विशेष
-विपक्षी एकता के लिए खतरे की घंटी है महाराष्ट्र का सियासी फार्मूला
-क्या बिहार-यूपी में भी खेला जायेगा तोता उड़ मैना उड़ का खेल
-इस खेल का पहले ठाकरे फिर पवार हुए शिकार, आगे किसका नंबर
-महत्वाकांक्षी नेताओं को बल मिलेगा महाराष्ट्र के सियासी मेगा शो से

महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) में जो टूट हुई है, उसका ‘साइड इफेक्ट’ बिहार के साथ-साथ उत्तर प्रदेश में भी महसूस किया जा रहा है। महाराष्ट्र में एनसीपी की टूट के बाद बिहार में विपक्षी दलों का दावा है कि महाराष्ट्र की कहानी खासकर बिहार में भी दोहरायी जा सकती है। देखा जाये, तो सुशील मोदी, सम्राट चौधरी, उपेंद्र कुशवाहा, चिराग पासवान और जीतन राम मांझी समेत विपक्षी पार्टियों के दूसरे नेताओं ने दावा किया है कि बिहार में भी महाराष्ट्र के सियासी फॉर्मूले को बहुत जल्द दोहराया जा सकता है। वैसे महाराष्ट्र के सियासी भूचाल में कई संदेश छिपे है। एकनाथ शिंदे वाला फार्मूला कई राजनीतिक दलों के महत्वाकांक्षी नेताओं को लुभा रहा है। खासकर जिन्हें लगता है कि पार्टी तो वही चला रहे हैं, सारा काम-धाम तो वही संभाल रहे हैं और नाम हो रहा है आलाकमान का। इस क्रम में दिक्कत उन्हें हो रही है, जिन्हें लगता है कि पार्टी उनकी बपौती है, पार्टी में लोग उनके सेवक हैं। वे बरसों बोयी हुई फसल को काटेंगे और खायेंगे। लेकिन राजनीति तो वही होती है, जहां कोई नीति स्थायी नहीं होती। आलाकमान को जब लगने लगे कि वह जो बोलेगा, वही शासन होगा, तो आज के दौर में यह उसकी भूल है। यहां तो भतीजा भी चाचा से यह उम्मीद रखता है कि आलाकमान अपने पुत्र या पुत्री को दरकिनार कर राजपाट की कमान उसे ही दे। ऐसा वहीं होता है, जहां परिवारवाद होता है। पहले शिवसेना और अभी हाल में एनसीपी में वही देखने को मिला। बाला साहेब ठाकरे बनाम राज ठाकरे, अजित पवार बनाम शरद पवार। यहां भतीजों ने ही बगावत कर दी। लेकिन दोनों ने अपने पुत्र या पुत्री को ही पार्टी की कमान सौंपी। फिलहाल शिंदे फार्मूला से शिवसेना के बाद एनसीपी में फूट पड़ गयी है। या यूं कहें कि एनसीपी पर कब्जा हो गया है। सत्ता की लालच में पार्टी के मुखिया शरद पवार से उनके भतीजे अजित पवार ने बगावत कर दी है। अजित पवार ने 40 विधायकों के समर्थन का दावा करते हुए एनडीए का दामन थाम लिया है। एकनाथ शिंदे का फार्मूला अजित पवार को लुभा गया। यही फार्मूला अब विपक्ष के लिए 2024 में खतरनाक साबित हो सकता है। महाराष्ट्र में हुए इस सियासी उठापटक के बाद यूपी-बिहार समेत कई राज्यों में हलचल तेज हो गयी है। दावा तो यहां तक किया जा रहा है कि जल्द ही यूपी और बिहार से कई विपक्षी दल एनडीए में शामिल हो सकते हैं। अगर ऐसा होता है, तो लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष को बड़ा झटका लगना तय है। कैसे महाराष्ट्र फार्मूला बिगाड़ सकता है बिहार-यूपी में विपक्षी एकता का खेल, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

