बिहार में 12 जुलाई से ही खुल गये हैं स्कूल और कॉलेज : स्कूल-कॉलेज और कोचिंग संस्थानों के न खुलने से पढ़ाई का हो रहा नुकसान
झारखंड में कोरोना की दूसरी लहर लगभग नियंत्रित हो चुकी है। जनजीवन सामान्य हो चला है और बाजारों में रौनक लौट रही है। ऐसे में मांग उठ रही है कि पड़ोसी राज्य बिहार की तर्ज पर 50 फीसदी क्षमता के साथ झारखंड में भी स्कूल और कॉलेज खुलने चाहिए। यही नहीं कोचिंग संस्थानों को भी अब खोला जाना चाहिए। क्योंकि कोचिंग संस्थानों के बंद रहने से न सिर्फ कोचिंग संचालकों की हालत खराब है, बल्कि इससे जुड़े शिक्षकों की हालत भी बद से बदतर होती जा रही है। वहीं प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले अभ्यर्थियों के सामने भी मुश्किलें खड़ी हो रही हैं। कहने को तो आॅनलाइन शिक्षा जारी है मगर बिना स्कूल – कॉलेज और टेक्निकल इंस्टीट्यूट गये विद्यार्थियों की पढ़ाई कैसी चल रही है यह किसी से छुपा नहीं है। आॅनलाइन शिक्षा से बच्चों की आंखों और स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव अलग पड़ रहा है। झारखंड में बिहार की तर्ज पर 50 फीसदी क्षमता के साथ स्कूल और कॉलेजों को खोले जाने की मांग को रेखांकित करती दयानंद राय की रिपोर्ट।
वाकया 23 जुलाई का है। प्राइवेट स्कूल एंड चिल्ड्रेन वेलफेयर एसोसिएशन (पासवा) का एक तीन सदस्यीय शिष्टमंडल प्रदेश अध्यक्ष आलोक कुमार दुबे के नेतृत्व में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मिलता है। शिष्टमंडल उनसे राज्य में स्कूलों को खोलने पर विचार करने का आग्रह करता है। आलोक दुबे आग्रहपूर्वक मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से कहते हैं कि लंबे समय से स्कूल बंद रहने से घरों में रह रहे बच्चे कुंठित हो रहे हैं। मोबाइल और आॅनलाइन मोड में उनकी पढ़ाई ठीक से नहीं हो पा रही है, इसलिए किसी ऐसे मैकेनिज्म पर अब विचार करने का वक्त आ गया है, जिससे कम से कम आठवीं से 12वीं कक्षा तक के स्कूलों का खोला जा सके। देश के कई राज्यों ने इस दिशा में कदम भी उठाना शुरू कर दिया है। रोटेशन के आधार पर या 50 प्रतिशत अथवा 30 प्रतिशत विद्यार्थियों की उपस्थिति और कोविड-19 को लेकर जारी अन्य गाइडलाइन के अनुरूप स्कूल खोलने पर विचार किया जाना चाहिए। उनकी बातें सुनने के बाद मुख्यमंत्री भी स्वीकारते हैं कि कोरोना काल में बच्चों की पढ़ाई बाधित हुई है। वे शिक्षा विभाग के सचिव को इस दिशा में उचित कदम उठाने का निर्देश देते हैं। यह तो सिर्फ एक बानगी भर है। कोरोना की दूसरी लहर नियंत्रित होने पर राज्य के कोचिंग संचालक भी कोचिंग संस्थानों को खोलने की मांग राज्य सरकार से कर रहे हैं। झारखंड कोचिंग संघ के अध्यक्ष सुनील जायसवाल कहते हैं कि बिहार में स्कूल और कॉलेज खुल चुके हैं। ऐसे में अब राज्य सरकार को कोचिंग संस्थानों को खोलने की इजाजत भी देनी चाहिए। क्योंकि कोचिंग संस्थानों के बंद रहने से न सिर्फ विद्यार्थियों की पढ़ाई का नुकसान हो रहा है बल्कि कोचिंग संस्थानों के मालिकों की हालत भी खस्ता होती जा रही है।
आॅफलाइन कक्षाओं का कोई विकल्प नहीं
