह जानना चाहती है कि कोरोना महामारी से बाहर निकलने में यहां का स्वास्थ्य महकमा कितना चाक-चौबंद है, वह क्या इलाज लेकर आया है। कोरोना मरीजों को लेकर उसने किस तरह की व्यवस्था की है। कोरोना महामारी को मात देने के लिए अस्पताल से लेकर डॉक्टर, नर्स से लेकर लैब तकनीशियन तक कितने तैयार हैं। इन तमाम बिंदुओं पर हाल के दिनों में कई अवसरों पर स्वास्थ्य विभाग को आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा है। वह चाहे रिम्स के पूर्व निदेशक डीके सिंह का मामला हो या कोविड 19 को लेकर चाक-चौबंद व्यवस्था का, बेड की उपलब्धता का सवाल हो या कोरोना जांच का, स्वास्थ्य विभाग हर दिन परीक्षा के दौर से गुजर रहा है। स्वास्थ्य विभाग को जहां महामारी की चुनौती का सामना करने के लिए पिछले चार महीने में खुद को चाक-चौबंद कर लेना चाहिए था, वहां विभाग आज भी छोटी-छोटी समस्याओं को लेकर जूझ रहा है। कोरोना संकट के समय जहां एक तरफ झारखंड सरकार के तमाम विभाग सुर्खियां बटोर रहे हैं, प्रधानमंत्री आवास योजना में जहां देश स्तर पर प्रसिद्धि मिल रही है, मनरेगा में मजदूरों के हित में काम करके जहां झारखंड देश स्तर पर चर्चित हो रहा है, वहीं स्वास्थ्य विभाग के कुछ एक फैसले से राज्य में सरकार की घेराबंदी हो रही है। उसमें हाल का सबसे बड़ा मामला है झारखंड संक्रामक रोग अध्यादेश, जिसे लेकर राज्य में विपक्ष को जनता के पास जाने का एक बड़ा हथियार मिल गया है। क्या है उस फैसले में, और कहां हुई स्वास्थ्य विभाग से चूक, जिसके कारण उसे सफाई देनी पड़ रही है, उन तमाम बिंदुओं पर प्रकाश डालती आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

    झारखंड कैबिनेट की बैठक में बुधवार को झारखंड संक्रामक रोग अध्यादेश पर मुहर क्या लगी, विपक्ष को बैठे-बैठाये एक मुद्दा मिल गया। उस अध्यादेश की आलोचना हर आम और खास में होने लगी। भले ही उस अध्यादेश का परिनियम अभी तैयार नहीं हुआ हो, लेकिन विपक्ष के सशक्त प्रचार तंत्र ने आम जन तक यह संदेश पहुंचा दिया कि अगर आपने मास्क नहीं पहना है, तो आपको एक लाख रुपये जुर्माना और दो साल तक की कैद हो सकती है। इस खबर का आमजन में कितना असर रहा, यह इससे ही स्पष्ट हो जाता है कि बाद में स्वास्थ्य विभाग ने शुक्रवार को सफाई जारी कर कहा कि यह दंड की अधिकतम रकम है और अभी इस अध्यादेश का परिनियम तैयार हो रहा है, जिसमें अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग दंड का प्रावधान होगा। जाहिर है, यदि स्वास्थ्य विभाग कैबिनेट में प्रस्ताव भेजने से पहले तमाम बिंदुओं पर मंथन कर लेता और प्रस्ताव में बिंदुवार प्रावधान को मेंशन कर लेता, तो कैबिनेट की बैठक के बाद खबर की शक्ल में इसके वाक्य विन्यास से अर्थ का अनर्थ नहीं होता, कहीं कोई कन्फ्यूजन पैदा नहीं होता। न सरकार की आलोचना होती और न ही सफाई देनी पड़ती। दरअसल, कोरोना संकट के पिछले चार महीने के दौर में विभाग ने कई ऐसे फैसले लिये, जिनसे या तो पूरे राज्य में असमंजस की स्थिति बनी, या फिर उनका कोरोना के खिलाफ जंग पर विपरीत असर पड़ा। आम लोगों को अलग से परेशानी उठानी पड़ी। चाहे राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स के निदेशक का मामला हो या संक्रमितों के इलाज के लिए बेड की व्यवस्था करने का, स्वास्थ्य विभाग को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है।
    खतरनाक महामारी से जूझ रहे राज्य के लिए स्वास्थ्य विभाग के ऊपर महती जिम्मेदारी है। कहते हैं, संकट के समय ही मित्र की याद ज्यादा आती है। झारखंड के लोेगों को भी स्वास्थ्य विभाग की मित्र के रूप में ज्यादा जरूरत है। स्वास्थ्य विभाग को अपने संसाधनों को चाक-चौबंद करने, कोरोना योद्धाओं, मसलन डॉक्टरों, नर्सों और स्वास्थ्यकर्मियों को चुनौती से तैयार करने पर ही फोकस करना चाहिए था, वहां कहीं न कहीं उससे चूक हुई है। नतीजा यह हो रहा है कि असली परीक्षा के समय विभाग में अफरा-तफरी मच रही है। झारखंड में संक्रमितों की संख्या बढ़ी और बेड कम पड़ने लगे, तो आनन-फानन में 72 अतिरिक्त बेड की व्यवस्था की गयी। झारखंड की जनता को बेड या इलाज को लेकर कोई परेशानी न हो, इसे देखने के लिए रविवार को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन नये कोविड केंद्र में खुद गये। उन्होंने वहां कुछ आवश्यक निर्देश भी दिये।
    स्वास्थ्य विभाग से कहीं न कहीं चूक तो हुई है, जिसके कारण सरकार को सवालों के घेरे में खड़ा होना पड़ रहा है। विभाग को रक्षात्मक रवैया अपनाना पड़ रहा है। कोरोना संकट के दौर में जिस सरकार ने सामाजिक मोर्चे पर इतना बढ़िया काम किया और जिसके काम की चौतरफा तारीफ हुई, उसे एक विभाग के कारण डिफेंसिव मोड में आना पड़े, तो सवाल उठना स्वाभाविक है। लोग तो यह सवाल भी कर रहे हैं कि आखिर स्वास्थ्य विभाग को संकट के दौरान किस बीमारी ने जकड़ लिया है। इसलिए अब समय है कि झारखंड की स्वास्थ्य मशीनरी के पूरे सिस्टम को ठीक किया जाये। महामारी से लड़ने की सबसे बड़ी जिम्मेवारी इसी मशीनरी की है और यदि इसमें ही गड़बड़ी रहेगी, तो बाकी पूरा प्रयास बेकार हो जायेगा।
    सिस्टम को ठीक करने के लिए कड़े फैसले भी लिये जा सकते हैं, क्योंकि मर्ज को जड़ से मिटाने के लिए कभी-कभी कड़वी दवा जरूरी हो जाती है। जिस तरह झारखंड सरकार के दूसरे विभागों ने संकट के दौर में अपने काम की बदौलत तारीफ हासिल की है, स्वास्थ्य विभाग को भी इसके लिए सक्रिय होना जरूरी है। यह एक ऐसा विभाग है, जिसका लोगों के जीवन और स्वास्थ्य से सीधा संबंध है और यदि यह संबंध ही गड़बड़ा गया, तो न स्वास्थ्य रहेगा और न जीवन।

    Tough examination of Health Department in Jharkhand
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