भतीजे ने चाचा पवार को पद से हटाने का किया दावा, चाचा ने कहा खोटा सिक्का निकला अजित
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के दोनों गुटों ने बुधवार को शक्ति प्रदर्शन किया। एनसीपी प्रमुख अजित पवार और शरद पवार की ओर से विधायकों को बैठक में उपस्थित रहने के लिए व्हिप जारी किया गया। हालांकि, बैठक की बात करें तो इसमें राकांपा का संख्याबल अजित पवार के साथ दिखा है। पार्टी के 53 में से 35 विधायक उनके साथ बैठक के लिए पहुंचे हैं। ऐसे में शरद पवार के लिए आने वाले समय में राकांपा के अस्तित्व को अपने नेतृत्व में रखने की उम्मीदों को बड़ा झटका लग सकता है। देखा जाये तो अजित पवार और शरद पवार के बीच की लड़ाई अब और ज्यादा बढ़ गयी है। अजित पवार ने चाचा शरद पवार को एनसीपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटा दिया है। अजित पवार खुद ही एनसीपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गये हैं। अजित पवार ने दावा किया है कि 30 जून को कार्यकारिणी की बैठक हुई थी, एनसीपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में शरद पवार को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से शरद पवार को हटाने के संबंध में प्रस्ताव पारित हुआ था। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें अध्यक्ष चुन लिया गया था। उन्होंने कहा कि प्रफुल्ल पटेल ने यह बैठक बुलायी थी। वहीं शरद पवार ने भतीजे अजित पवार पर बरसते हुए कहा कि एनसीपी का चुनाव चिह्न हमारे साथ है, इसे नहीं जाने दूंगा। लोग और पार्टी कार्यकर्ता हमारे साथ हैं जो हमें सत्ता तक लेकर आये। मेरी तस्वीर क्यों इस्तेमाल कर रहे हैं। अजित पवार खोटा सिक्का निकला।

क्या बिहार में खेला जायेगा ‘तोता उड़, मैना उड़’ का खेल
महाराष्ट्र में हुई सियासी उथलपुथल के बाद जिस राज्य में इस तरह की टूट की बातें सबसे ज्यादा हो रही हैं, वह है बिहार। सोमवार को ही लोजपा (आर) सुप्रीमो चिराग पासवान ने दावा किया कि जल्द ही महागठबंधन की सरकार टूट सकती है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी के कई विधायक और सांसद एनडीए के संपर्क में हैं। चिराग पासवान ने कहा कि जिस तरह से मुख्यमंत्री अपने विधायकों और सांसदों से मुलाकात कर रहे हैं, उससे यह स्पष्ट है कि उन्हें उनकी पार्टी टूटने का डर है। वहीं भाजपा नेता सुशील मोदी ने भी कुछ इसी तरह की बात कही। फिलहाल महाराष्ट्र के बाद लोगों को लग रहा है कि बिहार में कहीं विधायकों का हाल ‘तोता उड़ मैना उड़’ जैसा न हो जाये।

उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी छोड़ चुके हैं नीतीश का साथ
बीते दिनों ही पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के बेटे संतोष सुमन ने अचानक बिहार सरकार के मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। संतोष सुमन अपनी पार्टी हम के अध्यक्ष भी हैं। इसके बाद जीतनराम मांझी ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात करके एनडीए में शामिल होने का एलान कर दिया। पूरे बिहार की बात करें, तो अभी एनडीए के साथ लोक जनशक्ति पार्टी के पशुपति पारस वाला गुट और जीतनराम मांझी की पार्टी हम है। इसके अलावा आरएलजेडी के उपेंद्र कुशवाहा, चिराग पासवान की लोजपा (आर) और विकासशील इंसान पार्टी का साथ भी एनडीए को मिल सकता है। 2014 में भी कुशवाहा-मांझी और लोजपा एनडीए के साथ थे। तब लोजपा ने छह, उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी ने तीन और भाजपा ने 22 सीटें जीती थीं। इस बार भी कुछ ऐसा ही सीट बंटवारा हो सकता है। इसमें हम के मांझी और वीआइपी के मुकेश सहनी को एक-दो सीटें मिल सकती हैं।