डीएवी हेहल के प्रिंसिपल एमके सिन्हा कहते हैं कि फिलहाल स्कूलों के पास आॅनलाइन कक्षाएं संचालित करने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है। इसके जरिये हम कोर्स पूरा करवा रहे हैं। वैसे बच्चे जो अच्छे परफार्मर हैं वे आॅनलाइन कक्षाओं में अच्छा कर रहे हैं। पर लो परफार्मर बच्चे जिनका प्रदर्शन आॅफलाइन कक्षाओं में ब्रश अप करके सुधारा जा सकता है उन्हें इसका मौका नहीं मिल पा रहा है। आॅफलाइन कक्षाओं में फेस टू फेस इंटरैक्शन होता है। इस दौरान बच्चे खुलकर शिक्षकों से कुछ पूछना है तो पूछ पाते हैं। यह आॅनलाइन कक्षाओं में नहीं हो पा रहा है। आॅफलाइन कक्षाओं का कोई विकल्प भी नहीं है।
बच्चों के साथ पैरेंट्स भी हैं परेशान
कोरोना काल में आॅनलाइन कक्षाओं ने बच्चों के साथ-साथ उनके अभिभावकों की भी परेशानियां बढ़ा दी हैं। अभिभावकों का कहना है कि कक्षाओं के बीच में नेटवर्क की समस्या से बच्चों को परेशानी होती है। आॅनलाइन कक्षाओं में बच्चे ठीक से पढ़ सकें इसके लिए अभिभावकों को भी उनका साथ देना होता है। इससे उनका समय बर्बाद होता है। स्कूल अपनी जिम्मेदारी इन कक्षाओं के जरिए अभिभावकों पर डाल रहे हैं। आॅनलाइन कक्षाओं में स्कूल का माहौल न होने से बच्चों का पढ़ाई में मन नहीं लग पाता है। आॅनलाइन कक्षाओं से बच्चों की आंखों और स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है। यही नहीं प्रयोगात्मक पढ़ाई के लिए आॅनलाइन कक्षाएं सफल साबित नहीं हो पा रही हैं।
देश की हालत और बदतर
आॅनलाइन शिक्षा की बात करें तो देश में हालत और बदतर है। आॅनलाइन शिक्षा मुट्ठी भर बच्चों तक ऐसे राज्यों में ही पहुंच पा रही है जहां बच्चों के पास स्मार्ट मोबाइल फोन के साथ इंटरनेट का ब्रॉडबैंड का नेटवर्क मौजूद है। भारत के ज्यादातर गांवों में तो बॉडबैंड है ही नहीं और अनेक गांवों में बिजली भी हरेक घर को नसीब नहीं है। ऐसे में बच्चे आॅनलाइन शिक्षा कैसे प्राप्त कर पाएंगे? जाहिर है कि वे बच्चे सिर्फ स्कूल में ही शिक्षा पा सकते हैं। यूजीसी के अनुसार भारत में 950 विश्वविद्यालय हैं जिनमें निजी विश्वविद्यालयों की संख्या 361 है। हालिया सर्वेक्षण के मुताबिक शैक्षणिक वर्ष 2019-20 में लगभग 7.7 लाख स्नातक विद्यार्थियों ने निजी विश्वविद्यालयों में दाखिला लिया। इनमें लड़कियों की संख्या लड़कों की अपेक्षा कम रही। इससे साफ है कि महामारी से पैदा आर्थिक संकट में बालिकाओं को सबसे पहले शिक्षा से महरूम किया जा रहा है।
राज्य में भी खुलने चाहिए स्कूल कॉलेज और कोचिंग संस्थान
यह साफ है कि यदि बिहार और मध्य प्रदेश में स्कूल-कॉलेजों को खोला जा सकता है तो झारखंड में भी कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए स्कूल-कॉलेजों और कोचिंग संस्थानों को खोला जाना चाहिए। इनके खुलने से न सिर्फ विद्यार्थियों की पढ़ाई का स्तर सुधरेगा बल्कि प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करनेवाले अभ्यर्थियों के लिए भी राह आसान होगी। यही नहीं वैसे विद्यार्थी जोे स्मार्टफोन और इंटरनेट के अभाव में पढ़ाई से वंचित हैं उनकी भी पढ़ाई शुरू हो पायेगी।