‘जदयू के कई विधायक और सांसद दूसरी पार्टी के संपर्क में’
लोजपा (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान का कहना है कि एनसीपी में टूट को लेकर नीतीश कुमार को भी जदयू टूटने का डर सता रहा है। चिराग ने दावा किया कि उनके कई विधायक और सांसद दूसरी पार्टी के संपर्क में हैं। उन्होंने यहां तक कहा कि जदयू के कई नेता तो मेरे संपर्क में भी हैं। वहीं राष्ट्रीय लोक जनता दल (रालोजद) के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने साफ कहा कि देश में जिस तरह विपक्षी एकता की कोशिश चल रही थी, उसमें महाराष्ट्र की घटना स्वाभाविक है। उन्होंने बिहार की तरफ इशारा करते हुए कहा कि आगे आने वाले दिनों में देखिए क्या-क्या होता है। उधर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी का कहना है कि नीतीश कुमार राजनीतिक तौर पर समाप्त हो गये हैं। उनके विधायक भी यह जान रहे हैं कि यही स्थिति रही, तो आगे चुनाव में जीत मुश्किल हो जायेगी। यही कारण है कि उनके विधायक ठिकाना ढूंढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि किसी के भाजपा में आने का प्रस्ताव आयेगा, तो देखा जायेगा। वहीं सुशील कुमार मोदी का कहना है कि शरद पवार की पार्टी एनसीपी में विद्रोह विपक्षी एकता की पटना बैठक का परिणाम है। जल्द ही जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) में भी भगदड़ मचने वाली है। नीतीश कुमार ने छह दिन पहले विधायकों-पार्षदों से मुलाकात की थी। शनिवार और रविवार को उन्होंने सांसदों को मिलने के लिए बुलाया था। इसे लेकर सुशील मोदी का दावा है कि नीतीश को टूट का डर है, जिसकी वजह से वह अपनों को मनाने में जुटे हैं।

लालू परिवार पर चार्जशीट का क्या होगा सियासी असर
नौकरी के लिए जमीन घोटाला मामले में सीबीआइ ने बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव समेत कई अन्य के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी है। दिल्ली के राउज एवेन्यू कोर्ट में चार्जशीट दाखिल करने के बाद एक बार फिर से बिहार में सियासी हलचल तेज हो गयी है। साल 2017 में भी जब सीबीआइ ने आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव, उनकी पत्नी राबड़ी देवी और तत्कालीन डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव समेत 11 लोगों को आरोपी बनाया था, उस वक्त भी तेजी से राजनीतिक परिस्थितियां बदली थीं। एक बार फिर राजनीतिक हलचल बढ़ गयी है। राजनीतिक विश्लेषक यह अनुमान लगाने में व्यस्त हैं कि वर्ष 2017 की तरह सीएम नीतीश फिर से तेजस्वी यादव को कोई सलाह देंगे, या फिर इस बार वह चुप्पी साधे रखेंगे। क्या बिहार में फिर से कोई पलटी मरेगा, यह सवाल अब हवा में तैरने लगा है।

वैसे भी नीतीश खुद को हमेशा असुरक्षित महसूस करते हैं
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बारे में अब यह सुरक्षित रूप से कहा जा सकता है कि वह खुद को हमेशा असुरक्षित महसूस करते हैं, जिनके साथ हैं, उनसे भी और जो विरोधी हैं, उनसे भी। इतना ही नहीं, बिहार की जनता के प्रति भी खुद को लेकर उनके मन में असुरक्षा की ही भावना है। आखिर तभी तो राजधानी पटना में कभी शिक्षक, कभी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, तो कभी छात्रों की पिटाई होती है। लेकिन अब जब भाजपा ने अपने साथ जीतनराम मांझी की हम, लोजपा के दोनों धड़ों, मुकेश सहनी और उपेंद्र कुशवाहा को अपने साथ जोड़ लिया है, ऐसे में इस प्रकार की हर एक घटना पर भी चौतरफा प्रहार होगा।

यूपी में भी सियासी हलचल तेज
उत्तर प्रदेश में भी तेजी से सियासी समीकरण बदलते हुए दिख रहे हैं। सपा के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ने वाली ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी की नजदीकियां एक बार फिर से भाजपा के साथ बढ़ती दिख रही हैं। अटकलें हैं कि लोकसभा चुनाव से पहले ओम प्रकाश राजभर फिर से एनडीए में शामिल हो सकते हैं। महाराष्ट्र के घटनाक्रम के बाद राजभर ने दावा किया कि सपा में भी ऐसी ही टूट हो सकती है। उन्होंने कहा कि सपा के विधायकों को पार्टी में कोई भविष्य नहीं दिख रहा है। जल्द ही कई विधायक पार्टी से अलग होकर सरकार में शामिल हो सकते हैं। इसके अलावा पश्चिमी यूपी में सपा को मजबूत बनाने वाले जयंत चौधरी के भी एनडीए में शामिल होने के कयास लगाये जाने लगे हैं। केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले भी इसका दावा तक कर चुके हैं। जयंत 23 जून को पटना में हुई विपक्ष की बैठक में भी शामिल नहीं हुए थे। दावा किया जा रहा है कि पिछले कुछ वर्षों में जयंत की पार्टी का प्रदर्शन भी काफी अच्छा नहीं रहा है। ऐसे में जयंत अपनी पार्टी के भविष्य की संभावनाएं तलाश रहे हैं। यूपी में एनडीए गठबंधन में पहले से ही अपना दल (एस) और निषाद पार्टी हैं। लोकसभा चुनाव से पहले जनसत्ता लोकतांत्रिक पार्टी का भी साथ मिल सकता है। बसपा पर भी बीते कुछ वर्षों से अंदरखाने भाजपा से समझौते के आरोप लगते रहे हैं। अखिलेश की पार्टी अक्सर बसपा को भाजपा की बी टीम बताती रही है। हालांकि, बसपा भी यही आरोप सपा पर लगाती है।
खैर देखा जाये, तो महाराष्ट्र में हुए सियासी खेल से विपक्षी एकता को करारा झटका लगा है। बैठक की तारीख भी बार-बार बदल रही है। बिहार में 23 जून को हुई विपक्ष की बैठक के बाद कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने कहा था कि 11 या 12 जुलाई को शिमला में अगली बैठक होगी। इसके बाद कहा गया कि यह बैठक शिमला की जगह जयपुर में हो सकती है। हालांकि, बाद में 13-14 जुलाई को बेंगलुरू में बैठक होने की जानकारी दी गयी। अब महाराष्ट्र में हुए सियासी घटनाक्रम के बाद यह तारीख टाल दी गयी है। कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा कि अब यह बैठक 17-18 जुलाई को बेंगलुरु में ही होगी। राजनीतिक जानकार कहते हैं कि विपक्षी एकता में इस फूट का दोहरा असर पड़ सकता है। पहला यह कि महाराष्ट्र जैसी ही तोड़फोड़ की बातें बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों की विपक्षी पार्टियों में भी होने की लगी हैं। अगर ऐसा ही मॉडल महाराष्ट्र के बाद बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भी लागू होता है, तो 2024 के लोकसभा चुनाव में एक ही पार्टी के दो-दो गुट चुनावी मैदान में होंगे। इससे वोटों का बिखराव होगा, जिसका फायदा भाजपा को हो सकता है। दूसरा असर यह कि इस टूट के बाद देश की अन्य विपक्षी पार्टियां सतर्क हो गयी हैं। ऐसे में जो दल अब तक विपक्षी गठबंधन में शामिल होने से हिचक रहे थे, वे भी अब एक मंच पर आ सकते हैं। अब ये विपक्षी दल अपने अस्तिव को बचाने के लिए लड़ाई लड़ेंगे।

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